Monday 19 December 2011

अन्ना, ससद और संवैधानिक संस्थाएं ?

अन्ना, ससद और संवैधानिक संस्थाएं अन्ना विरोधियों द्वारा एक भ्रामक प्रचार किया जा रहा है कि अन्ना समर्थक ससद को सर्वोच्च नहीं मानते। यह सही नहीं है। भारत का हर नागरिक देश के संविधान व इसके अन्तर्गत बनाई सभी संवैधानिक संस्थाओं पर आस्था रखता है। परन्तु क्या जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों का यह उत्तरदायित्व नहीं हैकि वह भी अपने आपको जनता का शासक न मान कर देश की जनता का न्यासधारी माने और जनता के आदेशानुसार ही अपने कर्तव्य का पालन करे? 
  एक आम आदमी का विश्वास लोकतत्र व उसकी व्यवस्थाओं से इसलिये टूटता है जब वह यह देखता है कि उसकी ससद मे 25 प्रतिशत सदस्य और मंत्री दागी और भ्रष्ट हैं। वही दागी और भ्रष्ट सांसद स्थाई समिति मे भी बैठ कर उसके लिये लोक पाल का कानून बनाकर उसके भाग्य का फ़ैसला करेंगें। हर सही सोच रखने वाले व्यक्ति को अन्ना का आभार मानना चाहिये कि अन्ना हमें वास्तविकता का आभास करा रहे हैं जो कि हम भूलते जा रहे थे। देश में व्याप्त लगभग अंग्रेज़ी शासन को ही लोकतंत्र समझ बैठे थे। एक आम और अशिक्षित व्यक्ति तो लोकतंत्र का सही अर्थ तक नहीं जानता। 
  कोई भी संवैधानिक संस्था चाहे वह ससद ही क्यों नहो, यदि तानाशाह बन कर देशवासियों की आकांक्षाओं की अवहेलना करती है तो वह किस प्रकार एक आम आदमी से आस्था की आशा रख सकती है। यही तो अन्ना एक आम आदमी की तरह आम आदमी को समझा रहे हैं जो कि वास्तव में सरकार का दायित्व है। पर सरकार ऐसा करके अपने ही पैर में कुल्हाड़ी क्यों मारे? उसकी दुकान तो बन्द हो जाएगी और आदमी पढ लिख कर सारे भ्रष्ट तंत्र का रहस्य समझ जाएगा। यह सरकार व इसके भ्रष्ट तंत्र के हित में बिल्कुल नहीं है। 
  केवल हमें वोट दो और हमें ससद और विधानसभा मे चुन कर भेज कर सो जाओ। “Just fill it,shut it and forget it”. सरकार केवल इतना ही चाहती है। आज देश में हालत यहहै कि एक बार गलत व लुभावने वायदों के आधार पर ये लोग ससद या विधानसभा मे चुन कर जाते हैं। उसके बाद जनता 5 सालों…एस.एम.फरीद भारती 

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