Tuesday 7 May 2024

क्या 2024 के नतीजे चौंकाने वाले होंगे...?

दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में कितने मतदाता...? 
कितने करोड़ पहली बार चुनेंगे अपना नेता...??

लोकसभा के 543 निर्वाचित सदस्यों को एकल-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों से पहले-पूर्व-पोस्ट-पोस्ट मतदान द्वारा चुना जाता है, भारत के राष्ट्रपति अतिरिक्त दो सदस्यों को नामांकित करते हैं.

एनबीटीवी इंडिया ख़बर व
आवाज़ दो न्यूज़ नेटवर्क ख़बर
भारतीय चुनाव आयोग से मिली जानकारी के मुताबिक भारत में कुल 96 करोड़ 88 लाख मतदाता हैं, 6 फीसदी नए मतदाता जुड़े हैं, जिसमें 2.63 करोड़ नए मतदाताओं ने पंजीकरण कराया है, जिसमें महिलाओं की हिस्सेदारी ज्यादा है, 1.41 करोड़ महिला मतदाता हैं, पुरुष मतदाताओं की हिस्सेदारी सिर्फ 1.22 करोड़ की ही है.

देश में लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण का चुनाव आज हो रहा है, देश की जनता का मत ही तय करेगा कि अगले 5 सालों के लिए सत्ता की डोर किसके हाथ में रहेगी, कहा जाता है भारत में वोटर्स की संख्या दुनियाभर में सबसे ज्यादा है, लेकिन कितने...? 

हर चुनाव से पहले इलेक्शन कमिशन इसकी जानकारी देता आया है, इस बार भी हाल फिलहाल में चुनाव आयोग ने सभी 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के वोटर्स से जुड़ी 2024 रिपोर्ट जारी की थी, चलिए जानते हैं चुनाव आयोग के अनुसार देश में कुल कितने मतदाता हैं, महिला और पुरुष मतदाता कितने हैं, पहली बार कितने मतदाता अपना मेता चुनेंगे, अन्य वोटरों के आंकड़े क्या कहते हैं...?

SSR (Special Summary Report) 9 फरवरी को जारी हुई थी, चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनाव में सरकार बनाने का फैसला करने का मताधिकार 96 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास है, आंकड़ों के मुताबिक इस बार 6 फीसदी नए वोटर्स जुड़े हैं, चुनाव आयोग के मुताबिक इस तरह से विश्व में सबसे बड़ा मतदाता वर्ग हमारे देश भारत में है, 2019 में यह आंकड़ा 89.6 करोड़ था.

पुरुषों से महिला वोटर्स अधिक हैं इस बार भी.
SSR (Special Summary Report) 2024 के मुताबिक 2.63 करोड़ नए मतदाताओं ने अपना पंजीकरण कराया है, जिसमें महिलाओं की हिस्सेदारी इस बार भी अधिक है, 1.41 करोड़ महिला मतदाता हैं, तो इनमें पुरुष मतदाताओं की हिस्सेदारी सिर्फ 1.22 करोड़ की ही है, जबकि 48,044 तीसरे लिंग वर्ग के मतदाता शामिल हैं, भारत की कुल आबादी का 66.76 फीसदी युवा वोटर हैं यानी वोट देने वाले बालिग लोग हैं, वोटर्स का लैंगिक अनुपात भी 2023 में 940 था, जो इस साल 2024 में बढ़कर 948 हो गया है, यानी हजार पुरुषों के मुकाबले 948 महिला वोटर हैं, वहीं साल 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान लैंगिक अनुपात 928 था.

ये ख़बर आप सम्पादक एस एम फ़रीद भारतीय के हवाले से सुन रहे हैं.

'हाथ बदलेगा हालात', लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस ने दिया नारा ये नारा.

देश मैं बुजुर्ग मतदाताओं की कितनी है संख्या...?
चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 80 साल से ऊपर उम्र के 1 करोड़ 85 लाख 92 हजार 918 मतदाता हैं, सौ साल से ऊपर की उम्र वाले भी दो लाख 38 हजार 791 मतदाता हैं, आंकड़ों के मुताबिक दिव्यांगों (अपाहिजों) की भागीदारी 88.35 लाख है.

