Thursday 22 February 2018

औरत क्या है ओर क्या चाहती है, क्या दिया है इस्लाम ने ?

एस एम फ़रीद भारतीय
मर्दों को बहुत सी बातें पता होती हैं लेकिन जब बात आती है औरत का दिल जीतने की तो बहुत से लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं होती है, हक़ीकत में, बहुत से मर्द नहीं जानते कि औरत को कैसे इज्जत दी जाए, एक रिश्ता शुरू करना आसान है लेकिन इस रिश्ते को अगर लम्बे वक़्त तक बरकरार रखना है, तो औरत का दिल जीतना बहुत जरूरी है और यह मुमकिन नहीं है जब तक कि आप औरत या गर्लफ्रेंड को इज्जत देना ना सीखें.

क्यूं इस कहानी से समझें ?
एक गर्भवती स्त्री ने अपने पति से कहा, "आप क्या आशा करते हैं लडका होगा या लडकी"
पति-"अगर हमारा लड़का होता है, तो मैं उसे गणित पढाऊगा, हम खेलने जाएंगे, मैं उसे मछली पकडना सिखाऊगा।"
पत्नी - "अगर लड़की हुई तो...?" 
पति- "अगर हमारी लड़की होगी तो, मुझे उसे कुछ सिखाने की जरूरत ही नही होगी"

"क्योंकि, उन सभी में से एक होगी जो सब कुछ मुझे दोबारा सिखाएगी, कैसे पहनना, कैसे खाना, क्या कहना या नही कहना।"
"एक तरह से वो, मेरी दूसरी मां होगी। वो मुझे अपना हीरो समझेगी, चाहे मैं उसके लिए कुछ खास करू या ना करू।"
"जब भी मै उसे किसी चीज़ के लिए मना करूंगा तो मुझे समझेगी। वो हमेशा अपने पति की मुझ से तुलना करेगी।"
"यह मायने नही रखता कि वह कितने भी साल की हो पर वो हमेशा चाहेगी की मै उसे अपनी baby doll की तरह प्यार करूं।"
"वो मेरे लिए संसार से लडेगी, जब कोई मुझे दुःख देगा वो उसे कभी माफ नहीं करेगी।"
पत्नी - "कहने का मतलब है कि, आपकी बेटी जो सब करेगी वो आपका बेटा नहीं कर पाएगा।"
पति- "नहीं, नहीं क्या पता मेरा बेटा भी ऐसा ही करेगा, पर वो सिखेगा।"
"परंतु बेटी, इन गुणों के साथ पैदा होगी। किसी बेटी का पिता होना हर व्यक्ति के लिए गर्व की बात है।"
पत्नी -  "पर वो हमेशा हमारे साथ नही रहेगी...?"
पति- "हां, पर हम हमेशा उसके दिल में रहेंगे।"
"इससे कोई फर्क नही पडेगा चाहे वो कही भी जाए, बेटियाँ परी होती हैं"
"जो सदा बिना शर्त के प्यार और देखभाल के लिए जन्म लेती है।"
"बेटीयां सब के मुकद्दर में, कहाँ होती हैं
जो घर खुदा को पसंद हो, वहां होती हैं"

साथियों बहुत से मर्द जिनमे दया और संवेदनशीलता की कमी होती है वे महिला से बुरा बर्ताव करते हैं और फिर रिश्ता टूटने पर पछताते हैं, लेकिन अगर वो इसकी जड़ समझ लें तो तो रिश्तों की एक नई दुनिया उनका इन्तजार कर रही है, इसलिए अगर आप जानना चाहते हैं कि औरत को इज्जत कैसे दी जाए, उसकी इज़्ज़त कैसे की जाए तो इस लेख को ध्यान से पढ़ें.
औरत का आदर सम्मान करने के तरीके, वो क्या कहती है इस बात पर ध्यान दें ?
बहुत से लोग अपने पार्टनर के विचारों की परवाह किये बिना एक-तरफ़ा निर्णय लेते हैं, यह सही बात नहीं है, एक पुरुष तभी इज्जत पायेगा जब वह महिला को इज्जत देगा, इसलिए यदि आप अपनी बीवी पत्नी से इज्जत पाना चाहते हैं तो उसके विचारों पर भी ध्यान दें, एक अच्छा श्रोता होने में कोई बुराई नहीं है.
उसके टेस्ट और परख का भी आदर करें, इस बात को मान लें कि महिलाओं का टेस्ट ज्यादा अच्छा होता है, उसे आदर दें, आने वाले त्योंहार पर क्या खरीदना है और कहाँ से खरीदना है यह बात भला महिलाओं से अच्छा कौन जान सकता है? ऐसी स्थिति में हमें पिछली सीट पर बैठकर बुद्धिमान महिला को निर्णय लेने देना चाहिए, भरोसा रखें, यदि वो चीजें लेंगी तो अच्छी ही लेंगी, आप महिला को सिर्फ आदर दें बाकी चीजें अपने आप अच्छी हो जाएंगी.
ज़्यादातर औरतों अच्छी मैनेजर होती हैं, उन्हें कुछ चीजें मैनेज करने देना अच्छी बात है, उन्हें नेतृत्व करने दें, यदि आप औरत को सावधानी से कुछ योजनाओं को लागू करने देंगे तो आपको अफसोस कभी नहीं होगा, कई मायनों में औरते हमसे ज्यादा व्यवस्थित होती हैं.
उसकी सोच को इज़्ज़त दें ?
औरत को बहुत अच्छा लगता है जब उसकी सोच को इज़्ज़त दी जाती है, जो प्यार आप उससे पाते हैं उससे ज्यादा उन्हें दें, उसे अपने विचार रखने दें और देखें वो कैसे आँखों में चमक के साथ अपनी बात रखती है, यदि आप ज्यादा आधिकारिक रूप में पेश आएंगे तो आप उनका रोमांटिक पहलु नहीं देख पाएंगे.

