Saturday 15 June 2024

जहेज़ को जायज़ करार देने वालों के लिए...?

दहेज लेना इस्लाम में कितना जायज...? 
इस हदीस में बता दिया गया है साफ...
एस एम फ़रीद भारतीय

दहेज (Dowry) एक ऐसी कुप्रथा है, जिसके चक्कर में कई लड़कियों की शादी नहीं हो पाती है. कई बार दहेज देने के चक्कर में लड़की के माता-पिता कर्ज में डूब जाते हैं. दहेज की रस्म

लड़की वालों पर आफत बनकर टूटती है. जान लें कि इस्लाम (Islam) में दहेज को हराम बताया गया है. इसे सरासर गलत कहा गया है. साफ कहा गया है कि अगर किसी चीज की मांग लड़की वालों से लड़के वाले करते हैं तो यह गलत है. ऐसा भी कहा जाता है कि अगर कोई दहेज मांगता है, उसे लड़की वालों की मर्जी के बगैर लेता है या उन्हें मजबूर करता है तो इससे बरकत और खैर चली जाती है. आइए जानते हैं कि इस्लाम में दहेज के बारे में बताया गया है.

निकाह का मतलब

निकाह अरबी जबान के माद्दे “ن ك ح न क ह” से बना है जिसका मतलब है मिलना या जमा करना। इस तरह मिलना जिस तरह नींद आँखों में मिल जाती है या बारिश के कतरे जमीन में जज्ब हो जाते हैं।
इससे यह बात वाजेह हुई कि इस्लाम चाहता है कि निकाह के बाद शौहर और बीवी के दरमियान ऐसा ताल्लुक पैदा हो जाये जैसा ताल्लुक आँख और नींद के दरमियान होता है। इसी बात को क़ुरआन ने एक दूसरी मिसाल में बयान किया :

هُنَّ لِبَاسٌ لَكُمْ وَأَنْتُمْ لِبَاسٌ لَهُنَّ
वे तुम्हारे लिए लिबास हैं और तुम उनके लिए लिबास हो। [सूरह बक़रह 2:187]

यानी जिस तरह लिबास और जिस्म के दरमियान कोई दूरी नहीं होती और वे एक दूसरे की हिफाजत करते है उसी तरह का ताल्लुक शौहर और बीवी के बीच होना चाहिये।

📚बाहवाला : निकाह की बरकत और दहेज की लानत – पेज :9

“लफ्ज़ निकाह के असल मायने अक़्द के ही हैं।”
✒इमाम रागिब असफहानी रह.

जान लें कि अगर लड़की पक्ष के लोग अपनी इच्छा से कोई तोहफा लड़के वालों को देते हैं तो वह जायज है. हालांकि, ये ध्यान रखना चाहिए कि गिफ्ट्स का लेन-देन दोनों तरफ से होना चाहिए. सिर्फ लड़की वालों को ही तोहफा नहीं देना चाहिए. लेकिन अगर तोहफे सिर्फ एक तरफ से दिए जा रहे हैं और उससे जाहिर हो रहा है कि दहेज दिया जा रहा है तो ये ठीक नहीं है.

कुरान में क्या है लिखा...?
कुरान में कहा गया है कि ऐ ईमान वालों! आपस में एक-दूसरे के माल को नाहक तरीकों से मत खाओ. (सूरह निसा). अल्लाह के रसूल ने बताया कि किसी का माल उसकी दिली मर्जी के बगैर हलाल नहीं है. अल्लाह के रसूल ने कहा कि तुम में से कोई मोमिन नहीं हो सकता, जब तक कि उसकी ख्वाहिशें उस शरीयत के अनुसार न हों, जिसे मैं लेकर आया हूं.

