Tuesday, 13 March 2012

संघ ने भाजपा को पहले लताड़ा, फिर पल्‍ला झाड़ा ?


नई दिल्‍ली.राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भाजपा को अपने मुखपत्र 'ऑर्गनाइजर' के जरिए धो डाला है हालांकि बाद में मामले को हल्‍का भी कर दिया है राम माधव ने कहा है कि मुखपत्र में कहीं गई बातें उसके संपादक की निजी राय हैं. संघ के अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित होने वाले मुखपत्रों के नए अंकों के संपादकीय में खराब प्रदर्शन के लिए भाजपा को आड़े हाथ लिया गया है
उसे इस बारे में सोचने की कटाक्ष भरी नसीहत दी गई कि उत्तर प्रदेश भाजपा में कार्यकर्ताओं से अधिक नेताओं की फौज क्यों है.
संपादकीय में कहा गया है, 'उत्तर प्रदेश में भाजपा को भी मतदाताओं से अलग-थलग हो जाने की कांग्रेस की बीमारी लग गई इसके चलते यह पिछले एक दशक में अपने आधे मतदाता गंवा बैठी है भाजपा और उसके नेतृत्व के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए आगाह किया गया है कि पार्टी ने अगर अपने को ठीक नहीं किया तो आगामी लोकसभा चुनाव में भी उसका प्रदर्शन ठीक नहीं होगा.
मतदाताओं की पसंदीदा क्यों नहीं  उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में भाजपा के पिछली बार से भी ज्यादा खराब प्रदर्शन पर आरएसएस ने गहरी निराशा जताई है संघ ने अपने मुखपत्रों के संपादकीयों के जरिए भाजपा से सीधा सवाल किया है पूछा है कि भाजपा एक सुदृढ़ सांगठनिक ढांचा और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की एक मजबूत श्रृंखला होने के बावजूद मतदाताओं की नजरों में क्यों नहीं चढ़ सकी ?  
उत्तर प्रदेश में भाजपा को कार्यकर्ताओं से अधिक नेताओं की फौज के बारे में भी सोचना होगा इसमें यह चिंता भी जताई गई है कि इस महत्वपूर्ण राज्य में भाजपा का कमजोर होना कट्टरवादी ताकतों को मजबूत बनाएगा जैसा कि इन चुनावों में सामने आया है उसने पार्टी से यह सवाल भी किया है कि ऐसा कैसे हो गया कि मायावती के 'भ्रष्ट-कुशासन' से त्रस्त जनता जब विकल्प की तलाश में निकली तो उसे वही मुलायम सिंह नजर आए जिनके 'गुंडाराज' से आजिज आकर मायावती को 2007 में उसने सत्ता सौंपी थी.
सर्वोत्तम नेता चुनने की सलाह-  चुनाव परिणामों के विश्लेषण में भाजपा को अपना ऐसा सर्वोत्तम नेता चुनने की जरूरत बताई गई है जो जनता पर प्रभाव डाल सके इस विश्लेषण में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी या छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह का नाम लिए बिना कहा गया है, 'जनता पर प्रभाव डालने वाला ऐसा नेता चुनने की जरूरत है जिसका सुशासन और विकास का बढिय़ा रिकॉर्ड हो, मुस्लिम तर्क को नकारा विश्लेषण में इस दलील को भी ठुकरा दिया गया है कि मुसलमानों के सपा को वोट देने से ऐसी स्थिति बनी है इसमें कहा गया, 'सचाई यह है कि मुसलमानों ने भाजपा को कभी वोट नहीं दिया और 1996, 1998 और 1999 के संसदीय चुनावों में देश भर में मुसलमानों के भारी विरोध के बावजूद भाजपा उनमें विजयी हुई.

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