Monday, 1 May 2023

यौन अपराध और महिलाओं की सुरक्षा पर कानून बनाकर सरकार चुप क्यूं है...?

एस एम फ़रीद भारतीय 
2019 को एक बार फिर देश में बढ़ते हुए बलात्कार एवं हत्या के मामलों को देखते हुए इस बात पर बहस तेज़ हो गई है कि महिलाओं तथा बच्चों के साथ यौन अपराध करने वालों के खिलाफ आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक कठोर किया जाए.

बलात्कार से संबंधित कानून की ऐतिहासिक 
भारत में बलात्कार को स्पष्ट तौर पर भारतीय दंड संहिता में परिभाषित अपराध की श्रेणी में वर्ष 1960 में शामिल किया गया था, उससे पहले इससे संबंधित क़ानून पूरे देश में अलग-अलग तथा विवाद थे.

सन 1833 के चार्टर एक्ट के लागू होने के बाद भारतीय कानूनों के संहिताबद्ध करने का कार्य शुरू हुआ, इसके लिये ब्रिटिश संसद ने लॉर्ड मैकॉले की अध्यक्षता में पहले विधि आयोग का गठन कर, आयोग द्वारा आपराधिक कानूनों को दो भागों में संहिताबद्ध करने का निर्णय लिया गया, इसका पहला भाग भारतीय दंड संहिता (IPC) तथा दूसरा भाग दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) बना.

तब IPC के तहत अपराध से संबंधित नियमों को परिभाषित तथा संकलित किया गया। इसे अक्तूबर 1860 में अधिनियमित किया गया लेकिन 1 जनवरी, 1862 में लागू किया गया.

CRPC, आपराधिक न्यायालयों की स्थापना तथा किसी अपराध के परीक्षण एवं मुकदमे की प्रक्रिया के बारे में है, IPC की धारा 375 में बलात्कार को परिभाषित किया गया तथा इसे एक दंडनीय अपराध की संज्ञा दी गई,
IPC की धारा 376 के तहत बलात्कार जैसे अपराध के लिये न्यूनतम सात वर्ष तथा अधिकतम आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान किया गया था.

IPC मैं बलात्कार की परिभाषा निम्नलिखित बातें शामिल की गई हैं...?

किसी पुरुष द्वारा किसी महिला की इच्छा या सहमति के विरुद्ध किया गया शारीरिक संबंध.

जब हत्या या चोट पहुँचाने का भय दिखाकर दबाव में संभोग के लिये किसी महिला की सहमति हासिल की गई हो.

18 वर्ष से कम उम्र की किसी महिला के साथ उसकी सहमति या बिना सहमति के किया गया संभोग.

इसमें अपवाद के तौर पर किसी पुरुष द्वारा उसकी पत्नी के साथ किये गये संभोग, जिसकी उम्र 15 वर्ष से कम न हो, को बलात्कार की श्रेणी में नहीं शामिल किया जाता है.

सन 1860 के लगभग 112 वर्षों बाद तक बलात्कार तथा यौन हिंसा के कानूनों में कोई बदलाव नहीं हुए लेकिन 26 मार्च, 1972 को महाराष्ट्र के देसाईगंज पुलिस स्टेशन में मथुरा नामक एक आदिवासी महिला के साथ पुलिस कस्टडी में हुए बलात्कार ने इन नियमों पर खासा असर डाला.

तब सेशन कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्वीकार करते हुए आरोपी पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया कि उस महिला के साथ पुलिस स्टेशन में संभोग हुआ था किंतु बलात्कार होने के कोई प्रमाण नहीं मिले, और वह महिला यौन संबंधों की आदी थी.

मगर सेशन कोर्ट के इस फैसले के उल्ट उच्च न्यायालय ने आरोपियों के बरी होने के निर्णय को वापस ले लिया, इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने फिर उच्च न्यायालय के फैसले को बदलते हुए यह कहा कि इस मामले में बलात्कार के कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है. तब सर्वोच्च न्यायालय ने ये भी कहा कि महिला के शरीर पर कोई घाव या चोट के निशान मौजूद नहीं है जिसका अर्थ है कि तथाकथित संबंध उसकी मर्ज़ी से स्थापित किये गए थे.

