Monday, 25 December 2017

शायरी ओर शायर शरियत ओर क़ुरआन की नज़र से ?


एस एम फ़रीद भारतीय 
दोस्तों आज हम जानते हैं कि वो अनजाने गुनाह क्या हैं जिनकी वजह से हमारी दुआऐं ना तो क़बूल हो रही हैं ओर ना ही हमको कामयाबी मिल रही है ऐसे ही गुनाहों मैं एक गुनाह है शायरी जो हममें से ज़्यादातर लोग करते आये है क्यूंकि कभी हमने सोचा ही नहीं हम क्या कर रहे है या इसका कोई वास्ता क़ुरआन से भी हो सकता है ?

आज अहमद मुस्तक़ीम सैफ़ी Ahmad Mustakeem Saifi साहब
ने एक सवाल किया तब जवाब देखने पर मालूम हुआ कि में तो अब तक बहुत गुनाह अंजाने मैं ही कर चुका हुं जिसकी मैं तौबा करता हुँ ओर करता रहूंगा वो है शेरो शायरी करने का गुनाह.
आइए सब से पहले देखते है के पवित्र क़ुरान शाएरी के बारे मे क्या कहता है.
पवित्र क़ुरान के पारा-26 सूरः आल-शोरा , आयत नंबर -220- 226- जिस मे सॉफ तौर पे कहा गया है के ” लोगो क्या मे तुम्हे बताऊ शैतान किस पर उतरा करते है? , वो हर नक़ली और बदकर लोगो पे उतरा करते है जो सुनी सुनाई बातो कानो मे फूंकते है और उन मे से ज्यादा तर झुटे होते है, जहा तक शाएर ( कवि) की बात है तो उन के पीछे बहके हुए लोग चला करते है. क्या तुम देखते नही हो के वी भ्टके हुए लोग है और ऐसी बाते कहते है जो करते नही है.”
पवित्र क़ुरान- पारा-22 सूरः यासिन आयत नंबर-69- अल्लाह ताला फरमाता है के हम ने उस को मतलब हुज़ूर मुहम्मद ( सल्ललह) को शाएरी नही सिखाई है और न उस के करने का काम है.
उपर उन सभी सामान्य शएरो के बारे मे कही गयी है मगर अगर वो नीचे चार गुण वाले है तो उन पे ये लागू नही होता.

वे मोमिन हो अल्लाह, रसूल, उस की किताब और क़्यामत पर यक़ीन रखते हो.
अपने वास्तविक जिंदगी मे नेक और परहेज़गार हो.
उस की निजी जिंदगी परहेज़गर हो और उस के कलाम मे भी परहेज़गारी हो.

वे अपने कलम मे मुबालगा-आरआई न करे, अपने लभ के लिये शाएरी न करे, उस के कलाम से जाती-भेद भव, दुश्मन को न भड़काए जाने वेल बात न हो, कोई भी चीज को बड़ा-चड़ा कर पेश न किया जाये.
आप ने देखा के पवित्र क़ुरान शायरो( कवियो) के बारे मे क्या कह रहा है. लेकिन अगर उन मे जो चार गुण बताये गये है अगर उस के अनुसार शाएरी कर रहे है तो कोई गुनाह नही है.

मगर आप इतिहास उठा कर देख ले कोई भी शाएर इस्लाम के कसौटी पे खरा नही उतारता वो चाहे मीर तक़ी मीर, ग़ालिब, अल्लामा इक़बाल हो या कोई भी शाएर हो क़ुरान के बताये कसौटी पे नही उतारता. शएरो के काम ही मुबालगा-आरआई करना मतलब बड़ा-चड़ा कर पेश करना और लोगो के जज्बात को भड़काना और अपने लाभ के लिये शाएरी करना जिस से उन को लाभ हो. अल्लामा इक़बाल मलका विक्टोरिया के मौत पे मर्सिया लिख कर सर का अवॉर्ड ले लेते है आज के दौर मे बशीर बद्र अटल बिहारी वाजपाए की तारीफ कर पदम श्री ले लेते है.
इसीलिये इस्लाम ने शाएरी को हरम करार दिया है, लेकिन अगर कुछ शर्तो के साथ शाएरी करते है तो कोई बुराई नही है. अल्लामा इक़बाल की शाएरी या उन के जीवन इस्लाम के अनुसार नही है. अब आप ही बताये क्या आज की शायरी को जायज़ कहा जा सकता है ?
बहुत से लोग अभी भी ये दलील देंगे कि ऐसे हम सारे काम क्या क़ुरआन के मुताबिक करते हैं ? तब ऐसी सोच वालों को समझ लेना चाहिए कि आज जो कुछ भी हमारे साथ हो रहा है वो तब तक होता रहेगा जब तक हम अपने गुनाहों से तौबा ओर किये गुनाहों की तौबा नहीं कर लेते ओर सही रास्ते पर नहीं आ जाते.

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