Wednesday 15 February 2017

कानून की किरकिरी कराकर राज्यसभा सीट पक्की की जागरण ने...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
आज देश के कुछ राज्यों मैं चुनाव की चर्चा है ओर इसी चर्चा मैं एक चर्चा दब कर रह गई वो है जागरण के मालिकों ने पैसे की ख़ातिर कानून को हाथ मैं लिया ओर फिर भी बच निकले, किरकिरी हुई मीडिया की...?
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी साहब इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि जागरण के सम्पादक-मालिक और सीईओ संजय गुप्ता ने कहा है कि उत्तरप्रदेश विधान
सभा चुनाव में दूसरे चरण के मतदान से पहले जागरण द्वारा शाया किया गया एग्ज़िट पोल उनके विज्ञापन विभाग का काम था, जो वेबसाइट पर शाया हुआ, ("Carried by the advertising department on our website") माने साफ़-साफ़ पेड सर्वे!
दूसरे शब्दों में कहा जाये तो जागरण ने पैसा लिया (मगर लिया किससे...? यह बस समझने की बात है) और कथित मत-संग्रह किसी अज्ञातकुलशील संस्था से करवा कर शाया कर दिया कि चुनाव में भाजपा की हवा चल रही है.
जैसा कि स्वाभाविक था, इस फ़र्ज़ी एग्ज़िट पोल को भाजपा समर्थकों-प्रचारकों ने सोशल मीडिया पर हाथों-हाथ लिया और अगले चरण के चुनाव क्षेत्रों में दूर-दूर तक पहुँचा दिया, सोशल मीडिया पर ही इसकी निंदा और चुनाव आयोग की हेठी न हुई होती तो कौन जाने कल के मतदान से पहले यह बनावटी हवा का हल्ला अख़बार में भी छपा मिलता.
अब जानते हैं कानून क्या कहता है ओर कानून के चलाने वालों ने किया क्या है, हो सकता है ये कडवा सच लिखने पर मैं दोषी बन जाऊं लेकिन दिमाग़ मैं चहल पहल है तब लिखने की कोशिश कर रहा हूं पढ़े..?
चुनाव आयोग ने पहली बार 1998 में एक्ज़िट पोल प्रकाशित करने पर पाबंदी का दिशानिर्देश जारी किया था, इसे 1999 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, आख़िरकार 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि चुनाव आयोग को ऐसे निर्देश जारी करने का पूरा अधिकार है, तब से पहले चरण के मतदान के 48 घंटे पहले से अंतिम चरण के मतदान तक किसी भी तरह के ओपीनियन या एक्ज़िट पोल के नतीजों को, किसी भी माध्यम में प्रकाशित करने पर पाबंदी है.
ज़ाहिर है, दैनिक जागरण सीधे चुनाव आयोग को चुनौती दी है, देखना है कि आयोग उसके ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई कर पाता है, वैसे जागरण के दुस्साहस को देखते हुए यह साफ़ है कि उसे बीजेपी से अभयदान मिला हुआ है, या कहें कि वह पत्रकारिता की आड़ में बीजेपी के लिए शिखंडी बन गया है क्या आप लोग भी मानते हैं...?
दूसरी तरफ़ हालांकि जागरण ने अपनी सफाई में कहा कि 'यह खबर सिर्फ डिजिटल इंग्लिश प्लेटफॉर्म में डाली गयी थी, दैनिक जागरण अखबार में नहीं छापी गयी, इंग्लिश वेबसाइट पर एग्जिट पोल से जुड़ी यह खबर अनजाने में डाली गयी थी, इस भूल को फौरन सुधार लिया गया और संज्ञान में आते ही वरिष्ठ अधिकारियों की तरफ से संबंधित न्यूज रिपोर्ट को तुरंत हटा दिया गया था.
लेकिन मुख्य चुनाव आयोग इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ और इस मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी को लिखे पत्र में कहा कि 27 जनवरी को उसकी ओर से जारी अधिसूचना और जनप्रतिनिधित्व कानून, 1991 की धारा 126 (ए) के उल्लंघन के मामले में अखबार के सम्पादक/प्रबंध संपादक/ मुख्य सम्पादक और मतदान का सर्वेक्षण करने वाली कम्पनी रिसोर्स डेवलपमेंट इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए.
आयोग ने ये भी कहा था कि रिसोर्स डेवलपमेंट इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड और दैनिक जागरण ने मतदान बाद सर्वेक्षण को प्रकाशित करके जनप्रतिनिधित्व कानून 126 ए और बी के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 का भी उल्लंघन किया है, आयोग के इस आदेश के बाद पहले चरण के मतदान वाले जिलों में अलग-अलग मुकदमा दर्ज करके देर रात गाज़ियाबाद में ये गिरफ़्तारी की गयी थी, लेकिन अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया.
बात रिहाई पर भी आकर ठहरती है ओर यही रिहाई मेरी नज़र मैं एक वजह भी है जो कानून को बार बार तोड़ने या कानून से खिलवाड़ करने के लिए लोगों को मजबूर करती है.
