मामला दर्ज कर लिया है, इस घटना का सबसे महत्वपूर्ण पहलु यह है कि जिस महिला के साथ बलात्कार किया गया है वो बुरी तरह से घायल थी, उसकी हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसे पहले प्राथमिक चिकित्सा केंद्र से जिला अस्पताल और उसके बाद मेडिकल कालेज अस्पताल के लिए रेफर किया गया था.
इस मामले का एक और चौकाने वाला पहलू यह है कि बुरी तरह घायल महिला के साथ एम्बुलेंस में बलात्कार किया गया है, बलात्कारी एम्बुलैंस का कर्मचारी है, एम्बुलेंस और उसका स्टाफ जीवन बचाने के लिए होता है लेकिन पीड़ित महिला के जीवन के साथ इस जीवन दाई वाहन में घिनौना कृत्य किया गया, जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तब ऐसे में किस पर भरोसा किया जाए.
जांच अधिकारी एसआई एसके ओझा के अनुसार बादलपुर बैतूल निवासी 35 वर्षीय एक महिला अपने परिचित धन्नालाल के साथ 3 जून को घोड़ा डोंगरी रेलवे स्टेशन से इटारसी आई थी, यहां धन्नालाल ने झगड़ा होने पर महिला की पिटाई कर उसे स्टेशन के आउटर पर झाड़ियों में फेंक दिया था, 4 जून को महिला गंभीर हालत में जीआरपी पुलिस को पटरियों के नजदीक बेहोशी की हालत में मिली, महिला की हालत काफी खराब थी, यहां से एंबुलेंस से महिला को स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, जहां से उसे इलाज के लिए जिला अस्पताल होशंगाबाद रैफर किया गया था.
अस्पताल के डॉक्टरों ने महिला को इलाज के लिए एंबुलेंस से हमीदिया अस्पताल भोपाल के लिए रैफर किया था, महिला ने अपने बयान में बताया कि होशंगाबाद से भोपाल के बीच एंबुलेंस में एक कर्मचारी ने उसके साथ बलात्कार किया, साथ ही भोपाल शहर की सीमा में आने पर उसे दूसरी एंबुलेंस में शिफ्ट कर हमीदिया अस्पताल में भर्ती करा दिया, इस मामले में एंबुलेंस के कर्मचारी के खिलाफ ज्यादती और धन्नालाल के विरुद्ध मारपीट करने का मामला दर्ज किया गया है.
इस घटना को बलात्कार कि दूसरी घटनाओं के श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, लेकिन बलात्कारी के खिलाफ केस बलात्कार का ही दर्ज हुआ है, जबकि पीड़ित महिला बुरी तरह से घायल थी, इसका मतलब ये हुआ कि बलात्कारी ने उसके जीवन को भी दांव पर लगा दिया, मतलब ये कि इस घटनाक्रम के दौरान पीडिता की जान भी जा सकती थी, इसलिए बलात्कारी के खिलाफ जान लेने की कोशिश किये जाने का भी अपराध दर्ज किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ-शायद इसलिए की पीडिता गरीब है.
कभी कभी ऐसा लगता है कि समाज में अपराधों की बाढ़ ने हम सबको इस तरह कि घटनाओं के प्रति असंवेदनशील बना दिया है, ये बात अलग है कि कुछ लोगों को इस तरह की घटनाएं झिन्झोरती हैं लेकिन संगठित प्रतिरोध खड़ा ना हो पाने के कारण जिन्हें गुस्सा आता है वे भी कुछ नहीं कर पाते, अब तो हालत यहाँ तक पहुँच चुके हैं कि जब ऐसे अपराधों की खबरों को पढ़ते या सुनते हैं तो उसके बाद कोई प्रतिक्रिया मन में शायद ही आती हो.
यही तो मनोविज्ञान है, ऐसी घटनाओं के प्रति हमारी प्रतिरोधात्मक क्षमता लगभग समाप्त होने की कगार पर आ गई है, ऐसे अपराधों में आसान प्रतिक्रिया होती है कि अपराधी को सख्त सजा दी जाए लेकिन बड़ा सवाल ये है कि कितने मामलों में अपराधी को सजा मिल पाती है ? हमारी न्यायपालिका अपराधों की सुनवाई के बोझ से दबी जा रही है और अपराधों की जांच करने वाली पुलिस के काम करने के तरीके पर हरदम सवाल खड़ा रहता है, आवश्यकता तो सिस्टम के बुनियादी बदलाव की है, लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता तब तक कुछ सुधारों की ओर तो कदम बढ़ाया ही जाना चाहिए.
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