आज ओर कल मैं हमारे क्या फ़र्क है जानते हैं आज ?
फिल्मी दुनियां की चकाचौंध आ हमारे ऊपर इस कद्र हावी हो चुकी है कि हमारा ग़रीब भाई अपनी मेहनत की कमाई को बड़ी ही शान से फ़िल्म पर बरबाद कर देता है, ये नहीं सोचता ये इसने कैसे ओर किसके लिए कमाया है ये तो है दौलत का नुकसान जो हम सह लेते हैं .
लेकिन दूसरे नुकसान की तरफ़ हमें सोचने की फ़ुर्सत ही
नहीं है कि वो कितना बड़ा नुकसान है ओर हम क्यूं किस लिये कर रहे हैं?
आपने देखा होगा कि ज़्यादातर फ़िल्में जुमे के दिन ही क्यूं रिलीज़ होती है?
वजह साफ़ है इस मुहिम को यहूदी ओर इसाई दोनों ने मिलकर शुरू किया ओर बहुत मेहनत की इसको आगे बढ़ाने के लिए ओर सोच थी मोमिन को इबादत से रोकना, ओर साथ ही उनकी कमाई पर हाथ साफ़ कर उनको हकूकुल इबाद मैं फसां देना जिसमे आज वो कामयाब हैं ओर हम उनके जाल मैं उलझ चुके हैं.
जो सोच उनकी थी हम उसी पर काम कर रहे हैं, अज़ीज़ों हमको सोचना होगा दीन के लिहाज़ से क़ुरआन की नज़र से, हदीसों की रोशनी मैं कि हम क्या कर रहे हैं?
पैसे की बात नहीं है बात है सबसे बड़े गुनाह के साथ अपनी बरबादी की दास्तान हम बड़े गुनाह के साथ लिख रहे हैं जिसको अल्लाह ने साफ़ मना फ़रमा दिया है अपने कलाम के ज़रिये कि मैं माफ़ नहीं करूंगा ओर वो है हक़कुल इबाद, अब आप कहेंगे कि ये हक़कुल इबाद कहां ले आये फ़िल्म मैं तब जान लें ओर अपने आलिमों से समझें ओर मालूम करें कि हक़कुल इबाद क्या है ओर कैसा गुनाह है, ओर ये कब होता है इंसान से ओर अल्लाह क्या फ़रमाता है?
दोस्तों फ़िल्म देखने के लिए पैसा चाहिये ओर पैसा मेहनत से जब कमाया तब अगर कमाने वाले का ख़ानदान घर बार बीवी बच्चे हैं तब उसकी दिन भर की कमाई मैं अपना हिस्सा बस उसकी कमाई गई रक़म का तीसरा हिस्सा होता है जिसको वो अपनी मर्जी से ख़र्च कर सकता है, बाक़ी उसके वारिसान का हक़ है.
अब दिन जुमा पहला शो 12 बजे ओर नमाज़ का वक़्त करीब 12.30 से शुरू वो भी दिनों के सरदार दिन की इबादत कहां गई?
अब आते हैं किसको क्या फ़ायदा?
मानलो ?
मुंबई के 40 लाख मुसलमान (टिकट रेट 200-250-280-300-450-550) चलो मिनिमम 200 से ऐवरेज निकालते हे
4000000×200=800000000 यानी 80 करोड़ सिर्फ मुंबई से
ज़रा सोचो पूरे इंडिया से कितनी कमाई होगी अब बताओ हम मुसलमानो से कमाते हैं ओर हमारे ही खिलाफ़ काम कर रहे हैं.
सोचो अगर यही पैसा हिन्दुस्तान के मुसलमान अपनी तालीम ओर मदरसो मे लगाये तो पता है मदरसों से कौन निकलेगा, हर घर से एक रफ़ी अहमद क़िदवाई, मौलना अब्दुल कलाम, डा. ज़ाकिर हुसैन, टीपू सुलतान शेर ऐ मेसूर.
अगर यही पैसा हमारे मदरसों मे लग जाये तो हर साल मदरसो से ऐसी शख्सियत हमारे बीच आयेगी
अब आपको तय करना है आपको क़ौम के वफ़ादार चाहिये या गद्दार.
अब आप सोचें हम कहां हैं कौन हैं क्या करना है ओर कर क्या रहे हैं?
एस एम फ़रीद भारतीय
संयोजक-(AMADM)
"आओ मिलकर आवाज़ दें मोर्चा"
09808123436
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