Tuesday 31 October 2017

दहेज एक लानत है ?

दहेज प्रथा जिसे (ऊर्दू में जहेज़) की शुरूआत कब और कहां हुई यह कह पाना मुश्किल है, दुनियां की बहुतसी सभ्यताओं में दहेज लेने और देने के पुख्ता सबूत मिलते हैं, इससे यह तो साफ़ होता है कि दहेज का इतिहास बहुत पुराना है.

अब हम यह जान लें कि दहेज कि वास्तविक परिभाषा यानि मतलब क्या है दहेज के अंतर्गत वे सारे चीज़ें ओर रकम आती हैं जो दूल्हा यानि वर पक्ष को दुल्हन यानि वधू पक्ष के ज़रिये से शादी के दौरान अथवा शादी के बाद वसूल होते हैं, इन चीज़ों की मांग या तो वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष से की जाती है अथवा वे स्वेच्छा से इसे प्रदान करते हैं.

हालांकि दहेज का पूरे विश्व में किसी न किसी रूप में बोलबाला है, लेकिन भारत में यह तो एक भयंकर बीमारी के रूप में मौजूद है, देश का शायद ही ऐसा कोर्इ भाग बचा हो जहां के लोग इस बीमारी से ग्रस्त न हों, आए दिन दहेज लेने.देने के सैकड़ों मामले दिखार्इ देते हैं, जिन व्यक्तियों की बेटियां होती हैं वे शुरू से ही दहेज के लिए रकम जोड़ने में लग जाते हैं.

इस वजह से समाज का एक बड़ा तबका बेटियों को मनहूस समझता है और प्रतिवर्ष देश में ही लाखों बेटियों को लिंग परीक्षण कर समय से पूर्व ही नष्ट कर दिया जाता है, विवाह के पश्चात लड़कियों को दहेज के लिए प्रताडि़त करने के सैकड़ों मामले हमारे समाज का हिस्सा बनती जा रही है.

हालांकि सरकार द्वारा दहेज विरोधी अनेक सख्त कानून और सजा का प्रावधान है लेकिन दहेज के मामले घटने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं, देश भर में दहेज के लोभी राक्षसों द्वारा बेटियों बहुओं को जलाया जा रहा है, मारा जा रहा है और प्रताडि़त किया जा रहा है, दहेज लोभी लोग मानवीयता भूलकर अमानवीय कृत्यों से परहेज नहीं करते.

आज हमारी सरकारों द्वारा लड़कियों के उत्थान व विकास के लिए अनेक योजनाएं चला रही हैं जिनमें शिक्षाए रोजगार सहित विवाहोपरांत मदद भी शामिल है, यह सब इसलिए ताकि बेटियों के परिवारों को बेटियां बोझ न लगें और लड़कियां आत्मनिर्भर हो सकें.

कहने को दहेज लेना और देना तो कानूनन अपराध है ही लेकिन साथ ही इससे संबंधित किसी प्रकार की शिकायत पर तुरंत कार्रवार्इ की जाती है, अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं सांस्कृतिक कार्यक्रमों फ़िल्मों आदि के ज़रिये से समाज में दहेज के प्रति जागरूकता का आहवान किया जा रहा है, इन सबके बावजूद हमारे देश से दहेज को मिटाना तभी संभव होगा जब आज कि युवा पीढ़ी यह तय करें कि वे दहेज से परहेज करेंगे !

युवाओं का यह प्रयास भविष्य में दहेज को नेस्तोनाबूद कर सकता है, तभी इससे हमारा समाज एक बार फिर खुशहाल हो सकेगा और भारत देश अपना गौरव हासिल कर सकेगा.

मेक इन इंडिया को ख़ुद ही धो डाला ?

सम्पादकीय
क्या हुआ साहेब मेक इन इंडिया का ?

