Monday, 9 September 2019

रामजेठमलानी जी वकील तो वाकई बड़े थे मगर...?

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'देश का सबसे बड़ा वक़ील होकर भी जो न्यायिक इतिहास में जगह नहीं बना सका.'

बात 2009 की है. मोहम्मद अली जिन्ना पर लिखी गई एक किताब का विमोचन हो रहा था. यह किताब भाजपा नेता जसवंत सिंह ने लिखी थी. देश-विदेश की कई बड़ी हस्तियां इस समारोह में उपस्थित थीं. प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी भी इनमें से एक थे. उन्होंने इस समारोह में
कहा, ‘भारत-पाकिस्तान विभाजन का मुख्य कारण मोहम्मद अली जिन्ना नहीं बल्कि हरिचन्द्र नाम का एक कंजूस हिन्दू था.’ जेठमलानी के इस बयान ने सभी को चौंका दिया. यहां मौजूद इतिहासकार भी नहीं जानते थे कि आखिर हरिचन्द्र नाम का ऐसा कौन व्यक्ति था जो विभाजन का कारण बना था. और जेठमलानी ऐसा किस आधार पर कह रहे थे?
लेकिन इस पर हम आगे में चर्चा करेंगे. पहले चर्चा करते हैं राम जेठमलानी के सबको चौंका देने वाले इस अंदाज़ की. उनका यह अंदाज़ ताउम्र उनसे जुड़ा रहा. राम जेठमलानी आपको ऐसे ही चौंका देते हैं जब अरविंद केजरीवाल की वकालत करते-करते वे अचानक एक दिन उनकी पैरवी करना छोड़ देते हैं और इसके कुछ दिनों बाद वकालात ही छोड़ने की बात कह डालते हैं. आप इसलिए भी चौंकते हैं क्योंकि राम जेठमलानी से जब भी उनके रिटायरमेंट के बारे में पूछा जाता था तो उनका जवाब होता था कि 'मेरे मरने की तारीख आप क्यों जानना चाहते हैं.'
आप चौंकते हैं जब वे अपने घर के बाहर एक तख्ती लगा देते हैं जिस पर लिखा होता है कि अब सिर्फ महत्वपूर्ण राष्ट्रहित के मामलों में ही उनसे संपर्क किया जा सकता है. लेकिन इससे भी ज्यादा आप तब चौंकते हैं जब ये तख्ती लगाने के बाद भी वे अचानक जेसिका लाल हत्याकांड के मुख्य आरोपी की पैरवी के लिए कोर्ट में उतर आते हैं. मनु शर्मा को जब सभी जेसिका का हत्यारा मान चुके होते हैं तब रामजेठमलानी सबको यह कह कर चौंका देते हैं कि ‘जेसिका की हत्या मनु शर्मा ने नहीं बल्कि एक लंबे सिख नौजवान ने की थी. मेरे पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं और मैं जल्द ही उसकी पहचान सार्वजनिक करने वाला हूं.’
अपने बयानों और तर्कों से सबको लाजवाब कर देने वाला राम जेठमलानी का यही अंदाज़ है जिसने उन्हें देश का सबसे चर्चित, सबसे बड़ा और सबसे महंगा वकील बनाया. जिसने उन्हें ‘राम जेठमलानी’ बनाया. वह राम जेठमलानी जिसने भारतीय इतिहास में वकालत का सबसे लंबा सफ़र तय किया. सर्वोच्च न्यायालय के एक वकील के अनुसार, ‘जेठमलानी साहब कई बार न्यायाधीशों को यह तक बोल देते कि आपकी उम्र से ज्यादा तो मेरा वकालत का अनुभव है. और उनकी इस बात का कोई बुरा भी नहीं मानता.’ बुरा शायद इसलिए भी नहीं माना जाता क्योंकि यह बात सच भी थी. सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की अधिकतम उम्र 65 साल हो सकती है. जबकि राम जेठमलानी का वकालत का अनुभव 76 साल से भी ऊपर था.
वैसे वकालत में राम जेठमलानी के आने और फिर छा-जाने के सफ़र की शुरुआत भी बेहद दिलचस्प है. एक साक्षात्कार में राम जेठमलानी ने बताया था, ‘जब मैं तीसरी कक्षा में था तो मेरे स्कूल में एक कार्यक्रम हुआ. इसमें सिंध के कई स्कूलों के शिक्षक और छात्र आए थे. मेरे शिक्षकों ने मुझे मंच पर बुलाया और अन्य शिक्षकों को चुनौती दी कि इस बालक से मुग़ल इतिहास का कोई भी सवाल पूछ लो. मेरा प्रदर्शन इतना बेहतरीन रहा कि लोगों ने मंच पर नोटों और सोने की गिन्नियों की बरसात कर दी थी.’
