वाकई यह भूख से मौतों का मामला नहीं है ?
इस रिपोर्ट को लिखते हुए किसी शायर की एक पंक्ति याद आ रही है. आप नाहक सोच सकते हैं कि भला भूख से मौत के सवाल पर शेर-ओ-अदब की बातें कौन करता है. पर शायर लिखता है कि- किसी की आखिरी हिचकी, किसी की दिल्लगी होगी.
राजस्थान के भीलवाड़ा ज़िले में रामलाल भील के दो बच्चों की मौतें प्रशासन और सत्ता के लिए किसी दिल्लगी जैसी ही हैं भीलवाड़ा ज़िले के मुख्यालय से कोई 25-30 किलोमीटर के फासले पर ढिकोला ग्राम पंचायत का एक गांव है भीमनगर.
मीणा और भील परिवारों वाले इस गांव का नाम राजनीति की बिसात पर अपने मार्गदर्शकों, नेताओं के नाम परोसते के खेल में दिया गया होगा. भीमराव अंबेडकर ने देश को संविधान दिया. संविधान के रखवाले और कार्यवाहकों ने इस गांव को नाम दिया 'भीमनगर'.
पर संविधान ने इस गांव को जो दिया, वो प्रशासन और सत्ता इसे नहीं दे सके. संविधान ने दिया जीने का अधिकार. जीने के लिए ज़रूरी है रोटी और रोटी के लिए हाथों को काम चाहिए, अंबेडकर के चश्मे से झांकते देश के अंतिम व्यक्ति के लिए सरकारी सहायताओं का क्रियान्वयन चाहिए. मध्याह्न भोजन, आंगनबाड़ी, राशन कार्ड से अनाज का वितरण चाहिए.
अफ़सोस, सब जैसे किसी किताब की बातें हैं और इनकी जिल्द को हिलाने वाला कोई नहीं इसलिए सुविधाओं का जिन्न किताब में क़ैद है. बाहर हैं तो सरकारी नारे, वादे, क़ानूनों की फेहरिस्त, अफ़सरशाही के तमाशे और बस एक धुन, कि आख़िरी आदमी की बात मत करो, बाकी चाहे जो करा लो.
रोटी और काम के मायने
रोज़गार गारंटी क़ानून दिल्ली में बैठे अर्थशास्त्रियों के लिए एक योजना है. प्रशासन के लिए एक कागज़ पर स्याही की चिड़िया जिसे वे जब चाहें चलाएं, जब चाहे बंद कर दें लेकिन रामलाल भील जैसे परिवारों के लिए यह जीवन-मरण का प्रश्न है.
रामलाल बताते है कि उसके दो बच्चे भूख से मर गए. उसकी बीवी उसे छोड़कर चली गई. वो खुद बीमार पड़ गया. स्थानीय लोग बताते हैं कि नरेगा में लगभग एक साल के कोई काम नहीं चला था. राशन की दुकान से दो महीने से एक दाना भी रामलाल को नहीं मिला था. आंगनबाड़ी भी बंद. दो बरस की सबसे छोटी बेटी मंजू पांच दिन भूख से जूझकर मर गई.
गांव के लोगों का ध्यान इस परिवार की स्थिति पर तब गया जब एक ही हफ्ते बाद 12 बरस की बड़ी बेटी गीता भी हमेशा के लिए शांत हो गई गांव के ही एक समाजसेवी कजोड़ मीणा हमें बताते हैं कि सरकारी योजनाओं का चालू न होना रामलाल के परिवार को मौत के मुहाने तक लेकर गया.
उन्होंने बताया, “जब बड़ी बेटी शांत हुई तो हम सब बैठक के लिए रामलाल के घर गए. वहाँ देखा तो बाकी दो बच्चों और रामलाल की स्थिति भी नाज़ुक थी. घर में राशन का एक दाना नहीं था. हमने एंबुलेंस बुलाकर इन्हें अस्पताल भिजवाया वरना पूरा परिवार ही ख़त्म हो जाता शायद.
कजोड़ मीणा बताते हैं, “घर की स्थिति इतनी बदतर नहीं होती अगर गांव में नरेगा के तहत काम चल रहा होता तो. काम चलता तो रामलाल के पास कुछ काम होता, थोड़े बहुत पैसे होते. बीमारी में दवा और राशन तो आता रहता. भूख के मारे इस घर की स्थिति यह थी कि एक दिन प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक ने बच्चों को केले दिए तो रामलाल के बच्चे छिलका सहित केला खा गए.
एक चिथड़ा सच
हम जिस वक्त रामलाल के घर पहुंचे, शाम होने को आ रही थी. एक खुले अहाते में बिना किवाड़ वाली चौखट से हम दाखिल हुए. देखा, रामलाल अपने दो छोटे बच्चों के साथ चूल्हे में आग जला रहा था. चाय का बर्तन उस पर रखा था. चाय क्या, पत्ती और पानी. न दूध, न चीनी. पास पड़े थे मिर्च, नमक और लहसुन जिन्हें पीसकर वो रात के लिए चटनी बनाने वाला था.