आज जब गुजरात चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है, जहां एक तरफ बीजेपी अपना गढ़ बचाने में लगी हुई है, वहीं कांग्रेस गुजरात में अपना 22 सालों का बनवास खत्म करने के लिए हर कोशिश कर रही है, बहुत वक़्त के बाद पहली बार गुजरात चुनाव में बीजेपी बैकफुट पर नजर आ रही है, इसका सबसे बड़ा कारण है पाटीदार आंदोलन ?

वहीं आज कांग्रेस गुजरात में पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, ओबीसी नेता अल्पेश ठाकूर और दलित नेता जिग्नेश मेवानी के जरिए सत्ता हासिल करना चाहती है, इसी बीच चुनाव के चलते आरोप-प्रत्यारोपों का दौर भी तेज हो चला है, कांग्रेस ने बीजेपी पर एक बड़ा आरोप लगाया है.

कांग्रेस प्रवक्ता शक्तिसिंह गोहिल ने बीजेपी पर चीनी माल के जरिए चुनाव प्रचार करने का आरोप लगाया है, उन्होंने ट्विटर पर बिल की तस्वीरें डालते हुए बीजेपी पर चीनी माल के जरिए प्रचार करने का आरोप लगाया, इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट पर भी सवाल खड़ा किये हैं, गुजरात से कांग्रेस विधायक शक्तिसिंह गोहिल ने ट्वीट कर कहा, ‘बीजेपी की पोल खुल गई.

गोहिल ने कहा कि बीजेपी चीन से गुजरात चुनाव प्रचार के लिए सामग्रियां मंगा रही है, मोदी जी आपके मेड इन इंडिया प्राॅमिज़  का क्या हुआ, शर्म करो, इसके साथ ही शक्तिसिंह ने मीडिया से भी अपील करते हुए कहा है कि वह बीजेपी के इस कदम को सबके सामने रखे और बीजेपी को एक्सपोज करें, साथ ही उन्होंने एक और ट्वीट कर बीजेपी के ऊपर चीन से बने हुए पोस्टर लगाने का गंभीर आरोप लगाया है.

गोहिल ने बीजेपी के कुछ पोस्टर्स ट्वीट कर कहा, हर बार आप लोग जहां कहीं भी बीजेपी के पोस्टर देखें, ये बात जरूर याद रखें कि ये सभी पोस्टर्स मेड इन चीन हैं.

चीन का प्रचार प्रसार करने के लिए बीजेपी कुछ तो शर्म करे, उन्होंने सिलसिलेवार ढंग से कई सारे ट्वीट्स करते हुए बीजेपी पर बेहद ही गंभीर आरोप लगाए हैं और मीडिया पर भी जमकर निशाना साधा है.

वहीं, दूसरी तरफ पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के कांग्रेस को अल्टीमेटम की खबर मिली है कि सोमवार को होने वाली बैठक में कुछ पता चलेगा, गुजरात की राजनीति के लिए मंगलवार का दिन निर्णायक साबित होगा, कल पता चलेगा कि पाटीदार पार्टी कांगेस के साथ है या नहीं.

लेकिन सवाल यही है कि मेक इन इंडिया का ज़ोर शोर से ढोल पीटने वाले ही आज मेक इन इंडिया की बैंड बजा रहे हैं, हज़ारों करोड़ देश की जनता का पैसा मेक इन इंडिया पर ख़र्च करने वाली सरकार से इसका जायज़ जवाब मिलना तो जायज़ ही है ना ?

बीफ़ का कडवा सच ?

देश की बड़ी बीफ़ फ़ैक्टरियों के मालिक कौन ?

हमारे देश में बीफ (गाय एवं अन्य पशुओं के मांस) का उत्पादन एवं व्यापार काफी अरसे से होता आ रहा है, बीफ भारत वासियों के एक बड़े हिस्से के खाने में शामिल रहा है, बीफ उत्पादन एवं उससे जुड़े हुए उद्योगों में हमारे देश की अच्छी खासी आबादी, जिनमें 50 प्रतिशत से अधिक हिन्दू हैं, को रोजगार मिला हुआ है.

