Saturday, 5 August 2017

अमर शहीद इंदिरा गांधी ओर उनकी लाईफ़ स्टाईल ?

एस एम फ़रीद भारतीय
अमर शहीद इन्दिरा जी का जन्म 19 नवम्बर 1917 को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में हुआ था, इनके पिता जवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं.
इन्दिरा जी को उनका "गांधी" उपनाम फिरोज़ गाँधी से विवाह के बाद मिला था, इनका मोहनदास करमचंद
गाँधी से न तो खून का और न ही शादी के द्वारा कोई रिश्ता था, इनके पितामह मोतीलाल नेहरू एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे, इनके पिता जवाहरलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे और आज़ाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री रहे.
1934–35 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात, इन्दिरा ने शान्ति निकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही इन्हे "प्रियदर्शिनी" नाम दिया था, इसके पश्चात यह इंग्लैंड चली गईं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में बैठीं, परन्तु यह उसमे विफल रहीं और ब्रिस्टल के बैडमिंटन स्कूल में कुछ महीने बिताने के पश्चात, 1937 में परीक्षा में सफल होने के बाद इन्होने सोमरविल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया, इस दौरान इनकी अक्सर फिरोज़ गाँधी से मुलाकात होती थी, जिन्हे यह इलाहाबाद से जानती थीं और जो लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे, अंततः 16 मार्च 1942 को आनंद भवन, इलाहाबाद में एक निजी आदि धर्म ब्रह्म-वैदिक समारोह में इनका विवाह फिरोज़ से हुआ.
ऑक्सफोर्ड से वर्ष 1941 में भारत वापस आने के बाद वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हो गयीं.
1950 के दशक में वे अपने पिता के भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान गैरसरकारी तौर पर एक निजी सहायक के रूप में उनके सेवा में रहीं। अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1964 में उनकी नियुक्ति एक राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई। इसके बाद वे लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मत्री बनीं.
लालबहादुर शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद तत्कालीन काँग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में निर्णायक रहे, गाँधी ने शीघ्र ही चुनाव जीतने के साथ-साथ जनप्रियता के माध्यम से विरोधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी, वह अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया, 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक निर्णायक जीत के बाद की अवधि में अस्थिरता की स्थिती में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू किया। उन्होंने एवं काँग्रेस पार्टी ने 1977 के आम चुनाव में पहली बार हार का सामना किया, सन् 1980 में सत्ता में लौटने के बाद वह अधिकतर पंजाब के अलगाववादियों के साथ बढ़ते हुए द्वंद्व में उलझी रहीं जिसमे आगे चलकर सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक शहादत (हत्या) हुई.
नेहरू परिवार अपने पुरखों का खोंज जम्मू और कश्मीर तथा दिल्ली केब्राह्मणों में कर सकते हैं, इंदिरा के पितामाह मोतीलाल नेहरू उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से एक धनी बैरिस्टर थे, जवाहरलाल नेहरू पूर्व समय में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बहुत प्रमुख सदस्यों में से थे, उनके पिता मोतीलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक लोकप्रिय नेता रहे, इंदिरा के जन्म के समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में जवाहरलाल नेहरू का प्रवेश स्वतन्त्रता आन्दोलन में हुआ.
उनकी परवरिश अपनी माँ की सम्पूर्ण देखरेख में, जो बीमार रहने के कारण नेहरू परिवार के गृह सम्बन्धी कार्यों से अलग रही, होने से इंदिरा में मजबूत सुरक्षात्मक प्रवृत्तिओं के साथ साथ एक निःसंग व्यक्तित्व विकसित हुआ, उनके पितामह और पिता का लगातार राष्ट्रीय राजनीती में उलझते जाने ने भी उनके लिए साथिओं से मेलजोल मुश्किल कर दिया, उनकी अपनी बुओं (पिता की बहनों) के साथ जिसमे विजयाल्क्ष्मी पंडित भी थीं, मतविरोध रही और यह राजनैतिक दुनिया में भी चलती रही.
इन्दिरा जी ने युवा लड़के-लड़कियों के लिए वानर सेना बनाई, जिसने विरोध प्रदर्शन और झंडा जुलूस के साथ साथ कांगेस के नेताओं की मदद में संवेदनशील प्रकाशनों तथा प्रतिबंधित सामग्रीओं का परिसंचरण कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में छोटी लेकिन उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी.
प्रायः दोहराए जानेवाली कहानी है कि उन्होंने पुलिस की नजरदारी में रहे अपने पिता के घर से बचाकर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज, जिसमे 1930 दशक के शुरुआत की एक प्रमुख क्रांतिकारी पहल की योजना थी, को अपने स्कूलबैग के माध्यम से बहार उड़ा लिया था.
