Tuesday 21 February 2017

बालाजी मन्दिर चित्रकूट, राजा औरंगज़ेब का फरमान

एस एम फ़रीद भारतीय 
इस फरमान के ज़रिए हुक्म दिया जाता है कि महंत बालकदास पिसरगोपी को बराए मसारिफ पूजा व भोग बालाजी तीन सौ तीस बीघा जमीन इनायत की जाती है। करोडियों और जागीरदारों को मुतनब्बे किया जाता है, चाहें मौजूदा हों और चाहें मुस्तक़बिल में होने वाले हों, मेरे हुक़्म की
खिलाफवर्जी न करें और ना ही मेरे हुक़्मनामों में किसी किस्म का इन्हिराफ करें। यह तीन सौ तीस बीघा जमीन हर क़िस्म के लगान से आजाद होगी और कोई दूसरा इसमें शरीक नहीं माना जाएगा। अगर किसी दूसरी जगह भी इसकी कोई जायदाद है तो उसका एतबार नहीं किया जाये.
इसी फरमान में जारी राजाज्ञा में कहा गया कि शहंशाह का आदेश है कि- इलाहाबाद सूबे के कालिंजर परगना के अंतर्गत चित्रकूट पुरी के निर्वाणी महंत बालकदास को श्री ठाकुर बालाजी महाराज के पूजा और भोग के लिए बिला लगानी (माफी) आठ गाँव-देवखरी, हिनौता, चित्रकूट, रोदेरा, सिरिया, पढेरी, जरवा और दोहरिया-दान के तौर पर दिए गए हैं और राठ परगना के जाराखाड गाँव की डैढ सौ बीघा जमीन और अमरावती गाँव् की एक सौ अस्सी बीघा जमीन (कुल तीन सौ तीस बीघा) बिला लगान और कोनी-प्रोष्ठा परगना की लगान वसूली से एक रूपया रोजाना अनुदान मंजूर किया जाता है. 
   

तारीख 19 रमज़ान के पवित्र महीने की 19 वीं तारीख को आलमगीर बादशाह के शासनकाल के 35 वें वर्ष में यह फरमान जारी किय गया, वाकये नवीस रफीउल्लाह सआदत खाँ, यह फरमान रमज़ान की 25 वीं तारीख दिन शनिवार को शाही रजिस्टर में दर्ज किया गया, इसे शाही कागज़ात में दर्ज किया नाजि़म आफताब खाँ ने.
 आलमगीर का वसीयतनामा 
सम्राट औरंगज़ेब भारत के कठोर सम्राटों में गिने जाते हैं, लेकिन जहाँ एक ओर उन्होंने अपने पिता शाहजहाँ को क़ैद में रखा और भाईयों को क़त्ल करवाया, वहाँ दूसरी ओर वह त्याग, सदाचार और कठोर जीवन की प्रतिमूर्ति समझे जाते है, यदि एक और वह स्वेच्छाचारी थे तो दूसरी और गरीबी और नम्रता से भरे हुऐ, प्रजा की गाढी कमाई का एक पैसा भी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये खर्च करने को वह पाप समझते थे.