उसकी जिंदगी से जुड़े लोगों का सम्मान करें, क्यूंकि एक औरत की जिंदगी में उसके परिवारजन, मित्र आदि शामिल होते हैं, यदि आप औरत को सम्मान देना चाहते हैं तो उन सभी लोगों को सम्मान दें जो उसकी जिंदगी में शामिल हैं, यदि आप उन्हें ज्यादा नहीं चाहते तो भी उसके सामने उनका निरादर नहीं करें, यदि आप इन लोगों को प्यार देंगें तो महिला से भी आपको कुछ ज्यादा प्यार मिलेगा, अगर आप महिला से अच्छा व्यवहार करना सीख लेंगें तो समझो आपने जिंदगी के बारें में बहुत कुछ सीख लिया.
इस्लाम को लेकर यह गलतफहमी है और फैलाई जाती है कि इस्लाम में औरत को कमतर समझा जाता है। सच्चाई इसके उलट है, हम इस्लाम का अध्ययन करें तो पता चलता है कि इस्लाम ने महिला को चौदह सौ साल पहले वह मुकाम दिया है जो आज के कानून दां भी उसे नहीं दे पाए, इस्लाम में औरत के मुकाम की एक झलक देखिए.
जीने का अधिकार शायद आपको हैरत हो कि इस्लाम ने साढ़े चौदह सौ साल पहले स्त्री को दुनिया में आने के साथ ही अधिकारों की शुरुआत कर दी और उसे जीने का अधिकार दिया। यकीन ना हो तो देखिए कुरआन की यह आयत- ' और जब जिन्दा गाड़ी गई लड़की से पूछा जाएगा, बता तू किस अपराध के कारण मार दी गई?"
(कुरआन, 81:8-9)