सन् 1936 में उनकी माँ कमला नेहरू तपेदिक से एक लंबे संघर्ष के बाद अंततः स्वर्गवासी हो गईं, इंदिरा तब 18 वर्ष की थीं और इस प्रकार अपने बचपन में उन्हें कभी भी एक स्थिर पारिवारिक जीवन का अनुभव नहीं मिल पाया था, उन्होंने प्रमुख भारतीय, यूरोपीय तथा ब्रिटिश स्कूलों में अध्यन किया, जैसेशान्तिनिकेतन, बैडमिंटन स्कूल औरऑक्सफोर्ड.
1930 दशक के अन्तिम चरण में ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय, इंग्लैंड के सोमरविल्ले कॉलेज में अपनी पढ़ाई के दौरान वे लन्दन में आधारित स्वतंत्रता के प्रति कट्टर समर्थक भारतीय लीग की सदस्य बनीं.
महाद्वीप यूरोप और ब्रिटेन में रहते समय उनकी मुलाक़ात एक पारसी कांग्रेस कार्यकर्ता, फिरोज़ गाँधी से हुई और अंततः १६ मार्च १९४२ को आनंद भवन इलाहाबाद में एक निजी आदि धर्मं ब्रह्म-वैदिक समारोह में उनसे विवाह किया,  ठीक भारत छोडो आन्दोलन की शुरुआत से पहले जब महात्मा गांधी और कांग्रेस पार्टी द्वारा चरम एवं पुरजोर राष्ट्रीय विद्रोह शुरू की गई.
सितम्बर 1942 में वे ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार की गयीं और बिना कोई आरोप के हिरासत में डाल दिये गये थे, अंततः 243 दिनों से अधिक जेल में बिताने के बाद उन्हें १३ मई 1943 को रिहा किया गया,1944 में उन्होंने फिरोज गांधी के साथ राजीव गांधी और इसके दो साल के बाद संजय गाँधी को जन्म दिया.
सन् 1947 के भारत विभाजन अराजकता के दौरान उन्होंने शरणार्थी शिविरों को संगठित करने तथा पाकिस्तान से आये लाखों शरणार्थियों के लिए चिकित्सा सम्बन्धी देखभाल प्रदान करने में मदद की, उनके लिए प्रमुख सार्वजनिक सेवा का यह पहला मौका था.
गांधीगण बाद में इलाहाबाद में बस गये, जहाँ फिरोज ने एक कांग्रेस पार्टी समाचारपत्र और एक बीमा कंपनी के साथ काम किया, उनका वैवाहिक जीवन प्रारम्भ में ठीक रहा, लेकिन बाद में जब इंदिरा अपने पिता के पास नई दिल्ली चली गयीं, उनके प्रधानमंत्रित्व काल में जो अकेले तीन मूर्ति भवन में एक उच्च मानसिक दबाव के माहौल में जी रहे थे, वे उनकी विश्वस्त, सचिव और नर्स बनीं, उनके बेटे उसके साथ रहते थे, लेकिन वो अंततः फिरोज से स्थायी रूप से अलग हो गयीं, यद्यपि विवाहित का तगमा जुटा रहा.
जब भारत का पहला आम चुनाव 1951 में समीपवर्ती हुआ, इंदिरा अपने पिता एवं अपने पती जो रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़रहे थे, दोनों के प्रचार प्रबंध में लगी रही, फिरोज अपने प्रतिद्वंदिता चयन के बारे में नेहरू से सलाह मशविरा नहीं किया था और यद्दपि वह निर्वाचित हुए, दिल्ली में अपना अलग निवास का विकल्प चुना, फिरोज ने बहुत ही जल्द एक राष्ट्रीयकृत बीमा उद्योग में घटे प्रमुख घोटाले को उजागर कर अपने राजनैतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाकू होने की छबि को विकसित किया, जिसके परिणामस्वरूप नेहरू के एक सहयोगी, वित्त मंत्री, को इस्तीफा देना पड़ा.
तनाव की चरम सीमा की स्थिति में इंदिरा अपने पती से अलग हुईं, हालाँकि सन् 1958 में उप-निर्वाचन के थोड़े समय के बाद फिरोज़ को दिल का दौरा पड़ा, जो नाटकीय ढ़ंग से उनके टूटे हुए वैवाहिक वन्धन को चंगा किया, कश्मीर में उन्हें स्वास्थोद्धार में साथ देते हुए उनकी परिवार निकटवर्ती हुई, परन्तु 8 सितम्बर,1960 को जब इंदिरा अपने पिता के साथ एक विदेश दौरे पर गयीं थीं, फिरोज़ गांधी की मौत हो गई.
1959 और 1960 के दौरान इंदिरा चुनाव लड़ीं और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं, उनका कार्यकाल घटनाविहीन था, वो अपने पिता के कर्मचारियों के प्रमुख की भूमिका निभा रहीं थीं.