ही वो गुलाम बन गये लेकिन ईमान में मामले में आजाद और गुलाम सब एक ही जिन्स / सह जाति के हैं।
◆लेकिन ऐसी बदचलन लौंडियां से निकाह न करें जो खाविंद के पीछे से बद दयानती करे।
◆लौंडियों को भी शादी के मौके पर मेहर अदा करना होगा, उस जमाने के हिसाब से ये भी एक बहुत बड़ी बात है कि एक लौंडी को निकाह पर मेहर दिया जाये, क्योंकि उस जमाने में गुलाम या लौंडी के कोई अधिकार नहीं होते थे।
◆लौंडियों से निकाह के वक़्त उनके मालिकों की इजाजत जरूरी है।
◆ये सहूलत इस वजह से दी गई है जिससे समाज में बेहयाई और बेराहरवी न फैले।

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🔸 वही है जिसने पानी से इंसान को पैदा किया और फिर उसको खानदान वाला और ससुराल वाला बनाया, और तेरा परवरदिगार बड़ा क़ुदरत वाला है।

📚सूरह फुरकान 25:54

खुलासा:

इन आयात में अल्लाह ने इंसान की पैदाइश के ज़िक्र के बाद अपने दो बड़े अहसान बताये है एक ये की उसे एक खानदान अता किया दूसरा उसे ससुराल अता किया।

इंसानों की दो जिन्स यानी नर और मादा का एक ही माँ के पेट से पैदा होना अपने आप में खुदा के वजूद की एक बड़ी निशानी है लेकिन इसके साथ अल्लाह ने एक और निशानी का ज़िक्र किया कि किस तरह वो इस पूरी जमीन में इंसानों को आबाद करता है और न सिर्फ आबाद करता है बल्कि इसे एक समाज देता है जिसके बिना इंसान किसी भी मैदान में तरक्की नहीं कर सकता है। बल्कि इस समाज के बिना वो एक हैवान बन कर रह जाता है।

इस अमल में इंसानों की आबादी के तसलसुल का एक सिलसिला बेटो और पोतों से चलता है जो दूसरे घरों से बहुयें लाते है। और एक दूसरा सिलसिला बेटियों और नवासियों का चलता है जो दूसरों के घरों में बहुयें बनकर जाती है।

इस तरह खानदान से खानदान जुड़ता है और एक समाज बनता है और फिर उससे पूरा एक मुल्क बनता है और इस तरह पूरी इंसानियत वाबस्ता हो जाती है।

मौलाना थानवी का ब्यान...?
मौलाना अशरफ अली थानवी का कहना है कि दहेज लेते वक्त इसका ध्यान जरूर रखें कि गुंजाइश से ज्यादा नहीं दें. जरूरत का लिहाज करना चाहिए. जिन चीजों की उस समय जरूरत है, उनको ही देना चाहिए. इसका ऐलान नहीं होना चाहिए क्योंकि यह अपनी बेटी से हमदर्दी है. इसे दूसरों को दिखाने की जरूरत क्या है...?

🔸हजरत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने हमसे फ़रमाया:
ऐ नौजवानो की जमाअत ! तुम में से जो निकाह करने की माली हैसियत रखता हो उसे निकाह करना चाहिए क्योंकि निकाह नज़र को झुकाने वाला और शर्मगाह को महफूज़ रखने वाला अमल है और जो कोई माली हैसियत न रखता हो, वो रोज़ा रखे क्योंकि रोज़ा ढाल है (यानी रोज़ा नफ़्स की ख्वाहिशों को कुचल देता है।)

📚 बाहवाला:
◆सहीह बुखारी 1905,5065,5066
◆सहीह मुस्लिम 3398,3400
◆सुनन नसई 2244,3211,3212,3213
◆सुनन इब्ने माजा 1845,1846
◆सुनन अबू दाऊद 2046
◆जामेअ तिर्मिज़ी 1081
◆मिश्कात उल मसाबीह 3080
◆सुनन दारमी 2165
◆मुसनद अहमद 1/378
◆मुसनद अबू याला 5510
◆तियालसी 1/303

खुलासा :
■इस हदीस में रसूल ए करीम सल्ल. ने नौजवानों को जल्द से जल्द निकाह करने की तरग़ीब दिलाई है।
■अगर नौजवान की माली हालत दुरुस्त हो तो उसे जल्द से जल्द निकाह कर लेना चाहिये।
■इसकी हिकमत ये है कि निकाह नजरों को झुका कर रखने वाला अमल है और ये शर्मगाह की हिफाजत करता है, आसान अल्फ़ाज़ में इससे मुआशरे की बेहयाई खत्म होती है और औरत और मर्द दोनों की इज्जतें महफूज रहती है।
■अगर किसी शख्स की माली हालत ठीक न हो तो उसे अपनी शहवत काबू करने का नुस्खा भी नबी ए रहमत सल्ल. ने बताया है, वो ये है कि वो रोज़े रखे क्योंकि रोज़ा नाजायज़ ख्वाहिशात से बचने की एक ढ़ाल है।

