गुजरात दंगे : एसआईटी की रिपोर्ट दिखाने की मांग ?
अहमदाबाद। गुजरात दंगों में राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने के आरोपों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने बुधवार को कोर्ट में संबंधित रिपोर्ट सौंपी थी। गुरुवार को दो सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एसआईटी रिपोर्ट की कॉपी हासिल करने के लिए कोर्ट में याचिका दायर की है। कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और मुकुल सिन्हा द्वारा याचिका दाखिल किए जाने के बाद मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट एमएस भट्ट ने एसआईटी को नोटिस जारी किया है। दोनों याचिकाओं की सुनवाई 13 फरवरी को होगी।
आधिकारिक तौर यह पुष्टि नहीं हुआ है कि एसआईटी ने मोदी केखिलाफ मामले बंद कर दिए गए हैं या उन्हें क्लीन चिट दी गई है। मजिस्ट्रेट द्वारा रिपोर्ट की जांच होनी अभी बाकी है। रिपोर्ट पर आशंका जताते हुए तीस्ता ने कहा, 'हम देखना चाहते हैं सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन किया गया है या नहीं। यह भी देखना होगा कि कोर्ट में सभी दस्तावेज प्रस्तुत किए गए थे या नहीं।' वहीं सिन्हा का कहना है कि बिना रिपोर्ट की कॉपी हासिल किए मामले को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। दंगों में मारे गए पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने मोदी समेत 58 लोगों पर कार्रवाई करने की अपील की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को इसकी जांच करने के लिए कहा था।
रिपोर्ट ने निराश किया :
जाकिया जाफरी ने कहा कि एसआईटी की रिपोर्ट से वह संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने कहा, 'हमने एसआईटी को सभी सबूत सौंपे थे। उसके बावजूद मीडिया में जिस तरह की खबरें आ रही हैं उनसे लगता है कि मोदी बच जाएंगे। मुझे इससे काफी निराशा हुई है। फिलहाल मैं अपने वकीलों से बात कर देखूंगी कि आगे क्या हो सकता है।'
एसआईटी ने किया मोदी का बचाव?:
एसआईटी की एक हजार पन्नों की रिपोर्ट 1700 लोगों के बयानों पर आधारित है। सूत्रों के अनुसार रिपोर्ट में यह साफ नहीं हो पाया कि 27 फरवरी 2002 को मुख्यमंत्री निवास पर हुई बैठक में मोदी ने अधिकारियों को हिंदुओं को खुला हाथ देने के निर्देश दिए थे। वहीं 25 मार्च 2002 को बहुचराजी में उनके बयान 'हम पांच हमारे पच्चीस' में भी सांप्रदायिकता को भड़काने जैसा कुछ सामने नहीं आया। इसमें आपराधिक कृत्य जैसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है।
मुख्यमंत्री मोदी के सिर पर दंगों के संबंध में मानवाधिकार आयोग की तलवार भी लटक रही है। गुजरात हाईकोर्ट ने विधानसभा के बजट सत्र के दौरान इसे पेश करने के आदेश दिए हैं। इतने सालों तक यह रिपोर्ट क्यों पेश नहीं की गई, इन सवालों का मोदी सरकार जवाब नहीं दे पाई थी। ऐसे में यह रिपोर्ट राज्य सरकार के लिए मुसीबत बन सकती है।
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