यूपीए की मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान बीफ के उत्पादन, उपभोग एवं व्यापार को काफी प्रोत्साहित किया गया, जिसे ‘गुलाबी क्रान्ति’ (Pink Revolution) के रूप में प्रचारित भी किया गया, फलस्वरूप, बीफ के निर्यात में भारत विश्व में दूसरे नम्बर (पहले नम्बर पर ब्राजील) पर आ गया, इसके बाद भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद्, आर.एस.एस. एवं हिन्दुत्व की अन्य ताकतों ने मनमोहन सरकार को निशाने पर लेना शुरू किया.

उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस नीत संप्रग सरकार गोहत्या को बढ़ावा दे रही है, नरेन्द्र मोदी ने भी 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान मनमोहन सरकार की ‘गुलाबी क्रान्ति’ और बीफ निर्यात का विरोध किया.

लेकिन जब मई 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने केन्द्र की सत्ता संभाली तो उनके तेवर बदल गए, मोदी सरकार ने भी बीफ के उत्पादन, उपभोग एवं व्यापार पर काफी जोर दिया, अपने पहले बजट में नये बूचड़खाने बनाने एवं पुरानों के आधुनिकीकरण करने के लिए 15 करोड़ रुपए की सब्सिडी देने का प्रावधान किया, नजीजतन, इस सरकार के मात्र एक साल के कार्यकाल (2014-15) के दौरान भारत ने बीफ निर्यात में ब्राजील को पीछे छोड़ दिया और वह नम्बर वन हो गया ?

हाल में जारी की गई अमेरिकी कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 2015 में कुल 24 लाख टन बीफ का निर्यात किया (जो वैश्विक बीफ निर्यात का 58.7 प्रतिशत होता है), जबकि ब्राजील ने केवल 20 लाख टन का.

हमारे सैफ़ी पोस्ट साप्ताहिक के पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे देश की 6 सबसे बड़ी बीफ निर्यातक कम्पनियों में से 4 के मालिक ब्राह्मण हैं.

(1) अल-कबीर एक्सपोटर्स प्राइवेट लिमिटेडमालिक-सतीश एवं अतुल सभरवाल, 92, जॉली मेकर्स, मुम्बई-400021.
(2) अरबियन एक्सपोटर्स प्राइवेट लिमिटेडमालिक-सुनील कपूर, रूजन मेन्शन्स, मुम्बई-400001.
(3) एम. के. आर. फ्रोजेन फूड एक्सपोटर्स प्राइवेट लिमिटेडमालिक-मदन एबॉट, एम. जी. रोड, जनपथ, नई दिल्ली-110001 और
(4) पी. एम. एल. इण्डस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड,मालिक-ए. एस. बिन्द्रा, एस. सी. ओ. 62-63, सेक्टर-34, चण्डीगढ़-160022.

ज्ञातव्य है कि ब्राह्मणों के मालिकाने में कार्यरत मुस्लिम नामों वाली इन बीफ कम्पनियों को गोवध कराने एवं गोमांस का निर्यात करने में भी महारत है, सवाल उठता है कि क्या हिन्दुत्व ताकतें और मोदी सरकार इन कम्पनियों पर कार्रवाई करने की हिम्मत रखती हैं?

हालांकि, मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद गाय को संरक्षित और गोमांस को प्रतिबन्धित करने की मांग जोर-शोर से उठने लगी थी, एक ओर महाराष्ट्र, हरियाणा एवं भाजपा शासित कुछ अन्य राज्यों की सरकारों ने गोहत्या प्रतिबन्ध को कड़ाई से लागू करना शुरू कर दिया है.

