Thursday 4 January 2018

भीमा कोरेगांव की हिंसा पर मीडिया कर रहा है दुष्प्रचार क्या मीडिया का काम आग लगाना है ?

एस एम फ़रीद भारतीय
आज देश में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भीमा कोरेगांव का नाम जोरों पर है यहां जो हिंसा हाल ही में हुई उसको लेकर भारत का मीडिया हमेशा की तरह भ्रामक खबरें देखकर दुष्प्रचार कर रहा है.

वास्तविकता यह है कि 1 जनवरी 1818 को भीमा कोरेगांव में पेशवा ब्राह्मणों के खिलाफ लड़ाई हुई थी, जिसमें पेशवा ब्राह्मण सैनिकों की संख्या 28 हजार और 500 शूरवीर नाग महार बहुजन थे, उस ऐतिहासिक लड़ाई में उन 500 बहुजन सैनिकों ने पेशवाओं को मार गिराया था, इस घटना
को 1 जनवरी 2018 को 200 साल पूरे होने पर बामसेफ भारत मुक्ति मोर्चा बहुजन मुक्ति पार्टी सहित 200 भारतीय मूल निवासी संगठनों ने देशभर मे भीमा कोरेगांव स्मृति 200 वे क्रांति वर्ष को देशभर में मनाया.
बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी भी प्रत्येक वर्ष भीमा कोरेगांव विजय क्रांति स्तंभ पर जाकर उन 500 शूरवीरों नागवंशी लोगों को कार्यकर्ता समेत अभिवादन करते थे.
31 दिसंबर 1817 को कैप्टन स्टाटन के नेतृत्व में मुंबई नेटिव इन्फेंट्री के 500 नागवंशी लोगों के माध्यम से 28000 पेशवा ब्राह्मणों से खुली जंग हुई थी, भीमा कोरेगांव की लड़ाई में बाजीराव पेशवा का सेनापति बापू गोखले का लड़का मारा गया था। जिन पेशवाओ ने अछूतों के गले में मटका और पीछे झाड़ू लटकाने का आदेश दिया था, यहां तक की जमीन पर थूकने की आजादी भी नहीं थी, उस पेशवाई को 1 जनवरी 1818 को मिट्टी में मिला दिया, उस पेशवाई में मनुस्मृति का अमल था, पेशवा पिछड़ा वर्ग आदिवासी घुमंतू जनजाति और मुस्लिमों तथा समस्त ओबीसी के ऊपर जुल्म ढाए जा रहा था.
  ज़ुल्म की पराजय में पूना के भीमा कोरेगांव स्थित स्थल पर ऐतिहासिक द्विशताब्दी वर्ष के अवसर पर ऐतिहासिक महा रैली का आयोजन किया गया था। इस महा रैली में लाखों की तादाद में भारत के मूलनिवासी समाज के लोग शामिल हुए और यह प्रत्येक वर्ष पिछले 200 वर्षो से यहां पर ऐसी ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । जब मूलनिवासी समाज के लोग इस विजय स्तंभ पर जश्न मनाने जा रहे थे तो भाजपा RSS के लोगों ने मूलनिवासी SC ST OBC के लोगों पर पथराव कर दिया.
उसके बाद यह सारी घटना हुई जबकि भारत का मीडिया हमेशा की तरह इस बात का दुष्प्रचार कर रहा है कि अंग्रेजों की जीत पर दलित जश्न मना रहे थे, उसके बाद हिंसा हुई, यह कतई तौर पर गलत है यह बिकाऊ मीडिया इस तरह का दुष्प्रचार कर रहा है.
अब सवाल ये है कि मीडिया सच को छुपाकर क्यूं दुष्प्रचार करने मैं लगी है, क्या ये देश मैं तबाही मचवाना चाहते हैं ओर एक सवाल ऐसे लोगो से भी है जो इन चैनलस या अख़बार को ख़रीदकर इनका मान बढ़ा रहे हैं बंद कर देना चाहिए यही इनकी सज़ा ओर सबक है.
किसने क्या कहा ?
पुणे ज़िले के भीमा-कोरेगांव में दलित समुदाय के लोग पेशवा की सेना पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की जीत का जश्न मनाते हैं. हिंसा की वजह से औरंगाबाद में पथराव और आगज़नी की घटनाएं हुईं. मुंबई के पूर्वी उपनगरों में तनाव. (साभार: एएनआई)

