बीबीसी संवाददाता
समाज में महिलाओं के प्रति पुरूषों की मानसिकता में अभी भी कोई खास बदलाव नहीं आया है. समाज में कई तरह के ‘ठेकेदार’ होते हैं....इनमें से कुछ नैतिकता के ठेकेदार कहलाते हैं. बात जब महिलाओं के आचार-व्यवहार से जुड़ी हो तब तो जहाँ-तहाँ से नैतिकता के पाठ पढ़ाने वाले खड़े हो जाते हैं. ऐसी कई मिसालें हैं जहाँ बलात्कार को आपराधिक दृष्टि से न देखकर इसे महिलाओं की नैतिकता
के पैमाने पर तोल कर ज्यादा देखा जाता है.
हाल के दिनों में बलात्कार के कई कथित मामले सामने आए हैं. क्या भारतीय समाज महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार और खासकर बलात्कार पीड़ितों के प्रति संवेदनशील है? नेताओं, पुलिसवालों के बयान और समाज के रवैये को देखकर ऐसा आभास नहीं लगता.. किसी अपराधी या दोषी का पता-ठिकाना ढूँढने या बताने में पुलिस को कई बार महीनों, सालों लग जाते हैं. लेकिन कुछ दिन पहले नौएडा में कथित तौर पर बलात्कार की शिकार हुई एक नाबालिग लड़की का नाम (पता सहित) सार्वजनिक करने में पुलिस को जरा भी देर नहीं लगी.
लड़की की इज्जत की किसी ने परवाह नहीं की. नाम-पता बताया सो बताया, लड़की के चरित्र पर प्रेस कांफ़्रेंस में कहा गया कि वो अपनी मर्जी से लड़कों के साथ शराब पीने गई थी. मानो लड़की अगर अपनी मर्जी से लड़कों के साथ बाहर घूमती है तो उसके साथ बदसुलूकी करने का लाइसेंस मिल जाता है.
पहला मामला नहींआरुषि हत्याकांड मामले में भी पुलिस ने भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरुषि के चरित्र पर ही सवाल उठाए थे. उधर कोलकाता में भी एक नाइटक्लब गई महिला के कथित बलात्कार की पड़ताल करने के बजाए, छींटाकशी इस बात पर ज्यादा हुई कि एक महिला का रात को नाइटक्लब जाने का क्या मतलब. ममता दीदी की बातें आपने सुनी ही होंगी. पश्चिम बंगाल सरकार को लगता है कि बलात्कार के मामले इसलिए सामने आ रहे हैं ताकि तृणमूल की छवि खराब की जा सके. बलात्कार पीड़ितों की बात इस राजनीति में कहीं दब ही गई. उधर दक्षिण के कुछ पूर्व मंत्रियों की मानें तो पुरुषों को उकसाने के लिए छोटे कपड़े पहनी लड़कियाँ दोषी होती हैं. हाँ इन नेताओं को जरूर खुली छूट है कि वो अपने मोबाइल फोन पर कथित पोर्न सामग्री का मजा ले सकते हैं. नैतिकता के ठेकेदारों के मुताबिक बलात्कार की वजह कुछ भी हो सकती है- लड़की के कम कपड़े, रात को अकेले जाने की हिमाकत, पार्टी के लिए नाइटक्लब जाने की जुर्रत.. वगैरह वगैरह. यानी घटना कैसी भी हो, जाँच हुई हो या न हुई हो..'पीड़ित ही दोषी है' वाली मानसिकता हावी रहती है. बलात्कार जैसा जुर्म अदालत में साबित करना न करना तो दूर की बात है, इस कानूनी प्रक्रिया से पहले ही कई बार महिला की इज्जत तार-तार कर दी जाती है. बलात्कार के मामले में दोष-निर्दोष का फैसला तो क़ानून की अदालत करती है लेकिन इससे पहले जनता की अदालत अकसर अपना फैसला सुना देती है.... 'पीड़ित ही दोषी है'.
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