यहां मोदी सरकार एक और चारित्रिक दोहरेपन की शिकार है, एक ओर यह बीफ के उत्पादन एवं व्यापार को नियन्त्रित करने के लिए एक नये केन्द्रीय कानून बनाने की बात कर रही है और दूसरी ओर बीफ मिश्रित तरह-तरह के खाद्य पदार्थों को बनाने और बेचने वाली केएफसी, मेकडोनाल्ड, सब वे एवं डोमिनो जैसी विदेशी कम्पनियों को धड़ल्ले से लाइसेन्स दे रही है, ये कम्पनियां हर रोज लाखों जानवरों का वध कराती हैं और अपने भारतीय ग्राहकों (जिनमें ज्यादातर हिन्दू होते हैं) उन लोगो को लजीज बीफ व्यंजन परोस कर करोड़ों रुपए का मुनाफा कमाती हैं.

मांस के इस व्यापार से भारत के पशुधन की क्या स्थिति हो गयी है, सरकारें इसकी अनदेखी करती रहीं हैं, दिल को दहला देने वाला एक तथ्य यह है कि आजादी के समय भारत में गोवंश (गाय, बछड़े-बछड़े, बैल और सांड) की जनसंख्या कुल मिलाकर 1 अरब 21 करोड़ के आस-पास थी, तब भारत की जनसंख्या 35 करोड़ बतायी जाती थी, अब हालत उलट गए हैं, भारत की जनसंख्या 1 अरब 21 करोड़ को पार कर गयी है और गोवंश बचा है सिर्फ 10 करोड़ के लगभग ?

मोदी सरकार ने गोवंश के संरक्षण के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च कर राष्ट्रीय गोकुल मिशन भी बनाया है, पर गोमांस के उत्पादन,उसकी बिक्री और निर्यात को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने का जज्बा ओर हिम्मत अभी दिखाई नहीं देता.

यहीं एक गंभीर सवाल खड़ा होता है, कि मानवीय जनसंख्या के अनुपात में गोवंश की जनसंख्या क्यों नहीं बढ़ी और घटी भी तो इतनी तेजी से क्यों घटी?

अगर मांस के नाम पर गोमांस का व्यापार नहीं हो रहा है तो क्या भारत में गोमांस की इतनी ज्यादा खपत है, फिर मांस की आड़ में गोमांस के निर्यात की अनदेखी क्यों की गई और क्यों की जा रही है?

भारत के 29 में से 26 राज्यों में गौवध बंदी कानून लागू है, कुछ राज्यों में तो हर प्रकार और किसी भी आयु के गोवंश के वध पर न केवल पूर्ण प्रतिवंध है बल्कि उसे गंभीर और गैरजमानती अपराध की श्रेणी में भी रखा गया है, बड़ी बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में आजादी के पहले से ही गोवध बंदी लागू है, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में कहीं सभी प्रकार के पशुओं के वध की अनुमति है तो कहीं आयु के आधार पर कुछ शर्तों के साथ गोवध की भी अनुमति है.

लेकिन बड़ी बात यह है कि पूरे देश में मांस के उत्पादन पर रोक नहीं है, यहां तक कि मांस के उत्पादकों को भारत के आयकर अधिनियम की धारा 80-आई.वी.जेड (इलेवन-ए) के तहत आयकर में छूट प्राप्त है.

मांस के परिवहन पर दी जाने वाली 23 प्रतिशत की छूट अगर पिछली सरकार ने समाप्त भी कर दी, तो भी मास उत्पादन और कत्लखाने की स्थापना में दी जाने वाली 13 प्रकार की छूट ज्यों की त्यों है.

मांस के कारखाने में लगने वाले प्री-कूलिंग सिस्टम में 50 प्रतिशत, हीट ट्रीटमेंट प्लांट में 50 प्रतिशत, कोल्ड स्टोरेज में 100 प्रतिशत, पैकिंग में 30 प्रतिशत, इससे जुड़े साहित्य के प्रकाशन पर 40 प्रतिशत, कंसल्टेशन फीस में 50 प्रतिशत, कत्लखाने के आधुनिकीकरण पर 50 प्रतिशत, कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर 50 प्रतिशत छूट दिए जाने के प्रावधान हैं.

अन्य कई मदों में भी कर में छूट या अनुदान दिया जाता है, इसका तर्क यह कि अवैध कत्लखानों पर रोक लगे, गैरकानूनी तरीके से पशुओं का कत्ल न हो?

