Tuesday 13 February 2018

सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं ?

हम सर कटा सकते हैं जान दे सकते हैं लेकिन क़ुरआन ओर हदीसों के साथ शरियती कानून मैं बदलाव हर्गिज़ बर्दाश्त नहीं कर सकते ?
*एस एम फ़रीद भारतीय*
इस्लामी कानून मैं बदलाओ की बातें करने वाले समझ लें यही तो इस्लाम की पहचान है जबसे दुनियां बनी है तभी से हमारा कलमा एक नमाज़ एक ओर अल्लाह ओर अब अल्लाह का हुकुम एक है यानि क़ुरआन !

यही वजह है जब तमाम दुनियां मैं एक नमाज़ है एक अज़ान है ओर
एक ही क़ुरआन है, चाहे उस मुल्क की ज़ुबान कुछ भी रही हो हमारे लिए ही नहीं तमाम दुनियां के लिए अल्लाह ने अपने आख़िरी हुकुम क़ुरआन मैं तमाम आलम को जीने के रास्ते बताये हैं, लाखों आसमानी किताबें अल्लाह ज़मीन पर अपने मैसेंजरों के ज़रिये दुनियां मैं इंसानियत के लिए भेज चुका ओर जैसे जैसे दुनियां आगे बढ़ी वैसे वैसे बदलाव होते रहे ओर आख़िर मैं अपनी किताब को पूरा मुकम्मल करके बता दिया कि अब तमाम दुनियां को इस क़ुरआन के बताये रास्ते पर चलना है !
चार आसमानी किताबों के नाम आज हमारे सामने हैं जिनमें तोरेत ज़ुबूर इंजीर ओर क़ुरआन !
तीन किताबों के मानने वालों ने अपनी किताबों मैं सहूलियत के हिसाब से तब्दीली कर ली इसीलिए वो ज़हीफ़ हो गई ओर सबसे आख़िर मैं क़ुरआन आने के बाद वो ख़ुद बा ख़ुद ना मानने वाली हो गई ओर तोरेत ज़ुबूर ओर इंजील के मानने वालों ने क़ुरआन मैं तब्दीली की चुपचाप बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सके !
जानते हैं क़ुरआन मैं तब्दीली या हक़ होने की दलील क्या है ?
क़ुरआन अल्लाह की किताब है इसकी दलील यही है कि ये "क़ुरआन" शब्द का पहला ज़िक्र ख़ुद क़ुरआन में ही मिलता है जहाँ इसका अर्थ है - उसने पढ़ा , या उसने उचारा, यह शब्द इसके सीरियाई समानांतर कुरियना का मतलब लेता है जिसका मतलब होता है ग्रंथों को पढ़ना, हालांकि पाश्चात्य जानकार इसको सीरियाई शब्द से जोड़ते हैं, ज़्यादातर मुसलमानों का मानना है कि इसका मूल क़ुरा शब्द ही है, पर चाहे जो हज़रत मुहम्मद सलल्लाहु अलेयहि वसल्लम के पेदाईश के वक़्त ही यह एक अरबी शब्द बन गया था।
ख़ुद क़ुरआन में इस शब्द का कोई 70 बार ज़िक्र हुआ है, इसके अलावे भी क़ुरआन के कई नाम हैं, इसे अल फ़ुरक़ान (कसौटी), अल हिक्मः (बुद्धिमता), धिक्र/ज़िक्र (याद) और मशहफ़ (लिखा हुआ) जैसे नामों से भी संबोधित किया गया है, क़ुरआन में अल्लाह ने 25 अम्बिया का ज़िक्र किया है।
क़ुरआन में कुल 114 अध्याय हैं जिन्हें सुरा कहते हैं, बहुतसे में इन्हें सूरत कहते हैं, यानि 15वें अध्याय को सूरत 15 कहेंगे, हर अध्याय में कुछ श्लोक हैं जिन्हें आयत कहते हैं, क़ुरआन की 6666 आयतों में से (कुछ के अनुसार 6238) अभी तक 1000 आयतें वैज्ञानिक तथ्यों पर बहस करती हैं।
ऐतिहासिक रूप से यह सिध्द हो चुका है कि इस जमीन पर मौजूद हर क़ुरआन की प्रति वही मूल प्रति की कापी है जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) पर अवतरित मतलब नाज़िल हुई थी, जिसे इस पर यक़ीन न हो वह कभी भी इस की जांच कर सकता है, दुनियां के किसी भी भू भाग से क़ुरआन लीजिए और उसे प्राचीन युग की उन प्रतियों से मिला कर जांच कर लीजिए जो अब तक सुरक्षित रखी हैं, तीसरे ख़लीफ़ा
हज़रत उस्मान (रज़ि.) ने अपने सत्ता समय में हज़रत सिद्दीक़्क़ी अकबर (रज़ि.) द्वारा संकलित क़ुरआन की 9 प्रतियाँ तैयार करके कई देशों में भेजी थी उनमें से दो क़ुरआन की प्रतियाँ अभी भी पूरी तरहां सुरक्षित हैं, एक
ताशक़ंद में और दूसरी तुर्की में मौजूद है, यह 1500 साल पुरानी हैं, इसकी भी जाँच वैज्ञानिक रूप से काराई जा सकती है, फिर यह भी एतिहासिक रूप से प्रमाणित है कि इस किताब में एक मात्रा का भी अंतर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के समय से अब तक नहीं आया है।

