एस एम फ़रीद भारतीय
लाशों की तिजारत करता नहीं,
मुल्क से बगावत करता नहीं,,
डरता हुँ मैं एक रब ओर मुल्क के कानून से,
भूल गये तुम पैसे के ख़ातिर अपने को कि मास्टर हो,
मैं कभी नहीं भूला कि मैं एक पत्रकार हुँ,,
भूल गये वो भी कि मैं इक डाक्टर हुँ क्या इज़्ज़त थी,
मैं कभी नहीं भूला कि मैं एक पत्रकार बना पत्रकार हुँ,,
तुमने ना छोड़े कोई मौके लाशों से सौदागिरी के भी,
मैं कभी नहीं भूला कि मैं कल भी पत्रकार था आज भी हुँ,,
तुम एक मौका पाते ही अपना ज़मीर लुटा बैठे,
मैं हज़ार मौके गवां कर आज भी बस एक पत्रकार हुँ,,
किसके लिए कमाते हो साथ किसके जायेगा सोचा कभी,
फ़रीद ने सोचा बस यही, इसीलिए एक छोटा पत्रकार हुँ,,
तुमको खुशी मिलती होगी ज़रूर ज़मीर बेच दौलत कमाने मैं,
मैं ने बचाया अपना ज़मीर, तभी तो कहता हुँ कि मैं पत्रकार हुँ,,
देश ने तुमको जो मौका दिया वो कुछ कम नहीं,
मैने मौके को भुनाया इसलिए आज भी बस पत्रकार हुँ,,
क़लम चलाता हुँ बेबाक तुम जैसों की हक़ीकत के लिए,
तुम हक़ीकत को ही खा जाते हो चंद दौलत के लिए,,
हां मैं पत्रकार हुँ बस मैं इक पत्रकार हुँ...
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