पुणे: पुणे ज़िले में भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान सोमवार को हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई है. इस लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को हराया था.
दलित नेता ब्रिटिश सेना की इस जीत का जश्न मनाते हैं. ऐसा समझा जाता है कि तब अछूत समझे जाने वाले महार समुदाय के सैनिक ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की ओर से लड़े थे.
भीमा-कोरेगांव की लड़ाई एक जनवरी 1818 को लड़ी गई थी. कुछ विचारक और चिंतक इस लड़ाई पिछड़ी जातियों के उस समय की उच्च जातियों पर जीत के रूप में देखते हैं. हालांकि, पुणे में कुछ दक्षिणपंथी समूहों ने इस जीत का जश्न मनाए जाने का विरोध किया था.
पुलिस ने बताया कि जब लोग गांव में युद्ध स्मारक की ओर बढ़ रहे थे तो सोमवार दोपहर शिरूर तहसील स्थित भीमा-कोरेगांव में पथराव और तोड़-फोड़ की घटनाएं हुईं.
एक शीर्ष पुलिस अधिकारी ने सोमवार देर शाम समाचार एजेंसी पीटीआई/भाषा को बताया कि हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हुई है. हालांकि, उसकी पहचान और कैसे उसकी मौत हुई इसका अभी ठीक-ठीक पता नहीं चला है.

हिंसा तब शुरू हुई जब एक स्थानीय समूह और भीड़ के कुछ सदस्यों के बीच स्मारक की ओर जाने के दौरान किसी मुद्दे पर बहस हुई. भीमा-कोरेगांव की सुरक्षा के लिए तैनात एक पुलिस अधिकारी ने बताया, बहस के बाद पथराव शुरू हुआ. हिंसा के दौरान कुछ वाहनों और पास में स्थित एक मकान को क्षति पहुंचाई गई.
एबीपी न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा में 25 से अधिक गाड़ियां जला दी गईं और 50 से ज़्यादा गाड़ियों में तोड़-फोड़ की गई.
शीर्ष पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिस ने घटना के बाद कुछ समय के लिए पुणे-अहमदनगर राजमार्ग पर यातायात रोक दिया. उन्होंने बताया कि गांव में अब हालात नियंत्रण में है.

अधिकारी ने बताया, राज्य रिज़र्व पुलिस बल की कंपनियों समेत और पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है. उन्होंने बताया कि मोबाइल फोन नेटवर्क को कुछ समय के लिये अवरूद्ध कर दिया गया ताकि भड़काऊ संदेशों को फैलाने से रोका जा सके.
भीमा-कोरेगांव में हुए कार्यक्रम को लेकर लोगों का आक्रोश मंगलवार को भी जारी रहा और प्रदर्शनकारियों ने हार्बर लाइन पर उपनगरीय एवं स्थानीय ट्रेन सेवाएं बाधित कर दीं.

भीमा कोरगांव में हुई हिंसा के विरोध में मंगलवार को मुंबई में दलित समुदाय के लोगों ने प्रदर्शन किया. (पीटीआई)
प्रदर्शनकारियों में मुंबई के कई इलाकों में सड़कें अवरूद्ध कर दीं, दुकानें बंद करा दीं और एक टेलीविजन समाचार चैनल के पत्रकार पर हमला भी किया.

ताजा घटनाक्रम में मध्य रेलवे ने अपने हार्बर कॉरिडोर पर कुर्ला और वाशी के बीच उपनगरीय सेवाएं निलंबित कर दी और सीएसएमटी-कुर्ला एवं वाशी-पनवेल खंड के बीच विशेष सेवाएं चला रही है.
मध्य रेलवे के सभी स्टेशनों पर इस सेवा की घोषणा की जा रही है. एक अधिकारी ने बताया कि पुणे में सोमवार को युद्ध की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में एक व्यक्ति की मौत से आक्रोशित लोगों के समूहों ने मंगलवार सुबह शहर के पूर्वी उपनगरीय इलाकों चेम्बूर, विखरोली, मानखुर्द और गोवंडी में विरोध प्रदर्शन किया और दुकानों एवं प्रतिष्ठानों को बंद करने पर मजबूर कर दिया.
प्रदर्शनकारियों ने बताया कि अमर महल इलाके में विरोध प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने एक टीवी समाचार चैनल के एक पत्रकार पर हमला किया. हालांकि वह बच गया.
अधिकारी ने कहा कि ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर प्रियदर्शन, कुर्ला, सिद्धार्थ कॉलोनी और अमर महल इलाकों में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की भीड़ जुट गई और उन्होंने जुलूस निकाला एवं सरकार तथा प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की. प्रदर्शनकारियों ने हार्बर लाइन के गोवंडी एवं चेंबूर रेलवे स्टेशनों पर स्थानीय ट्रेन सेवाएं रोक दीं.