हज़रत अली (रज़ि.) ने फरमाया- याद रखो मैंने रसूल अल्लाह (सल्ल.) से सुना है। आप (सल्ल.) ने फरमाया-
खबरदार रहो निकट ही एक बड़ा फ़ितना सर उठाएगा मैंने अर्ज़ किया- इस फ़ितने में निजात का ज़रिया क्या होगा?
फरमाया-अल्लाह की किताब।

इसमें तुमसे पूर्व गुज़रे हुए लोगों के हालात हैं।
तुम से बाद होने वाली बातों की सूचना है।
तुम्हारे आपस के मामलात का निर्णय है।
यह एक दो टूक बात हैं, हंसी दिल्लगी की नहीं है।
जो सरकश इसे छोड़ेगा, अल्लाह उसकी कमर तोड़ेगा।
और जो कोई इसे छोड़ कर किसी और बात को अपनी हिदायत का ज़रिया बनाएगा। अल्लाह उसे गुमराह कर देगा।
ख़ुदा की मज़बूत रस्सी यही है।
यही हिकमतों से भरी हुई पुन: स्मरण (याददेहानी) है, यही सीधा मार्ग है।
इसके होते इच्छाऐं गुमराह नहीं करती हैं।
और ना ज़बानें लड़खड़ाती हैं।
ज्ञानवान का दिल इससे कभी नहीं भरता।
इसे बार बार दोहराने से उसकी ताज़गी नहीं जाती (यह कभी पुराना नहीं होता)।
इसकी अजीब (विचित्र) बातें कभी समाप्त नहीं होंगी।
यह वही है जिसे सुनते ही जिन्न पुकार उठे थे, निसंदेह हमने अजीबोग़रीब क़ुरआन सुना, जो हिदायत की ओर मार्गदर्शन करता है, अत: हम इस पर ईमान लाऐ हैं।
जिसने इसकी सनद पर हां कहा- सच कहा।
जिसने इस पर अमल किया- दर्जा पाएगा।
जिसने इसके आधार पर निर्णय किया उसने इंसाफ किया।
जिसने इसकी ओर दावत दी, उसने सीधे मार्ग की ओर राहनुमाई की।
क़ुरआन का सारा निचोड़ इस एक हदीस में आ जाता है। क़ुरआन धरती पर अल्लाह की अंतिम किताब उसकी ख्याति के अनुरूप है। यह अत्यंत आसान है और यह बहुत कठिन भी है। आसान यह तब है जब इसे याद करने (तज़क्कुर) के लिए पढ़ा जाए। यदि आप की नियत में खोट नहीं है और क़ुरआन से हिदायत चाहते हैं तो अल्लाह ने इस किताब को आसान बना दिया है। समझने और याद करने के लिए यह विश्व की सबसे आसान किताब है। खुद क़ुरआन मे है 'और हमने क़ुरआन को समझने के लिए आसान कर दिया है, तो कोई है कि सोचे और समझे?' (सूर: अल क़मर:17)
दूसरी ओर दूरबीनी (तदब्बुर) की दृष्टि से यह विश्व की कठिनतम किताब है पूरी पूरी ज़िंदगी खपा देने के बाद भी इसकी गहराई नापना संभव नहीं। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह एक समुद्र है। सदियां बीत गईं और क़ुरआन का चमत्कार अब भी क़ायम है। और सदियां बीत जाऐंगी किन्तु क़ुरआन का चमत्कार कभी समाप्त नहीं होगा।
केवल हिदायत पाने के लिए आसान तरीक़ा यह है कि अटल आयतों (मुहकमात) पर ध्यान रहे और आयतों (मुतशाबिहात) पर ईमान हो कि यह भी अल्लाह की ओर से हैं। दुनिया निरंतर प्रगति कर रही है, मानव ज्ञान निरंतर बढ़ रहा है, जो क़ुरआन में कल मुतशाबिहात था आज वह स्पष्ट हो चुका है, और कल उसके कुछ ओर भाग स्पष्ट होंगे।

