Saturday, 1 September 2012

नरेंद्र मोदी, कपिल सिब्बल राजनीतिक जंग


Photo: नरेंद्र मोदी, कपिल सिब्बल राजनीतिक जंग

अहमदाबाद- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम)-अहमदाबाद अब नरेंद्र मोदी, कपिल सिब्बल और अन्य दलों के लिए राजनीतिक जंग का नया स्थल बन गया है, अब नया टकराव आईआईएम-अहमदाबाद के डायरेक्टर की नियुक्ति को लेकर है, उल्लेखनीय है वर्तमान डायरेक्टर समीर बरुआ की टर्म आगामी अक्टूबर मंे पूरी हो रही है.

आईआईएम के भूतपूर्व चेयरमैन विजयपथ सिंघानिया ने नए डायरेक्टर की तलाश व नियुक्ति के लिए एक समिति भी बनाई थी, जिसका बोर्ड के कुछ सदस्यों ने पुरजोर विरोध भी किया था, आपसी द्वंद के चलते आखिरकार यह समिति बिखरकर खत्म हो गई, नई समिति की रचना को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) और राज्य सरकार ने अपने-अपने प्रतिनिधियों की मांग की थी, जिसे केंद्र सरकार द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था, इसलिए अब यह प्रकिया बहुत जटिल होती जा रही है.

अगर डायरेक्टर पद के लिए कुछ नाम सामने आ भी रहे हैं तो उनके खिलाफ आक्षेप भी लग रहे हैं, इसलिए यह मुद्दा अब राजनीतिक रंग लेने लगा है, फैकल्टी मैंबर्स का ऐसा मानना है कि मोदी सरकार अपने फायदे हेतु अनुकूल उम्मीदवार के लिए लॉबिंग कर रही है.

चर्चा तो यहां तक है कि मुख्यमंत्री मोदी की इच्छा है कि जिस तरह लालू प्रसाद यादव को रेलवे में सुधार लाने हेतु आईआईएम-ए का प्रमाण-पत्र मिल गया था, उसी प्रकार गुजरात के विकास को लेकर उन्हें भी इस प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट की ओर से एक प्रमाण पत्र मिल जाए, उल्लेखनीय है कि 2006 में आईआईएम-ए के प्रोफेसर रघुराम द्वारा तैयार किए गए एकेडमिक पेपर में लालूप्रसाद यादव की भरपूर प्रशंसा की गई थी.

दूसरी तरफ, आईआईएम के मामले में एमएचआरडी ने हमेशा से अपना वर्चस्व कायम रखा है, क्योंकि डायरेक्टर की नियुक्ति का अंतिम निर्णय यही मंत्रालय करता है, इसीलिए आज भी इस इंस्टीट्यूट की स्वायत्ता के लिए लड़ाई चालू है, नियुक्ति के बाद महत्वपूर्ण रिसर्च प्रोजेक्ट्स, कन्सलटेशन आदि केंद्र सरकार और उसकी विविध एजेंसियों की ओर से ही आते हैं, उदाहरणस्वरूप भूतपूर्व रेलवे मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने हाल ही में जो रेल बजट पेश किया था, उसकी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी प्रोफेसर जी. रघुराम को ही सौंपी गई थी.

गुजरात की बात की जाए तो केंद्र सरकार और गुजरात सरकार के संबंध कैसे हैं, यह तो बताने की जरूरत ही नहीं, इसलिए आईआईएम-अहमदाबाद के डायरेक्टर की नियुक्ति में भी मोदी और केंद्र सरकार आमने-सामने हैं...अहमदाबाद- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम)-अहमदाबाद अब नरेंद्र मोदी, कपिल सिब्बल और अन्य दलों के लिए राजनीतिक जंग का नया स्थल बन गया है, अब नया टकराव आईआईएम-अहमदाबाद के डायरेक्टर की नियुक्ति को लेकर है, उल्लेखनीय है वर्तमान डायरेक्टर समीर बरुआ की टर्म आगामी अक्टूबर मंे पूरी हो रही है.


आईआईएम के भूतपूर्व चेयरमैन विजयपथ सिंघानिया ने नए डायरेक्टर की तलाश व नियुक्ति के लिए एक समिति भी बनाई थी, जिसका बोर्ड के कुछ सदस्यों ने पुरजोर विरोध भी किया था, आपसी द्वंद के चलते आखिरकार यह समिति बिखरकर खत्म हो गई, नई समिति की रचना को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) और राज्य सरकार ने अपने-अपने प्रतिनिधियों की मांग की थी, जिसे केंद्र सरकार द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था, इसलिए अब यह प्रकिया बहुत जटिल होती जा रही है.

अगर डायरेक्टर पद के लिए कुछ नाम सामने आ भी रहे हैं तो उनके खिलाफ आक्षेप भी लग रहे हैं, इसलिए यह मुद्दा अब राजनीतिक रंग लेने लगा है, फैकल्टी मैंबर्स का ऐसा मानना है कि मोदी सरकार अपने फायदे हेतु अनुकूल उम्मीदवार के लिए लॉबिंग कर रही है.

चर्चा तो यहां तक है कि मुख्यमंत्री मोदी की इच्छा है कि जिस तरह लालू प्रसाद यादव को रेलवे में सुधार लाने हेतु आईआईएम-ए का प्रमाण-पत्र मिल गया था, उसी प्रकार गुजरात के विकास को लेकर उन्हें भी इस प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट की ओर से एक प्रमाण पत्र मिल जाए, उल्लेखनीय है कि 2006 में आईआईएम-ए के प्रोफेसर रघुराम द्वारा तैयार किए गए एकेडमिक पेपर में लालूप्रसाद यादव की भरपूर प्रशंसा की गई थी.

दूसरी तरफ, आईआईएम के मामले में एमएचआरडी ने हमेशा से अपना वर्चस्व कायम रखा है, क्योंकि डायरेक्टर की नियुक्ति का अंतिम निर्णय यही मंत्रालय करता है, इसीलिए आज भी इस इंस्टीट्यूट की स्वायत्ता के लिए लड़ाई चालू है, नियुक्ति के बाद महत्वपूर्ण रिसर्च प्रोजेक्ट्स, कन्सलटेशन आदि केंद्र सरकार और उसकी विविध एजेंसियों की ओर से ही आते हैं, उदाहरणस्वरूप भूतपूर्व रेलवे मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने हाल ही में जो रेल बजट पेश किया था, उसकी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी प्रोफेसर जी. रघुराम को ही सौंपी गई थी.

गुजरात की बात की जाए तो केंद्र सरकार और गुजरात सरकार के संबंध कैसे हैं, यह तो बताने की जरूरत ही नहीं, इसलिए आईआईएम-अहमदाबाद के डायरेक्टर की नियुक्ति में भी मोदी और केंद्र सरकार आमने-सामने हैं...

सेबी चेयरमैन माधवी बुच का काला कारनामा सबके सामने...

आम हिंदुस्तानी जो वाणिज्य और आर्थिक घोटालों की भाषा नहीं समझता उसके मन में सवाल उठता है कि सेबी चेयरमैन माधवी बुच ने क्या अपराध ...