आधुनिक तकनीकी से पशुओं की कम से कम प्रताड़ना कर अधिक मात्रा में उच्च गुणवत्ता वाला मांस प्राप्त किया जा सके, जो अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप हो और निर्यात के लिए उपयुक्त हो, इसके लिए देश में 3616 बूचड़खाने हैं, इनमें से 38 अत्याधुनिक या कहें यांत्रिक कत्लखाने हैं, इससे अलावा 40 हजार से ज्यादा अवैध कत्लखाने हैं.

इस सबके बाद सबसे चौंकाने वाला एक तथ्य यह भी है कि नया कत्लखाना स्थापित करने पर देश के बाहर से मशीनरी और कल-पुर्जे आयात करने पर इम्पोर्ट ड्यूटी (आयात शुल्क) 10 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया, यह काम इसी मोदी गौवादी सरकार के कार्यकाल में ही हुआ है.

यानि सन्देश साफ है, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को मांस के व्यापार में लाभ दिखाई देता है, उसकी आड़ में गोमांस का निर्यात हो या पशुओं का अवैध कटान हो तो यह उसकी जिम्मेदारी नहीं। वह तो गृह मंत्रालय का काम है.

गृह मंत्रालय बांग्लादेश सीमा पर गायों की अवैध तस्करी रोकने में पूरी ताकत झोंक रहा है, इन दिनों बांग्लादेश सीमा से पशुओं की तस्करी लगभग रुक-सी गई है, इसका बांग्लादेश के गोमांस और चमड़ा व्यापार पर खासा असर पड़ा है.

मौजूदा मोदी सरकार ने गोवंश के संरक्षण के लिए 500 करोड़ रुपये खर्च कर राष्ट्रीय गोकुल मिशन भी बनाया है, पर गोमांस के उत्पादन,उसकी बिक्री और निर्यात को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने का जज्बा अभी दिखाई नहीं देता.

अब सवाल ये पैदा होता है कि जब आप इसको पूरी तरहां से पाले हुए हैं तब मुस्लिमों ओर दलितों पर बीफ़ के नाम पर ज़ुल्म क्यूं, क्यूं आप दोहरेचरित्र से काम कर देश की जनता को आपस में लड़ाना चाहते हैं क्यूं क्यूं आख़िर क्यूं ?

Sunday 29 October 2017

गद्दार भी पैदा होते रहे हैं, वफ़ादार भी ?

एस एम फ़रीद भारतीय
मोहम्मद उमर, सोलहवीं शताब्दी के खत्म होते होते अंग्रेज़, सौदागर बनके हिन्दुस्तान में पहुंच चुके थे जिसमे पश्चिम बंगाल को ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना हेडक्वॉर्टर बनाया और धीरे धीरे भारतीय व्यापार को अपने कब्ज़े में कर राजा, रजवाड़ो और नवाबों की हुकूमत के निज़ाम पर अपनी दखल अंदाज़ी शुरू कर दी.

सन् 1757 में नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ पलासी की जंग में अंग्रेज़ी सेना खुल्लमखुल्ला मैदान में उतर आयी और अपना असली मुखौटा उतार फैका, फिर 1764 में अंग्रेजों के खिलाफ नवाब शुजाउद्दौला को बक्सर में पराजय मिली और बिहार व बंगाल अंग्रेजो के चपेट में चला गया व इसी तरह 1792 में टीपू सुल्तान की शहादत के बाद अंग्रेजों ने मैसूर पर भी अपना कब्जा कर अंग्रेजी हुकूमत का झंडा बुलंद कर दिया.

1849 में पंजाब और इस तरह सिंध, आसाम, बर्मा, रोहैलखन्ड, दक्षिणी भाग, अलीगढ़, उत्तरी भाग, मद्रास, पांडिचेरी, वगैरह अंग्रेजों के अधीन होता गया और फिर वह वक्त भी आ गया जब दिल्ली पर भी कंपनी की हुकूमत कायम हो गई तथा पूरा भारत गुलामी की ज़जीरों में जकड़ता चला गया.