चुनाव आयोग की तरफ से दिये गए आंकड़ों के मुताबिक एक करोड़ 65 लाख 76 हजार 654 मतदाताओं के नाम या तो सूची से हटाए गए हैं या दूसरी जगह ट्रांसफर किए गए हैं.

इस चुनाव मैं युवा मतदाता और मध्यम वर्ग का मतदाता सरकार की ग़लत नीतियों के साथ, बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई को लेकर वोट करने वाला है, समझा जाता है इस बार भाजपा का मत प्रतिशत कम से कम 15 से 20 प्रतिशत कम हो सकता है, अगर ऐसा हुआ तब एनडीए 150 से 200 सीट के अंदर सिमट सकती है.

भाजपा नेताओं की तरफ़ से जहां तोड़फ़ोड़ की राजनीति की जा रही है, वहीं चुनाव को हिंदू मुस्लिम करने की भी बहुत कोशिश की गई है, यहां तक कि इस तरहां के ब्यानों को इंटरनेशनल मीडिया ने भी अपने नेटवर्क पर प्रमुखता देते हुए ख़बर चलाई है.

वहीं इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने नारा दिया है,
हाथ बदलेगा हालात, लोग यकीन भी कर रहे हैं.
जबकि भाजपा या उसके सहयोगी इसका जवाब आज तक नहीं तलाश पाये हैं.

आपके यहां चुनाव कैसा है आप कमैंटस करके बतायें, तब तक हम आपको बताते हैं पिछले दस साल के दो चुनाव मैं क्या हुआ.

वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) प्रणाली जो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को ईवीएम स्लिप जनरेट करके प्रत्येक वोट को रिकॉर्ड करने में सक्षम बनाती है, सभी 543 लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रों में उपयोग किया गया था। चुनावों के दौरान कुल 17.4 लाख वीवीपीएटी इकाइयों और 39.6 लाख ईवीएम का उपयोग 10,35,918 मतदान केंद्रों के रूप में किया गया, 9 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया, भारत के चुनाव आयोग को VVPAT स्लिप वोट काउंट को पाँच बेतरतीब ढंग से चुने गए EVM प्रति विधानसभा क्षेत्र में बढ़ाने का आदेश दिया, जिसका अर्थ है कि भारत के चुनाव आयोग को 20,625 EVM के VVPAT स्लिप की गिनती करनी थी.

हालाँकि विभिन्न विधानसभा चुनावों में वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) पर्चियों के साथ ईवीएम परिणामों के मिलान की कवायद की जा रही थी, लेकिन लोकसभा चुनावों में यह पहली बार हुआ, भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार, 2014 में पिछले आम चुनाव के बाद से 84.3 मिलियन मतदाताओं की वृद्धि के साथ 900 मिलियन लोग मतदान करने के पात्र थे, यह दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव था, 18-19 वर्ष और 38,325 ट्रांसजेंडरों के 15 मिलियन मतदाता पहली बार मतदान करने के अपने अधिकार का उपयोग करने के लिए पात्र थे. 2019 लोकसभा चुनाव के लिए 71,735 विदेशी मतदाताओं को मतदाता सूची में शामिल किया गया था.

भारतीय आम चुनाव 2019 के लिए मतदाता जनसंख्या
1 पुरुष 46.8 करोड़
2 महिला 43.2 करोड़
3 तृतीय लिंग 38,325
- कुल मतदाता 90 करोड़

इन चुनावों में 50 से अधिक दल चुनाव लड़ रहे थे, इनमें 7 राष्ट्रीय दलों के अलावा ज्यादातर क्षेत्रीय छोटे दल रहे, मुख्य दलों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) थीं, 2014 के अपवाद के साथ, किसी भी पार्टी ने 1984 के बाद से लोक सभा में बहुमत नहीं जीता है, और इसलिए गठबंधन करना भारतीय चुनावों में आम है, 2019 के आम चुनाव में, चार मुख्य राष्ट्रीय चुनाव पूर्व गठबंधन हैं, इनमें भाजपा की अगुवाई वाले राजग (एनडीए), कांग्रेस की अगुवाई वाले संप्रग (यूपीए), क्षेत्रीय दलों का महागठबंधन और कम्युनिस्ट-झुकाव वाले दलों का वाम मोर्चा शामिल था.

भारत में गठबंधन की राजनीति की अस्थिर प्रकृति को देखते हुए, चुनाव के दौरान और बाद में गठबंधन बदल सकते हैं, 2019 आम चुनाव पहली बार है जब भाजपा (437) लोकसभा चुनाव में कांग्रेस (421) से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रही थी.