इस हिंसा के ख़िलाफ़ औरंगाबाद में भी प्रदर्शन हुए. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया. प्रदर्शन के दौरान आगज़नी भी की गई. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक औरंगाबाद में रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन के दौरान पुलिस पर पत्थरबाज़ी की.
औरंगाबाद में रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन के दौरान पुलिस पर पत्थर फेंके. (पीटीआई)

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट से मामले की न्यायिक जांच के लिए आग्रह किया जाएगा. इसके अलावा एक युवा की मौत के मामले की जांच सीआईडी करेगी. मृतक के परिजन को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाएगा.
टाइम्स आॅफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्यमंत्री रामदास अठावले ने दलित परिवारों को पुलिस सुरक्षा दिए जाने की मांग की है.

रिपोर्ट के अनुसार, दलित नेता और गुजरात से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी ने हिंसा से पहले गांव में बने युद्ध स्मारक का दौरा किया था. 31 दिसंबर को मेवाणी पुणे में हुई यलगार परिषद में भी शामिल हुए थे.
राकांपा प्रमुख शरद पवार ने कहा कि वहां पिछले 200 सालों से लोग जा रहे हैं, लेकिन ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. यह ज़ाहिर था कि वहां ज़्यादा लोग जमा होंगे ऐसे में वहां ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत थी.
पवार ने पुणे जिले में हुई हिंसा के लिए प्रशासन को ज़िम्मेदार ठहराते हुए मामले में जांच की मांग की है. शांति की अपील करते हुए पवार ने कहा कि राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों के लोगों को उत्तेजित करने वाले बयान दिए बगैर ही स्थिति का सामना संयम से करना चाहिए.
पवार ने ट्वीट किया, हिंसा सही नहीं है. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने अपील की, ‘प्रशासन के एहतियात नहीं बरतने की वजह से अफ़वाहें और गलतफ़हमी फैली. नांदेड़ में एक युवक का निधन दुर्भाग्यपूर्ण है. राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों के लोगों को उत्तेजित करने वाला कोई बयान दिए बगैर ही स्थिति का सामना सौहार्दपूर्वक एवं संयम से करना चाहिए.’
डीएनए से बातचीत में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (पूर्वी क्षेत्र) ने कहा कि चेंबूर और गोवंडी में पुलिस और वाहनों पर पथराव हुआ है. हमारा एक पुलिसकर्मी पथराव की वजह से घायल हुआ है. पत्थरबाज़ों पर कार्रवाई की जाएगी. (समाचार एजेंसी भाषा से साभार)
क्या हुआ था 1 जनवरी 1818 को, पूरा इतिहास ?
कोरेगांव की महार क्रांति (1जनवरी 1818)
संसार के इतिहास में पहली बार एक ऐसा घमासान युद्ध लड़ा गया, जिसमेेें बाप और बेटा एक साथ जंग लड़े और जंग जीती है.

कोरेगांव का परिचय:
कोरेगांव महाराष्ट्र प्रदेश के अन्तर्गत पूना जनपद की शिरूर तहसील में पूना नगर रोड़ पर भीमा नदी के किनारे बसा हुआ एक छोटा सा गांव है, इस गांव को नदी के किनारे बसा होने के कारण ही इसको भीमा कोरे गांव कहते हैं।इस गांव से गुजरने वाली नदी को भीमा नदी कहते हैं। इस गांव की पूना शहर से दूरी 16 मील है.

पेशवाई शासकों का अमानवीय अत्याचार:
इनके शासन में अछूतों पर अमानवीय अत्यारों की बाढ थी.

