इस कहानी को मिसाल के तौर पर पेश किया गया है अगर अब भी समझ ना आये तो हम कुछ नहीं कह सकते...?
चरवाहे ने अपनी भेड़ों को उनके बाड़े में पहुँचा दिया और सारे दरवाज़े बंद कर दिए।
जब उन्होंने देखा कि अंदर जाना मुमकिन नहीं, तो उन्होंने एक मंसूबा (योजना) बनाई कि कैसे भेड़ों को बाड़े से निकाला जाए।
भेड़ियों ने सोचा कि इसका तरीक़ा यह है कि चरवाहे के घर के सामने एहतिजाज (विरोध) करें और भेड़ों की आज़ादी का नारा लगाएं।
भेड़िए ने एक लंबा एहतिजाज किया और बाड़े के गिरद घूमते रहे।
जब भेड़ों ने सुना कि भेड़िए उनकी आज़ादी और हक़ों के लिए एहतिजाज कर रहे हैं, तो वे उनसे मुतासिर (प्रभावित) हो गईं और उनके साथ शामिल हो गईं। इसके बाद उन्होंने अपने सींगों से बाड़े की दीवारों और दरवाज़ों को मारना शुरू किया, जब तक कि दीवारें टूट गईं और दरवाज़े खुल गए और वे सभी आज़ाद हो गए।
फिर वे सहरा की तरफ़ भाग निकलीं और भेड़िए उनके पीछे दौड़ने लगे, और चरवाहा कभी उन्हें बुलाता और कभी अपनी लाठी फेंक कर उन्हें रोकने की कोशिश करता, लेकिन ना बुलाने से कुछ हासिल हुआ ना लाठी से।
भेड़ियो ने भेड़ों को खुले मैदान में बिना चरवाहे या मुहाफिज़ के पाया, तो वह रात भेड़ों के लिए स्याह रात थी और भेड़ियों के लिए लज़ीज़ खाने की रात।
अगले दिन जब चरवाहा इस सहरा में आया जहाँ भेड़ों ने अपनी आज़ादी पाई थी, तो उसने सिर्फ़ टुकड़े-टुकड़े लाशें और ख़ून आलूद हड्डियाँ पाईं।
यह कहानी पहले भी आपने सुनी होगी, लेकिन आज भेड़िये वो हैं जो औरतों की इज़्ज़त को तार तार कर रहे हैं, पैसे के लालच के साथ या मासूमों के साथ ज़बरदस्ती दरिंदगी करके और भेड़ें वो ख़वातीन (महिलाए) है जो अपने मां बाप या बाकी घर वालों की हिफ़ाज़ती निगाहों मैं अपने घरो मैं महफ़ूज़ हैं.
जब दुनिया के भेड़ियों ने देखा कि पाकीज़ा ख़वातीन तक उनकी पहुंच नामुमकिन है, क्योंकि उनके वालिदैन की निगरानी, घरों में रहने और पर्दे की वजह से, तब उनकी हिफ़ाज़त को क़ैद बताकर भेड़ियों ने उनकी आज़ादी की मांग करने के लिए एहतिजाज (आवाज़ उठाना) शुरू किया, लेकिन उनका मक़सद उनकी आज़ादी नहीं बल्कि उनको खुले मैं लाकर नोचना खसोटना था.
यह आज के दिन हमारी हालत है और हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह हमें ज़ाहिर और बातिन फ़ितने से महफ़ूज़ रखें आमीन.
सम्पादित- *एस एम फ़रीद भारतीय*
~ये अरबी से मंक़ूल है
~हिंदी मुतर्जिम: हसन फ़ुज़ैल
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