एस एम फ़रीद भारतीय
जानते हैं संघ को नफ़रत क्यूं है कांग्रेस से...?
ये हैं वो आठ मुसलमान जो बने आज़ादी से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष बने..!!
आज़ादी की लड़ाई की बागडोर अगर 1857 के बाद किसी पार्टी ने संभाली है तो हम कांग्रेस का नाम सबसे ऊपर रख सकते हैं. 1885 में बनी इस संस्था ने जो काम आज़ादी के लिए किया वो क़ाबिल-ए-तारीफ़ रहा है. आज हम इसी
पार्टी के आठ मुसलमान अध्यक्ष के बारे में बात करेंगे.
आज़ादी से पहले 8 मुसलमान कांग्रेस के सदर यानी अध्यक्ष बने हैं इनमे सबसे पहला नाम ‘ बदरुद्दीन तैयबजी ‘ का आता है जो 1887 मे मद्रास सेशन में कांग्रेस के सदर चुने गए और सबसे आख़िर नाम ‘ मौलाना अबुल कलाम ‘ का आता है जो दो बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, पहली बार 1923 में जब वह केवल पैंतीस साल के थे, और दूसरी बार 1940 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष 1946 तक बने रहे.
अब जानते हैं इनके बारे मैं कौन क्या थे...?
1:- बदरुद्दीन तय्यब जी 1887 मे मद्रास सेशन में कांग्रेस के सदर चुने गए.
2:- रहमातुल्लाह एम सियानी 1896 मे कलकत्ता सेशन में कांग्रेस के सदर चुने गए.
3:- नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर 1913 मे कराची सेशन में कांग्रेस के सदर चुने गए.
4:- सैयद हसन इमाम 1918 मे बम्बई सेशन में कांग्रेस के सदर चुने गए.
5:- हकीम अजमल खान 1921 मे अहमदाबाद के सेशन में कांग्रेस के सदर चुने गए.
6:- मौलाना मोहम्मद अली जौहर 1923 मे कोकनाड़ा सेशन में कांग्रेस के सदर चुने गए.
7:- मौलाना अबुल कलाम आजाद भी 1923 मे दिल्ली के स्पेशल सेशन में कांग्रेस के सदर चुने गए.
8:- ड़ॉ मुख़तार अहमद अंसारी 1927 मे मद्रास सेशन में कांग्रेस के सदर चुने गए.
मौलाना अबुल कलाम आजाद को दो बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिये चुना गया, पहली बार 1923 में जब वह केवल पैंतीस साल के थे, और दूसरी बार 1940 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष 1946 तक बने रहे क्योंकि इस अवधि में कोई चुनाव नहीं हुआ, क्योंकि लगभग हर कांग्रेसी नेता भारत छोड़ो आन्दोलन (1942) के कारण जेल में था...
अब सवाल ये पैदा होता है कि बाद मैं ऐसा क्या हुआ जो मुस्लिमों को कांग्रेस ने अध्यक्ष बनाना या चुनना बंद कर दिया तब उसका सीधा सा जवाब है कि अब कांग्रेस ने भी वही राह पकड़ ली जो संघ पैदा कर रहा था यानि हिन्दु मुस्लिम की खाई पैदा करना .
देश मैं हिन्दु मुस्लिम दंगे होने लगे ओर कांग्रेस ओर भाजपा एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाती रहीं बेगुनाह लोग सियास्त की भेंट चढ़ते रहे ओर ये अपनी रोटियां सेंकते रहे संघ का काम आग लगाना था तो कांग्रेस का काम था मुस्लिमों मैं संघ की पार्टियों का डर पैदा करने के साथ मुस्लिमों के आंसू पोंछना, इनकी चाल कामयाब होती रही कुछ तो दंगों मैं अपना सब कुछ गवां बैठे ओर बाकी बचे मुस्लिम सियास्त से दूर होते चले गये.
कांग्रेस ने बेशक मुल्क के लिए बड़ी कुर्बानियां दी हैं लेकिन मुस्लिमों के साथ भी सही इंसाफ़ नहीं किया, क्यूंकि किसी भी दंगे के दोषी को कभी कोई सज़ा कांग्रेस ना दिला पाई ओर ना ही जांच मैं कभी कोई बड़ा संघी नेता दोषी बनाया गया, जबकि कांग्रेस को मुस्लिमों ने अपने ख़ून पसीने से सींचा है.
नतीजा ये हुआ कि सियास्त की बात एक दिन मुस्लिमों की इबादतगाहों तक आ गई ओर सैकड़ों मस्जिद शहीद कर दी गई बाबरी मस्जिद को तो राजनीति की सीढ़ी बनाया गया वरना सैकड़ों मस्जिदों की शहादत की आवाज सुनाई भी ना दी.
आज भी अभी भी वक़्त है कि हम एक होकर मुल्क के लिए सोचें बहुत लड़ लिये बहुत ख़ून बहा लिया हम आम जनता को मिला क्या सोचो ज़रा...?
जयहिन्द
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