Thursday, 28 December 2017

अज़ान ओर नमाज़ क्या है हम कहां ठहरते हैं ?

पूरा पढ़ना फिर ग़ौर करना हम कहां ठहरते हैं ?
*एस एम फ़रीद भारतीय*
*एक शौहर और बीवी की बेशकीमती गुफ्तगू.*
जो कि एक मोमिन के लिए सबक है, और जो शख्स अमल में ले आए तो उसकी ज़िंदगी ही संवर जाएगी. *इंशा अल्लाह*

बीवी - आज बहुत देर से आए हैं आप ?
शौहर - जी आज महीने का आखिरी दिन था ना चलो दुआ पढ़ कर सो जाओ , सुबह फज्र की नमाज़ के लिए भी उठना है.

बीवी - शादी के बाद मैंने आपको कभी भी फज्र की नमाज़ को कज़ा करते नहीं देखा है.
शौहर - बहुत ही दिलचस्प बात पूछी है तुमने आज अच्छा तो सुनो ये हमारा तिलस्मी राज ,जो तुमसे निकाह के पहले का है ,,
एक बार मैं अपने काम से हैदराबाद गया था और वापसी अपने घर को कर रहा था ,रात का आखिरी पहर था और तूफानी बारिश के साथ साथ ठंड का कहर भी पूरी तरह जारी था, कार का शीशा पूरी तरह बंद होने के बावजूद भी मैं ठंड को महसूस कर रहा था, दिल में एक यही ख्वाहिश थी कि जल्द से अपने घर पहुंच कर गरमा गरम रजाई में घुस कर चैन की नींद सो जाऊं, सड़क पूरी ही तरह से वीरान थी इंसान तो क्या जानवर भी दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहे थे लोग अपने गरम गरम बिस्तर में इस सर्द मौसम में मीठी मीठी नींद ले रहे थे.
अपने शहर आते आते रात का आखिरी पहर हो चुका था, मैंने कार को अपनी गली में घुमाया तो कार की रोशनी में ऐसी भीगती बारिश और ठंड में एक साया मुझे नजर आया जिसने बारिश से बचने के लिए प्लास्टिक की झिल्ली जैसी किसी चीज से अपने आपको ढंक रखा था और वो गली में इधर उधर जमा हुए पानी से बचता हुआ आहिस्ता आहिस्ता कहीं जा रहा था, मुझे बहुत ही ज़्यादा हैरत हुई कि ऐसे वक्त में जब रात का बिल्कुल आखिरी पहर है, कौन अपने घर से बाहर निकल सकता है मुझे उस शख्स पर बहुत ही तरस आया कि पता नहीं कौन सी ऐसी मजबूरी ने इसको ऐसी तूफानी बारिश और ठंडी रात में घर से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया होगा,
मैंने सोचा कि हो सकता है कि इसके घर में कोई बीमार हो और ये शख्स उसको अस्पताल ले जाने के लिए किसी सवारी की तलाश कर रहा हो ?
मैंने कार का शीशा नीचे कर के उससे पूछा "भाई साहब क्या बात है ?
आप कहां जा रहे हो ?
सब खैरियत तो है ना ?
आपके आगे ऐसी कौन सी मजबूरी आयी है कि आप ऐसी तूफानी बारिश और कड़ाके की ठंड में इतनी रात में बाहर निकल आए, आइए मैं आपको छोड़ देता हूं ?

उसने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और बोला "भाईजान आपका बहुत बहुत शुक्रिया ,
मैं यहां करीब ही जा रहा हूं ,
इसलिए पैदल ही चला जाऊंगा ,,
मैंने उससे पूछा "लेकिन आप इतनी तेज बारिश और कड़ाके की ठंड में कहां जा रहे हो ?

उसने कहा - *मस्जिद*
मैंने पूछा - इस वक़्त क्यूं ? और आप इस वक़्त मस्जिद जाकर क्या करोगे ?
उसने जवाब दिया - मैं इस मस्जिद का मोज्ज़िन हूं , नमाजे फज्र की अज़ान देने जा रहा हूं .

ये इतना सा अल्फ़ाज़ कह कर वो शख्स अपने रास्ते पर आगे चल पड़ा और मुझे एक नई सोच में डाल गया कि क्या आज तक कभी हमने ये सोचा कि ऐसी सर्दी की रात में और तूफानी बारिश में कौन है जो अपने वक़्त पर *अल्लाह* के बुलावे की सदा को बुलंद करता है ?
कौन है वो, जो ये आवाज़ बुलंद करता है कि
*अल्लाह तुम्हे बुला रहा है*
*आओ नमाज़ की तरफ*
*आओ कमियाबी की तरफ*
और उस शख्स को इस कमियाबी का कितना यकीन है कि उसे इस फ़र्ज़ को अदा करने से उसे ना तो थरथराती सर्दी , ना तूफानी बारिश का पानी और ना ही उमस भारी गर्मी उसको रोक सकती है ?
और आज तक हमने कभी ये सोचा है कि ये *अल्लाह* की तरफ हमें बुलाने वाले बंदे की तनख्वाह (सैलेरी) कितनी मिलती है ?
शायद 4000 रुपए से 6000 रुपए तक बस !!
शायद एक मजदूर और मिस्त्री भी  500 रुपए रोज़ाना के हिसाब से 12000 रुपए से लेकर 15000 रुपए तक कमा ही लेते हैं ?

बस उस दिन मुझे पूरा यकीन हो गया था कि ऐसे ही *अल्लाह* वाले लोग हैं जिनकी वजह से *अल्लाह* हम पर महेरबान है वरना हमारे काम कोई भी ऐसे नहीं है जिनसे हमारा *अल्लाह* हमसे राज़ी हो जाए, ये हमारी ऐशो आराम की जिंदगी सदका है इन्हीं *अल्लाह* वालों के खून पसीने का इन्हीं लोगों की बरकत की वजह से इस दुनिया का निज़ाम *अल्लाह तआला* चला रहे हैं.
मेरा दिल चाहा कि अपनी गाड़ी से नीचे उतर कर उस मुबारक हस्ती को मैं अपने गले से लगा लूं, उनके हाथ को चूम कर कुछ पैसों से उनकी मदद कर दूं, लेकिन वो जा चुके थे.
और थोड़ी ही देर के बाद मेरे शहर की फिज़ा *अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर* की सदा से गूंज उठी और मेरे क़दम ख़ुद ब ख़ुद अपने घर जाने के बजाय मस्जिद की जानिब उठते चले गए.
शायद *अल्लाह* की तरफ से वो दिन मेरे लिए हिदायत का दिन था और मेरे *रब्बुल इज़्ज़त* ने उस शख्स को मेरी हिदायत के लिए मुंतखब किया हो 
और यही वजह है जो कि आज मुझे सर्दी में भी नमाज़ के लिए जाना अच्छी नींद और गर्म बिस्तर से ज्यादा अच्छा लगता है!!!

दोस्तो मैं कभी किसी से नहीं कहता कि मेरे मैसेज दूसरों को भी भेजें लेकिन आज आप सभी से इल्तिज़ा है कि आप ऐसा करें, शायद अल्लाह मेरे किसी और भाई को भी ऐसी ही हिदायत दे दे. आमीन

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