Friday, 11 January 2019

एक ज़माना था जब इस्लाम को मानने वाले भी मूर्ति पूजा करने लगे थे...?

एस एम फ़रीद भारतीय
इस्लाम के पांच अहम स्तंभ...?
कलमाये तौहीद- यानी एक अल्लाह और मोहम्मद उनके भेजे हुए दूत हैं इसमें हर मुसलमान का विश्वास होना.
नमाज़- दिन में पाँच बार नियम से नमाज़ अदा करना.
रोज़ा- रमज़ान के दौरान उपवास रखना.
ज़कात- ग़रीबों और ज़रूरतमंद लोगों को दान करना.
हज- मक्का जाना.

हज का इतिहास क्या है ये भी समझ लें ?
लगभग चार हज़ार साल पहले मक्का का मैदान पूरी तरह से निर्जन था, इस्लाम की पाक किताब क़ुरआन जोकि कलामुल्लाह है यानि अल्लाह का कलाम के अनुसार मुसलमानों का ऐसा मानना है कि अल्लाह ने पैग़ंबर अब्राहम अलेयहि सलाम (जिन्हें हम मुसलमान इब्राहीम अयेहि सलाम कहते हैं) को आदेश दिया कि वो अपनी पत्नी हाजरा अलेयहि सलाम और बेटे इस्माइल अलेयहि सलाम को फ़लस्तीन से अरब ले आएं ताकि उनकी पहली पत्नी सारा की ईर्ष्या से उन्हें (हाजरा अलेयहि सलाम और इस्माइल अलेयहि सलाम) बचाया जा सके.
हम मुसलमानों का ये भी मानना है कि अल्लाह ने पैग़ंबर अब्राहम अलेयहि सलाम से उन्हें अपनी क़िस्मत पर छोड़ देने के लिए कहा, उन्हें खाने की कुछ चीज़ें और थोड़ा पानी दिया गया, कुछ दिनों में ही ये सामान ख़त्म हो गया, हाजरा और इस्माइल अलेहि सलाम भूख और प्यास से बेहाल हो गए.
क़ुरआन के अनुसार मायूस हाजरा अलेयहि सलाम मक्का में स्थित सफ़ा और मरवा की पहाड़ियों से मदद की चाहत में नीचे उतरीं, भूख और थकान से टूट चुकी हाजरा गिर गईं और उन्होंने संकट से मुक्ति के लिए अल्लाह से गुहार लगाई.
हम मुसलमानों का विश्वास है कि इस्माइल अलेयहि सलाम ने जब ज़मीन पर पैर पटका तो धरती के भीतर से पानी का एक सोता फूट पड़ा और दोनों की जान बच गई.
हाजरा ने पानी को सुरक्षित किया और खाने के सामान के बदले पानी का व्यापार भी शुरू कर दिया. इसी पानी को आब-ए-ज़मज़म यानी ज़मज़म कुआं का पानी कहा जाता है. मुसलमान इसे सबसे पवित्र पानी मानते हैं और हज के बाद सारे हाजी कोशिश करते हैं कि वो इस पवित्र पानी को लेकर अपने घर लौटें.
जब पैग़ंबर अब्राहम अलेयहि सलाम फ़लस्तीन से लौटे तो उन्होंने देखा कि उनका परिवार एक अच्छा जीवन जी रहा है और वो पूरी तरह से हैरान रह गए.
मुसलमान मानते हैं कि इसी दौरान पैगंबर अब्राहम अलेयहि सलाम को अल्लाह ने एक तीर्थस्थान बनाकर समर्पित करने को कहा. अब्राहम अलेयहि सलाम और इस्माइल अलेयहि सलाम ने पत्थर का एक छोटा-सा घनाकार इमारत निर्माण किया, इसी को काबा कहा जाता है.
अल्लाह के प्रति अपने भरोसे को मज़बूत करने को हर साल यहां मुसलमान आते हैं, सदियों बाद मक्का एक फलता-फूलता शहर बन गया और इसकी एकमात्र वजह पानी के मुकम्मल स्रोत का मिलना था.
धीरे-धीरे लोगों ने यहां अलग-अलग ईश्वर की पूजा शुरू कर दी. पैगंबर अब्राहम अलेहि सलाम के ज़रिए बनाए गए इस पवित्र इमारत में मूर्तियां भी रखी जाने लगीं.
क़ुरआन के अनुसार मुसलमानों का ऐसा मानना है कि इस्लाम के आख़िरी पैगंबर हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सलल्ललाहो अलेयहि वसल्लम (570-632) को अल्लाह ने हुकुम दिया कि वो काबा को पहले जैसी स्थिति में लाएं और वहां केवल अल्लाह की इबादत होने दें.
साल 628 में दुनियां के आख़िरी पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सलल्ललाहो अलेयहि वसल्लम ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ एक यात्रा शुरू की, यह इस्लाम की पहली तीर्थयात्रा बनी और इसी यात्रा में पैग़ंबर अब्राहम अलेयहि सलाम की धार्मिक परंपरा को फिर से स्थापित किया गया, इसी को हज कहा जाता है.
आज भी पूरी दुनियां से लोग हज करने के लिए जाते हैं तब भी जाते थे और जो तरीका उन्होंने वहां इबादत का देखा उसी को देखकर अपने यहां इबादतगाहों का निर्माण करना शुरू कर दिया ये पूरी दुनियां में रहा यानि कि पहले इस्लामी इबादतगाहों में भी मूर्तियां बनाई जाती थीं जिनको बाद में नये हुकुम के साथ जो अल्लाह ने आख़िरी नबी सलल्ललाहो अलेयहि वसल्लम के जरिये दिया तोड़कर नये रूप में बनाया गया.
आज कुछ लोग मक्का में मूर्तिपूजा की बात करके काबा पर अपना दावा पेश करते हैं या जहां मूर्तियां हैं उस जगह को मंदिर नाम देकर अपना होने का दावा करते हैं, तब उनको समझ लेना चाहिए कि वो आज भी उसी अंधकार में जीने वाले लोग हैं जिन तक इस्लाम की सच्चाई नहीं पहुंच पाई और अगर पहुंची भी तो वो अपने को बदल नहीं पाये।
बेशक जो लोग कहते हैं या दावा करते हैं कि काबे शरीफ़ में मूर्तियां थीं वो सही कहते हैं क्यूंकि आख़िरी नबी सलल्ललाहो अलेयहि वसल्लम के आने तक या यूं कहें कि नबूवत मिलने तक उस वक़्त के इस्लाम को मानने वालों ने भी अपनी मर्ज़ी से अपने ईश्वर या नबी के बुत बनाकर उनको पूजना शुरू कर दिया था, क्यूंकि या तो उनके कानों में उस वक़्त के नबी की बात नहीं पहुंच पाई या उन्होंने अनसुना कर दिया.
लेकिन जब अल्लाह ने अपने आख़िरी नबी को दुनियां में भेजा तब अल्लाह ने ये हुकुम भी दिया कि जाकर काबे शरीफ़ से मूर्तियों को हटाया जाये उसे पहले जैसी हालत में किया जाये जो कि हज़रत इब्राहिम अलेयहि सलाम के ज़माने में था और अल्लाह के हुकुम को दुनियां के आखिरी नबी सलल्ललाहो अलेयहि वसल्लम ने पूरा कर इस्लाम में मूर्ति पूजा को पूरी तरहां से बंद करने का हुकुम अपने मानने वालों को दिया जो दुनियां में आज भी अमल में है और दुनियां के आख़िर तक रहेगा।

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