वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की मेनस्ट्रीम मीडिया में एक बार फिर से वापसी हुई है. वे इंडिया टुडे के कार्यकारी संपादक बन गए हैं. 2 दिसम्बर से उन्होंने अपना कार्यभार संभाल लिया है. उन्होंने जगदीश उपासने की जगह ली है.
दिलीप मंडल पिछले कुछ समय से मेनस्ट्रीम मीडिया से अलग थे और खुलकर मेनस्ट्रीम मीडिया की खिलाफत कर रहे थे. इसी संदर्भ में उनकी दो किताबें 'मीडिया का अंडरवर्ल्ड' और 'कॉरपोरेट मीडिया-दलाल स्ट्रीट' नाम से भी आ चुकी है.
इंडिया टुडे ग्रुप से जुड़ने के पहले दिलीप मंडल ईटी हिंदी.कॉम, सीएनबीसी - आवाज़ और स्टार न्यूज़ जैसे बड़े संस्थानों के साथ भी काम कर चुके हैं. इंडिया टुडे के साथ उनकी यह दूसरी पारी है. ईटी हिंदी.कॉम से इस्तीफा देने के बाद से वे स्वतंत्र लेखन के अलावा आईआईएमसी में अध्यापन कार्य भी कर रहे थे.
दिलीप मंडल के इंडिया टुडे को ज्वाइन करने के मुद्दे पर फेसबुक पर आयी कुछ प्रतिक्रियाएं :
Avinash Das - सुना है, हमारे अग्रज मित्र दिलीप मंडल इंडिया टुडे के संपादक हो रहे हैं। बधाई, लेकिन यह सच न हो तो बेहतर। मीडिया के अंडरवर्ल्ड में उनकी पुनर्वापसी कई लोगों को खल सकती है।
Ajit Anjum वैसे आप बेकार में चिंता कर रहे हैं . जिस रास्ते से बौद्धिकता के चौराहे तक पहुंचे हैं , वहां से यू टर्न ही तो लेना है ...मुझे नहीं लगता दिलीप जी के लिए मुश्किल होगी ...बहुत समझदार किस्म के आदमी हैं ...कॉरपोरेट पत्रकारिता की मायावी दुनिया में पहले भी काफी लंबे अरसे तक असरदार भूमिका में रहे हैं ...जय हो दिलीप जी की ..
Neeraj Bhatt - मंडल साहब ने जिस इंडिया टुडे को कोरपोरेट के नाम पर जी भर कर गरियाया ,लतियाया और किताबें भी लिख डाली उसी इंडिया टुडे की नैया कैसे पार लगायेंगे?
Shayak Alok - समझ नहीं पा रहा कि इसे मोर्निंग joke मानके ठहाके मारूं या इस सच्चाई से दहल सा जाऊं .. :)
Ajeet Singh लगता है जैसे व्यवस्था को जली-कटी सुनाना, एक ऐसा पजामा है जिसे आप तब तक पहने रखिए जब तक कोई ठीक सी पतलून न मिल जाए। वैसे अपने नाप की पतलून खोजने का हक तो सबको है...कुछ इसे कारोबार के थान में से बनवाते हैं जबकि कईयों को जनसरोकार की खद्दर पसंद है। ये मार्केट च्वाइस तो खूब देता है।
ये भी ततैया की खाल में गुबरैला निकले...कोई आश्चर्य नहीं हुआ. सुनते है उप्र. की माया के दलित-ब्राह्मण सम्मलेन में सपत्नीक पधारे थे ,और जोशो खरोश से माया के नया नारा "हाथी नहीं गणेश है, ब्रम्हा, विष्णु, महेश है" को बुलंद कर रहे थे.
Vijay Jha जूता चांदी का हो तो सर झुकाने में कोई दिक्कत नहीं, सारे आदर्श और नैतिकता इस जूते के तले दब जाता है ! जिसका उदाहरण दिलीप मंडल से बढ़िया और कौन हो सकता है ! जिस मिडिया को अंडरवर्ल्ड कह कर गाली देता था , आज उसी का खिदमतगार बन गया !
Nikhil Anand Giri उन्हें तो 'इंडिया टुमौरो' का संपादक होना चाहिए....'इंडिया टुडे' उनके किसी काम का है नहीं....
Madhukar Rajput क्यों जा रहे हैं वापस मीडिया में। जिसे कीचड़ कहते हैं उसी में वापसी। क्या यह कहावत न कही जाए कि... गारे से गारा मिले मिले कीच से कीच, लुच्चों से लुच्चे मिलें और मिले नीच से नीच।
Ashish Kumar 'Anshu' -''दिलीप मंडल जी के दिखाने के दांत कुछ और खाने के कुछ और हैं..दलित-दलित करके सवर्णों को गाली देते रहे..शादी की एक ब्राह्मण कुल की बेटी से...पहली बार नौकरी जनसत्ता कलकत्ता में ब्राह्मण प्रभाष जोशी ने दी..दूसरी नौकरी इंडिया टुडे में मिलने में भी उसी ब्राह्मण जगदीश उपासने का हाथ रहा, जिसके वे उत्तराधिकारी बने हैं...तीसरी बार अमर उजाला में भी एक सवर्ण प्रवाल मैत्र ने नौकरी दिया..चौथी-पांचवीं बार एसपी सिंह और संजय पुगलिया को छोड़ भी दें तो छठवीं बार भी टाइम्स ऑफ इंडिया की हिंदी वेब साइट इकोनॉमिक टाइम्स की नौकरी भी नीरेंद्र नागर नाम के ब्राह्मण और रामकृपाल नाम के ठाकुर ने दी।'' - राजकुमार पासवान
No comments:
Post a Comment
अगर आपको किसी खबर या कमेन्ट से शिकायत है तो हमको ज़रूर लिखें !