1757 से अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ बढ़ता हुआ टकराव 1857 तक एक बड़े विद्रोह में बदल गया और इसी जंगे-आज़ादी मे एक नाम शामिल हुआ “मौलाना सैय्यद किफ़ायत अली काफ़ी” जो मुरादाबाद के एक रसूखदार घर से ताल्लुक़ रखते थे लेकिन वतन की मोहब्बत ने आज़ादी का मुजाहिद बनाकर अंग्रेजों के विरोध मे खड़ा कर दिया साथ ही इंकलाब की ऐसी लौ जलाई जिसने गुलामी के अंधेरे को मिटाने का काम किया.

इतिहासकार लिखते है कि मौलाना किफायत साहब कलम के सिपाही भी थे उनकी लिखावट मे एक कला थी जो पढंने वाले में जोश भर देती थी फिर चाहे वह इस्लाम पर लिखे उनके आलेख हो या मुल्क की आज़ादी पर लिखी उनकी क्रान्तिकारी सोच हो.

मौलाना इस्लामिक तालीम के माहिर के साथ ही वह एक विद्वान व्यक्ति, लेखक व कवि भी थे, जिससे उनके द्वारा कई किताबें लिखी, जैसे तारजुमा-ए-शैमिल-ए-त्रिमीज़ी, मजूमूआ-ए-चहल हदीस, व्याख्यात्मक नोट्स के साथ, खय़बान-ए-फ़िरदौस, बहार-ए-खुल्ड, नसीम-ए-जन्नत, मौलुद -ए-बहार, जज्बा-ए-इश्क, दीवान-ए-इश्क आदि के अलावा पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब पर कई नात भी मौलाना किफायत अली साहब द्वारा बनाई गई! मौलाना ने शेख़ अबू सईद मुजादेदी रामपुरी से हदीस की शिक्षा ली और प्रसिद्ध कवि जकी मुरादाबाद की कविता सीखी.

कहते है कि जंगे आज़ादी की तहरीक (आंदोलन) चलाने में जिन उल्मा-ऐ-किराम का नाम आता है उनमे सबसे पहला नाम हजरते अल्लामा फजले हक खैराबादी साहब का आता है, उसके बाद हजरत सैयद किफायत अली काफी साहब का है जिन्होंने खुद को वतन पर कुर्बान कर आज़ादी की नींव को मज़बूत रखा जिससे एक आज़ाद भारत की बुंलद इमारत तैयार हो जिसके लिए उन्होने 1857 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक फतवा जारी कर मुसलमानों को जेहाद के लिए खड़ा किया जिसकी मंज़िल सिर्फ आज़ाद भारत थी!

मौलाना लोगों में आज़ादी का अलख जलाने के लिए चलते रहे, आप जनरल बख्त खान रोहिल्ला की फौज में शामिल होकर दिल्ली आये व बाद में बरेली और इलाहाबाद तक गुलामी से लड़ते रहे.

मुरादाबाद, अंग्रेजो से आज़ाद कराने के बाद मौलाना किफायत साहब ने वहा के नवाब मजूद्दीन खान के नेतृत्व मे अपनी सरकार बनाई जिसमे आपको सदरे-शरीयत बनाया गया व नवाब साहब को हाक़िम मुकर्रर किया तथा इनके साथ अब्बास अली खान को तोपखाने की ज़िम्मेदारी दी और इस तरह आज़ाद मुरादाबाद में हर जुमे की नमाज़ के बाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तकरीरे चलती जिसमे पूरे भारत की आज़ादी के लिए क्रान्तिकारी सोच को बढ़ावा दिया जाता.

डिस्ट्रिक गजेटियर (मुरादाबाद) में लिखा है कि मुसलमानों ने जिले भर मे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खुलकर अपनी आवाज़ बुलंद की.

