एस एम फ़रीद भारतीय
अपनी बहन बेटियों से गुज़ारिश करूंगा बिल्कुल रोक दें बेटियों को उस देश मैं जन्म देना जहां बेटी हैवानियत का शिकार हों ओर कानून व सरकार जहां तमाशा देखे, ऐसे हैवानों को एक सैकिंड जीने का हक़ नहीं है, पोस्ट को पढ़कर चुपचाप बैठ जाना यही करना बस ?
गाय के नाम पर हंगामा, गौबर के नाम पर हंगामा, जातिवाद के नाम
पर हंगामा, धर्म के नाम पर हंगामा क्यूं भाई क्यूं?
क्या बस यही बचा है मेरे देश मैं राजनीति करने या कराने के लिए लोगों की बाकी समस्याऐं क्या सब ख़त्म हो चुकी हैं, क्या पूरा देश ख़ुशहाल है क्या चारों तरफ़ चैन अमन सुकून है?
नहीं भाई नहीं ऐसा नहीं है देश बड़ी बड़ी समस्याओं से जूझ रहा है देश मैं दर्निदगी को भूल कर हम उन दरिंदों के हौंसलों को बुलंद कर रहे हैं क्या कि हम वो लड़ाई लड़ रहे हैं जिससे ना तो हमारा कोई फ़ायदा है ओर ना ही समाज ओर देश का !
जबकि सबसे बड़ा नुकसान देश ओर समाज दोनों का ही इस बेमतलब की लड़ाई मैं हो रहा है नेता लोग अपनी रोटियां सेंक रहे हैं ओर हमारे समाज मैं हैवान अपनी हैवानियत का नंगा नाच इन्ही के इशारे पर कर तमाम समाज को दूशित कर रहे हैं ?
देश मैं जानवरों के नाम पर हंगामा करने वाले तब कहां मर गये जब देश की राजधानी दिल्ली मैं एक मासूम बेज़ुबान आठ माह की बच्ची से बलात्कार हुआ ?
अब महिलाऐं बेटियों को पैदा होने से पहले ही इसलिए नहीं मारेंगी कि वो दहेज की बलि चढ़ा दी जायेगी बल्कि इस लिए मारना या पैदा होने से रोकना शुरू कर देंगी कि मासूमों को ये हवस के पुजारी दरिंदें शायद उस मुक़ाम तक पहुंचने से पहले ही मसल देंगे वो भी रिश्तों को शर्मसार करके ?
शर्म आनी चाहिए एक बीती रानी की कहानी पर बनने वाली फ़िल्म पर हंगामा करने वालों के साथ उन कानून के रखवालों को जो देश मैं सख़्त कानून होने के बाद भी मासूमों की आबरू नहीं बचा जा रहे धिधकार है ऐसे लोगों ओर सरकार पर जो महिला की आबरू पर हंगामा काटकर सत्ता मैं आई हो लेकिन चार साल मैं उसने महिलाओं के मान सम्मान के लिए क्या किया ये ख़ुद अपने से सवाल करें ओर ख़ुद को सज़ा ना दे सकें तो ज़लील तो करें !
लिखो ना बहुत चाहता हुँ लेकिन उस मासूम की हालत लाचारी ओर दर्द के लिए अल्फ़ाज़ नहीं मिल रहे जो उस मासूम ने अपनी चीखों से ब्यान किया होगा ओर वो कितना बड़ा हैवान होगा जो अपनी हवस का शिकार उस मासूम को बना रहा है जो अभी बोलना भी नहीं जानती, क्या किया कानून ओर सरकार ने दर्द मासूम को अब मिला है सज़ा क्या उसकी जवानी मैं सुनाई जायेगी ?
मैं सवाल करना चाहता हुँ समाज के लोगों से क्या मासूमों के साथ इस तरहां का खेल खेलने वालों को एक मिनट भी जीने का हक़ है ?
क्या उसको हमारा ख़ून पसीने की कमाई की रोटियां जेल मैं बिठाकर खिलाना इस हैवानियत का ईनाम नहीं है ?
क्या ऐसे हैवान को उसी पल ख़त्म नहीं कर देना चाहिए जब उसके ख़िलाफ़ दो सबूत मिले ?
मैं मानवाधिकारवादी हुँ लेकिन उनका जो मानवाधिकार के दायरे मैं मानव के नाते आते हों ऐसे हैवान मानवता के नाम पर कलंक हैं इनको एक सैकिंड भी जीने का अधिकार नहीं !
मैं अपनी बहन बेटियों से गुज़ारिश करूंगा बिल्कुल रोक दें बेटियों को उस देश मैं जन्म देना जहां बेटी हैवानियत का शिकार हों ओर कानून व सरकार जहां तमाशा देखे, क्या ऐसे हैवानों को एक सैकिंड जीने का हक़ नहीं है, पोस्ट को पढ़कर चुपचाप बैठ जाना यही करना बस ?
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