1: "पेशवाओं ( ब्राह्मणों) के शासन काल में यदि कोई सवर्ण हिन्दू सड़क पर चल रहा हो तो वहां अछूत को चलने की आज्ञा नहीं होती थी ताकि उसकी छाया से वह हिन्दू भ्रष्ट न हो जाय। अछूत को अपनी कलाई या गले में निशान के तौर पर एक काला डोरा बांधना पडंता था। ताकि हिन्दू भूल से स्पर्श न कर बैठे।"
2: "पेशवाओं की राजधानी पूना में अछूतों के लिए राजाज्ञा थी कि वे कमर में झाडू बांधकर चलें। चलने से भूमि पर उसके पैरों के जो चिन्ह बनें उनको उस झाडू से मिटाते जायें, ताकि कोई हिन्दू उन पद चिन्हों पर पैर रखने से अपवित्र न हो जाय। पूना में अछूतों को गले में मिट्टी की हाड़ी लटका कर चलना पड़ता था ताकि उसको थूकना हो तो उसमें थूके। क्योंकि भूमि पर थूकने से यदि उसके थूक से किसी हिन्दू का पांव पड़ गया तो वह अपवित्र हो जायेगा।"
पेशवाओं के घोर अत्याचारों के कारण महारों में अन्दर ही अन्दर असन्तोष व्याप्त था। वे पेशवाओं से इन जुल्मों का बदला लेने के लिए मौके की तलाश में थे। जब महारों का स्वाभिमान जागा, तब पूना के आस-पास के महार लोग पूना आकर अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए। इसी का प्रतिफल कोरेगांव की लडाई का गौरवशाली इतिहास है।
कोरेगांव की लडा़ई का गौरवशाली इतिहास:
अंग्रेजों की बम्बई नेटिव इंफैंट्री (महारों की पैदल फौज) फौज अपनी योजना के अनुसार 31दिसम्बर 1817 ई. की रात को कैप्टन स्टाटन शिरूर गांव से पूना के लिए अपनी फौज के साथ निकला। उस समय उनकी फौज "सेकेंड बटालियन फसर्ट रेजीमेंट" में मात्र 500 महार थे। 260 घुड़सवार और 25 तोप चालक थे। उन दिनों भयंकर सर्दियों के दिन थे। यह फौज 31दिसम्बर 1817 ई.की रात में 25 मील पैदल चलकर दूसरे दिन प्रात: 8 बजे कोरेगांव भीमा नदी के एक किनारे जा पहुंची.

1जनवरी सन 1818 ई.को बम्बई की नेटिव इंफैन्टरी फौज( पैदल सेना) अंग्रेज कैप्टन स्टाटन के नेत्रत्व में नदी के एक तरफ थी।
दूसरी तरफ बाजीराव की विशाल फौज दो सेनापतियों रावबाजी और बापू गोखले के नेत्रत्व लगभग 28 हजार सैनिकों के साथ जिसमें दो हजार अरब सैनिक भी थे,सभी नदी के दूसरे किनारे पार काफी दूर-दूर तक फैले हुए थे।"1जनवरी सन 1818को प्रात:9.30
बजे युद्ध शुरू हुआ। भूखे-थके महार अपने सम्मान के लिए बिजली की गति से लड़े। अपनी वीरता और बुद्धि बल से 'करो या मरो' का संकल्प के साथ समय-समय पर ब्यूह रचना बदल कर बड़ी कड़ाई के साथ उन्होंने पेशवा सेना का मुकाबला किया। युद्ध चल रहा था। कैप्टन स्टाटन ने पेशवाओं की विशाल सेना को देखते हुएअपनी सेना को पीछे हटने के लिए याचना की.