उधर अंग्रेज़ हार चुके मुरादाबाद पर अपनी जीत हासिल करने के लिए रणनीति तैयार करने मे लगे थे क्योंकि जिस तरह मुरादाबाद में आज़ाद भारत की तस्वीर बुलंद की जा रही थी वो ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फैकने के लिए काफी थी इस बात से बाखबर हो अंग्रेज़ अफसर जनरल मोरिस ने अपनी फौज के साथ मुरादाबाद पर 21 अप्रैल 1858 को हमला किया, मुजाहिद लड़ाकों ने वतन की ख़ातिर अपनी जाने अड़ा दी उधर नवाब मजुद्दीन ने आखिरी वक्त तक अंग्रेजो से योध्दा बनकर लड़ते रहे और आखिरकार गोली खाकर शहादत पाई.

अचानक हुए इस हमले से, शिकस्त के बाद तमाम इंकलाबी रहनुमा बिखर से गये और जो अंग्रेजी हुकूमत द्वारा पकड़ लिए गये वो अधिकतर फांसी पर चढ़ा दिये गये लेकिन अंग्रेजो के लिए मौलाना किफ़ायत अली साहब को पकड़ना प्रमुख था क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत के लिए मौलाना सनकी विद्रोही के रुप मे थे जो मुल्क की ख़ातिर स्वयं को न्योछावर करने का इंकलाबी जज़्बा रखते थे, और आखिरकार एक गद्दार की मुखबरी पर 30 अप्रैल को मौलाना किफायत अली काफ़ी को गिरफ्तार कर लिया गया फिर उन पर जो जुल्मो सितम की जो सज़ाए शुरु हुई उसकी ग्वाह जेल की चारदीवारी और वो वक्त है.

मौलाना की गिरफ्तारी के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने पूरी तरह मुरादाबाद पर अपना नियंत्रण समझा और आनन फानन में एक आयोग का गठन किया गया जिसमे मौलाना की हुकूमत के खिलाफ विद्रोही तेवरो पर फैसला सुनाना था, आयोग के मजिस्ट्रेट श्री जॉन इंग्लसन ने अपने फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि चूंकि अभियुक्त आरोपी ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विद्रोह किया है,व जनता को संवैधानिक सरकार के खिलाफ उकसाकर बग़ावत की जिससे अभियुक्त का यह कार्य अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खुला विद्रोह है, जिसके लिए वह गंभीर सजा का हकदार है। और इस आदेश के आधार पर मौलाना को फांसी की सज़ा का ऐलान कर दिया गया लेकिन सज़ा के ऐलान क बाद भी इस इकंलाबी मुजाहिद के चेहरे पर ना कोई शिकन थी और ना कोई डर था.

अंतत: मौत की वो घड़ी भी आ गई जिसमे उन्हें फांसी के तख्त तक ले जाया गया, इतिहास कार लिखते हैं कि उस समय उनके चेहरे पर एक नूर था और चेहरे पर मुस्कुराहट व होंठों पर अल्लाह और उसके नबी का ज़िक्र करते करते वह इंकलाबी 6 मई 1858 को वतन के लिए शहीद हो गया.

कहते हैं ना कि ग़द्दार भी पैदा होते रहे हैं ओर वफ़ादार भी, यह वही मुल्क के वीर योद्धा है जो आज़ादी की नींव मे मज़बूत पत्थर की तरह चुने गये लेकिन अफसोस आज़ाद भारत के इतिहास मे इनको ना कोई नाम मिला और ना ही इनको आज कोई याद करने वाला है.

हम हैं इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा ?

हम हैं इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा

एस एम फ़रीद भारतीय
सन् 1857 के महासमर के 160 साल हो चुके हैं, मेरी कोशिश होगी कि मैं सैफ़ी पोस्ट के ज़रिये जंग ऐ आज़ादी से जुड़ी हर सच्चाई ओर शहीद ए आज़म पर इस महासमर से जुड़ी चीज़ें पाठकों के लिए मुहैया करायें, ख़ासकर ऐसे जानकारी, जो आमतौर पर आप लोगों को नहीं मिल पातीं.