इस बयान में सोने की गिन्नियों की बरसात वाली बात आपको जरूर अतिश्योक्ति लग सकती है. लेकिन यह आपको मानना ही होगा कि राम जेठमलानी बचपन से ही विलक्षण थे. इसी विलक्षणता के चलते उन्हें स्कूल में दो बार अगली कक्षा में भेज दिया गया और उन्होंने सिर्फ 13 साल की उम्र में ही मैट्रिक पास कर लिया था. राम जेठमलानी के पिता और दादा भी वकील थे. लेकिन वे लोग नहीं चाहते थे कि राम भी वकील बनें. राम जेठमलानी के अनुसार, ‘मेरे पिता चाहते थे कि मैं इंजीनियर बनूं. उन्होंने मेरा दाखिला भी विज्ञान में करवा दिया था. लेकिन वकालत मेरे खून में थी. मेरी किस्मत अच्छी थी कि उसी वक्त सरकार ने एक नियम बनाया. इस नियम के तहत कोई भी छात्र एक परीक्षा पास करके वकालत में दाखिला ले सकता था. मैंने यह परीक्षा दी और इसमें अव्वल आते हुए वकालत में दाखिला पा लिया.’ महज 17 साल की उम्र में राम जेठमलानी अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी कर चुके थे.
पिता की इच्छा के विरुद्ध वकालत की पढ़ाई करने के बाद इस 17 साल के नौजवान के सामने एक और चुनौती आई. बार काउंसिल के नियम के अनुसार 21 वर्ष की आयु से पहले किसी भी व्यक्ति को वकालत करने का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता था. ऐसे में राम जेठमलानी को योग्यता हासिल करने के बाद भी चार साल का इंतज़ार करना था. लेकिन उन्होंने कराची हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक प्रार्थना पत्र लिखा. इसमें उन्होंने लिखा कि उन्हें अपनी बात कहने का एक मौका तो दिया जाना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें मिलने का समय और अपनी बात कहने का मौका दिया. एक टीवी इंटरव्यू में राम जेठमलानी ने बताया था, ‘मैंने मुख्य न्यायाधीश से कहा कि जब मैंने वकालत में दाखिला लिया था उस वक्त ऐसा कोई नियम नहीं था कि मुझे 21 साल की उम्र से पहले लाइसेंस नहीं दिया जा सकता. लिहाजा मेरे ऊपर यह नियम लागू नहीं होना चाहिए.’ मुख्य न्यायाधीश इस 17 साल के नौजवान की बात और इसके आत्मविश्वास से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बार काउंसिल को विशेष पत्र लिख कर राम जेठमलानी को लाइसेंस देने पर विचार करने को कहा. इसके बाद नियमों में बदलाव किया गया और एक अपवाद को शामिल करते हुए 18 साल की उम्र में ही राम जेठमलानी को वकालत का लाइसेंस जारी कर दिया गया. इतनी कम उम्र में वकालत शुरू करने वाले वे देश के पहले और आखिरी व्यक्ति बन गए.
राम जेठमलानी ने कराची से ही अपनी वकालत की शुरुआत की. यहां उनके साथी थे एके ब्रोही. भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद जहां राम जेठमलानी ने भारत में नाम कमाया वहीँ ब्रोही भी पाकिस्तान में बहुत चर्चित हुए. यह भी एक दिलचस्प संयोग है कि ये दोनों ही साथी आगे चलकर अपने-अपने देश के कानून मंत्री भी बने. फरवरी 1948 में जब कराची में दंगे भड़के तो ब्रोही के कहने पर ही राम जेठमलानी भारत आए थे. यहां आकर उनके शुरुआती दिन मुंबई के शरणार्थी शिविरों में बीते. उनके अनुसार एक बैरिस्टर ने तब 60 रूपये में उन्हें सिर्फ एक मेज लगाने लायक जगह दी थी. यहीं वे अपने मुवक्किलों से मिला करते थे.
राम जेठमलानी की प्रसिद्धि का दौर 1959 से शुरू हुआ जब उन्हें केएम नानावती मामले में पैरवी करने का मौका मिला (ये वही मामला है जिस पर कुछ साल पहले रुस्तम नाम की हिंदी फ़िल्म बनी). इस मामले को राम जेठमलानी के कैरियर का सबसे बड़ा मामला भी माना जाता है. नानावती नौसेना का एक अधिकारी था. उसने अपनी पत्नी के प्रेमी की हत्या कर दी थी. इस मामले को मीडिया ने जबरदस्त हवा दी और यह उस दौर का सबसे चर्चित मामला बन गया. उस वक्त भारत में जूरी द्वारा भी फैसले दिए जाते थे. जूरी ने नानावती को हत्या के इस मामले में दोषमुक्त करार दे दिया था. बाद में यह मामला महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के आदेश पर दोबारा शुरू किया गया. राम जेठमलानी ने नानावती के खिलाफ पैरवी की और इतनी ज़बरदस्त पैरवी की कि न सिर्फ़ नानावती को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई बल्कि तब से भारत में जूरी की व्यवस्था भी समाप्त कर दी गई. इस केस के साथ ही राम जेठमलानी का नाम भी सारे देश में छा गया.
