Wednesday 10 January 2018

जब मुस्लमान के पास कुछ है ही नहीं तब किस बात का डर, क्यूं सताते हो भाई ?

एस एम फ़रीद भारतीय
मि० अमेरिका अपनी एक सोची समझी साज़िश को दुनियां के सामने ये कहकर पेश कर रहा है कि दुनियां के मुस्लिम जाहिल ओर कम अक्ल हैं बे-रोज़गार हैं कम पढ़े लिखे है इनके पास कुछ नहीं है ?

तब मि० अमेरिका आप क्यूं परेशान को परेशान कर रहे हैं, क्यूं अपने हथियारों को लेकर दुनियां के इस्लामी मुल्कों मैं घूम रहे हैं क्यूं वहां तबाही मचाये हुए हैं, क्या हथियारों से तालीम
दी जाती है या तरक्की से रोका जाता है ?
अभी मैंने कहीं एक कमेन्ट में पढ़ा किसी पाठक ने लिखा कि मुसलमानों में वैज्ञानिक नहीं होते, मुसलमानों को नोबल पुरस्कार नहीं मिलता या कह लें कि उनका यह कहना था की मुसलमान तरक्की नहीं कर रहे पिछड़े हुए हैं ?
उनका ऐसा कहना हास्यापद इस लिए है की विश्व में ७२ मुसलमान शासित मुल्क है वो कौन चला रहा है ?
क्या वो देश बिन वैज्ञानिक और बिन पढ़े लिखे लोगों के बिना चल रहे हैं ? एक और अमरीका उन देशों की तरक्की की गवाही देता है की इन्होने ने रासायनिक हथियार बना लिए हैं, न्यूक्लियर ताक़तों को बढ़ा रहे हैं जो बिना वैज्ञानिकों से संभव नहीं, इससे साफ़ दिखता है कि यह कमेन्ट खुद किसी अज्ञानी का है या हमको फरेब देने की कोशिश की जा रही है.
कहते हैं ना प्रचार कर मुस्लिमों को उनकी नज़र मैं इतना गिरा दो कि वो ख़ुद अपने को कमज़ोर, लाचार ओर मजबूर मानने लगे !
इस साज़िश से मुस्लमानों को होशियार रहना होगा ओर सोचना होगा अपने बच्चों को एपीजे अब्दुल कलाम बनाकर देश को ताक़त देने के बारे मैं, क्यूंकि पुरानी मिसाल है कि पत्थर उसी पेड़ पर फेंके जाते हैं जिस पेड़ पर फल लगे हो, वरना तो बे फलदार पेड़ों के नीचे सिर्फ़ एक मौसम मैं साये के लिहाज़ से चुपचाप आराम से बैठा जाता है.
इसी सोच को कायम कर अपने को अपनी निगाहों से गिरने से बचायें ओर सोचे जब हम कुछ हैं ही नहीं तब हमसे सामने वाला परेशान क्यूं है, मैं बता दूं ना कल इस्लाम को ख़तरा था ना आज है हां इस्लाम से उन लोगों को ज़रूर ख़तरा है जिनको हराम हलाल मैं फ़र्क नहीं मालूम ओर ऐसे लोगों को इस्लाम का डर होना भी चाहिए.

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