अब इसी जागरण के केस को ही ले लें क्या कहती है कानून की ये धारा ओर क्यूं समझना ज़रूरी है...?
चुनाव आयोग द्वारा जारी डायरेक्टिव के अनुसार जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 में निर्वाचन क्षेत्र में मतदान के लिए तय समय से 48 घंटे पूर्व अवधि के दौरान टेलीविजन या इसी प्रकार के उपकरण के साथ-साथ किसी अन्य माध्यम द्वारा चुनाव सामग्री को प्रदर्शित करने की मनाही है। कथित 126 धारा के संबंधित अंशों को नीचे उद्धृत किया गया है-
“मतदान होने के लिए निर्धारित समय से 48 घंटे पूर्व की अवधि के दौरान सार्वजनिक सभाओं पर रोक”
(1) कोई व्यक्ति – (ए)किसी चुनाव में मतदान के लिए तय निर्धारित समय से 48 घंटे पूर्व की अवधि के दौरान सिनेमा, टेलीविजन या इसी तरह के प्रचार माध्यम द्वारा जनता में किसी तरह की प्रचार सामग्री का प्रदर्शन नहीं करेगा.

(बी) किसी मतदान क्षेत्र में मतदान के लिए निर्धारित अवधि से 48 घंटे पूर्व की अवधि के दौरान ऐसी किसी सामग्री को प्रदर्शित नहीं करेगा:
(2)जो व्यक्ति उप-धारा-1 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, वह अधिकतम दो साल तक की अवधि की सज़ा या जुर्माना या दोनों प्रकार के दंड का भागी होगा.
(3)इस धारा में ‘चुनाव सामग्री’ की अभिव्यक्ति का अर्थ है, किसी चुनाव के परिणाम को परिकलित या प्रभावित करने के आशय वाली सामग्री.
{२}. चुनाव के दौरान पैनल चर्चा/बहस और अन्य समाचारों एवं समसामयिक कार्यक्रमों के प्रसार में टीवी चैनलों द्वारा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की उपर्युक्त धारा 126 के प्रावधानों के उल्लंघन के कुछ आरोप लगते रहे हैं। आयोग ने विगत में यह स्पष्ट किया है कि कथित धारा 126 में टेलीविजन या इसी प्रकार के उपकरणों सहित अन्य माध्यमों द्वारा किसी चुनाव क्षेत्र में मतदान के लिए तय अवधि से 48 घंटे पूर्व की अवधि के दौरान किसी चुनाव सामग्री के प्रदर्शन पर प्रतिबंध है.
इस धारा में चुनाव सामग्री को किसी चुनाव के प्रभाव को परिकलित या प्रभावित करने के आशय वाली सामग्री के रुप में परिभाषित किया गया है, धारा 126 के उपरोक्त प्रावधानों का उल्लंघन होने पर अधिकतम दो वर्ष तक की अवधि की सज़ा या जुर्माना या दोनों दंड दिए जाने का प्रावधान है.
{३}. इस संबंध में जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126-ए की और ध्यान आकर्षित किया जाता है, जिसमें उल्लिखित अवधि के दौरान पहले चरण में मतदान शुरू होने के लिए निर्धारित समय में और सभी राज्यों में आखिरी चरण में मतदान समाप्त होने के लिए निर्धारित समय के आधे घंटे बाद एक्जिट पोल आयोजित करने और उनके परिणाम प्रसारित करने पर प्रतिबंध है.
{४}. आयोग एक बार फिर यह दोहराता है कि टीवी /रेडियो चैनल और केबल नेटवर्क यह सुनिश्चित करें कि धारा 126 में निर्दिष्ट 48 घंटे की अवधि के दौरान टेलीकास्ट/प्रसारित/प्रदर्शित कार्यक्रमों की विषयवस्तु में पैनल व्यक्तियों/प्रतिभागियों के विचारों / अपील सहित ऐसी कोई सामग्री नहीं होनी चाहिए, जो किसी पार्टी विशेष या उम्मीदवार (रों) की संभावनाओं को प्रोत्साहित करने वाली / पक्षपातपूर्ण या चुनाव के परिणाम को प्रभावित करती हो.
{५}. धारा 126 या धारा 126-ए के अंतर्गत आने वाली अवधि के दौरान संबंधित टीवी/ रेडियो/केबल/एफएम चैनल प्रसारण संबंधित घटनाओं को आयोजित करने के लिए राज्य/जिला/स्थानीय पदाधिकारियों से आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन वे घटनाएं शालीनता, साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के संबंध में सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा केबल नेटवर्क (विनियम) अधिनियम के अधीन उल्लिखित आचरण एवं व्यवहार के मॉडल कोड के प्रावधानों की भी पुष्टि करें.
