Friday 31 March 2023

अडानी स्कैम क्या है, क्यूं भाग रहे है जेपीसी से चलिए जानते हैं...?


एस एम फ़रीद भारतीय
*लेखक, सम्पादक मानवाधिकार कार्यकर्ता*
अभी देश के विपक्ष के दो बड़े नेताओं ने कहा है कि अडानी बस चेहरा है, असल बिजनेस प्रधानमंत्री का है, वो इसी कारण से कई सोशल मीडिया ग्रुप मैं इतने ठेले जाते हैं यानि ट्रोल किये जाते हैं, यही वजह है कि उसके खिलाफ कोई जाँच आदि नहीं हो रही.

हम इन दो नेताओं के बयान के आधार पर एक कांस्पिरेसी थ्योरी बनाकर देखते हैं, मेरे भारत में कांस्पिरेसी थ्योरी की बहुत इज़्ज़त है, क्यूंकि ऐसी ही थ्योरी 2G घोटाले के बारे में बनाई गई, अन्ना जैसे आंदोलनकारी नियुक्त किए गए और मनमोहन सरकार चली गई, बाद में पता चला कि यह तो चार आने का घोटाला भी नहीं था, राम जन्म भूमि से लेकर क़ुतुबमीनार और तेजो महालय और ऑस्ट्रेलिया को अस्त्रालय बताने जैसी कांस्पिरेसी थ्योरी देकर एक ऐसा व्यक्ति जो इतिहासकार भी है देश की सत्ता पर पीएम के रूप में स्थापित हो जाता है.

राहुल गाँधी और केजरीवाल के बयानों के आधार पर एक कांस्पिरेसी थ्योरी बनाते हैं, यह संभावना मानते हुए कि इन दावों में सच्चाई है, दावों की पुष्टि करने वाले कुछ बिन्दु…

इस थ्योरी के मुताबिक
अरुण जेटली जाते जाते इलेक्टोरल बांड के जरिए राजनैतिक पार्टियों के फायदे का रास्ता साफ कर ही गए हैं.
नोटबंदी के समय प्रधानमंत्री ने निजी लाभ लिए होंगे. पेटीएम आदि ने खुले में मोदीजी की फोटो अपने इश्तेहार में लगाई थी. जब खुले में इतना किया तो छुपा के कितना किया होगा...?

PM केयर फंड से PM की कमाई हुई होगी...? क्यों नहीं हुई होगी...? 
बिना हिसाब किताब वाले इस फंड में कर्मचारियों की सैलरी से जबरिया पैसा भी काटा गया था.

जिन व्यापारियों का लोन माफ़ किया, या जो देश छोड़ कर भागे, उन्होंने कुछ सुविधा शुल्क नहीं दिया होगा..?

राफेल से लेकर एयर इंडिया और PSU की बिक्री में कुछ कमीशन फिक्स होने से साफ इंकार किया जा सकता है...?

अगर इतना पैसा आया तो इसका हुआ क्या होगा? मशरूम तो खरीदी नहीं जाएगी, शेल कंपनियाँ बन सकती हैं.

इसके आगे की थ्योरी पूरी करने की कोई जरूरत नहीं है.

क्यूंकि जेपीसी अगर बनती है जो बनाई जानी चाहिए, तब सारा दूध और पानी अलग हो जायेगा, कौन कितना ईमानदार है सबके सामने सबूतों के साथ आ जायेगा, जेपीसी क्या है चलो जान लेते हैं...?

जेपीसी है Joint parliamentary committee (संयुक्त संसदीय समिति) भक्त नहीं समझेंगे...!

एक जेपीसी विशेषज्ञों, सार्वजनिक निकायों, संघों, व्यक्तियों या इच्छुक पार्टियों के साक्ष्य स्वप्रेरणा से या उनके द्वारा किए गए अनुरोधों पर प्राप्त कर सकता है, यदि कोई गवाह समन के जवाब में जेपीसी के सामने पेश होने में विफल रहता है, तो उसका आचरण सदन की अवमानना ​​​​करता है.

जेपीसी कमेटी में कितने सदस्य होते हैं...?
जवाब- संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) में एक अध्यक्ष और दस सदस्य होते हैं, आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के नियम और शर्तें संघ लोक सेवा आयोग (सदस्य) विनियम, 1969 द्वारा शासित हैं.

जेपीसी संसद की वह समिति होती है, जिसमें सभी पार्टियों की भागीदारी होती है, जेपीसी को यह अधिकार मिला होता है कि वह किसी भी व्यक्ति, संस्था या किसी भी उस पक्ष को बुला सकती है और उससे पूछताछ कर सकती है, जिसको लेकर उसका गठन हुआ है.

शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद उद्योगपति गौतम अदाणी लगातार विवादों में हैं, अदाणी की संपत्ति आधी से भी कम हो गई है, हर रोज अदाणी समूह के शेयर्स में गिरावट हो रही है। उधर देश की मुख्य विपक्षी कांग्रेस समेत 13 विपक्षी दल इसे घोटाला बताकर संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी से जांच की मांग पर अड़े हैं, संसद के मौजूदा बजट सत्र में इस मांग पर लगातार हंगामा हो रहा है, हालांकि, सरकार ने जेपीसी की मांग पर अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है.

ऐसे में सवाल उठता है कि जेपीसी क्या होती है, जिसकी मांग विपक्ष संसद में कर रहा है, इसका गठन कब किया जाता है, जेपीसी का गठन कब-कब हुआ आइए जानते हैं...?

असल मैं, संसद के पास कई तरह के काम होते हैं और इन्हें निपटाने के लिए सीमित समय होता है, संसद का बहुत सा काम सदनों की समितियों द्वारा निपटाया जाता है, जिन्हें संसदीय समितियां कहते हैं, संसदीय समितियां दो प्रकार की होती हैं- स्थायी समितियां और तदर्थ समितियां, तदर्थ समितियां किसी खास उद्देश्य के लिए नियुक्त की जाती हैं और जब वो अपना काम समाप्त कर लेती हैं तथा अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर देती हैं, तब उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है, प्रमुख तदर्थ समितियों में एक अहम समिति होती है 'संयुक्त संसदीय समिति' यानी जेपीसी...!

जेपीसी क्या होती है?
संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी संसद की वह समिति होती है, जिसमें सभी पार्टियों की बराबर भागीदारी होती है। जेपीसी को यह अधिकार मिला होता है कि वह किसी भी व्यक्ति, संस्था या किसी भी उस पक्ष को बुला सकती है और उससे पूछताछ कर सकती है, जिसको लेकर उसका गठन हुआ है। अगर वह व्यक्ति, संस्था या पक्ष जेपीसी के समक्ष पेश नहीं होता है तो यह संसद की अवमानना माना जाएगा। इसके बाद जेपीसी संबंधित व्यक्ति या संस्था से इस बाबत लिखित या मौखिक जवाब या फिर दोनों मांग सकती है।

जेपीसी की शक्तियां क्या हैं?
संसदीय समितियों की कार्यवाही गोपनीय होती है, लेकिन प्रतिभूति और बैंकिंग लेन-देन में अनियमितताओं के मामले में एक अपवाद है। इसमें समिति निर्णय लेती है कि मामले में व्यापक जनहित को देखते हुए अध्यक्ष को समितियों के निष्कर्ष के बारे में मीडिया को जानकारी देनी चाहिए।

मंत्रियों को आम तौर पर सबूत देने के लिए जेपीसी नहीं बुलाती है, हालांकि, प्रतिभूति और बैंकिंग लेनदेन की जांच में दोबारा अनियमितताओं के मामले में फिर एक अपवाद है, इस मामले में जेपीसी अध्यक्ष की अनुमति के साथ, मंत्रियों से कुछ बिंदुओं पर जानकारी मांग सकती है.

किसी मामले में साक्ष्य मांगने को लेकर विवाद पर अंतिम शक्ति समिति के अध्यक्ष के पास होती है.
 
जेपीसी की संरचना 
जेपीसी में सदस्यों की संख्या अलग-अलग मामलों में भिन्न हो सकती है, इसमें अधिकतम 30-31 सदस्य हो सकते हैं, जिसका अध्यक्ष बहुमत वाली पार्टी के सदस्य को बनाया जाता है, लोकसभा के सदस्य राज्यसभा की तुलना में दोगुने होते हैं, उदाहरण के लिए यदि संयुक्त संसदीय समिति में 20 लोकसभा सदस्य हैं तो 10 सदस्य राज्यसभा से होंगे और जेपीसी के कुल सदस्य 30 होंगे.

इसके अलावा समिति में सदस्यों की संख्या भी बहुमत वाली पार्टी की अधिक होती है, किसी भी मामले की जांच के लिए समिति के पास अधिकतम 3 महीने की समयसीमा होती है, इसके बाद संसद के समक्ष उसे अपनी जांच रिपोर्ट पेश करनी होती है, अधिक सदस्यों के बाद भी सत्तापक्ष का इस कमेटी से दूर भागना वो तब जब ये संसदीय कार्यप्रणाली है कहां की ईमानदारी है...?

जबकि हम अगर संसदीय इतिहास पर नजर डालें तो इससे पहले अलग-अलग मामलों को लेकर कुल आठ बार जेपीसी का गठन किया जा चुका है, फिर भी डर किस बात का, अगर आप ईमानदार हैं तो करें सामना जैसे पहले आठ बार किया गया है...?

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