इसके बाद फिर मथुरा मामले के बाद देश में बलात्कार से संबंधित कानूनों में तत्काल बदलाव को लेकर मांग तेज़ हो गई। इसके प्रत्युत्तर में आपराधिक कानून (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1983 पारित किया गया.

इसके अलावा IPC में धारा 228A जोड़ी गई जिसमें कहा गया कि बलात्कार जैसे कुछ अपराधों में पीड़ित की पहचान गुप्त रखी जाए तथा ऐसा न करने पर दंड का प्रावधान किया जाए.

वर्तमान में बलात्कार से संबंधित कानूनों की प्रकृति क्या है...?

दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए बलात्कार तथा हत्या के मामले के बाद देश में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 पारित किया गया जिसने बलात्कार की परिभाषा को और अधिक व्यापक बनाया तथा इसके अधीन दंड के प्रावधानों को कठोर किया.

इस अधिनियम में जस्टिस जे. एस. वर्मा समिति के सुझावों को शामिल किया गया जिसे देश में आपराधिक कानूनों में सुधार तथा समीक्षा के लिये बनाया गया था।

इस अधिनियम ने यौन हिंसा के मामलों में कारावास की अवधि को बढ़ाया तथा उन मामलों में मृत्युदंड का भी प्रावधान किया जिसमें पीड़ित की मौत हो या उसकी अवस्था मृतप्राय हो जाए.

इसके तहत कुछ नए प्रावधान भी शामिल किये गए जिसमें आपराधिक इरादे से बलपूर्वक किसी महिला के कपड़े उतारना, यौन संकेत देना तथा पीछा करना आदि शामिल हैं।

सामूहिक बलात्कार के मामले में सज़ा को 10 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष या आजीवन कारावास कर दिया गया।

इस अधिनियम द्वारा अवांछनीय शारीरिक स्पर्श, शब्द या संकेत तथा यौन अनुग्रह करने की मांग करना आदि को भी यौन अपराध में शामिल किया गया.

इसके तहत किसी लड़की का पीछा करने पर तीन वर्ष की सज़ा तथा एसिड अटैक के मामले में सज़ा को दस वर्ष से बढ़ाकर आजीवन कारावास में बदल दिया गया.

नाबालिगों के मामले में कानून क्या है...?
जनवरी 2018 में जम्मू-कश्मीर के कठुआ में एक आठ वर्षीय बच्ची के साथ हुए अपहरण, सामूहिक बलात्कार तथा हत्या के मामले के बाद पूरे देश में इसका विरोध हुआ तथा आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग की गई.

इसके बाद आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 पारित किया गया जिसमें पहली बार यह प्रावधान किया गया कि 12 वर्ष से कम आयु की किसी बच्ची के साथ बलात्कार के मामले में न्यूनतम 20 वर्ष के कारावास या मृत्युदंड की सज़ा का प्रावधान होगा.

इसके तहत IPC में एक नया प्रावधान भी जोड़ा गया जिसके द्वारा 16 वर्ष से कम आयु की किसी लड़की के साथ हुए बलात्कार के लिये न्यूनतम 20 वर्ष का कारावास तथा अधिकतम उम्र कैद की सज़ा हो सकती है.

IPC, 1860 के तहत बलात्कार के मामले में न्यूनतम सज़ा के प्रावधान को सात वर्ष से बढ़ाकर अब 10 वर्ष कर दिया गया है.

चलिए आपको याद दिलाते हैं उस बलात्कार की जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, तब मौजूदा सरकार के लोग देश की मीडिया सत्ता से निडरता से सवाल कर रही थी और बलात्कार पर सख़्त कानून बनाने की मांग की गई, कानून बना भी मगर सत्ता बदल गई, सवाल करने वाले अब सत्ता पर काबिज़ थे, तब वही सवाल सत्ता से विपक्ष मैं आये लोगो ने मौजूदा सत्ताधारियों से किए और कानून बना, लेकिन हुआ क्या...?

