सुशील झा - बीबीसी संवाददाता, रामपुर से
नासिर हुसैन की बरेली के पुराने शहर में छोटी सी दुकान है, जहां वो कपड़े सीने का काम करते हैं. यूं तो उनका काम छोटा सा लग सकता है, लेकिन उनकी समझदारी लाजवाब है.
उनकी दुकान के पास ही मैं लोगों से जब बातचीत कर रहा था, तो वो चुपचाप बैठे कपड़े सी रहे थे और एक दो बार ना में सिर हिला देते थे,
मैंने पूछा- क्या आप लोगों की बातों से सहमत नहीं हैं, तो वो बोले कि लोग बेवकूफ बनते हैं तो राजनेता उन्हें बनाते हैं.
मैंने कहा ये तो आप बड़ी बात कह रहे हैं तो नासिर मुस्कुराने लगे.
उन्होंने कहा, "ऐसा नहीं है कि काम नहीं हुआ है. कुछ अच्छा काम तो हुआ ही है लेकिन चुनाव काम पर नहीं लड़ा जाता है. ऐन मौके पर धार्मिक उन्माद फैला दिया जाता है तो फिर वोट उसी आधार पर पड़ते हैं."
नासिर के कहने का मतलब हिंदू-मुस्लिम वोटों के बंटने से था. बरेली ही नहीं आसपास के कई इलाक़ों में मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है लेकिन मुसलमान उम्मीदवार इन सीटों से कम ही जीतते हैं.
दुश्मन
मज़ेदार बात ये है कि मुसलमान भारतीय जनता पार्टी को कम ही वोट देते हैं लेकिन बरेली और आसपास के मुस्लिम बहुल क्षेत्र में बीजेपी के उम्मीदवार जीतते हैं.
नासिर हुसैन कहते हैं, "असल में मुसलमान ही मुसलमान का दुश्मन है. अगर मान लीजिए कि एक उम्मीदवार खड़ा हो और वो मुसलमान हो तो सारे लोग हम उन्हीं को वोट देंगे लेकिन ऐसा होता नहीं. हर दल से मुसलमान खड़े हो जाते हैं. फिर लोग अपनी रिश्तेदारियां निभाते हैं. वोट बंट गए तो नुकसान किसका हुआ और फ़ायदा किसका हुआ."
जिस सवाल का जवाब विश्लेषक भी साफ साफ देने से कतराते हैं वो नासिर ने साफ़ कर दिया था लेकिन मुसलमान ऐसा करते क्यों हैं.
नासिर कहते हैं, "तालीम कम है कौम में. पढ़े लिखे नहीं हैं. मूर्ख बनाना आसान है. बड़ी बात समझेंगे नहीं. रिश्तेदारी में वोट डालेंगे इसलिए हमारी ये हालत है. मैं तो उन पार्टियों को फटकने नहीं देता जिनके जीतने के चांस नहीं होते. ये सभी का नुकसान करते हैं."
नासिर की बात पते की थी. यूपी में दलित वोटों के बारे में साफ कहा जाता है कि वो एक पार्टी विशेष को एकमुश्त वोट देते हैं लेकिन मुस्लिमों के बारे में यही कहा जाता है कि वो एक पार्टी के अलावा किसी को भी वोट दे सकते हैं.
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