Sunday 29 October 2017

हम हैं इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा ?

हम हैं इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा

एस एम फ़रीद भारतीय
सन् 1857 के महासमर के 160 साल हो चुके हैं, मेरी कोशिश होगी कि मैं सैफ़ी पोस्ट के ज़रिये जंग ऐ आज़ादी से जुड़ी हर सच्चाई ओर शहीद ए आज़म पर इस महासमर से जुड़ी चीज़ें पाठकों के लिए मुहैया करायें, ख़ासकर ऐसे जानकारी, जो आमतौर पर आप लोगों को नहीं मिल पातीं.

आज यहां एक ऐसी ग़ज़ल कहें कविता कहें या नज़्म कहें जो चाहें वो कहें, आपके सामने पेश कर रहा हुँ, जो मुल्क का पहला क़ौमी तराना था, आज भी आप कहें तो शायद गलत नहीं होगा, आज से 160 साल पहले, मुल्क़ का ऐसा तसव्वुर नहीं था, राजा- रजवाड़ों के दिमाग में भी नहीं, यह गीत गज़ल कविता महासमर के एक मशहूर योद्धा अजीमुल्ला खां ने रचा था.

हम हैं इसके मालिक हिन्दुस्तान हमारा,
पाक वतन है कौम का जन्नत से भी न्यारा,,
ये है हमारी मिल्कियत, हिन्दुस्तान हमारा,
इनकी रूहानियत से रोशन है जग सारा,,
कितना कदीम कितना नईम, सब दुनिया से प्यारा,
करती है ज़रख़ेज़ जिसे गंगो-जमुन की धारा,,
ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा,
नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा,,
इसकी खानें उगल रही हैं, सोना, हीरा, पारा,
इसकी शानो-शौकत का दुनिया में जयकारा,,
आया फिरंगी दूर से ऐसा मंतर मारा,
लूटा दोनों हाथ से, प्यारा वतन हमारा,,
आज शहीदों ने है तुमको अहले वतन ललकारा,
तोड़ो गुलामी की जंज़ीरें बरसाओ अंगारा,,
हिन्दू-मुसलमां, सिख हमारा भाई-भाई प्यारा,
यह है आजादी का झंडा, इसे सलाम हमारा...

सन 1857 में राष्ट्रध्वज की सलामी के वक़्त जगह-जगह में यही गाया जाता था, ये तराना 1857 के क्रांति-अखबार च् पयामे-आजादी छ में छपाया गया था, जिसकी एक नकल ब्रिटिश म्युजियम लंदन में आज भी मौजूद है.

अब सोचना ये है कि मुल्क मैं अब से करीब तीस पैंतीस साल पहले तक कोई हिंदु मुस्लिम की सोच लोगों के दिमाग़ मैं नहीं थी, सब मिलकर एक दूसरे के सुख दुख मैं शरीक हुआ करते ओर मुहब्बत के साथ रहा करते थे, मगर किसी ज़ालिम ने इस एकता को नफ़रत की चिंगारी दिखा दी, जिससे देश कई बार जल चुका है ओर आज भी वही किया जा रहा है, ये नफ़रत हमको कहां ले जायेगी सोचा है कभी ?
इस नफ़रत से मुल्क को क्या फ़ायदा होगा इस पर विचार किया है कभी ? मुल्क मैं नफ़रत की आग से कुछ के घर ज़रूर रौशन हो रहे हैं लेकिन ज़्यादातर देश की जनता बदहाली मैं जी रही है यही है कडवा सच !
इससे हमे बाहर आना होगा ओर एक होकर देश को अज़ीम मुल्क बनाना होगा बिन एकता के हम बस ख़्वाब तो देख सकते हैं लेकिन कभी उस ख़्वाब को पूरा नहीं कर सकते, ये मेरी सोच है, सही है या ग़लत आप भी मुझको अपनी कीमती राय से नवाज़ें, शुक्रिया जय हिन्द

नोट- ये लेख ब्लाॅग ज़ुबान खोल बिंदास बोल ओर सैफ़ी पोस्ट साप्ताहिक के लिए है कोई भी इसकी काॅपी बिना इजाज़त ना करे !

No comments:

Post a Comment

अगर आपको किसी खबर या कमेन्ट से शिकायत है तो हमको ज़रूर लिखें !

सेबी चेयरमैन माधवी बुच का काला कारनामा सबके सामने...

आम हिंदुस्तानी जो वाणिज्य और आर्थिक घोटालों की भाषा नहीं समझता उसके मन में सवाल उठता है कि सेबी चेयरमैन माधवी बुच ने क्या अपराध ...