Wednesday, 14 June 2017

औरत क्या है इस्लाम की नज़र ओर दुनियां की नज़र मैं एक नज़र...?

दोस्तों ओर साथियों औरत नाम जब सामने आता है तब बहुत सी बातें दिमाग मैं घूमने लगती हैं क्यूंकि औरत मां है, बहन है, बेटी है, बीवी है, चाची, फूफी, खाला ओर भाभी के साथ ना जाने कितने रिश्ते हैं ।
देखा जाये तो हर मुल्क की आधी आबादी औरतों पर आधारित होती है, औरतों के बारे में बहुत तरहां के ख़्याल पाए जाते हैं, एक गुट का यह मानना है कि औरतें
न्यूनतम अधिकारों की मालिक हैं क्योंकि वे दूसरे नंबर की नागरिक हैं इसलिए उन्हें सामाजिक गतिविधियों से वंचित रहना चाहिए।

इस विचारधारा के मुक़ाबले में एक गुट ऐसा भी है जिसका मानना है औरतों के अधिकारों को पूरे इतिहास में अनदेखा किया गया है इसलिए इस अत्याचार के बदले उनको समान अधिकार दिये जाएं बल्कि इससे बढ़कर महिलाओं को पुरूषों पर वरीयता दी जानी चाहिए, इसी बीच महिलाओं के बारे में इस्लाम ने बहुत ही संतुलित विचारधारा प्रस्तुत की है, इस्लाम, महिलाओं के लिए मानवीय अधिकारों की बात करता है।
इस्लाम, औरत को मानवीय दृष्टि से देखता है, इस दृष्टिकोण से महिला भी एक पहचान वाली इंसान है और उसे समाज एवं परिवार का महत्वपूर्ण आधार समझा जाता है, इस निगाह के आधार पर विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में औरत  की उपस्थिति परिवार के गठन और उसे मज़बूत बनाने की दिशा में कोई बाधा नहीं है।
उल्लेखनीय है कि समाज का पहला आधार परिवार है जिसकी समाज की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका है।  महिला के स्थान और उसके महत्व के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (सअव) के बहुत से कथन मौजूद हैं।  वे महिला के व्यक्तित्व को विशेष महत्व देते थे और उनके साथ कृपालू ढंग से व्यवहार करने का आह्वान करते थे।  पैग़म्बरे इस्लाम (सअव) कहते हैं कि महान लोग ही महिलाओं का सम्मान करते हैं और नीच लोग उनका अपमान करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (सअव) अपनी पत्नियों के साथ बहुत मेहरबान थे, वे उनके बीच न्याय से काम लेते थे।  अपनी धर्मपत्नी हज़रत ख़दीजा के बारे में वे कहते हैं कि ईश्वर ने उनसे अच्छा कोई मुझको नहीं दिया, वे एसे समय मे मेरे ऊपर ईमान लाईं कि जब लोग काफ़िर थे,  वे एसे समय में मुझको सच्चा कहती थीं जब लोग मुझको झूठा थे, महिलाओं के बारे में लोगों से वे आग्रह करते हैं कि तुम महिलाओं के साथ कृपालू ढंग से व्यवहार करो।
अपनी सुपुत्री हज़रत फ़ातिमा रजि के साथ पैग़म्बरे इस्लाम का व्यवहार प्रशंसनीय है, वे हज़रत फ़ातिमा रजि का विशेष सम्मान करते थे, इतिहास में मिलता है कि बहुत से स्थान पर वे हज़रत फ़ातिमा रजि के सम्मान में खड़े हो जाते थे, आप अपने स्थान पर हज़रत फ़ातिमा रजि को बैठाते थे, पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि फ़ातिमा रजि मेरा टुकड़ा है, जो भी उससे करता है वह मुझसे प्रेम करता है और जिसने उसे पीड़ा पहुंचाई उसने प्रेम मुझ पीड़ा पहुंचाई।
पैग़म्बरे इस्लाम (सअव) इस बात का प्रयास किया करते थे कि सामाजिक जीवन में महिलाओं को उनकी पहचान दी जाए और वे अपने भाग्य का निर्धारण स्वयं करें, अपने काल में उन्होंने महिलाओं के समाज के हर क्षेत्र में सक्रिय रहने के लिए प्रयास किये, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के काल में महिलाएं, सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्रों में सक्रिय रहीं।
कुछ ओर मशहूर हस्तियों ने यूं कहा।

