एस एम फ़रीद भारतीय
दोस्तों ये एक ख़ूबसूरत कहानी है, अगर हम एक कहानी की तरह पढ़ेंगे तो कुछ नहीं सीख पायेंगे, इस कहानी के बारे मैं दिल से सोचना, इसे बस पढ़ना नहीं है बल्कि इसकी तालीम को ज़िंदगी मैं अपनाने की कोशिश ज़रूर करना, तभी इस कहानी को लिखना मेरी कामयाबी होगी।
ख़ान साहब अपने इलाके के मशहूर इंसान थे, खुद की कपडे
की एक छोटी फैक्ट्री थी, अच्छा घर और एक कार भी थी, जिंदगी बड़ी ऐशोआराम से बितायी थी ख़ान साहब ने।
लेकिन मौत पे किसका बस चला है, जब आखिरी वक़्त नजदीक आया तोख़ान साहब ने सोचा कि अपने बेटे के नाम की वसीयत लिख दी जाये।
ख़ान साहब ने वसीयत अपने बेटे के नाम करने के साथ ही एक छोटा सा ख़त लिखा, वो ख़त अपने बेटे को देते हुए बोले कि बेटे इस ख़त को तब ही पढ़ना जब तुम मेरी एक आखिरी ख़्वाहिश पूरी कर दो।
मेरी एक ख़्वाहिश है कि मेरे मरने बाद मुझे मेरे फटे हुए जुराब (मौज़े) ही पहनाये जाएँ, ये मेरी दिली ख़्वाहिश है बेटा इसे जरूर पूरा करना और इसके बाद तुम ये ख़त खोलकर पढ़ना।
वालिद के मरने के बाद जब उनके जिस्म को नहला के लाया गया तो बेटे ने वालिद के वही पुराने मौजे निकाले और पैरों में पहनाना चाहा, लेकिन वहां बैठे धर्म गुरुओं ने बेटे को रोका कि लाश पर कफ़न के आलावा कोई कपड़ा नहीं पहनाया जा सकता, बेटे ने बहुत ज़िद की, तमाम उलेमाओं और मौलवियों को इकठ्ठा किया गया।
बेटे की ख़्वाहिश थी कि वालिद की ख्वाहिश को पूरा जरूर किया जाये लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला, आखिर हार कर बेटे ने वो वालिद का दिया हुआ ख़त खोला तो पढ़कर सन्न रह गया, उसके रौंगटे खड़े हो गए।
ख़त में लिखा था – “मेरे बेटे मैंने जिंदगी भर दौलत जमा की, फैक्ट्री खड़ी की, बड़ा घर बनाया और समाज में एक अच्छी पहचान भी बनाई है लेकिन देखा तुमने मैं इन सबके बावजूद भी अपना एक फटा मौजा भी साथ नहीं ले जा पा रहा हूँ, मैंने सारी फैक्ट्री और दौलत तुम्हारे नाम कर दी, खूब पैसा कमाना लेकिन एक बात का याद रखना एक दिन मौत तुमको भी आएगी और तुम अपने साथ कुछ ना ले जा सकोगे।
अपने उसूलों को हमेशा ऊँचा रखना और इस दौलत को नेक काम और गरीबों की मदद में खर्च करना नहीं भूलना”
बस यही एक बाप की वसीयत है और नसीहत भी।
पढ़कर बेटे की आँखों से आंसू झलक आये।
सच ही तो है – चाहे लाख पैसा इकठ्ठा कर लो, तुम अपने नेक ओर बद कामों के सिवा इस दुनिया से कुछ नहीं ले जा सकते, खाली हाथ आये थे, खाली हाथ जाओगे॥
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