महार सेना ने अपने कैप्टन के आदेश की कठोर शब्दों में भर्तसना करते हुए कहा हमारी सेना पेशवाओं से लड़कर ही मरेगी किन्तु उनके सामने आत्म समर्पण नहीं करेगी, न ही पीछे हटेगी,हम पेशवाओं को पराजित किए बिना नहीं हटेंगे। मर जायेंगे। यह महारों का आपसे वादा है।" महार सेना अल्पतम में होते हुए भी पेशवा सेनिकों पर टूट पड़े, तबाई मच गयी।लड़ाई निर्णायक मोड पर थी। पेशवा सेना एक-एक कदम पीछे हट रही थी। लगभग सांय 6 बजे महार सैनिक नदी के दूसरे किनारे पेशवाओं को खदेड़ते-खदेड़ते पहुंच गये और पेशवा फौज लगभग 9 बजे मैदान छोड़कर भागने लगी। इस लड़ाई में मुख्य सेनापति रावबाजी भी मैदान छोड़ कर भाग गया परन्तु दूसरा सेनापति बापू गोखले को भी मैदान छोड़कर भागते हुए को महारों ने पकड़ कर मार गिराया।इस प्रकार लड़ाई एक दिन और उसी रात लगभग 9.30 बजे लगातार 12 घंटे तक लड़ी गयी जिसमें महारों ने अपनी शूरता और वीरता का परिचय देकर विजय हांसिल की।महारों की इस विजय ने इतिहास में जुल्म करने वाले पेशवाओं के पेशवाई शासन का हमेशा के लिए खात्मा कर दिया। भारतीय इतिहास की यह घटना मूलनिवासियों के लिए एक अनूठी मिशाल बनकर हमेशा ऊर्जा प्रदान करती रहेगी.
कोरेगांव का क्रान्ति स्तम्भ क्या है ?
कोरेगांव के मैदान में जिन महार सैनिकों ने वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया।उनकी याद में अंग्रेजों ने उनके सम्मान में सन 1822 ई.में कोरेगांव में भीमा नदी के किनारे काले पत्थरों का क्रान्ति स्तम्भ का निर्माण किया। सन 1822 ई. में बना यह स्तम्भ आज भी महारों की वीरता की गौरव गाथा गा रहा है।महारों की वीरता के प्रतीक के रूप में अंग्रेजों ने जो विजय स्तम्भ बनवाया है, वहां उन्होंने महारों की वीरता के सम्बन्ध में अंग्रेजों ने स्तुति युक्त वाक्य लिखा-
"One of the pr0udest traimphs of the British Army in the east "ब्रिटिश सेना को पूरब के देशों में जो कई प्रकार की जीत हांसिल हुई उनमें यह अदभुत जीत है.

इस स्तम्भ को हर साल 1 जनवरी को देश की सेना अभिवादन करने जाती थी। इसे सर्व प्रथम "महार स्तम्भ" के नाम से सम्बोधित किया जाता था। बाद में इसे विजय या फिर "जय स्तम्भ" के नाम से जाना गया। आज इसे क्रान्ति स्तम्भ के नाम से पुकारा जाता है, जो सही दृष्टि में ऐतिहासिक क्रान्ति स्तम्भ है।
यह स्तम्भ 25 गज लम्बे 6गज चौडे और 6गज ऊंचे एक प्लेट फार्म पर स्थापित 30 गज ऊंचा है तथा जैसे-जैसे ऊपर जायेगा, उसकी चौड़ाई कम होती जायेगी। जिसको सुरक्षा की दृष्टि से लोहे की ग्रिल से कवर किया गया है।

इस लड़ाई में पेशवाओं की हार हुई और महार सैनिकों के दमखम की वजय से अंग्रेज विजयी हुए।कोरे गांव के युद्ध में 20 महार सैनिक और 5 अफसर शहीद हुए। शहीद हुए महारों के नाम, उनके सम्मान में बनाये गये स्मारक (स्तम्मभ) पर अंकित हैं। जो इस प्रकार हैं-
1:गोपनाक मोठेनाक
2:शमनाक येशनाक
3:भागनाक हरनाक
4:अबनाक काननाक
5:गननाक बालनाक
6:बालनाक घोंड़नाक
7:रूपनाक लखनाक
8:बीटनाक रामनाक
9:बटिनाक धाननाक
10:राजनाक गणनाक
11:बापनाक हबनाक
12:रेनाक जाननाक
13:सजनाक यसनाक
14:गणनाक धरमनाक
15:देवनाक अनाक
16:गोपालनाक बालनाक
17:हरनाक हरिनाक
18जेठनाक दीनाक
19:गननाक लखनाक 
इस लड़ाई में महारों का नेत्रत्व करने वालों के नाम निम्न थे-
रतननाक
जाननाक
और भकनाक आदि

इस संग्राम में जख्मी हुए योद्धाओं के नाम निम्न प्रकार हैं-
1:जाननाक
2:हरिनाक
3:भीकनाक
4:रतननाक
5:धननाक
आज भी महार रेजीमेंट के सैनिकों बैरी कैप पर कोरेगांव की लड़ाई की याद में बनाए इस स्तम्भ की निशानी को अंकित किया गया है।
बाबासाहेब डा. अम्बेडकर हर साल 1जनवरी को अपने शहीद हुए पूर्वजों को श्रद्धार्पण करने कोरेगांव जाते थे। आज इस पवित्र स्मारक पर लाखों की संख्या में लोग अपने पुरखों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं।

सन्दर्भ: कोरेगांव की महार क्रान्ति!

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