“21 दिसंबर को मैं एक से डेढ़ घंटे निर्भया के साथ थी। बहुत से सवाल-जवाब हुए लेकिन मुझे उसकी एक बात बार-बार याद आती है और वह यह कि जब मैंने उससे पूछा कि अब तुम क्या चाहती हो? तब उसका पहला जवाब था कि सभी को फांसी मिले लेकिन थोड़ी ही देर रुककर वह बोली कि नहीं.. फांसी नहीं.. सभी को जिंदा जला देना चाहिए, कुछ शब्द और कुछ इशारों के साथ जब वो यह कह रही थी तो इसमें उन आरोपियों के लिए उसका गुस्सा और नफरत मैं महसूस कर सकती थी।”

ये शब्द हमारे नहीं हैं बल्कि उषा चतुर्वेदी के हैं, जो निर्भया से महज एक बार मिलीं थीं, और देश की मीडिया ने कहर बरपाया हुआ था, तब 16 दिसंबर 2012 को हुई घटना के 5 दिन बाद एसडीएम उषा चतुर्वेदी, निर्भया का बयान लेने के लिए सफदरजंग हास्पिटल पहुंची थीं, उन्होंने उस एक मुलाकात में निर्भया का जो दर्द समझा, उन्होने ये बात मीडिया के साथ साझा करते हुए कही, इन्हीं की तरह निर्भया के आखिरी दिनों में उनके साथ रोजाना घंटों गुजारने वाली तत्कालीन एसआई प्रतिभा शर्मा और डॉ. अरुणा बत्रा ने भी मीडिया से कुछ यादें साझा की थीं, इस केस में दोषियों के खिलाफ अहम सबूत जुटाने वाले डॉ. बीके महापात्रा और डॉ.असित बी. आचार्या ने भी मीडिया से बातचीत की.

कुछ शब्द और कुछ इशारों के साथ जब उसने कहा- नहीं! फांसी नहीं... सभी को जिंदा जला देना चाहिए

कुछ शब्द और कुछ इशारों के साथ जब उसने कहा- नहीं! फांसी नहीं... सभी को जिंदा जला देना चाहिए.

एसडीएम उषा चतुर्वेदी 21 दिसंबर 2012 को निर्भया से मिलीं थीं, उन्होंने निर्भया का बयान लिया था
एसआई प्रतिभा शर्मा इस केस को हैंडल कर रहीं थीं, पहले दिन से लेकर निर्भया को सिंगापुर रेफर करने तक वे रोज उससे मिलती थीं
डॉ. अरुणा बत्रा निर्भया की सर्जरी करने वाली टीम में थीं, उन्होंने 19 दिसंबर को पहली बार निर्भया को देखा था
डॉ. असित बी आचार्या ने ओडोंटोलॉजी रिपोर्ट तैयार की थी, इसी रिपोर्ट की बदौलत निर्भया के शरीर पर मिले दांतों के निशानों का दोषियों से मिलान हुआ था
डॉ. बीके महापात्रा के निर्देशन में दोषियों और पीड़ित का डीएनए एनालिसिस हुआ था, रिपोर्ट में दोषियों के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले थे
नई दिल्ली. “21 दिसंबर को मैं एक से डेढ़ घंटे निर्भया के साथ थी। बहुत से सवाल-जवाब हुए लेकिन मुझे उसकी एक बात बार-बार याद आती है और वह यह कि जब मैंने उससे पूछा कि अब तुम क्या चाहती हो? तो उसका पहला जवाब था कि सभी को फांसी मिले लेकिन थोड़ी ही देर रुककर वह बोली कि नहीं..फांसी नहीं..सभी को जिंदा जला देना चाहिए। कुछ शब्द और कुछ इशारों के साथ जब वो यह कह रही थी तो इसमें उन आरोपियों के लिए उसका गुस्सा और नफरत मैं महसूस कर सकती थी।”