राम जेठमलानी को नानावती केस से मिली प्रसिद्धि आगे चलकर बढ़ती ही गई. लेकिन यह प्रसिद्धि विवादित भी थी. 60 के दशक की शुरुआत से ही राम जेठमलानी तस्करों के वकील के रूप में बदनाम होने लगे थे. फिर यह सिलसिला चलता ही रहा. अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान, शेयर बाजार घोटालों के आरोपित हर्षद मेहता और केतन पारेख, जेसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा, राजीव गांधी के हत्यारों, इंदिरा गांधी के हत्यारों, यौन शोषण के आरोप में फंसे आसाराम बापू, अवैध खनन के आरोपित येदियुरप्पा और आय से अधिक संपत्ति के मामले में फंसी जयललिता समेत तमाम लोगों की पैरवी उन्होंने की. ऐसे लोगों की पैरवी करने पर कई लोगों ने उनसे सवाल भी किये लेकिन उनके पास इसके जवाब हमेशा तैयार थे. उनका मानना रहा कि, ‘किसी भी व्यक्ति के दोषी होने या न होने का फैसला सिर्फ न्यायालय कर सकता है. वकील को यह फैसला करने का अधिकार नहीं है.’ साथ ही वे यह भी मानते कि ‘किसी वकील के लिए एक बदनाम व्यक्ति की पैरवी करना अनैतिक नहीं है, बल्कि बदनामी के डर से किसी व्यक्ति की पैरवी करने से इनकार कर देना अनैतिक है.’
राम जेठमलानी और विवादों का साथ सिर्फ उनकी वकालत तक ही सीमित नहीं रहा. उनकी राजनीतिक सक्रियता, व्यक्तिगत जीवनशैली और उनके बयान, सभी विवादों से घिरते रहे. वे ज्यादा समय भाजपा में शामिल रहे लेकिन अक्सर भाजपा की बुराई करते भी दिखे. एनडीए सरकार में वे अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुके हैं और फिर एकमात्र ऐसे व्यक्ति भी जिसे 1998 के उस मंत्रिमंडल से निकाला गया हो. यह भी माना जाता है कि अटल बिहारी वाजपेयी कभी भी राम जेठमलानी को मंत्रिमंडल में शामिल करने के पक्ष में नहीं थे. उन्हें लालकृष्ण आडवानी से नजदीकियों के चलते ही मंत्रिमंडल में जगह मिली थी. लेकिन 1999 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश और अटॉर्नी-जनरल से राम जेठमलानी के विवादों के चलते उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया. 2004 में वे अटल बिहारी के खिलाफ ही लोक सभा का चुनाव भी लड़े. इसके अलावा कभी उन्होंने स्वयं को राष्ट्रपति पद का दावेदार बताया तो कभी राजनीतिक मोर्चा भी बनाया.
‘भगवान राम एक बहुत ही गैर जिम्मेदार पति थे. मैं उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं करता.’ इस तरह के बयान देकर भी कई बार राम जेठमलानी ने विवाद खड़े किये. इसके साथ ही उन्होंने कभी अभिनेता धर्मेन्द्र को तो कभी किशोर कुमार की पत्नी लीना चंदावरकर को सरेआम चूम कर सुर्खियां बनाई. शराब और महिलाओं से नजदीकियों के कारण भी राम जेठमलानी विवादास्पद बने रहे. लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी इस कमजोरी को बेबाकी से स्वीकार लिया. बल्कि वे 94-95 साल की उम्र में भी इतना सक्रिय रहने का कारण शराब और महिलाओं से नजदीकी को ही मानते थे. उनके व्यक्तिगत जीवन और जीवनशैली पर कई बार सवाल उठे लेकिन उन्होंने हर बार इसका मुंहतोड़ जवाब दिया. एक बार ‘आप की अदालत’ कार्यक्रम में जब रजत शर्मा ने राम जेठमलानी से उनकी दो शादियों के बारे में सवाल किया तो उनका जवाब था, ‘हां हैं मेरी दो बीवियां. और मेरी दोनों बीवियां तुम्हारी एक बीवी से ज्यादा खुश हैं.’