औरत घर की ज़ीनत ही नही, घर की रूह भी होती है- अरस्तू
औरत वह तस्वीर है जो तस्वीर में भी रंगीन दिखाई देती है- इमाम 
औरत मुसीबत और ग़म को कम करने के लिए पैदा की गई है- इमाम 
इमान के बाद सबसे बड़ी नेमत एक नेक औरत है- हज़रत मुहम्मद (स. अ. व )
औरत एक शीशे की मानिंद है, उसकी हिफाज़त करो- हज़रत मुहम्मद (स. अ. व )
किसी दोस्त को आवाज़ उस वक़्त मत दो जब उसके साथ औरत हो- हज़रत इमाम हुसैन
औरत वह है जो ग़म से भरी रहती है, लेकिन उस ग़म के आईने में कभी झाँकने तक नही देती है- अल- कुरआन
औरत में इंसानी खिदमत का जज़्बा मर्द से कहीं ज़ियादः होता है- महात्मा गाँधी

हर कामयाब इन्सान के पीछे एक औरत का हाथ होता है और हर नाकामयाब इन्सान के पीछे एक से ज़्यादा औरतों का हाथ होता है.
कौन भूल सकता है माता जीजाबाई को, जिसकी शिक्षा-दीक्षा ने शिवाजी को महान देशभक्त और कुशल योद्धा बनाया, कौन भूल सकता है पन्ना धाय के बलिदान को पन्नाधाय का उत्कृष्ट त्याग एवं आदर्श इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित है, वह उच्च कोटि की कर्तव्य परायणता थी, अपने बच्चे का बलिदान देकर राजकुमार का जीवन बचाना सामान्य कार्य नहीं, हाड़ी रानी के त्याग एवं बलिदान की कहानी तो भारत के घर-घर में गायी जाती है, रानी लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्ताना, पद्मिनी और मीरा के शौर्य एवं जौहर एवं भक्ति ने मध्यकाल की विकट परिस्थितियों में भी अपनी सुकीर्ति का झण्डा फहराया, कैसे कोई स्मरण न करे उस विद्यावती का जिसका पुत्र फांसी के तख्ते पर खड़ा था और मां की आंखों में आंसू देखकर पत्रकारों ने पूछा कि एक शहीद की मां होकर आप रो रही हैं तो विद्यावती का उत्तर था कि ‘मैं अपने पुत्र की शहीदी पर नहीं रो रही, कदाचित् अपनी कोख पर रो रही हूं कि काश मेरी कोख ने एक और भगत सिंह पैदा किया होता, तो मैं उसे भी देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर देती,’ ऐसा था भारतीय माताओं का आदर्श, ऐसी थी उनकी राष्ट्र के प्रति निष्ठा।
ओर अगर यहां औरत का ज़िक्र आने पर सीता जी का ज़िक्र ना किया जाये तो बात पूरी नहीं होगी, यों तो सीता धरती पुत्री थी, शिवजी के भारी भरकम धनुष को सरकाकर उन्होंने अपनी शक्ति का परिचय दिया था, पर अग्नि परीक्षा…. ? आज के समय में अच्छी शिक्षा पाना, अच्छी नौकरी पाना, दफ्तरों की राजनीति का शिकार न बनना, अपने घर और दफ्तर की जिम्मेदारियाँ अच्छी तरह निभाना ये किसी अग्निपरीक्षा से कम है क्या ?
हर हाल में पति का साथ देने को उत्सुक सीता के चरित्र की यह विशेषता थी, डॉक्टर मनीषा देशपाण्डे के अनुसार सीता का उदाहरण पतिव्रताओं में सर्वोपरि है, इसमें सन्देह नहीं कि वह कठिनाई के समय में पति का मनोबल बढाने, विवाह के समय लिए गये वचनों को निभाने उनकी सहचारी बन उनके साथ वनों को गईं ।