ये शब्द उषा चतुर्वेदी के हैं, जो निर्भया से महज एक बार मिलीं थीं। 16 दिसंबर 2012 को हुई घटना के 5 दिन बाद एसडीएम उषा चतुर्वेदी, निर्भया का बयान लेने के लिए सफदरजंग हास्पिटल पहुंची थीं। उन्होंने उस एक मुलाकात में निर्भया का जो दर्द समझा, वह दैनिक भास्कर के साथ साझा किया। इन्हीं की तरह निर्भया के आखिरी दिनों में उनके साथ रोजाना घंटों गुजारने वाली तत्कालीन एसआई प्रतिभा शर्मा और डॉ. अरुणा बत्रा ने भी हमसे कुछ यादें साझा की। इस केस में दोषियों के खिलाफ अहम सबूत जुटाने वाले डॉ. बीके महापात्रा और डॉ.असित बी. आचार्या से भी हमने बातचीत की.

वो मुझे टकटकी लगाकर देख रही थी, शायद इस उम्मीद में कि मैं उसे न्याय दिला सकूं: उषा चतुर्वेदी

उस दिन को याद करते हुए उषा चतुर्वेदी बताती हैं, “जब पहली बार निर्भया को देखा तो अंदाजा लग गया था कि उसके साथ किस हद तक दरिंदगी हुई होगी। उसे ऑक्सीजन मॉस्क लगा हुआ था, लेकिन वो मुझे टकटकी लगाकर देख रही थी, शायद इस उम्मीद में कि मैं उसे न्याय दिला सकूं। मैं एक से डेढ़ घंटे निर्भया के साथ थी। इस थोड़े से समय में ही मुझे यह पता चल गया था कि वह न्याय तो चाहती ही थी लेकिन जीना भी चाहती थी। उसमें फिर से जीने का जज्बा भी था। हालांकि, जब मैं उसका बयान ले रही थी तब मुझे उसकी हालत देखकर लग चुका था कि उसका यह जज्बा उसकी चोटों के आगे घुटने टेक देगा। मैं जान गई थी कि उसका बचना मुश्किल है और जो बयान मैं दर्ज कर रही हूं वो डायिंग डिक्लेरेशन के तौर पर ही उपयोग होगा। मेरे सवालों का जवाब वह ऑक्सीजन मास्क हटाकर थरथर्राती आवाज में दे रही थी। जब नहीं बोल पाती तो इशारों से चीजें समझाने लगती। बयान के आखिरी में मैंने उसे इतना आश्वस्त कर दिया था कि उसने जो कुछ बोला है, वह उसे न्याय दिलाने के लिए काफी है और उसे न्याय जरूर मिलेगा।”

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मैं उसके पास बैठकर बस यही सोचती रहती कि बस किसी तरह से यह बच जाए: प्रतिभा शर्मा

वसंत विहार पुलिस थाने की एसआई प्रतिभा शर्मा ही निर्भया केस को हैंडल कर रही थीं। वे घटना वाले दिन ही निर्भया से मिलीं थीं। इसके बाद से वे हर दिन निर्भया से मिलती रहीं। प्रतिभा बताती हैं, “उसे गुजरे सात साल से ज्यादा बीत गए। मैंने कई मामले देखे लेकिन निर्भया जैसा मामला न पहले कभी देखा था न उसके बाद। मैं रोज मिलती थी उससे, घंटो उसके पास रहती। वह ज्यादा बोल तो नहीं पाती थी, लेकिन उसे यह बुदबुदाते हुए जरूर सुना कि मैं जीना चाहती हूं। उसकी आंखों में जीने की ललक दिखती थी। लेकिन, वह यह भी जानती थी कि जो घाव उसे मिले हैं, उसके बाद जीना मुश्किल है। मैं उसके पास बैठकर बस यही सोचती रहती कि बस किसी तरह से यह बच जाए। बाकी केस तो पुलिस संभाल ही रही थी। उस पूरे मामले में सबसे खराब चीज ही यह रही कि वो बच नहीं पाई।”

