Wednesday, 7 December 2011
हजाम के पास हैं 10 करोड़ रुपये की 67 कारें ?
बेंगलुरु. बेंगलुरु में अगर आप ऐसे हजाम से बाल कटवाना चाहते हैं जो रोल्स रॉयस जैसी कार से आता हो तो आपको 100 रुपये तक खर्च करने होंगे। रमेश बाबू नाम का यह हजाम कोई आम हजाम नहीं है। रमेश बाबू करोड़पति हैं और 67 कारों के मालिक हैं, जिनमें रोल्स रॉयस, मर्सिडीज, बीएमडब्लू जैसी महंगी कारें शामिल हैं। इन कारों की कीमत करीब 10 करोड़ रुपये है। रमेश के पास सुजुकी इंट्रूडर की हाई एंड बाइक भी है, जिसकी कीमत 16 लाख रुपये है। रमेश बाबू जिस रोल्स रॉयस से चलते हैं, उसकी कीमत 3.1 करोड़ रुपये है। पूरे बेंगलुरु में रमेश बाबू के अलावा सिर्फ पांच ऐसे लोग हैं, जिनके पास रोल्स रॉयस जैसी कार है। 41 साल के रमेश बाबू ने रोल्स रॉयस कुछ महीने पहले ही खरीदी है। इसके लिए रमेश बाबू ने बैंक से लोन लिया, जिसके लिए वह 7 लाख रुपये की किश्त देते हैं। रमेश रोल्स रॉयस का एक दिन का किराया 75 हजार रुपये वसूलते हैं। रमेश अब स्ट्रेच लिमोजिन कार खरीदने की योजना बना रहे हैं जिसकी कीमत 8 से 9 करोड़ रुपये है। रमेश अपना पुश्तैनी काम बाल काटने के अलावा किराए पर कार देते हैं। उनके ग्राहकों की सूची भी लंबी चौड़ी है। उनके ग्राहकों में सलमान खान, आमिर खान, ऐश्वर्या राय बच्चन जैसी हस्तियां शामिल हैं। रमेश बाबू की ज़िंदगी पर एक फिल्म भी बन रही है, जो तीन भाषाओं में रिलीज होगी। लेकिन रमेश बाबू की ज़िंदगी हमेशा से ऐसी नहीं थी। 1979 में रमेश के पिता की मौत के बाद उनका परिवार मुश्किलों से घिर गया था। तब रमेश महज 9 साल के थे। ब्रिगेड रोड पर मौजूद उनके पिता की हजाम की दुकान के रोजाना मिलने वाले पांच रुपये के किराए पर उनका परिवार चलता रहा। इंटरमीडिएट तक की शिक्षा लेने के बाद रमेश ने पढ़ाई छोड़ दी और हज्जाम का परंपरागत काम शुरू कर दिया। उनकी किस्मत 1994 में बदलनी शुरू हुई जब रमेश ने अपने एक रिश्तेदार की तरह कारों को किराए पर देने का काम शुरू किया। रमेश ने सबसे पहले मारुति ओमनी वैन खरीदी और उसे किराए पर देना शुरू किया। यह वैन रमेश के पास आज भी है। 1996 में रमेश ने बोरिंग इंस्टीट्यूट में अपना सैलून खोला और उसके बाद आज तक पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज भी एक अमीर आदमी बनने के बावजूद रमेश अपनी जड़ें नहीं भूले हैं। वह अपने सैलून की दरें बढ़ा सकते हैं या फिर सैलून का काम छोड़ सकते हैं। लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे हैं। रमेश का कहना है कि यह उनका पुश्तैनी काम है। रमेश के पैर जमीन पर किस तरह से टिके हुए हैं, इसका अंदाजा उनकी इसी बात से लग सकता है कि जिस दिन वह बाल नहीं काटेंगे, वह सो नहीं पाएंगे। आपकी राय
रमेश बाबू की ज़िंदगी कोई संदेश देती है? रमेश बाबू के कारोबारी कौशल पर आपकी क्या राय है? क्या उन्हें अपना पुश्तैनी काम छोड़ देना चाहिए? इन मुद्दों पर अपनी राय जाहिर कीजिए।
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