*याद तो होगा 1999 में कैसे चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी की वजह से 1 वोट से गिर गई थी अटल जी की सरकार...?*
आवाज़ दो न्यूज़ नेटवर्क इंडिया
अब लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लीडरशिप में एनडीए ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की तैयारी कर ली है, भाजपा के पुरानी सहयोगी चंद्रबाबू नायडू की तेलुगुदेशम पार्टी फिर से सरकार में शामिल हो रही है, चर्चा है कि टीडीपी ने इस बार भी प्रमुख मंत्रालयों के साथ ही लोकसभा स्पीकर पद की मांग भी रखी है.
क्यूंकि इस मामले ने राजनीतिक जानकारों के बीच 25 साल पहले के सियासी वाकए की याद ताजा कर दी, तब चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी की वजह से ही महज एक वोट से अटल बिहारी वाजपेयी की 13 महीने की सरकार गिर गई थी, लोकसभा स्पीकर की इसमें बड़ी भूमिका थी और यह पोस्ट टीडीपी के पास ही था, आइए भारतीय राजनीति की उस ऐतिहासिक घटनाक्रम के बारे में विस्तार से जानते हैं.
अब से करीब 25 साल पहले अप्रैल 1999 में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके की ओर से समर्थन वापसी के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था, उन्हें सदन में अपना बहुमत साबित करना था, 17 अप्रैल 1999 को इस प्रस्ताव पर वोटिंग होनी थी, तब प्रमोद महाजन ने अनुमान लगा लिया था कि बहुमत उनके साथ है और वाजपेयी अपनी कुर्सी बचा लेंगे, तब बसपा प्रमुख मायावती भी सरकार से अलग हो चुकी थीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस के सैफुद्दीन सोज भी खिलाफ हो गए थे, फिर भी वाजपेयी सरकार को बहुमत है ऐसी सोच महाजन जी की थी, लेकिन स्पीकर ने कांग्रेस सांसद गिरधर गमांग को लोकसभा में वोट देने का अधिकार दिया और सारा खेल ही पलट गया.
जब कांग्रेस के सांसद गिरधर गमांग 17 फरवरी 1999 को ही ओडिशा के मुख्यमंत्री बन गए थे, प्रमोद महाजन को गलतफमी थी कि गमांग ने इस्तीफा दे दिया होगा या उन्हें लगता था कि नैतिकता और नियमों के आधार पर गिरधर गमांग बतौर सांसद वो देने नहीं आएंगे, क्योंकि वह मुख्यमंत्री हैं, लंबे समय बाद वोटिंग के दिन अचानक संसद पहुंचकर गिरधर गमांग ने सत्ता पक्ष में खलबची मचा दी.
मामला लोकसभा अध्यक्ष और चंद्रबाबू नायडू की तेलगु देशम पार्टी के सांसद जीएमसी बालयोगी तक पहुंचा और उन्होंने रूलिंग दी कि गिरधर गमांग अपने विवेक के आधार पर वोटिंग करें, गमांग ने अपनी पार्टी की बात सुनी और बाजपेयी सरकार के खिलाफ वोट किया, इस एक वोट की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई, तब सरकार के पक्ष में 269 वोट और सरकार के खिलाफ कुल 270 वोट पड़े थे.
हम आपको बता दें कि संविधान के आर्टिकल 93 और 178 में लोकसभा के अध्यक्ष पद और उनकी ताकत के बारे में विस्तार से बताया गया है, सदन की कार्यवाही चलने के दौरान लोकसभा अध्यक्ष की सबसे बड़ी ताकत होती है, संसद सत्र में स्पीकर ही सबसे बड़ी अथॉरिटी होती है, लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करना हो, लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता देना हो, बैठक का एजेंडा क्या हो, सदन कब चलेगा, कब स्थगित होगा, किस बिल पर कब वोटिंग होगी, कौन वोट करेगा और कौन वोट नहीं करेगा जैसे तमाम अहम मुद्दे पर स्पीकर का फैसला ही सर्वमान्य होता है.
