Friday 18 September 2015

कया है कानून ओर सरकार

कानून क्या है क्या सुप्रीमकोर्ट या सरकार सब हम ही हैं - 1992 मैं एक दरोगा 
ये अल्फ़ाज़ मुझको आज भी याद हैं ओर हमेशा सरकार ओर अदालतों के आदेशों का खुला उल्लंघन होते देखने के बाद तो मेरे ज़हन मैं बिल्कुल ताज़ा हो जाते हैं. 
सच मैं आज मुल्क मैं कानून सिर्फ़ ओर सिर्फ़ ग़रीब ओर मजलूमों के लिए रह गये हैं ख़ासकर वो कानून जो बनाये तो जनता के हित के लिए जाते हैं लेकिन अक्सर इन कानूनों से देश की जनता को फ़ायदा ना होकर उल्टा नुकसान ही हुआ है. 
ऐसे ही कुछ कानूनों ये आपको रूबरू कराने की कोशिश करता हुँ जो बनाये जनता के हित की ख़ातिर थे लेकिन जहां जनता को इनका नुकसान हुआ है वहीं जनता की जेब पक कानून की आड़ मैं अधिकारियों ओर कम्पनी के लोगों ने मिलकर बोझ डालने के साथ कानून का मज़ाक़ उड़ाने मैं कोई कसर नहीं छोड़ी है. 
इसमें सबसे पहले मैं गुटखे पर आता हुँ माननीय सुप्रीमकोर्ट ने देश मैं गुटका बेचने ओर खुलेआम खाने पर पाबंदी लगाने के साथ ही इसके प्रचार प्रसार पर भी पाबंदी लागू की थी.
क्या आज गुटखा बिकना बंद है या इसके प्रचार प्रसार मैं कोई कमी आई? 
नहीं ना उल्टे हुआ यूं कि जो गुटखा पहले पचास पैसे या एक रूपये मैं मिला करता था वो आज सीधा पाँच रूपये का होने के साथ देश मैं प्रदुषण बढ़ावा दे रहा है क्यूं? 
क्यूंकि पहले तैयार गुटखा बाज़ार मैं एक पाउच मैं बिकता था आज पाउच गुटके ओर तम्बाकू दोनों के अलग हो गये ओर कीमत भी हो गई पाँच गुना. 
वहीं नाम वही सब कुछ वही बस प्रचार प्रसार का तरीका हो गया गुटके की बजाये पान मसाला ओर कानून ओर समाज के ठेकेदार बने न्यूज़ चैनल या अख़बार खुल्लमखुल्ला प्रचार प्रसार कर रहे हैं ओर प्लान बड़ी ही सोच समझकर बैठकर इत्मीनान से जनता ओर कानून को धोखा देने के लिए बनाये गये हैं .
ऐसे ही शराब को देखो शराब के प्रचार प्रसार पर सुप्रीमकोर्ट ने जब से बैन लगाया है तब से जहां शराब की कीमत आसमान छू गई है (पीने वालों से जानकारी के अनुसार ) वहीं प्रचार प्रसार का तरीका हो गया है सोडा? 
मतलब पहले सोडा इतना नहीं बिकता था आज शराब के साथ सोडा भी लेना होगा वहीं एक की बजाये दो बोतल हो गई मतलब साफ़ नाले नालियां सीवर जाम .
सच मैं मुझको उस दरोगा की बात ऐसे लगती है जैसे आज ही कही है जबकि ये बात है दिसंम्बर 1992 की, कि कानून सरकार हमसे है जो हम कर देंगे वो सही होगा आज वो जनाब इंस्पेक्टर हैं शायद वो भी एक फ़र्ज़ी मुठभेड़ से मिले ईनाम मैं ओर मैं देख रहा हुँ की दिनों दिन कानून मज़ाक बनता जा रहा है. 
आज रिश्वत लेना वाला डरता नहीं बल्कि खुलकर बोलता है जनता से कि मैरे सौ रूपये लेने पर ऐतराज़ है ओर जो करोड़ों का चूना देश को लगा रहे हैं उनका कुछ नहीं उल्टे वोट देकर उनको काली कमाई करने के लिए भेजा जाता है. 
लेखक 
एस एम फ़रीद भारतीय 
सम्पादक एनबीटीवी इंडिया 
व मानवाधिकार कार्यकर्ता

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