जब मैं सीता के बारे में सोचता हूँ तो एक बात मेरे दिमाग में आती है वह है हमारी सामाजिक परिस्थितियों मे रामराज्य से अब तक का बदलाव, उस समय की नारी को पतिव्रता और कर्तव्य परायण जरूर होना चाहिए था, सीता इन गुणो पर खरी उतरती थीं, वह एक सुपर बूमैन थी॥
फिर भी सीता की पहचान अपने पति व बच्चों के कारण थी जैसे राम की पत्नी, लवकुश की मां, उनकी पूरी जिंदगी उनके परिवार के इर्द- ही सीमित रह गई, वह समाज की अपेक्षाओं को पूरा करती रही, सीता के चरित्र की, बातें मैं पसंद करती हूँ जैसे पति को ‘सपोर्ट’ करना, वह दृढ चरित्र की महिला थी।
लक्ष्मीबाई हो या हजरतमहल, मोतीबाई हों या अलकाजी-ये औरतें अपवाद नहीं थी, बल्कि उस दौर की: सामान्य राजनीतिक चेतना से ही इंनके व्यक्तित्व परिभाषित होते थे, 1857-58 के दमन के बाद राजनीतिक चेतंना का जो उभार आया, उसका सामाजिक आधार नये विकसित हो रहे मध्य वर्ग में था।
आज औरत होने के नाते एक औरत ये महसूस करती है कि एक व्यक्ति के रूप में मेरी अपनी पहचान हो, मैं सिर्फ एक पत्नी, एक मां, एक बहन या बेटी के रोल तक सीमित नहीं रहना चाहती, समाज की सक्रिय सदस्य बनना चाहती हुँ।
मगर कुछ औरतें ही औरतों को इन वजहा से बदनाम करती हैं...?
वैस्टर्न कल्चर का इफैक्ट...?
विदेशों में अधिकांश युवक-युवती शादी के पहले ही सेक्स आनंद प्राप्त कर चुके होते हैं, वहां स्त्री-पुरुष एक को छोड़कर दूसरे के साथ शादी कर लेते हैं, उनके वैवाहिक संबंध भी थोड़े दिनों में ही टूट जाते हैं, फर्क इतना है कि वे लोग इस तरह के नाजायज संबंध को उछालते नहीं हैं, इस तरह के संबंधों का भारत जैसे देशों में आना अपने आप में स्त्री को दूसरे पुरुष के पास जाने के लिए उत्साहित करता है।

पैसे की चाह...?
पैसे चाह में भी महिलाएं किसी अमीर शख्स से नाजायज संबंध बनाने के लिए तैयार हो जाती हैं, पति द्वारा उनकी इच्छाएं पूरी न कर पाना, कम आय की वजह से ऐशोआराम की जिंदगी न दे पाने की वजह से महिलाएं बाहर किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध बनाने को भी तैयार हो जाती हैं।

उम्र का मैच न होना...?
किसी भी लड़की की शादी समान उम्र के लड़के से न करना एक बहुत बड़ी समस्या है, लड़की की शादी चाहे छोटे उम्र के लड़के से हो या अधिक बड़े उम्र के लड़के से दोनों ही स्थिति में लड़की ही परेशान होती है, अयोग्य शादी के कारण पुरुष को तो सेक्स से संतुष्टि मिल जाती है, लेकिन स्त्री को सेक्स से संतुष्टि नहीं मिलती।

पति का पास न रहना...?
कई बार पति के साथ नहीं होने के कारण महिला अकेलापन महसूस करती हैं, कई बार पार्टनर काम के सिलसिले में देश से बाहर होते हैं, पार्टनर के अकेलेपन को दूर करने के लिए वह बाहर सहारा ढूंढती हैं।