इन तमाम विवादों के बाद भी हकीकत यही है कि राम जेठमलानी देश के सबसे सफल वकीलों में शामिल रहे. बताते हैं कि न्यायालय में सिर्फ एक दिन उपस्थित होने की उनकी फीस दस लाख से तीस लाख रूपये तक होती थी. 18 साल की उम्र में उन्होंने वकालत का अपना जो सफ़र शुरू किया था वह अब थम गया है. वे भारत के सबसे कम उम्र के वकील भी थे और सबसे ज्यादा उम्र के वकील भी रहे. इसीलिए लगभग 77-78 साल के अनुभव वाले भी वे एकमात्र वकील थे.
लेकिन इतनी उपलब्धियों के बावजूद भी भारतीय न्यायिक इतिहास में राम जेठमलानी का नाम कभी स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज नहीं हो पाएगा. यह उनके वकालत के सफ़र का ऐसा पहलू है जिस पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई लेकिन वे खुद इससे अनजान नहीं थे. एक साक्षात्कार में उन्होंने माना भी था कि ‘किसी भी वकील के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होती है कि वह किसी बड़े संवैधानिक मुद्दे पर बहस करे. या किसी अन्य कानून के ऐसे पहलू पर बहस करे जिससे उस क़ानून की व्याख्या ही बदल जाए. लेकिन यह मौका मुझ जैसे वकीलों को कम ही मिलता है जो मुख्यतः आपराधिक मामलों में ही बहस करते हैं.’
इस पहलू को ऐसे भी समझा जा सकता है कि राम जेठमलानी कभी ऐसे मामले में वकील नहीं रहे हैं जो भारतीय न्याय व्यवस्था में मील का पत्थर साबित हुआ हो. उदाहरण के लिए केशवानंद भारती केस, शाह बानो केस, उत्तरप्रदेश राज्य बनाम राज नारायण, मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य, मिनर्वा मिल्स केस आदि. ये सभी मामले ऐसे हैं जिन्होंने वक्त के साथ कानून और उसकी व्याख्या में बड़े परिवर्तन किये हैं. इस लिहाज से देखें तो ननी पालखीवाला, फली एस नरीमन, सोली सोराबजी जैसे नाम हमेशा के लिए न्यायिक इतिहास में अमर हो चुके हैं. भारत में जब भी महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों पर बहस की जाएगी, इन लोगों के तर्कों को जरूर देखा और समझा जाएगा.
सर्वोच्च न्यायालय के एक वकील के अनुसार, ‘यह सच है कि न्यायिक इतिहास में राम जेठमलानी का नाम उतना महत्वपूर्ण नहीं होगा जितना संवैधानिक मामलों पर बहस करने वाले वकीलों का होता है. आपराधिक मामलों में बहस करने वाले वकीलों को अक्सर यह कीमत तो चुकानी ही पड़ती है. दरअसल वह कानून की बारीकियों से ज्यादा तथ्यों की बारीकियों पर बहस करता है. और तथ्यों को घुमाने की कला में राम जेठमलानी का कोई मुकाबला नहीं था.’
तथ्यों को घुमाने की यह वही कला है जिसने राम जेठमलानी को भारत का सबसे मशहूर वकील बनाया,  जिसने उन्हें ‘राम जेठमलानी’ बनाया. जिससे वे हर बार आपको चौंका देते हैं. जिसका एक उदाहरण आपने इस लेख की शुरुआत में भी पढ़ा था कि भारत का विभाजन जिन्ना के कारण नहीं बल्कि हरिचन्द्र नाम के एक कंजूस के कारण हुआ था. राम जेठमलानी के अनुसार इसके पीछे की कहानी यह है कि जब मोहम्मद अली जिन्ना ने वकालत पूरी की तो वे कराची पहुंचे. यहां उन्होंने ‘हरिचन्द्र एंड कंपनी’ नाम की एक कंपनी में नौकरी का आवेदन किया. कंपनी के मालिक हरिचन्द्र ने जिन्ना का साक्षात्कार लिया जिसमें वे सफल भी रहे. इसके बाद हरिचन्द्र ने जिन्ना से तनख्वाह के बारे में पूछा तो जिन्ना ने कहा कि उन्हें 100 रुपया महीना चाहिए. लेकिन हरिचन्द्र 75 रूपये प्रतिमाह से ज्यादा देने को राजी नहीं थे. यह किस्सा सुनाते हुए ही राम जेठमलानी ने कहा, ‘यदि उस बूढ़े कंजूस ने 25 रूपये ज्यादा दे दिए होते तो भारत-पाकिस्तान विभाजन नहीं हुआ होता.’
(यह लेख Rahul Kotiyal ने कुछ साल पहले सत्याग्रह.कॉम के लिए लिखा था)

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