रामलाल और बच्चों की देह पर साफ से कपड़े थे. पूछा तो पता चला कि अर्से बाद बदन पर पूरे कपड़े आए हैं. सरकारी मदद से कुछ पैसा खर्च करके खुद के लिए और बच्चों के लिए कपड़े खरीदे हैं. घर में दाखिल हुए तो कोठरी शुरू होने से पहले ख़त्म हो गई. एक छोटे से कमरे में दिखे कुल जमा चार बर्तन, दो गूदड़.
सिर उठाया तो लकड़ियों से ढ़की एक झीनी छत शाम गहरा चुकी थी और आसमान के तारे नज़र आ रहे थे किसी कवि की रचना की प्रेरणा दे सकते हैं पर रामलाल के परिवार के लिए ठंड की रातों में ये आंखों में शूल से चुभते होंगे. यह सोचकर ही सिहरन दौड़ गई कि पूस माघ की रातें इस छत के नीचे कैसे पार होंगी.
एक दीवार पर दिए की कालिख के निशान और साथ में टंगे थे कुछ मिचुड़े हुए पोस्टर. देवी-देवता और सुंदर कपड़ों में सजीली मॉडल सपने कितनों के लिए बैसाखी बनकर आते हैं. इस मॉडल की देह, चमक, लावण्य और देवी देवताओं की चिर-प्रतीक्षित दया, कृपा और वरदान दीवारों पर कीलों से जड़े हुए थे.
“मौत का कारण भूख नहीं”
ज़िला कलेक्टर ओंकार सिंह से रामलाल के बच्चों की भूख से मौत की बात करनी चाही तो बिफर पड़े. बोले, “एकदम ग़लत बात है ये. सरासर ग़लत है. आप लोग इसे भूख से मौत साबित करना चाहते हैं. अरे रामलाल की हिस्ट्री देखिए. काम करना नहीं चाहता. शराबी है. हम फिर भी पैसे, राशन सब देकर आए हैं. उसके बच्चों के नाम पर पैसा जमा भी कराया है. नरेगा का काम चालू कर दिया है. बिल्कुल गलत है यह कि मौत भूख से हुई.”
मैंने कहा, रामलाल कह रहा है कि उसके बच्चे भूख से मरे तो उसे आप कैसे खारिज कर देंगे. बोले, वो लोगों को बहकावे में ऐसा कह रहा है. सोचिए, एक बीमार, लाचार भील, जिसके पास बच्चियों की मौत की ख़बर से पहले तक कोई नहीं पहुंचा था, भला सत्ता और प्रशासन के खिलाफ़ किसके कहने पर षड़यंत्र रच रहा था. क्यों झूठे इल्ज़ाम लगा रहा था.
ज़िला कलेक्टर ओंकार सिंह से रामलाल के बच्चों की भूख से मौत की बात करनी चाही तो बिफर पड़े बोले एकदम ग़लत बात है ये सरासर ग़लत है आप लोग इसे भूख से मौत साबित करना चाहते हैं अरे रामलाल की हिस्ट्री देखिए काम करना नहीं चाहता शराबी है हम फिर भी पैसे, राशन सब देकर आए हैं. उसके बच्चों के नाम पर पैसा जमा भी कराया है. नरेगा का काम चालू कर दिया है. बिल्कुल गलत है यह कि मौत भूख से हुई.
यानी प्रशासन रात को दिन मान सकता है, सियार को शेर कह सकता है, पूरब को पश्चिम कह सकता है और भी बहुत कुछ कह या कर सकता है पर भूख से मौत को भूख से मौत नहीं मान सकता वाकई रामलाल भील के बच्चे भूख से नहीं मरे ?
वे मरे, क्योंकि सरकारी अमले ने अपनी आंखें बंद कर रखी थीं और भीमनगर अपने हाल पर छोड़ दिया गया था. वे मरे, क्योंकि नरेगा का काम इस गांव में नहीं चला, सार्वजनिक वितरण प्रणाली का एक दाना इस भूख से बिलखते परिवार को नहीं मिला. वे मरे, क्योंकि ग़रीब की भूख को लापरवाह और ग़ैरज़िम्मेदाराना नौकरशाही ने उपेक्षित ही रखा.
भूख से इन मौतों पर विपक्ष भी स्थानीय मीडिया की ख़बरें देखकर उमड़ा-धुमड़ा. कुछ शोर-हल्ला हुआ. मामला भाजपा बनाम कांग्रेस हो गया पर व्यवस्था सबकुछ मैनेज कर लेती है भूख से हुई इन मौतों पर चली राजनीति भी शांत हो गई.
प्रशासन ने 25 हज़ार रूपए और 40 किलो राशन रामलाल को दे दिया है. इंदिरा आवास का मकान देने की बात भी कलेक्टर कह रहे हैं नरेगा का काम आनन-फानन चालू कर दिया गया है पर सवाल ये कि रामलाल की मंजू और गीता क्या वापस आ सकती हैं? क्या भूख से मौतों की सच्चाई राहत की फाइलों से छिपाई जा सकती है ? और कितनी स्थाई, कितनी सुरक्षित है रामलाल जैसों की ज़िंदगी. यह सवाल अभी भी कौंध रहा है.
mene suna hai rajistan me kagresh ki sarkar hai aor waha par bhuk se do bachchiyo ki mot ho jati hai aor rahul gandgi kuch nhi karte ,,aor uttar pardesh me vikash ki bate karte hai .uttar pardesh ke logo ko bhikari kahte hai .ese netao ko uttar pardesh se bhaga dena chahiye
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