निकाह पर इज्माअ :

निकाह के फर्ज़ होने पर मुसलमानों का इज्माअ(सर्वसम्मति) है; यानी पूरी दुनिया में मुसलमान इसे फ़र्ज़ समझते है और कोई भी फ़िरक़ा या मसलक निकाह के फर्ज़ होने का इन्कार नहीं करता।

📚 बाहवाला:
फ़िक़्हुल हदीस 2/121
अल-मुगनी 9/340

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निकाह करने से आधा ईमान मुकम्मल होता है:

🔸हज़रत अनस बिन मालिक़ (रज़ि.) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्ल. ने फरमाया:

✨ जब आदमी शादी करता है तो उसका निस्फ (आधा) ईमान मुक़म्मल हो जाता है, अब उसे चाहिये कि बाकी आधे ईमान के बारे में अल्लाह तआला से डरता रहे।”

📚 बाहवाला:
◆मिश्कात उल मसाबीह 3096
◆सिलसिला सहीहाह 1494
◆बैहकी 5486

🔀 सनद: इमाम अल बानी ने इसे सहीह कहा है।

खुलासा :
■ शादी करने से इन्सान कई बुराइयों से बच जाता है, इसलिये इसे आधा ईमान कहा गया है।

निकाह एक नेअमत है
और उसी की (क़ुदरत) की निशानियों में से एक ये (भी) है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी ही जिन्स की बीवियाँ (जोड़े) पैदा की ताकि तुम उनके साथ रहकर सुकून हासिल करो और तुम लोगों के दरमियान प्यार और शफकत पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के लिये (क़ुदरते ख़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं

📖सूरह रूम 30:21

📌 खुलासा:
इस आयत में अल्लाह ने इन्सान की पैदाइश के बाद से आज तक जो मियाँ बीवी का रिश्ता चला आ रहा है, उसे अपनी एक बड़ी नेमत के तौर पर बयान किया है।

सबसे पहले आदम अलै. की पैदाइश हुई लेकिन उनके जोड़े को पूरा करने के लिए भी माँ हव्वा को पैदा किया गया, जिससे इस बात की अहमियत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मियाँ बीवी के बीच इस पाक रिश्ते की शुरुआत अल्लाह ने जन्नत में की, जबकि कोई और रिश्ता उस वक़्त मौजूद न था।

✅साथ ही आयत से 3 अहम तकाजे हमारे सामने आते है जिनके बिना घरेलू जिंदगी बेकरारी और नफरत से भर जाती है, वो ये हैं:

1⃣ मियाँ बीवी के बीच पुर सुकून माहौल होना चाहिये जो आपसी भरोसे और आपसी समझ के बिना मुमकिन नहीं है।
2⃣ आपसी भरोसा और आपसी समझ बिना आपसी मुहब्बत के कायम नहीं रह सकते।
3⃣ आपसी मुहब्बत कायम रखने के लिये जरूरी है कि एक दूसरे के साथ शफकत और मेहरबानी का सुलूक किया जाये। एक दूसरे की कोतहियों को माफ किया जाये।

▪इन तीन ताक़जो को पूरा करने पर ही ये उम्मीद की जा सकती है कि हमारी घरेलू जिंदगी अमन और सुकून का गहवारा बन जाये।

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✨वे (बीवियाँ) तुम्हारे लिए लिबास हैं और तुम(शौहर) उनके लिए लिबास हो।
📖 सूरह बक़रह 2:187

📌 खुलासा:

🔹इस आयत में अल्लाह ने मियाँ बीवी को ‘एक दूसरे के लिये लिबास’ कहकर निहायत खूबसूरत और जामेअ मिसाल दी है। इस मिसाल में कई हिक्मतें है जैसे:

