एस एम फ़रीद भारतीय
जब अमर शहीद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती के मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि मौजूदा सरकार की आर्थिक नीतियां ठीक नहीं हैं.
उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी अपनी
नीतियों से हर क्षेत्र में भारत को आगे लेकर गईं, जब वो प्रधानमंत्री बनी तब देश में अनाज की कमी थी ऐसे में उन्होंने देश के वैज्ञानिकों से कृषि पर ध्यान देने को कहा और तब देश में हरित क्रांति आई.
वहीं पंडित नेहरू और इंदिरा ने देश के कृषी क्षेत्र में विकास की ओर ध्यान दिया और इस उद्देश्य के लिए किसानों के हित में भी कदम उठाए, आज भी देश के किसानों के हित के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है लेकिन मौजूदा मोदी ओर बाकी भाजपा शासित राज्य सरकारें इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है, उल्टे किसानों को बेवकूफ बनाया जा रहा है जिससे किसान खुदकुशी करने को मजबूर है.
किसानों का कर्जा माफी इसका सबसे खराब तरीका है, गांवों की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए हरेक परिवार को एकमुश्त रकम देनी चाहिए, सिर्फ उन्हें ही फायदा क्यों मिले, जिन्होंने कर्जा लिया है, सिर्फ उन्हें ही लाभ क्यों जिन्होंने पैसे नहीं चुकाए हैं, जिनके पास जमीन है उन्हें ही फायदा क्यों ? भूमिहीनों को क्यों नहीं बताये जवाब दें, बल्कि इस तरह की कर्जा माफी किसानों को जानबूझ कर कर्जा न चुकाने को प्रेरित करती है.
नोटबंदी को महीनो बीतने के बाद भी किसान, महिला व व्यवसायी परेशान है. नोटबंदी के कारण बहुत लोगों की मौत हो चुकी है, उनके परिजनों को मुआवजा नहीं मिला, पीएम मौन हैं जेटली जी को एक के बाद एक नया कानून बनाने से फ़ुर्सत नहीं, पीएम या वित्त मंत्री क्यों नहीं दे रहे है, जैसे नोटबंदी से देश को कितना आर्थिक नुकसान हुआ है? कितने लोग काला धन जमा किये? नोटबंदी से पूर्व किसी अर्थशास्त्री से राय क्यों नहीं लिये? सरकार के पास अब तक शत-प्रतिशत कैश जमा हो चुका है, फिर भी कालेधन वाले का नाम क्यों नहीं बताया जा रहा है? पंद्रह पंद्रह लाख का क्या हुआ आदि ?
अगर हम इकॉनोमिक टाइम्स की माने तब उसके मुताबिक कारोबारियों को हर महीने तीन तरह के रिटर्न दाखिल करने होंगे, इसके अलावा एक रिटर्न वार्षिक तौर पर दाखिल करना होगा, अगर किसी कारोबारी का कारोबार एक से ज्यादा राज्य में है तो उसे और ज्यादा रिटर्न्स दाखिल करने होंगे, माना जा रहा है कि अगर किसी कारोबारी का धंधा तीन राज्यों में है तो उसे साल भर में कुल 111 टैक्स रिटर्न भरने होंगे, लिहाजा, साफ है कि इससे सभी कारोबारियों पर सीए जैसे प्रोफेशनल्स की सेवा लेना अनिवार्य हो जाएगा, इससे उनका खर्च भी बढ़ेगा.
सरकार ने पहले ही जीएसटी में चार तरह के टैक्स 5 फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी और 28 फीसदी निर्धारित किए हैं। इसे लागू करने के लिए हरेक कारोबारी को न केवल सिस्टम अपडेट रखना होगा बल्कि उसे मैन पॉवर को भी समुचित प्रशिक्षण देना होगा। सभी तरह के कारोबार का ऑनलाइन रिकॉर्ड भी रखना होगा। बता दें कि केंद्र सरकार की जीएसटी की प्रस्तावित दरों को लेकर कई व्यापारियों ने नाराजगी शुरू कर दी है.
देशभर में मार्बल (पत्थर) कपड़ा धागे का धंधा करने वाले व्यापार पर जीएसटी की दरों को लगाने व बढ़ाने को लेकर काफी नाराज हैं, केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव के विरोध में उन्होंने अपने काम धंधे बंद कर दिए हैं ओर वो विरोध को सड़कों पर आ गये हैं.