नेहरू का देहांत 27 मई, 1964 को हुआ और इंदिरा नए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के प्रेरणा पर चुनाव लड़ीं और तत्काल सूचना और प्रसारण मंत्री के लिए नियुक्त हो, सरकार में शामिल हुईं.
हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने के मुद्दे पर दक्षिण के गैर हिन्दीभाषी राज्यों में दंगा छिड़ने पर वह चेन्नई गईं, वहाँ उन्होंने सरकारी अधिकारियों के साथ विचार विमर्श किया, समुदाय के नेताओं के गुस्से को प्रशमित किया और प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण प्रयासों की देखरेख की.
शास्त्री एवं वरिष्ठ मंत्रीगण उनके इस तरह के प्रयासों की कमी के लिए शर्मिंदा थे, मंत्री गांधी के पदक्षेप सम्भवत सीधे शास्त्री के या अपने खुद के राजनैतिक ऊंचाई पाने के उद्देश्य से नहीं थे, कथित रूप से उनका मंत्रालय के दैनिक कामकाज में उत्साह का अभाव था लेकिन वो संवाद माध्यमोन्मुख तथा राजनीति और छबि तैयार करने के कला में दक्ष थीं.
जब 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध चल रहा था, इंदिरा श्रीनगर सीमा क्षेत्र में उपस्थित थी, हालांकि सेना ने चेतावनी दी थी कि पाकिस्तानी अनुप्रवेशकारी शहर के बहुत ही करीब तीव्र गति से पहुँच चुके हैं, उन्होंने अपने को जम्मू या दिल्ली में पुनःस्थापन का प्रस्ताव नामंजूर कर दिया और उल्टे स्थानीय सरकार का चक्कर लगाती रहीं और संवाद माध्यमों के ध्यानाकर्षण को स्वागत किया.
ताशकंद में सोवियत मध्यस्थता में पाकिस्तान के अयूब खान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद ही लालबहादुर शास्त्री का निधन हो गया.
तब कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के. कामराज ने शास्त्री के आकस्मिक निधन के बाद इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
विदेश तथा घरेलू नीति एवं राष्ट्रिय सुरक्षा
सन् 1966 में जब श्रीमती गांधी प्रधानमंत्री बनीं, कांग्रेस दो गुटों में विभाजित हो चुकी थी, श्रीमती गांधी के नेतृत्व में समाजवादी और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में रूढीवादी। मोरारजी देसाई उन्हें "गूंगी गुड़िया" कहा करते थे। 1967 के चुनाव में आंतरिक समस्याएँ उभरी जहां कांग्रेस लगभग 60 सीटें खोकर 545 सीटोंवाली लोक सभा में 297 आसन प्राप्त किए। उन्हें देसाई को भारत के भारत के उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के रूप में लेना पड़ा। 1969 में देसाई के साथ अनेक मुददों पर असहमति के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस विभाजित हो गयी। वे समाजवादियों एवं साम्यवादी दलों से समर्थन पाकर अगले दो वर्षों तक शासन चलाई। उसी वर्ष जुलाई 1969 को उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। 1971 में बांग्लादेशी शरणार्थी समस्या हल करने के लिए उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान की ओर से, जो अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे, पाकिस्तान पर युद्ध घोषित कर दिया। 1971 के युद्ध के दौरान राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के अधीन अमेरिका अपने सातवें बेड़े को भारत को पूर्वी पाकिस्तान से दूर रहने के लिए यह वजह दिखाते हुए कि पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ एक व्यापक हमला विशेष रूप सेकश्मीर के सीमाक्षेत्र के मुद्दे को लेकर हो सकती है, चेतावनी के रूप में बंगाल की खाड़ीमें भेजा। यह कदम प्रथम विश्व से भारत को विमुख कर दिया था और प्रधानमंत्री गांधी ने अब तेजी के साथ एक पूर्व सतर्कतापूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति को नई दिशा दी। भारत और सोवियत संघ पहले ही मित्रता और आपसी सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके परिणामस्वरूप 1971 के युद्ध में भारत की जीत में राजनैतिक और सैन्य समर्थन का पर्याप्त योगदान रहा।

परमाणु कार्यक्रम