◆अल्लाह ने इंसानों और जानवरों में एक अहम फर्क ये रखा कि जिस तरह लिबास अल्लाह ने केवल इंसानी बदन के लिये उतारा है उसी तरह निकाह का रिश्ता भी अल्लाह ने केवल इंसानों के लिये मख़सूस किया है। न तो कोई जानवर लिबास पहनता है और न ही निकाह करता है।

रहता है कोई चीज़ उसकी मिसल नहीं और वह हर चीज़ को सुनता देखता है।

📖 सूरह शूरा 42:11

📌 खुलासा

✅इन आयात में अल्लाह ने इंसानों की पैदाइश का जिक्र किया है कि किस तरह उसने आदम और हव्वा के जोड़े से इंसानियत को पूरी दुनिया में फैला दिया।

उन दोनों के बाद निकाह के इदारे से ही इंसानों की नस्ल जारी रखने का तरीका अल्लाह ने पसन्द किया।
यहाँ अल्लाह ने इंसानी आबादी के फरोग का जरिया भी मियाँ बीवी के जोड़े को बताया जिसके जरिये आदम अलै. से लेकर आज तक इन्सानी नस्ल फैलती जा रही है और अपने वजूद को कायम रख पा रही है।

✨ अल्लाह ने खास जोर लफ्ज़ ‘जोड़ा‘ पर दिया है, अल्लाह ने मियाँ और बीवी को एक जोड़ा करार दिया है। और हम जानते हैं कि ‘जोड़े’ (Pair) में एक चीज दूसरे को पूरी करती है, दोनों एक दूसरे के Complementary-पूरक होते है, दोनों एक दूसरे के बिना पूरे नहीं होते। ऐसा ही ताल्लुक एक मियाँ और एक बीवी के दरमियान भी होता है।

♻ फिर साथ ही अल्लाह ने इस निकाह के जरिये वजूद में आने वाले रिश्ते नातों को जोड़ने का हुक्म दिया है।

✨ नबी सल्ल. का इरशाद है ::

🔹रहम(रिश्ते) का ताल्लुक रहमान से जुड़ा है । जो रिश्तों को जोड़ता है अल्लाह उससे जुड़ता है, और जो रिश्तों को तोड़ता है अल्लाह उससे(अपना ताल्लुक) तोड़ता है.
📚 सहीह बुखारी 5988

🔹रिश्ते तोड़ने वाला जन्नत में नहीं जायेगा।
📚सहीह बुखारी 5984

◆ और अल्लाह ने इस आयत में ये भी कहा कि निकाह और इससे वजूद में आने वाले रिश्तो के बारे में इंसान को डरते रहने चाहिये और किसी का भी हक़ नहीं मारना चाहिये क्योंकि अल्लाह हमारी हर हरकत की निगरानी कर रहा है।

✨ नेक बीवी : बेहतरीन मताअ ✨

🔹 हजरत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया:

✨ दुनिया मताअ है और इस दुनिया का बेहतरीन मताअ नेक और सालेह बीवी है।

📚 बाहवाला
◆सहीह मुस्लिम 3649
◆मिश्कात उल मसाबीह 3083
◆सुनन नसाई 3234

✒ लफ्ज़ ‘मताअ‘ के मायने पूँजी, बरतने(इस्तेमाल) की चीज, या फ़ायदेमंद चीज के होते है।

◆ इस लिहाज से नबी सल्ल. ने इस दुनिया की सारी पूँजी और फायदेमंद चीजों से बढ़कर एक नेक बीवी को बेहतरीन मताअ करार दिया है।

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✨सच्ची मुहब्ब्त सिर्फ मियाँ बीवी के बीच ही पैदा हो सकती है✨

🔹 हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्ल. ने फ़रमाया :

✨ तुमने निकाह (यानी शौहर और बीवी) के जैसे दो बाहम मुहब्बत करने वाले नहीं देखे होंगे।

♻ सनद: सहीह

📚 बाहवाला
◆सुनन इब्ने माजा 1847
◆मिश्कात उल मसाबीह 3093
◆सिलसिला सहीहाह 1446
◆हाकिम, बैहकी, तबरानी