हिन्दुस्तान टाइम्स में बरखा दत्त ने कथित गोरक्षकों की खासी खिंचाई की है. उन्होंने लिखा है कि अब साफ-साफ बात करिये. गोरक्षा के नाम पर जो शब्दाडंबर चल रहा है उसे खत्म कीजिये. यह सीधे-सीधे हत्या है न कि मारपीट और धक्का-मुक्की और न ही गोरक्षा. और प्लीज, उन्हें गोरक्षक तो मत ही कहिये. वे सीधे-सीधे हत्यारे हैं. जिन लोगों ने अलवर हाईवे पर पहलू खां की गाड़ी से निकालकर पीट-पीट कर हत्या कर दी. उन्हें किस हिसाब से रक्षक कहलाने का हक है.
आगे कहा ये ठग हैं जो धार्मिकता में अंधे हो चुके हैं, वे एक ऐसे माहौल में दुस्साहसी हो चुके हैं, जहां इस तरह की हत्या करने वालों को सही ठहराया जा रहा है, इस तरह के बेरहमी से मार दिए गए लोगों के उलट उन लोगों साथ खड़े होने की प्रवृति बढ़ रही है, जो ऐसे खुलेआम अत्याचार कर रहे हैं, पहलू खां ने कथित गोरक्षकों को रसीद भी दिखाई थी कि वह गायों को मेले से खरीद कर ला रहे हैं.
लेकिन क्या अगर वह पशु तस्कर भी होते तो क्या लोगों को उन्हें इस तरह सड़क पर मार डाला जाना चाहिए था.? क्या इस देश में न्याय अब सड़कों पर होगा,
बरखा आगे लिखती हैं – जल्द ही यह बहस खत्म हो जाएगी, अखबारों की सुर्खियों से हट जाएगी, हम सब अपने कामों में व्यस्त हो जाएंगे, जब तक कि इस तरह की कोई दूसरा हत्या का मामला हमारे सामने न आ जाए, लेकिन तब तक इस देश में काउ विजिलेंट कावर्ड (कायर) हंगामा करते रहेंगे, यह अब न्यू नॉर्मल हो चुका है, ओर आज हो भी यही रहा है, गर्व से गौ गुंडे अपनी बर्बरता को वीडियो में कैद कर सोशल मीडिया पर डालते हैं.
प्रधानमंत्री इन वीडियों को देखते ज़रूर होंगे और राज्य के मुख्यमंत्री भी, लेकिन एक शब्द इन राजनेताओं के मुंह से नहीं निकलता कहीं अफ़सोस नहीं कि हम भारत को किस दिशा मैं ले जा रहे हैं बोलना ही नहीं सख़्त आदेशों से नौकरशाहों को अवगत करना चाहिए जिससे ये साबित हो कि इस हत्या से उनको तकलीफ हुई है, सरकार, मंत्री, नेता, पुलिस सब मौन हैं क्यूं क्यूं आखिर क्यूं...?
जनाब जवाब हमें घूर रहा है, कोई भी अखबार खोलिए या कोई भी समाचार चैनल देखिए, जो सुर्खियां हमारे सामने चिल्लाती हुई होंगी वे हैं- अवैध बूचड़खाने, कथित गऊरक्षकों के उत्पात, शराब की दुकानों की बंदी, एंटी रोमियो दस्ते, अफ्रीकी अश्वेतों पर नस्ली हमले, विश्वविद्याल्य परिसरों में टकराव, आधार कार्ड की अनिवार्यता, तीन तलाक, अयोध्या में राम मंदिर बनाने की बातें, दो हजार के जाली नोट आदि.
शायद ही किसी को निवेश, ऋण-वृद्धि या रोजगार का जिक्र सुनने को मिले, हमें अपनी प्राथमिकताएं दुरुस्त करने की जरूरत है, हमें बातें कम करने तथा निवेश, ऋण और रोजगार पर ज्यादा काम करने की जरूरत है, यह भी जरूरी है कि हम उन मुद्दों पर शोर मचाना कम करें जिनका अर्थव्यवस्था की सेहत से कोई वास्ता नहीं है, तीन ओर साल बीतते जा रहे हैं जनता सब देख रही है आप ज़रूर ख़ुश हो सकते हैं लेकिन देश की जनता कतई ख़ुश नहीं है मैं धर्म ओर जाति की नहीं देश की जनता की बात कर रहा हुँ जो अधिकतर दुखी हैं...
दुखी मन से मेरे भारत, जयहिंद ।
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