Wednesday 22 February 2017

बनारस के सूबेदार के नाम एक खत में आलमगीर लिखते हैं...?

एस एम फ़रीद भारतीय

अपनी हिन्दू रियाया के साथ ज़ुल्म न करना, उनके साथ धार्मिक उदारता बरतना और उनकी धार्मिक भवनाओं का लिहाज करना.“
आलमगीर मनुष्य मनुष्य के बीच के फर्क को अल्लाह की नज़रों मे गुनाह समझते थे, उनके पिता शाहजँहा जब तख्त पर थे, तो उन्होंने एक बार आलमगीर से शिकायत की कि उसे शहजादे की हैसियत से छोटे बडे सब से एक तरह नहीं मिलना चाहिए, इसपर आलमगीर ने अपने वालिद की हर तरह से इज़्ज़त करते हुए जवाब दिया-
   
  “लोगों के साथ मेरा बराबरी का बर्ताव इस्लाम के सिद्धांतों के बिलकुल अनुरूप है, इस्लाम के पैगम्बर ने कभी अपनी ज़िन्दगी में छोटे बडे की तमीज़ नहीं की, खुदा की नज़रों में सब इंसान बराबर हैं, इसलिये मैं आपकी आज्ञा मानने में अपने आप को असमर्थ पाता हूँ.“

ऐसा था वह महान सम्राट, जिस पर इतिहास ने एक काली चादर डाल रखी है और जिसके सम्बन्ध में आम पढे लिखे आदमी के दिल में क्रूरता की एक भयंकर तस्वीर खींची हुई है, जैसे जैसे जाँच पड़ताल की तेज आँखें विगत के परदे हटाती जाती हैं, वैसे वैसे हमें सम्राट आलमगीर के जीवन के मानवीय पहलू भी दिखाई दे रहे हैं...

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