लेकिन,जनवादी चीन गणराज्य से परमाणु खतरे तथा दो प्रमुख महाशक्तियों की दखलंदाजी में रूचि भारत की स्थिरता और सुरक्षा के लिए अनुकूल नहीं महसूस किए जाने के मद्दे नजर, गांधी का अब एक राष्ट्रीय परमाणु कार्यक्रम था। उन्होंने नये पाकिस्तानी राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को एक सप्ताह तक चलनेवाली शिमला शिखर वार्ता में आमंत्रित किया था। वार्ता के विफलता के करीब पहुँच दोनों राज्य प्रमुख ने अंततः शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत कश्मीर विवाद को वार्ता और शांतिपूर्ण ढंग से मिटाने के लिए दोनों देश अनुबंधित हुए।

कुछ आलोचकों द्वारा नियंत्रण रेखा को एक स्थायी सीमा नहीं बानाने पर इंदिरा गांधी की आलोचना की गई जबकि कुछ अन्य आलोचकों का विश्वास था की पाकिस्तान के 93,000 युद्धबंदी भारत के कब्जे में होते हुए पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर को पाकिस्तान के कब्जे से निकाल लेना चाहिए था। लेकिन यह समझौता संयुक्त राष्ट्र तथा किसी तीसरे पक्ष के तत्काल हस्तक्षेप को निरस्त किया एवं निकट भविष्य में पाकिस्तान द्वारा किसी बड़े हमले शुरू किए जाने की सम्भावना को बहुत हद तक घटाया, भुट्टो से एक संवेदनशील मुद्दे पर संपूर्ण आत्मसमर्पण की मांग नहीं कर उन्होंने पाकिस्तान को स्थिर और सामान्य होने का मौका दिया।
वर्षों से ठप्प पड़े बहुत से संपर्कों के मध्यम से व्यापार संबंधों को भी पुनः सामान्य किया गया।
स्माइलिंग बुद्धा के अनौपचारिक छाया नाम से 1974 में भारत ने सफलतापूर्वक एक भूमिगत परमाणु परीक्षण राजस्थान के रेगिस्तान में बसे गाँव पोखरण के करीब किया। शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परीक्षण का वर्णन करते हुए भारत दुनिया की सबसे नवीनतम परमाणु शक्तिधर बन गया।
हरित क्रांति
1971 में रिचर्ड निक्सन और इंदिरा गाँधी। उनके बिच गहरा ब्याक्तिगत विद्वेष था जिसका रंग द्विपक्षीय संबंधों में झलका।

1960 के दशक में विशेषीकृत अभिनव कृषि कार्यक्रम और सरकार प्रदत्त अतिरिक्त समर्थन लागु होने पर अंततः भारत में हमेशा से चले आ रहे खाद्द्यान्न की कमी को, मूलतः गेहूं, चावल, कपास और दूध के सन्दर्भ में, अतिरिक्त उत्पादन में बदल दिया। बजाय संयुक्त राज्य से खाद्य सहायता पर निर्भर रहने के - जहाँ के एक राष्ट्रपति जिन्हें श्रीमती गांधी काफी नापसंद करती थीं (यह भावना आपसी था: निक्सन को इंदिरा "चुड़ैल बुढ़िया" लगती थीं), देश एक खाद्य निर्यातक बन गया। उस उपलब्धि को अपने वाणिज्यिक फसल उत्पादन के विविधीकरण के साथ हरित क्रांति के नाम से जाना जाता है। इसी समय दुग्ध उत्पादन में वृद्धि से आयी श्वेत क्रांति से खासकर बढ़ते हुए बच्चों के बीच कुपोषण से निबटने में मदद मिली। 'खाद्य सुरक्षा', जैसे कि यह कार्यक्रम जाना जाता है, 1975 के वर्षों तक श्रीमती गांधी के लिए समर्थन की एक और स्रोत रही।
1960 के प्रारंभिक काल में संगठित हरित क्रांति गहन कृषि जिला कार्यक्रम (आईऐडिपि) का अनौपचारिक नाम था, जिसके तहत शहरों में रहनेवाले लोगों के लिए, जिनके समर्थन पर गांधी -- यूँ की, वास्तव में समस्त भारतीय राजनितिक, गहरे रूपसे निर्भरशील रहे थे, प्रचुर मात्रा में सस्ते अनाज की निश्चयता मिली। यह कार्यक्रम चार चरणों पर आधारित था:
नई किस्मों के बीज
स्वीकृत भारतीय कृषि के रसायानीकरण की आवश्यकता को स्वीकृती, जैसे की उर्वरकों, कीटनाशकों, घास -फूस निवारकों, इत्यादि
नई और बेहतर मौजूदा बीज किस्मों को विकसित करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहकारी अनुसंधान की प्रतिबद्धता
भूमि अनुदान कॉलेजों के रूप में कृषि संस्थानों के विकास की वैज्ञानिक अवधारणा,
दस वर्षों तक चली यह कार्यक्रम गेहूं उत्पादन में अंततः तीनगुना वृद्धि तथा चावल में कम लेकिन आकर्षणीय वृद्धि लायी; जबकि वैसे अनाजों के क्षेत्र में जैसेबाजरा, चना एवं मोटे अनाज (क्षेत्रों एवं जनसंख्या वृद्धि के लिए समायोजन पर ध्यान रखते हुए) कम या कोई वृद्धि नहीं हुई--फिर भी इन क्षेत्रों में एक अपेक्षाकृत स्थिर उपज बरकरार रहे...

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