▪निकाह के जरिये मियाँ बीवी में आपसी मुहब्बत अल्लाह तआला ही डालता है, जैसा कि इरशाद ए बारी तआला है :

🔸….और तुम लोगों के दरमियान प्यार और शफकत पैदा कर दी इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर करने वालों के लिये (क़ुदरते ख़ुदा की) यक़ीनन बहुत सी निशानियाँ हैं

📖 सूरह रूम 30:21

📌 खुलासा:

हम देखते हैं कि किस तरह दो अनजान लोग इस निकाह की बरकत से ऐसे मजबूत रिश्ते में बंध जाते है कि एक दूसरे के ख्याल, एक दूसरे की फिक्र और एक दूसरे पर रहम और शफक्कत के मामले में ऐसी मिसाल कहीं और नजर नहीं आती।

और न केवल इन दो लोगों बल्कि दो खानदानों के बीच एक बहुत मजबूत रिश्ता बन जाता है।

●कुछ जाहिल इस मुहब्बत की वजह केवल जाहरी खूबसूरती और जिन्सी तकाजो को करार देते हैं लेकिन हकीकत में इस मुहब्बत की वजह इससे बढ़कर आपसी रिश्तों और आने वाली नस्ल की फिक्र होती है।

जो लोग इस मुहब्बत की बिना सिर्फ जाहरी खूबसूरती पर रखते हैं उनका रिश्ता दिन गुजरने के साथ कमजोर होता जाता है, लेकिन आपसी रिश्तों (जैसे सास ससुर वगैरह) और औलाद की परवाह करने वालों के लिये दिन ब दिन ये रिश्ता मजबूत होता जाता है।

ये इसी मुहब्बत का नतीजा है कि एक मर्द रिश्तों की पासबानी के लिये और अपनी औलाद को हलाल लुकमा खिलाने के लिये मेहनत मशक्कत करता है और एक औरत इन रिश्तों को निभाने में और औलाद की परवरिश में अपने आराम और वक़्त की कुर्बानी देती है।

ये पाक बाज मियाँ बीवी ही होते है जो अपने स्वार्थ और आराइशों को छोड़ कर अपने घर गृहस्थी को बेहतर बनाने की कोशिशें करते हैं। ऐसे ईमानदार कार्यकर्ता और ऐसे ईमानदार सेवक खानदान के इस इदारे के अलावा कहीं नहीं मिलते जो इंसानी नस्ल को बेहतर बनाने के लिये बिना मुआवजा मेहनत करें और अपना वक़्त, अपना आराम, अपनी ताक़त और काबिलियत यानी कि अपना सब कुछ घर खानदान को मजबूत करने में लगा दे।

इस पाक और बेहतरीन निजाम के बरख़िलाफ़ आज के दौर में, जो लोग नाजायज़ तौर पर गैर महरम मर्द या औरत(जैसे boyfriend girlfriend) से मिलते हैं उनके अंदर न तो इन रिश्तों का तकद्दुस होता है न आने वाली नस्ल की परवाह। ऐसे लोग निरे स्वार्थी और निकम्मे होते हैं और इससे भी बढ़कर अल्लाह के निजाम के खिलाफ बगावत करने वाले होते है। जिस निकाह के निजाम (System) को अल्लाह ने मर्द और औरत की इज्जत की हिफाजत और आने वाली नस्लों के लिये परवरिश का गहवारा बनाया, ये जालिम लोग उसके खिलाफ इश्कबाजियाँ या सही अल्फाज में दगाबाजियाँ करके समाज में ऐसे नासूर छोड़ते है, जिनका जिक्र करने से भी हम कतराते हैं।

▪मसलन : इन गैर फ़ितरी मुलाकातों (Dates) से ही शरीफ घरानों की इज्जतें सड़क पर आती है, औलादें घर छोड़ जाती है, हर जगह बेहयाई फैलती है, हराम औलादें पैदा होती है, गर्भपात होते है, बहला फुसला कर बलात्कार किये जाते है, ख़ुदकुशियाँ होती है, हत्याऐं की जाती है… खुलासा ये है कि बहुत सी समाजी बुराईयाँ इसी सोच से जन्म लेती है की सच्ची मुहब्ब्त को बिना निकाह के हासिल किया जाये।