यही नहीं कुरआन ने उन माता-पिता को भी डांटा जो बेटी के पैदा होने पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हैं- ' और जब इनमें से किसी को बेटी की पैदाइश का समाचार सुनाया जाता है तो उसका चेहरा स्याह पड़ जाता है और वह दु:खी हो उठता है, इस 'बुरी' खबर के कारण वह लोगों से अपना मुँह छिपाता फिरता है. (सोचता है) वह इसे अपमान सहने के लिए जिन्दा रखे या फिर जीवित दफ्न कर दे? कैसे बुरे फैसले हैं जो ये लोग करते हैं.' (कुरआन, 16:58-59)
बेटी इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया- बेटी होने पर जो कोई उसे जिंदा नहीं गाड़ेगा (यानी जीने का अधिकार देगा), उसे अपमानित नहीं करेगा और अपने बेटे को बेटी पर तरजीह नहीं देगा तो अल्लाह ऐसे शख्स को जन्नत में जगह देगा. (इब्ने हंबल)
अन्तिम ईशदूत हजऱत मुहम्मद सल्ल. ने कहा- 'जो कोई दो बेटियों को प्रेम और न्याय के साथ पाले, यहां तक कि वे बालिग हो जाएं तो वह व्यक्ति मेरे साथ स्वर्ग में इस प्रकार रहेगा (आप ने अपनी दो अंगुलियों को मिलाकर बताया).
मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया- जिसके तीन बेटियां या तीन बहनें हों या दो बेटियां या दो बहनें हों और वह उनकी अच्छी परवरिश और देखभाल करे और उनके मामले में अल्लाह से डरे तो उस शख्स के लिए जन्नत है। (तिरमिजी)
पत्नी वर चुनने का अधिकार : इस्लाम ने स्त्री को यह अधिकार दिया है कि वह किसी के विवाह प्रस्ताव को स्वेच्छा से स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है, इस्लामी कानून के अनुसार किसी स्त्री का विवाह उसकी स्वीकृति के बिना या उसकी मर्जी के विरुद्ध नहीं किया जा सकता, बीवी के रूप में भी इस्लाम औरत को इज्जत और अच्छा ओहदा देता है, कोई पुरुष कितना अच्छा है, इसका मापदण्ड इस्लाम ने उसकी पत्नी को बना दिया है, इस्लाम कहता है अच्छा पुरुष वही है जो  अपनी पत्नी के लिए अच्छा है, यानी इंसान के अच्छे होने का मापदण्ड उसकी हमसफर है, पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया- तुम में से सर्वश्रेष्ठ इंसान वह है जो अपनी बीवी के लिए सबसे अच्छा है. (तिरमिजी, अहमद)
शायद आपको ताज्जुब हो लेकिन सच्चाई है कि इस्लाम अपने बीवी बच्चों पर खर्च करने को भी पुण्य का काम मानता है। पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया- तुम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए जो भी खर्च करोगे उस पर तुम्हें सवाब (पुण्य) मिलेगा, यहां तक कि उस पर भी जो तुम अपनी बीवी को खिलाते पिलाते हो. (बुखारी,मुस्लिम).
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने कहा- आदमी अगर अपनी बीवी को कुएं से पानी पिला देता है, तो उसे उस पर बदला और सवाब (पुण्य) दिया जाता है. (अहमद)
मुहम्मद सल्ल ने फरमाया- महिलाओं के साथ भलाई करने की मेरी वसीयत का ध्यान रखो. (बुखारी, मुस्लिम) माँ क़ुरआन में अल्लाह ने माता-पिता के साथ बेहतर व्यवहार करने का आदेश दिया है, ' तुम्हारे स्वामी ने तुम्हें आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की पूजा न करो और अपने माता- पिता के साथ बेहतरीन व्यवहार करो, यदि उनमें से कोई एक या दोनों बुढ़ापे की उम्र में तुम्हारे पास रहें तो उनसे 'उफ् ' तक न कहो बल्कि उनसे करूणा के शब्द कहो, उनसे दया के साथ पेश आओ और कहो- 'ऐ हमारे पालनहार! उन पर दया कर, जैसे उन्होंने दया के साथ बचपन में मेरी परवरिश की थी.' (क़ुरआन, 17:23-24)
इस्लाम ने मां का स्थान पिता से भी ऊँचा करार दिया, ईशदूत हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा- 'यदि तुम्हारे माता और पिता तुम्हें एक साथ पुकारें तो पहले मां की पुकार का जवाब दो,' एक बार एक व्यक्ति ने हजरत मुहम्मद (सल्ल.) से पूछा 'हे ईशदूत, मुझ पर सबसे ज्यादा अधिकार किस का है?' उन्होंने जवाब दिया 'तुम्हारी माँ का', 'फिर किस का?' उत्तर मिला 'तुम्हारी माँ का', 'फिर किस का?' फिर उत्तर मिला 'तुम्हारी माँ का' तब उस व्यक्ति ने चौथी बार फिर पूछा 'फिर किस का?' उत्तर मिला 'तुम्हारे पिता का,' संपत्ति में अधिकार -औरत को बेटी के रूप में पिता की जायदाद और बीवी के रूप में पति की जायदाद का हिस्सेदार बनाया गया, यानी उसे साढ़े चौदह सौ साल पहले ही संपत्ति में अधिकार दे दिया गया.
अगर आपको अब भी इन सब बातों पर यकीन ना हो तो आप पढें यह किताब- हमें खुदा कैसे मिला? इस किताब में आधुनिक और प्रगतीशील कहे जाने वाले यूरोपीय देशों की महिलाओं के इंटरव्यू है, वे बताती हैं कि आखिर उन्होंने इस्लाम क्यों अपनाया, इस्लाम में औरत के अधिकार को समझाने के लिहाज से ये किताबें भी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होंगी.
क्लिक कर तलाश कीजिए और पढ़िऐ ये किताबें- पैगम्बर  सल्लल्लाहु अलेहि व सल्लम और महिला का सम्मान स्टेटस ऑफ वुमन इन इस्लाम वुमन राइट्स इन इस्लाम
अब सवाल ये पैदा होता है कि देश की हुकुमत ओर अदालतें औरत के बारे मैं इतना साफ़ ओर ईमानदार कानून क़ुरआन ओर हदीसों मैं होने के बाद भी क्यूं इस्लामी कानून को नज़रांदाज़ कर अपने घटिया कानून को जबरन थोपने की कोशिक कर रही हैं, क्या वो अल्लाह से बेहतर कानून बनाने का दिमाग रखते हैं नहीं ना ?
जिस इस्लाम ने औरत ओर इंसानियत को जाना सिखाया आज गंदी राजनीति के लिए वही इस्लाम पर ऊंगलियां उठा रहे हैं, अरे नादानों इस्लाम को हमने खुद छोड़ दिया है ये सब इसलिए कर रहे हो, क़ुरआन ओर हदीसों को हम पढ़ते नहीं चलने की बात तो अलग है वरना तुम्हारी क्या ताक़त जो तुम हम पर या हमारे दीन पर ऊंगली उठा सको !
शेयर मत करना ना समझना क्या कह रहा है क़ुरआन ओर हदीस बस तफरीहगाह बनाकर खुद को खुश रखना ?
शुक्रिया जिसने पूरा पढ़ा !!

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