अब उस घटना को याद भी नहीं करना चाहती: डॉ. अरुणा बत्रा

निर्भया की दूसरी सर्जरी 19 दिसंबर 2012 को हुई थी। उस दिन डॉक्टरों की टीम में शामिल रहीं डॉ. अरुणा बत्रा ने एक बयान में कहा था कि मैंने अपने 35-40 साल के प्रोफेशन में इस तरह का दिल दहला देने वाला मामला नहीं देखा। मन में बार-बार यही सवाल आ रहा है कि क्या कोई इंसान वाकई ऐसा कर सकता है? डॉ. बत्रा अब उस घटना को याद भी नहीं करना चाहती। वे कहती हैं कि वह एक दर्दनाक कहानी थी, उसे भूल जायें, वही अच्छा है। उस निर्भया के बाद देश में कितनी निर्भया आ गईं और यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। वोट के लिये लोगों के विचार बदले जा सकते हैं लेकिन इस तरह के जघन्य अपराध से बेटियों को बचाने के लिए सरकार को कोई उपाय नहीं सूझ रहा। दिसंबर 2012 में निर्भया के साथ जो हुआ, वह सभी लोग जानते हैं लेकिन, उसके बाद स्थितियां कितनी बदलीं?, कोई सुधार क्यों नहीं हुआ? हमें इन बातों पर ध्यान देना चाहिए।

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निर्भया के शरीर पर मिले दांतों के निशान राम सिंह और अक्षय के हैं, यह पता लगाने में पूरे पांच दिन लगे: डॉ. असित बी. आचार्या

निर्भया के शरीर पर दांतों के कई निशान थे। एसआई प्रतिभा शर्मा के आदेश पर फोटोग्राफर असगर हुसैन ने गैंगरेप के चार दिन बाद यानी 20 दिसंबर 2012 की शाम 4.30 से 5 के बीच इन दांतों के निशानों के 10 बड़े (8*12) और 10 छोटे (5*7) फोटो खींचे। 2 जनवरी 2013 को ये फोटोग्राफ्स कर्नाटक के धारवाड़ में एसडीएम कॉलेज ऑफ डेंटल साइंस के हेड डॉक्टर असित बी आचार्या को भेजे गए। इसके साथ ही पकड़ाए गए पांच आरोपियों के दांतों के मॉडल भी डॉ.आचार्या को भेजे गए। 

फॉरेंसिक ओडोंटोलॉजी के तकनीकों जैसे लेजर स्कैनिंग, स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कॉपी और टोमोग्राफी के जरिए आरोपियों के दांतों की बनावट और निर्भया के शरीर पर मिले दांतों के निशानों को मिलाया गया। डॉ. आचार्या के एनालिसिस में 10 में से 4 दांतों के निशानों की पहचान हो गई। इनमें से 3 निशान रामसिंह और 1 निशान अक्षय का पाया गया।

डॉ. असित बताते हैं, “क्राइम होने के 24 घंटे के अंदर ही सफदरगंज हॉस्पिटल से मुझे डॉ. अनुराग जैन का कॉल आया था। उन्होंने निर्भया के शरीर पर मिले दांतों के निशानों के सबूत जुटाने के लिए मुझसे जानकारी और गाइडेंस मांगा। मैंने उन्हें दांतों के निशान के फोटो लेने का तरीका समझाया। मैंने उन्हें इसकी पूरी प्रक्रिया भी बताई। इसके 14 दिन बाद 1 जनवरी 2013 को दिल्ली पुलिस ने इस केस के सिलसिले में मुझसे पहली बार संपर्क किया।”

असित बताते हैं, “वसंत विहार पुलिस स्टेशन के एसआई विशाल चौधरी मेरे पास निर्भया के शरीर पर मिले दांतों के निशानों की फोटोज और नाबालिग को छोड़कर बाकी 5 आरोपियों के दांतों का मॉडल लेकर आए। मैंने इसके एनालिसिस के लिए 2डी डिजिटल एनालिसिस प्रक्रिया को अपनाया। इसके लिए मैंने फोटोग्राफ्स और अपराधियों के दांतों के मॉड्यूल्स को स्कैन किया, फिर इन्हें कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग सॉफ्टवेयर में इंपोर्ट किया और फिर वर्चुअल डिजिटल स्पेस में इनका एनालिसिस और तुलना की। इस एनालिसिस में पूरे पांच दिन लगे। चीजों को बड़ी बारीकी से अध्ययन करना होता है, लेकिन इसमें सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि लोगों की मांग और मीडिया क्या चाहता है इन सभी से दूर रहकर एक निष्पक्ष जांच रिपोर्ट तैयार की जा सके। फॉरेंसिक जांच में सच तक पहुंचने की कोशिश होती है और मैंने यही किया।’’

