Tuesday, 23 January 2018

दहेज लानत और कलंक है इंसानियत पर ?


*एस एम फ़रीद भारतीय*
राष्ट्रीय सेवक *(भादवस)*

दहेज, एक ऐसी बुरी सामाजिक व्यवस्था है जिसका छोड़ना बेहद जरूरी है, दहेज प्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए समाज के लिए जागरूक लोगों की मेहनत के बावजूद इस दहेज ने बेहद ख़तरनाक रूप धारण कर लिया है, इसका ये घिघौना रूप इंसानियत को अंदर से खोखला कर रहा है,
आज के हालातों के मद्देनजर यह केवल बच्चों के मां-बाप और जन सामान्य पर निर्भर करता है कि वे दहेज प्रथा के बुरे असर को ख़ुद समझें ओर फिर बच्चों को समझायें.
क्यूंकि अगर एक के लिए यह अपने मान सम्मान की बात है तो दूसरे के लिए अपनी इज्जत बचाने की बात भी है, इसे ख़त्म करना एक पारिवारिक मामला नहीं बल्कि हम सबको मिलकर दूर करने का मसअला बन चुका है, इसके लिए जरूरी है कि हम सब जल्द ही बदलावों के लिए मिलकर एक साथ कदम उठाए और दहेज लेना और देना पूरी तरहां बंद कर दें.
हम सभी को और बच्चों के मां बाप को चाहिए कि वे अपनी बेटियों को इस काबिल बनाएं कि वे पढ़ लिखकर ख़ुद अपने हक के लिए आवाज बुलंद करना सीखें, अपने अधिकारों के बारे में जानें समझें, क्यूंकि जब तक आप ही अपनी बेटी का महत्व नहीं समझेंगे तब तक किसी और को उनकी अहमियत समझाना नामुमकिन है.
आज ज़रूरत है एक ऐसे स्वस्थ सामाजिक वातावरण के निर्माण की जहां औरत अपने आप को बेबस और लाचार नहीं बल्कि गौरव महसूस करे, जहां उसे औरत होने पर अफ़सोस नहीं बल्कि गर्व हो, उसे इस बात का एहसास हो कि वह बोझ नहीं इंसानियत की एक प्रमुख कड़ी है.
हक़ीकत में दहेज जैसी लानत को जड़ से खत्म करने के लिए नौजवानों को एक ताक़्तवर रोल निभाने की जरूरत है, उन्हें समाज को यह संदेश देने की ज़रूरत है कि वह दहेज की उम्मीद नहीं रखते हैं पर हां वो ऐसी जीवनसाथी चाहते हैं जो पत्नी ही नहीं एक दोस्त की शक्ल में हर कदम पर उसका साथ दे, चाहे वह समाज के किसी भी हिस्से से आती हो, दहेज प्रथा के पीछे भी ज्यादातर औरतें ही होती हैं उन्हें खुद भी दहेज लेना बहुत पसंद है, उन्हें एक महिला की सोच को समझना चाहिए और इस तरहां की प्रथा को दिल से निकाल फैंकना चाहिए, मेरा अपना यह मानना है कि अगर दहेज प्रथा समाज से पूरी तरह समाप्त हो जाए तो गर्भ मैं ही बच्चियों हत्या ख़ुद ही समाज से ख़त्म हो जायेगी.
मैने आमिर खान के कार्यक्रम “सत्यमेव जयते” का तीसरा एपिसोड जो दहेज पर था, दहेज की वजह से हमारे देश में हो रही मौतें इस एपिसोड का मुद्दा थीं, इस तरहां के कार्यक्रम के माध्यम से समाज में जागरूकता पैदा की जा सकती है अत: इस तरह के कार्यक्रमों को नेशनल टी.वी. पर बढावा देना चाहिए और समय समय पर इनका प्रसारण अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझते हुए टी.वी. चैनलों को करना चाहिए.
क्यूंकि आज के नौजवानों को जैया हम दिखाएंगे सिखाएंगे और पढ़ाएंगे वो ही जाकर हमारा भविष्य बनेंगे, आओ हम सब मिलकर दहेज प्रथा के खिलाफ आवाज़ उठाए ओर क़सम ले कि-
*ना तो हम दहेज देंगे और ना ही दहेज लेंगे*
भारतीय दहेज विरोधी संगठन का मतलब यही है ओर जिस तरहां से मुझे अपने साथियों की मुहब्बत मिल रही है मैं उम्मीद करता हुँ कि हम जल्द ही कामयाब होंगे और कामयाबी की पहली सीढ़ी हमारी हमको मिल चुकी है जब हरियाणा सरकार ने हमारी आवाज़ को सुनकर कहा है कि हम दहेज लेने वाले को सरकारी नौकरियां नहीं देंगे ये बड़ी जीत है संगठन की.
अभी तो बस शुरूआत है और ये सिलसिला जब शुरू हुआ है तब रूकने के लिए नहीं बल्कि आगे बढ़ने के लिए है, हमको निडर होकर इस मुहिम के लिए काम करना है निडर होकर इसलिए कि देश का कानून जब हमारे साथ है तब हमको डरने की ज़रूरत क्या है हम तो कानून और समाज दोनों के लिए मिलकर काम करेंगे और इन शा अल्लाह कामयाब होंगे क्यूंकि ये इंसानियत, समाज और कानून की गरिमा को बचाने के लिए उठाया गया क़दम है.
*भारतीय दहेज विरोधी संगठन ज़िंदाबाद, हमारी एकता ज़िंदबाद*
संगठन से जुड़ें और अपनों को जोड़ें हमें व्हाटसऐप या काॅल करें *+919997554628* पर

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