एस एम फ़रीद भारतीय
ऐ मेरे फरज़न्द, सल्तनत के स्थायी रखने की गरज़ से यह वसीयतनामा लिखा गया है। हिन्दुस्तान का मुल्क़ भिन्न-भिन्न धर्मों का गहवारा है। उस अल्लाह की तारीफ है जो न्यायवान, दयावान और महान है कि जिसने तुझे बादशाही बख्शी है। यह मुनासिब है
कि तू अपने दिल से सभी धर्मों की तरफ अगर कोई बदगुमानी है तो उसे निकाल दे और हर मिल्लत अथवा सम्प्रदाय के साथ उनके अपने तरीके से उनका न्याय कर, विशेष रूप से गाय की क़ुरबानी से बिलकुल परहेज़ कर, क्योंकि इससे तू हिन्दुस्तान के दिल को जीत लेगा और इस मुल्क़ की रय्यत का दिल इस एहसान से दबकर तेरी बादशाही के साथ रहेगा। तेरे सम्प्रदाय में हर धर्म के जितने मन्दिर और पूजा घर हैं उनको नुकसान न हो। इस तरह अदल और इंसाफ करना जिससे रय्यत शाह से और शाह रय्यत से आसूदा रहे। इस्लाम की तरक्की, ज़ुल्म की तेग के मुक़ाबले में अहसान की तेग से ज़्यादा अच्छी हो सकती है। शिया और सुन्नियों के झगडे को नज़र अन्दाज़ करना क्योंकि इन झगडों से इस्लाम कमज़ोर होता है। प्रकृति के पाँचों तत्वों की तरह विविध धर्मों के पेरोकारों के प्रति व्यवहार करना ताकि सल्तनत का जिस्म विविध व्याधियों से पाक और साफ रहे। हज़रत तैमूर के कारनामों को अपनी नज़र के सामने रखना ताकि सल्तनत के काम में तुम पुख्ता हो जाओ। “और हमारा काम महज तुम्हें सलाह देना है।“ हिजरी 933, जमादि-उल-अव्वल की पहली तारीख (11 जनवरी, 1529 ई) ...
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