ख़ुदा का चमत्कार (क़ुदरत)
मौअजज़ा उस चमत्कार को कहते हैं जो किसी नबी या रसूल के हाथ पर हो और मानव शक्ति से परे हो, जिस पर मानव बुध्दि हैरान हो जाए।
हर युग में जब भी कोई रसूल (ईश दूत) ईश्वरीय आदेशों को मानव तक पहुँचता, तब उसे अल्लाह की ओर से चमत्कार दिए जाते थे। हज़रत मूसा (अलै.) को असा (हाथ की लकड़ी) दी गई, जिससे कई चमत्कार दिखाए गये। हज़रत ईसा (अलै.) को मुर्दों को जीवित करना, बीमारों को ठीक करने का मौअजज़ा दिया गया। किसी भी नबी का असल मौअजज़ा वह है जिसे वह दावे के साथ पेश करे। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के हाथ पर सैकड़ों मौअजज़े वर्णित हैं, किन्तु जो दावे के साथ पेश किया गया और जो आज भी चमत्कार के रूप में विश्व के समक्ष मौजूद है, वह है क़ुरआन जिसका यह चेलेंज़ दुनिया के समक्ष अनुत्तरित है कि इसके एक भाग जैसा ही बना कर दिखा दिया जाए। यह दावा क़ुरआन में कई स्थान पर किया गया।
क़ुरआन पूर्ण रूप से सुरक्षित रहेगा, इस दावे को 1500 वर्ष बीत गए और क़ुरआन सुरक्षित है, पूर्ण सुरक्षित है। यह सिद्ध हो चुका है, जो एक चमत्कार है।
क़ुरआन विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरा है, और उसके वैज्ञानिक वर्णनों के आगे वैज्ञानिक नतमस्तक हैं। यह भी एक चमत्कार है। 1500 वर्ष पूर्व अरब के रेगिस्तान में एक अनपढ़ व्यक्ति ने ऐसी किताब प्रस्तुत की जो बीसवीं सदी के सारे साधनों के सामने अपनी सत्यता ज़ाहिर कर रही है। यह कार्य क़ुरआन के अतिरिक्त किसी अन्य किताब ने किया हो तो विश्व उसका नाम जानना चाहेगा। क़ुरआन का यह चमत्कारिक रूप आज हमारे लिए है और हो सकता है आगे आने वाले समय के लिए उसका कोई और चमत्कारिक रूप सामने आए।
जिस समय क़ुरआन अवतारित हुआ उस युग में उसका मुख्य चमत्कार उसका वैज्ञानिक आधार नहीं था। उस युग में क़ुरआन का चमत्कार था उसकी भाषा, साहित्य, वाग्मिता, जिसने अपने समय के अरबों के भाषा ज्ञान को झकझोर दिया था। यहां स्पष्ट करना उचित होगा कि उस समय के अरबों को अपने भाषा ज्ञान पर इतना गर्व था कि वे शेष विश्व के लोगों को अजमी (गूंगा) कहते थे। क़ुरआन की शैली के कारण अरब के भाषा ज्ञानियों ने अपने घुटने टेक दिए।
इंक़लाबी किताब
क़ुरआन ऐसी किताब है जिसके आधार पर एक क्रांति लाई गई। रेगिस्तान के ऐसे अनपढ़ लोगों को जिनका विश्व के नक्शे में उस समय कोई महत्व नहीं था। क़ुरआन की शिक्षाओं के कारण, उसके प्रस्तुतकर्ता की ट्रेनिंग ने उन्हे उस समय की महान शाक्तियों के समक्ष ला खड़ा किया और एक ऐसे क़ुरआनी समाज की रचना मात्र 23 वर्षों में की गई जिसका उत्तर विश्व कभी नहीं दे सकता।
आज भी दुनिया मानती है कि क़ुरआन और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने एक आदर्श समाज की रचना की। इस दृष्टि से यदि क़ुरआन का अध्ययन किया जाए तो आपको उसके साथ क़दम मिला कर चलना होगा। उसकी शिक्षा पर अमल करें। केवल निजी जीवन में ही नहीं बल्कि सामाजिक, राजनैतिक और क़ानूनी क्षैत्रों में, तब आपके समक्ष वे सारे चरित्र जो क़ुरआन में वर्णित हैं, जीवित नज़र आऐंगे। वे सारी कठिनाई और वे सारी परेशानी सामने आजाऐंगी। तन, मन, धन, से जो गिरोह इस कार्य के लिए उठे तो क़ुरआन की हिदायत हर मोड़ पर उसका मार्ग दर्शन करेगी।
अल्लाह की रस्सी