आपसी मतभेद...?
हर पति-पत्नी में लड़ाई होती है, लेकिन जरूरत से ज्यादा लड़ाई रिश्ते को खराब करने में अहम भूमिका निभाते हैं, यदि दोनों की आपस में बिल्कुल नहीं बनती तो दोनों संबंध बनाने से भी कतराएंगे, इस हालात में महिलाएं बाहर रिश्ता बनाना चाहेंगी, कई बार वे ऐसा कर भी लेती हैं।

शारीरिक संबंधो में अंसतुष्टि...?
कई बार महिलाएं अपने पति के साथ यौन संबंधों से संतुष्ट नहीं होतीं, इस बात को वह खुलकर पति को नहीं बोल पातीं, इस कारण भी वह बाहर की और भागती है।

इस्लाम को लेकर यह गलतफहमी है और फैलाई जाती है कि इस्लाम में औरत को कमतर समझा जाता है, जबकि सच्चाई इसके उलट है, अगर आप इस्लाम का अध्ययन करें तो पता चलेगा कि इस्लाम ने महिला को चौदह सौ साल पहले वह मुकाम दिया है जो आज के कानून दां भी उसे नहीं दे पाए।
इस्लाम में औरत के मुकाम की एक झलक देखिए,
जीने का अधिकार
शायद आपको हैरत हो कि इस्लाम ने साढ़े चौदह सौ साल पहले स्त्री को दुनिया में आने के साथ ही अधिकारों की शुरुआत कर दी और उसे जीने का अधिकार दिया, यकीन ना हो तो देखिए कुरआन की यह आयत-
          'और जब जिन्दा गाड़ी गई लड़की से पूछा जाएगा, बता तू किस अपराध के कारण मार दी गई?"                      (कुरआन, 81:8-9)

यही नहीं कुरआन ने उन माता-पिता को भी डांटा जो बेटी के पैदा होने पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हैं- 
       'और जब इनमें से किसी को बेटी की पैदाइश का समाचार सुनाया जाता है तो उसका चेहरा स्याह पड़ जाता है और वह दु:खी हो उठता है। इस 'बुरी' खबर के कारण वह लोगों से अपना मुँह छिपाता फिरता है। (सोचता है) वह इसे अपमान सहने के लिए जिन्दा रखे या फिर जीवित दफ्न कर दे? कैसे बुरे फैसले हैं जो ये लोग करते हैं।'  (कुरआन, 16:58-59)

बेटी
इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
बेटी होने पर जो कोई उसे जिंदा नहीं गाड़ेगा (यानी जीने का अधिकार देगा), उसे अपमानित नहीं करेगा और अपने बेटे को बेटी पर तरजीह नहीं देगा तो अल्लाह ऐसे शख्स को जन्नत में जगह देगा।
                                                    (इब्ने हंबल)
अन्तिम ईशदूत हजऱत मुहम्मद सल्ल. ने कहा-
'जो कोई दो बेटियों को प्रेम और न्याय के साथ पाले, यहां तक कि वे बालिग हो जाएं तो वह व्यक्ति मेरे साथ स्वर्ग में इस प्रकार रहेगा (आप ने अपनी दो अंगुलियों को मिलाकर बताया)।

मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
जिसके तीन बेटियां या तीन बहनें हों या दो बेटियां या दो बहनें हों और वह उनकी अच्छी परवरिश और देखभाल करे और उनके मामले में अल्लाह से डरे तो उस शख्स के लिए जन्नत है। (तिरमिजी)

पत्नी
वर चुनने का अधिकार : इस्लाम ने स्त्री को यह अधिकार दिया है कि वह किसी के विवाह प्रस्ताव को स्वेच्छा से स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है, इस्लामी कानून के अनुसार किसी स्त्री का विवाह उसकी स्वीकृति के बिना या उसकी मर्जी के विरुद्ध नहीं किया जा सकता।