आज यहां एक ऐसी ग़ज़ल कहें कविता कहें या नज़्म कहें जो चाहें वो कहें, आपके सामने पेश कर रहा हुँ, जो मुल्क का पहला क़ौमी तराना था, आज भी आप कहें तो शायद गलत नहीं होगा, आज से 160 साल पहले, मुल्क़ का ऐसा तसव्वुर नहीं था, राजा- रजवाड़ों के दिमाग में भी नहीं, यह गीत गज़ल कविता महासमर के एक मशहूर योद्धा अजीमुल्ला खां ने रचा था.

हम हैं इसके मालिक हिन्दुस्तान हमारा,
पाक वतन है कौम का जन्नत से भी न्यारा,,
ये है हमारी मिल्कियत, हिन्दुस्तान हमारा,
इनकी रूहानियत से रोशन है जग सारा,,
कितना कदीम कितना नईम, सब दुनिया से प्यारा,
करती है ज़रख़ेज़ जिसे गंगो-जमुन की धारा,,
ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा,
नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा,,
इसकी खानें उगल रही हैं, सोना, हीरा, पारा,
इसकी शानो-शौकत का दुनिया में जयकारा,,
आया फिरंगी दूर से ऐसा मंतर मारा,
लूटा दोनों हाथ से, प्यारा वतन हमारा,,
आज शहीदों ने है तुमको अहले वतन ललकारा,
तोड़ो गुलामी की जंज़ीरें बरसाओ अंगारा,,
हिन्दू-मुसलमां, सिख हमारा भाई-भाई प्यारा,
यह है आजादी का झंडा, इसे सलाम हमारा...

सन 1857 में राष्ट्रध्वज की सलामी के वक़्त जगह-जगह में यही गाया जाता था, ये तराना 1857 के क्रांति-अखबार च् पयामे-आजादी छ में छपाया गया था, जिसकी एक नकल ब्रिटिश म्युजियम लंदन में आज भी मौजूद है.

अब सोचना ये है कि मुल्क मैं अब से करीब तीस पैंतीस साल पहले तक कोई हिंदु मुस्लिम की सोच लोगों के दिमाग़ मैं नहीं थी, सब मिलकर एक दूसरे के सुख दुख मैं शरीक हुआ करते ओर मुहब्बत के साथ रहा करते थे, मगर किसी ज़ालिम ने इस एकता को नफ़रत की चिंगारी दिखा दी, जिससे देश कई बार जल चुका है ओर आज भी वही किया जा रहा है, ये नफ़रत हमको कहां ले जायेगी सोचा है कभी ?
इस नफ़रत से मुल्क को क्या फ़ायदा होगा इस पर विचार किया है कभी ? मुल्क मैं नफ़रत की आग से कुछ के घर ज़रूर रौशन हो रहे हैं लेकिन ज़्यादातर देश की जनता बदहाली मैं जी रही है यही है कडवा सच !
इससे हमे बाहर आना होगा ओर एक होकर देश को अज़ीम मुल्क बनाना होगा बिन एकता के हम बस ख़्वाब तो देख सकते हैं लेकिन कभी उस ख़्वाब को पूरा नहीं कर सकते, ये मेरी सोच है, सही है या ग़लत आप भी मुझको अपनी कीमती राय से नवाज़ें, शुक्रिया जय हिन्द

नोट- ये लेख ब्लाॅग ज़ुबान खोल बिंदास बोल ओर सैफ़ी पोस्ट साप्ताहिक के लिए है कोई भी इसकी काॅपी बिना इजाज़त ना करे !

पांच किलो राशन की सच्चाई और चंदे का धंधा...

आवाज़ दो न्यूज़ नेटवर्क इंडिया ख़बर (1,65,18,10,99000.00) ये नम्बर किसी मोबाइल का  नम्बर नहीं है, बल्कि ये नम्बर है उस बांड की र...