उन्हें पेड़-न्यूज एवं संबंधित मामलों के संबंध में आयोग के दिनांक 27 अगस्त 2012 के दिशा निर्देशों के प्रावधानों के अंतर्गत बने रहना भी अपेक्षित है। संबंधित मुख्य निर्वाचन अधिकारी / जिला निर्वाचन अधिकारी ऐसी अनुमति देते समय कानून एवं व्यवस्था सहित सभी संबंधित पहलुओं को ध्यान में रखेंगे.
{६}. समस्त मीडिया का ध्यान चुनाव के दौरान भारतीय प्रेस परिषद द्वारा जारी निम्नलिखित दिशा निर्देशों के अनुपालन की ओर आकर्षित किया जाता है-
(1) चुनाव और उम्मीदवारों के बारे में उद्देश्यपूर्ण रिपोर्ट देना प्रेस का कर्तव्य है। चुनाव के दौरान समाचार पत्रों से गलत चुनाव अभियान, किसी व्यक्ति/पार्टी या घटना के बारे में अतिश्‍यो क्तिपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित करने की उम्मीद नहीं है, प्रचलन के अनुसार नजदीकी मुकाबले के दो या तीन उम्मीदवार मीडिया का ध्यान आकर्षित करते हैं, वास्तविक अभियान की रिपोर्ट करते समय समाचार पत्र को उम्मीदवार द्वारा उठाए गए मुख्य मुद्दे को नहीं छोड़ना चाहिए और उसके विरोधी पर हमला नहीं बोलना चाहिए.
(2) चुनाव नियमों के अधीन साम्प्रदायिक या जाति के आधार पर चुनाव अभियान पर प्रतिबंध है। इसलिए प्रेस को ऐसी रिपोर्ट नहीं करनी चाहिए, जो धर्म, वंश, जाति, सम्प्रदाय या भाषा के आधार पर जनता के बीच नफरत या दुश्मनी की भावना को बढ़ावा देती हों.
(3) प्रेस को चुनाव में किसी उम्मीदवार की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए उम्मीदवार या उसके संबंधी के चरित्र और व्यक्तिगत आचरण या किसी उम्मीदवार की नाम वापसी या उसकी उम्मीदवारी के संबंध में कोई झूठा या आलोचनात्मक बयान प्रकाशित करने से बचना चाहिए.
(4) प्रेस किसी उम्मीदवार या पार्टी को प्रोजेक्ट करने के लिए किसी प्रकार का वित्तीय या अन्य प्रलोभन स्वीकार नहीं करेगा। वह किसी उम्मीदवार या पार्टी की ओर से दिए गए आतिथ्य या अन्य सुविधाओं को स्वीकार नहीं करेगा.
(5) प्रेस से किसी विशेष उम्मीदवार या पार्टी का प्रचार करने की उम्मीद नहीं है। अगर ऐसा किया जाता है तो उसे अन्य उम्मीदवार/पार्टी को इसका जवाब देना होगा.
(6) प्रेस किसी व्यक्ति /शासन करने वाली सरकार की उपलब्धियों के संबंध में राष्ट्रीय कोषागार की लागत से प्राप्त होने वाले विज्ञापन को स्वीकार/प्रकाशित नहीं करेगा.
(7) प्रेस निर्वाचन आयोग/निर्वाचन अधिकारियों या मुख्य चुनाव अधिकारी द्वारा समय-समय पर जारी सभी निर्देशों/आदेशों/अनुदेशों का अनुपालन करेगा...
ऊपर दिये गये दिशानिर्देश क्या कहते हैं ये भी आज फिर से मालूम हो गया कि ये सब निर्देश सिर्फ़ और सिर्फ़ कमज़ोर लोगों के लिए बन हैं, क्यूंकि अदालत ने इन दिशा निर्देशों को ताक़ पर रखकर कानून की धज्जियां उड़ाने वाले को जमानत पर रिहा कर दिया है...?
अगर मैं यूं कहूं कि अदालत की निगाह मैं चुनाव आयोग की जांच कर गिरफ़्तारी या केस दर्ज कराना कोई मायने नहीं रखता, क्यूंकि अब इस केस मैं फिर से जांच होगी ओर केस को नम्बर पर आते आते ही इतना वक़्त लग जायेगा कि कानून को मज़ाक़ बनाने वाला जाने कहां होगा ओर चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त ना जाने कहां होंगे, बस अगर कुछ सामने होगा तो वो होगा कानून का खुला मज़ाक़, यही है मेरे महान मुल्क का कानून...?
मुझे इस केस से या केस के मुलजिमों से कोई लेना देना नहीं है ना ही मुझको कोई नफ़ा है ओर ना ही कोई नुकसान है,  बस अफ़सोस है तो कानून की धाराओं पर ओर कानून को चलाने वालों पर अब देखना यही जो आज मुलज़िम हैं कल किसी राज्यसभा की सीट पर होंगे...?
क्यूंकि मेरे मुल्क मैं मेरे मुल्क के कानून चलाने वाले ही कानून का मज़ाक़ बनवाते हैं ओर शायद बनवाते भी रहेंगे...? 
जय हिंद, जय भारत 
एस एम फ़रीद भारतीय 
की कलम से मांफ़ी के साथ...

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