क़ुरआन अल्लाह की रस्सी है। इस बारे में तिरमिज़ी में हज़रत ज़ैद बिन अरक़म (रज़ि.) द्वारा वर्णित हदीस है जिसमें कहा गया है कि क़ुरआन अल्लाह की रस्सी है जो ज़मीन से आसामान तक तनी है। यह शब्द हुज़ूर (सल्ल.) के है जिन्हे हज़रत ज़ैद (रज़ि.) ने वर्णित किया है।
तबरानी में वर्णित एक और हदीस है जिसमें कहा गया है कि एक दिन हुज़ूर (सल्ल.) मस्जिद में तशरीफ लाए तो देखा कुछ लोग एक कोने में बैठे क़ुरआन पढ़ रहे हैं और एक दूसरे को समझा रहे हैं। यह देख कर आप (सल्ल.) के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। आप (सल्ल.) सहाबा के उस गुट के पास पहुंचे और उन से कहा- क्या तुम मानते हो कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई अन्य माबूद (ईश) नहीं है, मैं अल्लाह का रसूल हुँ और क़ुरआन अल्लाह की किताब है? सहाबा ने कहा, या रसूल अल्लाह हम गवाही देते हैं कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई माबूद नहीं, आप अल्लाह के रसूल हैं और क़ुरआन अल्लाह की किताब है। तब आपने कहा, खुशियां मानाओ कि क़ुरआन अल्लाह की वह रस्सी है जिसका एक सिरा उसके हाथ में है और दूसरा तुम्हारे हाथ में।
क़ुरआन अल्लाह की रस्सी इस अर्थ में भी है कि यह मुसलमानों को आपस में बांध कर रखता है। उनमें विचारों की एकता, मत भिन्नता के समय अल्लाह के आदेशों से निर्णय और जीवन के लिए एक आदर्श नमूना प्रस्तुत करता है।
ख़ुद क़ुरआन में है कि अल्लाह की रस्सी को मज़बुती से पकड़ लो। क़ुरआन के मूल आधार पर मुसलमानों के किसी गुट में कोई टकराव नहीं है।
क़ुरआन का हक़ क़ुरआन के हर मुसलमान पर पांच हक़ हैं, जो उसे अपनी शाक्ति और सामर्थ्य के अनुसार पूर्ण करना चाहिए।
1. ईमान: हर मुसलमान क़ुरआन पर ईमान रखे जैसा कि ईमान का हक़ है अर्थात केवल ज़बान से इक़रार नहीं हो, दिल से यक़ीन रखे कि यह अल्लाह की किताब है।
2. तिलावत: क़ुरआन को हर मुसलमान निरंतर पढ़े जैसा कि पढ़ने का हक़ है अर्थात उसे समझ कर पढ़े। पढ़ने के लिए तिलावत का शब्द खुद क़ुरआन ने बताया है, जिसका अरबी में शाब्दिक अर्थ है To Follow (पीछा करना)। पढ़ कर क़ुरआन पर अमल करना (उसके पीछे चलना) यही तिलावत का सही हक़ है। खुद क़ुरआन कहता है और वे इसे पढ़ने के हक़ के साथ पढ़ते हैं। (2:121) इसका विद्वानों ने यही अर्थ लिया है कि ध्यान से पढ़ना, उसके आदेशों में कोई फेर बदल नहीं करना, जो उसमें लिखा है उसे लोगों से छुपाना नहीं। जो समझ में नहीं आए वह विद्वानों से जानना। पढ़ने के हक़ में ऐसी समस्त बातों का समावेश है।
3. समझना: क़ुरआन का तीसरा हक़ हर मुसलमान पर है, उसको पढ़ने के साथ समझना और साथ ही उस पर विचार ग़ौर व फिक्र करना। खुद क़ुरआन ने समझने और उसमें ग़ौर करने की दावत मुसलमानों को दी है।
4. अमल: क़ुरआन को केवल पढ़ना और समझना ही नहीं।
मुसलमान पर उसका हक़ है कि वह उस पर अमल भी करे। व्यक्तिगत रूप में और सामजिक रूप मे भी। व्यक्तिगत मामले, क़ानून, राजनिति, आपसी मामलात, व्यापार सारे मामले क़ुरआन के प्रकाश में हल किए जाऐं।
5. प्रसार: क़ुरआन का पांचवां हक़ यह है कि उसे दूसरे लोगों तक पहुंचाया जाए। हुज़ूर (सल्ल.) का कथन है कि चाहे एक आयत ही क्यों ना हो। हर मुसलमान पर क़ुरआन के प्रसार में अपनी सार्मथ्य के अनुसार दूसरों तक पहुंचाना अनिवार्य है।
अल्लाह रहीम है वही रहम करने वाली है दुआ मैं याद रखें ।
फ़ी अमान अल्लाह

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