कांग्रेस ने उन राज्यों में गठबंधन नहीं किया है जहां वह भाजपा के साथ सीधे मुकाबले में थी, इन राज्यों में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल रहे, इसने जम्मू और कश्मीर, बिहार, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, झारखंड और केरल में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया था, दल उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, पूर्वोत्तर, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और गोवा में अन्य दलों के साथ गठबंधन नहीं कर पाई थी.

जनवरी 2019 में, मायावती (बसपा अध्यक्ष) और अखिलेश यादव (सपा अध्यक्ष) ने उत्तर प्रदेश में 80 में से 78 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए गठबंधन (महागठबंधन) की घोषणा की और उन्होंने दो सीटें, अमेठी और रायबरेली, कांग्रेस के लिए और दो सीटें छोड़ दीं, मायावती ने यह कहते हुए गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किया, "गठबंधन में कांग्रेस को शामिल करने से सपा-बसपा को नुकसान होगा क्योंकि कांग्रेस के वोट स्थानांतरित नहीं होते हैं" और "इन दोनों पार्टियों (भाजपा और कांग्रेस) की नीतियां ज्यादातर एक ही रही हैं।" यह गठबंधन 25 साल पहले 1993 में बने समान गठबंधन के साथ अपनी तरह का दूसरा था.

2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम की कुछ प्रमुख बातें...?

मतदाताओं ने प्रचण्ड बहुमत के साथ देश की बागडोर फिर नरेन्द्र मोदी के हाथों में सौंप दी.

भाजपा ने इस बार 2014 से भी बड़ी और ऐतिहासिक जीत दर्ज की, भाजपा के कुल 303 प्रत्याशी विजयी हुए.

10 राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों में सारी सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई.

उत्तर प्रदेश में भी भाजपा ने सीधी रणनीति से सपा-बसपा-गठबंधन की चुनौती को ध्वस्त कर दिया था.

पश्चिम बंगाल में भाजपा ने 18 सीटें जीतकर एक इतिहास रच दिया, अब बंगाल में भाजपा, ममता बनर्जी के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन गई थी.

भारत की स्वतन्त्रता के बाद यह केवल दूसरी बार था, जब मतदाताओं ने एक ही दल को लगातार दूसरी बार, पहले से अधिक बहुमत से जिताया हो.

भाजपा ने 12 प्रमुख और बड़े राज्यों में 50 प्रतिशत से भी अधिक मत प्राप्त किए।
यदि पूरे देश की बात करें तो भाजपा का मत-प्रतिशत 41% हो गया जो सन 2014 के 31% से 10% अधिक है.

कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी, अमेठी से चुनाव हार गए थे, उन्हे भाजपा की स्मृति ईरानी ने लगभग 50 हजार मतों से हराया था, कांग्रेस केवल 52 सीटों पर ही विजयी हो पाई, यही वजह रही इस बार भी उसे नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं मिल सका.

कांग्रेस के नौ पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कई दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा.

प्रियंका वाड्रा के धुंआधार प्रचार का चुनाव परिणामों पर कोई प्रभाव नहीं दिखा, कांग्रेस को 18 राज्यों में एक भी सीट नहीं मिली.

बिहार में लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल को एक भी सीट पर जीत नहीं मिल सकी।

2019 के चुनावों में भारत में लगभग 1.04% मतदाताओं ने उपरोक्त में से कोई नहीं (नोटा) के लिए मतदान किया, जिसमें बिहार 2.08% नोटा मतदाताओं के साथ आगे रहा.

सन 1952 से अब तक पहली बार वाम मोर्चे को दस से भी कम सीटें मिलीं.

इस चुनाव में भारतीय राजनीति से वंशवाद के नाश के भी संकेत मिल रहे थे, गांधी परिवार, सिंधिया परिवार, मुलायम परिवार, लालू परिवार, चौधरी चरण सिंह परिवार, हुड्डा परिवार, चौटाला परिवार, देवेगौड़ा परिवार आदि को इस चुनाव में भारी धक्का लगा था.

आपको ये जानकारी कैसी लगी कमैंटस करने के साथ हमारे चैनल को Subscribe करें शुक्रिया धन्यवाद.

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