सैद्धांतिक तौर पर इसीलिए लोकसभा अध्यक्ष का पद किसी भी राजनीतिक पार्टी से ऊपर और बिल्कुल निष्पक्ष होता है, इसी स्पीकर पद पर रहते हुए चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के सांसद जीएमसी बालयोगी का इतिहास और तत्कालीन भाजपा-एनडीए के सबसे बड़े नेता प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ व्यवहार भूलाया नहीं जा सकता, इसलिए एनडीए की मौजूदा सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शायद ही लोकसभा अध्यक्ष का पद टीडीपी को सौंपे, क्यूंकि गठबंधन सरकार को विशेष परिस्थितियों में स्पीकर के संरक्षण की जरूरत बनी रहती है, आमतौर पर स्पीकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने पर भी कोई बड़ा फायदा नहीं होता है.
अब सवाल ये है कि क्या इस बार भी भाजपा नहीं बल्कि मोदी जी इतना सबकुछ जानते हुए भी लोकसभा स्पीकर का पद टीडीपी को दे पायेंगे...?
यहां भाजपा ने एक चाल चली है उसने अपनी प्रदेश अध्यक्ष पुरंदेश्वरी का नाम आगे किया है, उनको लगता है कि पुरंदेश्वरी क्यूंकि चंद्रबाबू नायडू की पत्नी नारा भुवनेश्वरी की बहन हैं, और उन्होंने नायडू का उस वक्त समर्थन किया था, जब उनकी अपने ससुर एनटी रामाराव का तख्ता पलट करने पर आलोचना हो रही थी, ऐसे में उन्हें स्पीकर बनाया जाता है, तो नायडू पर सॉफ्ट प्रेशर रहेगा, उनकी पार्टी पुरंदेश्वरी का विरोध नहीं कर पाएगी.
वहीं ओम बिरला यदि दूसरी बार फिर लोकसभा अध्यक्ष बनाए जाते हैं और वे इस पद पर अपना दूसरा कार्यकाल भी पूरा कर लेते हैं, तो उनके नाम एक रिकॉर्ड और दर्ज हो सकता है। साढ़े तीन दशक पहले लगातार दो बार चुने जाने और कार्यकाल पूरा करने वाले बलराम जाखड़ एक मात्र लोकसभा अध्यक्ष रहे हैं, जीएम बालयोगी, पीए संगमा जैसे नेता दो बार लोकसभा अध्यक्ष तो बने, लेकिन पूरे 5-5 साल के कार्यकाल पूरे नहीं किए, बलराम जाखड़ ने साल 1980 से 1985 और 1985 से 1989 तक अपने दोनों कार्यकाल पूरे किए.
कैसे होगा संविधान के अनुसार, नई लोकसभा की पहली बैठक से ठीक पहले अध्यक्ष का पद खाली हो जाता है। राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रोटेम स्पीकर नए सांसदों को पद की शपथ दिलाता है। इसके बाद, लोकसभा अध्यक्ष को साधारण बहुमत से चुना जाता है.
समस लो यहां भाजपा का कड़ा इम्तिहान है, अगर सहयोगियों की बात को भाजपा नकारती है और स्पीकर के चुनाव की नौबत आती है तब टीडीपी ने अगर अपना उम्मीदवार खड़ा किया और उसने भाजपा उम्मीदवार को हराकर इंडिया गठबंधन के सहयोग से पद हासिल कर लिया जैसा इंडिया गठबंधन टीडीपी से वादा कर रहा है तब स्पीकर के बनते ही सरकार ख़ुद अल्पमत मैं आ जायेगी और सही मंत्री और प्रधानमंत्री को पद छोड़ना पड़ेगा, लिहाज़ा अगर कुछ महीने या साल सरकार को चलाना है तब भाजपा को स्पीकर पद टीडीपी को दे देना चाहिए.
मगर मौजूदा घोषणाओं से नहीं लगता है कि भाजपा भी सरकार को सहयोग से चलाना चाहती है, बल्कि दो करोड़ मकान, किसान के खाते मैं रकम और अभी जो होने वाली हैं उससे लगता है भाजपा अपनी ज़मीन मज़बूत कर चुनावों की तैयारी कर रही है, और हो सकता लोकसभा और विधानसभा चुनाव भी एक साथ कराये जायें...?
एस एम फ़रीद भारतीय
लेखक, सम्पादक व मानवाधिकार सलाहकार.
No comments:
Post a Comment
अगर आपको किसी खबर या कमेन्ट से शिकायत है तो हमको ज़रूर लिखें !