दुनिया के बडे से बडे सम्राटों में उनकी गिनती थी, उनका खजाना हीरे जवाहरात से लबालब था किंतु अधिकतर नमक और बाजरे की रोटी ही पर वह अपना जीवन काटते थे, बिलानागा उन्होने जीवन भर गंगाजल का ही व्यवहार किया, वह अपनी सल्तनत को ‘ईशवरीय मार्ग पर अर्पण’ मानते थे, मरने से पहले सम्राट आलमगीर ने जो वसीयत की है, उसे देखकर हम इस महान सम्राट के अंतिम दिनों की मानसिक स्थिति को भलि भाँति समझ सकते हैं, वसीयत की धाराएँ ये हैं-
 बुराईयों में डूबा हुआ मैं गुनहगार, वली हज़रत हसन की दरगाह पर एक चादर चढाना चाहता हूँ, क्योंकि जो व्यक्ति पाप की नदी में डूब गया है, उसे रहम और क्षमा के भंडार के पास जाकर क्षमा की भीख माँगने के सिवाय और क्या सहारा है। इस पाक काम के लिए मैनें अपनी कमाई का रुपया अपने बेटे मुहम्मद आज़म के पास रख दिया है। उससे लेकर ये चादर चढा दी जाए.
टोपियों की सिलाई करके मैनें चार रुपये दो आने जमा किए हैं। यह रकम महालदार लाइलाही बेग के पास जमा हैं। इस रक़म से मुझ गुनहगार पापी का कफ्न खरीदा जाए.
क़ुरान शरीफ की नक़ल करके मैनें तीन सौ पाँच रुपये इकट्ठा किये हैं। मेरे मरने क बाद यह रक़म फक़ीरों में बाँट दी जाय। यह पवित्र पैसा है इसलिए इसे मेरे क़फन या किसी भी दूसरी चीज़ पर खर्च न किया जाय। नेक राह को छोडकर गुमराह हो जाने वाले लोगों को आगाह करने के लिए मुझे खुली जगह पर दफनाना और मेरा सर खुला रहने देना, क्योंकि उस महान शहंशाह परवरदिगार परमात्मा के दरबार में जब कोई पापी नंगे सिर जाता है, तो उसे जरूर दया आ जाती होगी.
मेरी लाश को ऊपर से सफेद खद्दर के कपडे से ढक देना। चद्दर या छतरी नही लगाना, न गाने बाजे के साथ जुलुस निकालना और न मौलूद करना।अपने क़ुटुम्बियों की मदद करना और उनकी इज़्ज़त करना.
क़ुरान शरीफ की आयत है- प्राणीमात्र से प्रेम करो, मेरे बेटे! यही तुम्हें मेरी हिदायत है, यही पैगम्बर का हुक़्म है, इसका इनाम अगर तुम्हें इस ज़िन्दगी में नहीं तो अगली ज़िन्दगी में ज़रूर मिलेगा.
अपने क़ुटुम्बियों के साथ मुहब्बत का बर्ताव करने के साथ-साथ तुम्हें यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि उनकी ताक़त इतनी न बढ जाए कि उससे हुक़ूमत को खतरा हो जाए।मेरे बेटे! हुक़ूमत की बागडोर मजबूती से अगर पकडे रहोगे तो तमाम बदनामियों से बच जाओगे। बादशाह को हुकूमत में चारों और दौरा करते रहना चाहिये। बादशाहों को कभी भी एक मकाम पर नहीं रहना चाहिए.
एक जगह में आराम तो ज़रूर मिलता है, लेकिन कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पडता है। अपने बेटों पर कभी भूलकर भी ऐतबार न करना, न उनके साथ नज़दीकी ताल्लुक रखना.
हुकूमत के अन्दर होने वाली तमाम बातों की तुम्हें इत्तला रखनी चाहिए- यही हुक़ूमत की कुँजी है.
बादशाह को हुक़ूमत के काम में ज़रा भी सुस्ती नहीं करनी चाहिए, एक लम्हे की सुस्ती सारी ज़िन्दगी की मुसीबत की बाइस बन जाती है.
यह है संक्षेप में सम्राट आलमगीर का वसीयतनामा, इस वसीयत की धाराओं को देखकर यह पता चलता है कि सम्राट को अपने अंतिम दिनों में अपने पिता को क़ैद करने अपने भाईयों को क़त्ल करने पर मनसिक खेद और पश्चाताप था.
 इसी वसीयतनामे के मुताबिक़ औरंगाबाद के निकट खुल्दाबाद नामक छोटे से गाँव में जो आलमगीर का मकबरा बनाया गया, उसमें सीधे सादे तरीके से दफन किया गया, उनकी क़ब्र कच्ची मिट्टी की बनाई गई, जिस पर आसमान के सिवाय कोई दूसरी छत नहीं रखी गई, क़ब्र के मुजाविर उसकी क़ब्र पर जब तब हरी दूब लगा देते हैं, इसी कच्चे मज़ार में पडा हुआ भारत का यह महान सम्राट रोजे महशर के दिन तक अपने परमात्मा से रूबरु होने की प्रतीक्षा में है.
अपने बेटे मुअज़्ज़म शाह को उसने मरने से पहले जो खत लिखा, उसमें लिखा- “बादशाहों को कभी आराम या ऐशोइशरत की ज़िन्दगी नहीं बरतनी चाहिए, यह गैरमर्दांगी की आदत ही मुल्कों और बादशाहों के नाश की वजह साबित हुई है, बादशाहों की अपनी हुकूमत में नशीली चीज़ों और शराब बेचने या पीने की कभी इज़ाज़त न देनी चाहिए, इससे रियाया का चरित्र नाश होता है, इस मद की आमदनी को उन्हें हराम समझना चाहिए.“ 

1 comment:

अगर आपको किसी खबर या कमेन्ट से शिकायत है तो हमको ज़रूर लिखें !

हिंदू ख़तरे मैं है कहने और कहकर डराने वालों से सवाल...?

दुनियां के मुस्लिम देश में रहने वाले हिंदुओं की संख्या (करीब करीब कुछ इस तरहां है)  इंडोनेशिया- 44,80,000 , मलेशिया- 20,40,000 ,...