निर्भया के दोषी पहले नहाए, फिर नाश्ता किया; सुबह 5:30 बजे सुपरिंटेंडेंट का इशारा मिलते ही चारों को फांसी दी गई, डीएनए एनालिसिस के लिए जो सामान मिले थे, सभी पर आरोपियों और पीड़िता की डीएनए प्रोफाइल मैच हुई थी: डॉ. बीके महापात्रा.

दोषियों के खिलाफ सबूत तैयार करने के लिए डीएनए एनालिसिस किया गया था। वारदात वाली रात दोषियों ने जो कपड़े पहने थे, उनमें पीड़िता और उसके दोस्त के खून के निशान मिले। मुख्य दोषी राम सिंह (मार्च 2013 में इसने जेल में आत्महत्या कर ली) की चप्पल पर भी पीड़िता के खून के निशान मिले थे। दोषियों ने पीड़िता और उसके दोस्त के कपड़े जला दिए थे। उन जले हुए कपड़ों के टुकड़ों से भी पीड़िता और उसके दोस्त की डीएनए प्रोफाइल मैच हुई थी। जिस जगह दोषियों ने दोनों पीड़ितों को फेंका था, वहां से भी उनके खून के निशान मिले थे। इसके अलावा लोहे की रॉड, बस के सीट कवर, परदे, दरवाजे, फ्लोर पर भी पीड़िता के खून के निशान मिले।

सीबीआई की सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी में बायोलॉजी के एचओडी डॉ. बीके महापात्रा के निर्देशन में यह डीएनए एनालिसस हुआ था। वे बताते हैं कि आरोपियों के कपड़े, चप्पलें, लोहे की रॉड समेत जिन भी चीजों पर खून, सलाईवा और सीमन के सैंपल हमें मिल थे, उसके आधार पर एनालिसिस हुआ और इसमें सभी 6 दोषियों की डीएनए प्रोफाइल मैच हुई थी। हाईकोर्ट में डॉ. महापात्रा ने कहा था कि डीएनए एनालिसिस से पता चलता है कि सैंपल प्रामाणिक थे। इससे दोषियों की पहचान साबित हुई। ये संदेह से परे हैं। एक बार डीएनए प्रोफाइल बन गई तो इसकी एक्युरेसी 100% होती है.

उस समय देश की सोच और माहौल क्या था...?

1. निर्भया के गांव से: दरिंदों को फांसी की हर अपडेट लेते रहे परिजन; गांव में जश्न का माहौल

2. दोषी मुकेश के गांव से रिपोर्ट: लोग उसका नाम भी नहीं लेना चाहते, बोले- वह हम पर दाग लगा गया

3. निर्भया के दोषी अक्षय के गांव से रिपोर्ट: कवरेज करने पहुंचे मीडियाकर्मियों को लोगों ने खदेड़ा

4. निर्भया का सारा सामान और कपड़े तक ले गए थे दुष्कर्मी; राजस्थान से स्मार्टफोन तो बिहार से सोने की अंगूठी बरामद हुई थी

5. 21वीं सदी के भारत में 8 लोगों को फांसी पर लटकाया गया, इनमें 3 आतंकी और 5 दुष्कर्मी

आज सबसे बड़ा सवाल जो मीडिया और लोग बलात्कार पर बड़ी बड़ी बातें करते थे, सत्ता हासिल हुई कानून बने, मगर खड़े हैं बलात्कारियों के साथ, आख़िर क्यूं...?
स्रोत: दैनिक भास्कर, गूगल व सोशल मीडिया

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