बीवी के रूप में भी इस्लाम औरत को इज्जत और अच्छा ओहदा देता है, कोई पुरुष कितना अच्छा है, इसका मापदण्ड इस्लाम ने उसकी पत्नी को बना दिया है, इस्लाम कहता है अच्छा पुरुष वही है जो अपनी पत्नी के लिए अच्छा है, यानी इंसान के अच्छे होने का मापदण्ड उसकी हमसफर है।
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
तुम में से सर्वश्रेष्ठ इंसान वह है जो अपनी बीवी के  लिए सबसे अच्छा है। (तिरमिजी, अहमद)
शायद आपको ताज्जुब हो लेकिन सच्चाई है कि इस्लाम अपने बीवी बच्चों पर खर्च करने को भी पुण्य का काम मानता है।

पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
तुम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए जो भी खर्च करोगे उस पर तुम्हें सवाब (पुण्य) मिलेगा, यहां तक कि उस पर भी जो तुम अपनी बीवी को खिलाते पिलाते हो। (बुखारी,मुस्लिम)।

पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने कहा-
आदमी अगर अपनी बीवी को कुएं से पानी पिला देता है, तो उसे उस पर बदला और सवाब (पुण्य) दिया जाता है। (अहमद)

मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
महिलाओं के साथ भलाई करने की मेरी वसीयत का ध्यान रखो। (बुखारी, मुस्लिम)

माँ
क़ुरआन में अल्लाह ने माता-पिता के साथ बेहतर व्यवहार करने का आदेश दिया है, 
'तुम्हारे स्वामी ने तुम्हें आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की पूजा न करो और अपने माता-पिता के साथ बेहतरीन व्यवहार करो, यदि उनमें से कोई एक या दोनों बुढ़ापे की उम्र में तुम्हारे पास रहें तो उनसे 'उफ् ' तक न कहो बल्कि उनसे करूणा के शब्द कहो, उनसे दया के साथ पेश आओ और कहो- 
'ऐ हमारे पालनहार! उन पर दया कर, जैसे उन्होंने दया के साथ बचपन में मेरी परवरिश की थी।' (क़ुरआन, 17:23-24)

इस्लाम ने मां का स्थान पिता से भी ऊँचा करार दिया। ईशदूत हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा- 
'यदि तुम्हारे माता और पिता तुम्हें एक साथ पुकारें तो पहले मां की पुकार का जवाब दो।' 
एक बार एक व्यक्ति ने हजरत मुहम्मद (सल्ल.) से पूछा
'हे ईशदूत, मुझपर सबसे ज्यादा अधिकार किस का है?' 
उन्होंने जवाब दिया 'तुम्हारी माँ का', 
'फिर किस का?' उत्तर मिला 'तुम्हारी माँ का',
'फिर किस का?' फिर उत्तर मिला 'तुम्हारी माँ का' 
तब उस व्यक्ति ने चौथी बार फिर पूछा 'फिर किस का?' 
उत्तर मिला 'तुम्हारे पिता का।'
संपत्ति में अधिकार-औरत को बेटी के रूप में पिता की जायदाद और बीवी के रूप में पति की जायदाद का हिस्सेदार बनाया गया, यानी उसे साढ़े चौदह सौ साल पहले ही संपत्ति में अधिकार दे दिया गया॥

अगर आपको अब भी इन सब बातों पर यकीन ना हो तो आप पढें यह किताब- हमें खुदा कैसे मिला? इस किताब में आधुनिक और प्रगतीशील कहे जाने वाले यूरोपीय देशों की महिलाओं के इंटरव्यू है, वे बताती हैं कि आखिर उन्होंने इस्लाम क्यों अपनाया।
इस्लाम में औरत के अधिकार को समझाने के लिहाज से ये किताबें भी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होंगी।
पैगम्बर  सल्लल्लाहु अलेहि व सल्लम और महिला का सम्मान

स्टेटस ऑफ वुमन इन इस्लाम
वुमन राइट्स इन इस्लाम

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