इसके उलट सही तरीके से निकाह से वो जोड़े वजूद में आते है जो निकाह होने के बाद आपसी मुहब्ब्त, ख़बरगीरी, हिफाजत और तरबियत का वो माहौल पैदा करते हैं कि उनकी पिछली और अगली दोनों नस्लें और साथ ही पूरा मुआशरा उनके एहसानमंद होते हैं और ऐसे ही मियाँ बीवी एक भले समाज की नींव की ईट बन पाते है।

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नेक शौहर-बीवी जन्नत में भी साथ रहेंगे

✨ नेक लोगों से कयामत के दिन कहा जायेगा:

🔸 तुम और तुम्हारी बीवियाँ जन्नत में दाखिल हो जाओ, तुम्हें खुश कर दिया जायेगा।
📖सूरह जुखरूफ़ 43:70

✨ और जन्नत में उन जोड़ो का हाल इस तरह बताया गया:

🔸और वो और उनकी बीवियाँ, (ठंडी) छाँव में तख्तों पर तकिये लगाये हुये बैठेंगे।
📖सूरह यासीन 36:56

✨और इनके साथ के लिये अल्लाह के अर्श को थामने वाले मुकर्रब फरिश्ते भी अल्लाह से दुआ करते हैं :

رَبَّنَا وَأَدْخِلْهُمْ جَنَّاتِ عَدْنٍ الَّتِي وَعَدتَّهُمْ وَمَن صَلَحَ مِنْ آبَائِهِمْ وَأَزْوَاجِهِمْ وَذُرِّيَّاتِهِمْ ۚ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ

ऐ हमारे परवरदिगार! इन(नेक लोगों) को सदाबहार बाग़ों में दाख़िल कर, जिनका तूने उन से वादा किया है और उनके बाप दादाओं और उनकी बीवीयों और उनकी औलाद में से जो लोग नेक हो उनको (भी बख्श दें और इन सब को उनके साथ पहुँचा दे) बेशक तू ही ज़बरदस्त (और) हिकमत वाला है
📖सूरह ग़ाफ़िर 40:8

📌 खुलासा:

◆ इन क़ुरआनी आयात से साफ पता चलता है कि नेक मियाँ बीवी का साथ इस दुनिया के बाद जन्नत में भी हमेशा बरकरार रहेगा।

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✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

निकाह की हिक्मत

✨निकाह से नजरों की हिफाजत होती है✨
✨क़ुरआन में नजरों की हिफाजत का साफ साफ हुक्म इन अल्फाज में आया है :

🔸(ऐ नबी सल्ल.) मोमिन मर्दों से कहो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके लिये ज्यादा पाकीजा तरीका है, वो लोग जो कुछ करते हैं ख़ुदा उससे यक़ीनन ख़ूब वाक़िफ है।

🔸और (ऐ नबी सल्ल.) मोमिन औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने बनाव सिंगार को (किसी पर) ज़ाहिर न होने दें मगर जो खुद ब खुद ज़ाहिर हो जाता हो (उसका गुनाह नही) और अपनी सीनों पर ओढ़नियों के आँचल डाले रहे……

📖 सूरह नूर 24:30-31

🔹 जब जरीर बिन अब्दुल्लाह (रज़ि.) ने (गैर औरत पर) अचानक पड़ने वाली नज़र के बारे में रसूलल्लाह सल्ल. से मसला पूछा तो
आप सल्ल. ने हुक्म फरमाया कि
“तुम अपनी नज़र फेर लिया करो।”

रिवायत :- सहीह

📚 बाहवाला:
◆मिश्कात उल मसाबीह 3104
◆सहीह मुस्लिम 2159/45
◆अबू दाऊद 2148
◆तिर्मिज़ी 2776

✒ सहीह बुखारी की हदीस 5066 के मुताबिक निकाह, नजरों की हिफाजत का जरिया है।

💫जन्नत की गारण्टी खुद अल्लाह के रसूल सल्ल. ने दी है।

💫 ऐसे लोगों की अल्लाह के जरिये दुनिया में भी खुसूसी मदद की जाती है।

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