ऐसे बचें डिप्रेशन से
डिप्रेशन सिर्फ बीमारी नहीं है और न ही दिमागी फितूर। यह एक ऐसी मानसिक हालत है, जिसमें पॉजिटिव सोचने और बेहतर रिजल्ट तक पहुंचने की इंसान की कपैसिटी कम
हो जाती है। वक्त पर इलाज और करीबियों का साथ इस बीमारी से निपटने में अहम भूमिका निभाता है।
एक्सपर्ट्स से बात करके डिप्रेशन पर पूरी जानकारी दे रहे हैं विश्वनाथ सुमनः
एक्सपर्ट्स पैनल डॉ. अभिषेक त्रिपाठी, ईएमओ, जिला अस्पताल, नोएडा
डॉ. नंद किशोर, असिस्टेंट प्रोफेसर, साइकायट्री डिपार्टमेंट, संतोष हॉस्पिटल
डॉ. सुशील वत्स, मेंबर, दिल्ली होम्योपथीक अनुसंधान परिषद
सुरक्षित गोस्वामी, योगाचार्य
उलझे सवाल, निराश करने वाले जवाब और अनिश्चितता किसी इंसान को उस मोड़ पर ले जाती है, जहां उम्मीदें काफी बेहद कम नजर आती हैं। जब स्थिति नाजुक मोड़ पर पहुंच जाती है तो नतीजे खतरनाक हो जाते हैं। जरूरत है तो इस पर वक्त रहते ध्यान देने और सही इलाज की।
केस स्टडी-1
दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले पावस (बदला नाम) का 4 साल तक अपनी सहकर्मी के साथ अफेयर रहा। पावस ने अपने घरवालों से शादी की रजामंदी ले ली, लेकिन दिक्कत यह हो गई कि लड़की के घरवाले शादी के लिए राजी नहीं हुए और ऐसे में लड़की ने भी शादी से इनकार कर दिया। ब्रेकअप के बाद पावस डिप्रेशन में चले गए। फिलहाल वह इलाज करा रहे हैं।
केस स्टडी-2
पटना की रिया (बदला नाम) टीचर थीं। शादी के बाद वह नौकरी छोड़कर पति के साथ दिल्ली सेटल हो गईं। उनका एक बेटा भी है। दो साल पहले पता चला कि उनके पति का ऑफिस में अफेयर है। इस बात को लेकर उनका अपने पति से झगड़ा भी हुआ। फैमिली लेवल पर इसे सुलझाने की कोशिश की गई। अब वह मानसिक तौर पर परेशान हैं।
केस स्टडी-3
छोटे शहर से मुंबई गईं 34 साल की सौम्या (बदला नाम) ने अपनी बहन को 6 साल साथ रखा। अचानक जब उनकी बहन ने उनकी मर्जी के खिलाफ लव मैरिज कर ली तो सौम्या डिप्रेशन में चली गईं। फिर उन्होंने काफी दिनों तक दिल्ली में भाई के साथ रहकर इलाज कराया।
बढ़ रहे हैं मामले
ये केस स्टडीज तो बानगी भर हैं। बदलते लाइफस्टाइल में डिप्रेशन की बीमारी अब आम हो रही है। महानगर से निकलकर यह छोटे शहरों और कस्बों तक पहुंच रही है। इसके शिकार न सिर्फ युवा और बुजुर्ग, बल्कि स्कूल जाने वाले स्टूडेंट भी हैं। डॉक्टरों के अनुसार, इसका इलाज सिर्फ दवाओं से नहीं हो सकता। इससे उबरने के लिए परिवार, दोस्त और अपनों के साथ की भी दरकार होती है। साइकॉलजिस्ट मानते हैं कि ऐसी मानसिक हालत अचानक नहीं होती। लंबे वक्त में लाइफस्टाइल, रिश्ते, इमोशंस के साथ बुने गए ताने-बाने में जब सुराख होता है तो उम्मीदें धरी रह जाती हैं। सपने गायब हो जाते हैं। ऐसे हालात में मानसिक तौर पर टूटना लाजमी है।
क्यों होता है यह केमिकल लोचा?
डिप्रेशन की सबसे बड़ी वजह है चिंता और तनाव यानी दिमाग में केमिकल लोचा। इसके लिए आमतौर पर जिम्मेदार हालात हैं:
- प्रियजन से बिछड़ना (मसलन ब्रेकअप, किसी की मौत या तलाक)
- नौकरी छूटना या पैसे-जायदाद का नुकसान
- रिटायरमेंट के बाद खुद को बेकार समझना
- किसी कड़े मुकाबले में हार जाना
- मेहनत के बाद भी उम्मीद के मुताबिक नतीजा न मिलना
- कर्ज बढ़ जाना और उसे चुकाने का जरिया न होना
- भविष्य के प्रति अनिश्चितता
- किसी बड़ी बीमारी या मौत का खौफ आदि।
दरअसल, जब नेगेटिव सोच का दायरा और वक्त बढ़ता है तो इंसान को उदासी घेर लेती है। महानगरीय जीवन में सबसे ज्यादा परेशानी होती है, सपने टूटने से। उससे ज्यादा तकलीफ होती है भरोसा खत्म होने से। सपना और भरोसा, साथी, जॉब या रुपए-पैसे को लेकर हो सकते हैं। प्यार में दिल टूट सकता है और इसका दर्द 21 से 35 साल की उम्र वालों को ज्यादा सताता है। खासकर ऐसे पुरुष या महिला डिप्रेशन के हालात में ज्यादा पहुंचते हैं, जो अपनी फैमिली से लंबे समय तक दूर रहे हैं। गांव-देहात में अपनों की मौत, खेती के खत्म होने, कर्ज और लंबी बीमारी अक्सर लोगों को डिप्रेशन में ले जाती है।
पागलपन नहीं है डिप्रेशन
यह बायो-साइको-सोशल प्रॉब्लम है यानी डिप्रेशन खानदानी भी हो सकता है, जो पीड़ित की पर्सनैलिटी और सामाजिक-पारिवारिक तनाव की वजह से सामने आता है। इस बीमारी और इसके इलाज को लेकर तमाम तरह के कन्फ्यूजन हैं, जिन्हें दूर किया जाना चाहिए। वैसे यह तय है कि डिप्रेशन पागलपन नहीं है। अगर डॉक्टर की सलाह से ली जाएं तो इसकी दवाएं सेफ हैं। दवाओं की लत नहीं पड़ती। इनके साइड इफेक्ट्स भी नहीं हैं। इस मेंटल डिसऑर्डर की चपेट में कोई भी आ सकता है। 3 में से 2 अडल्ट जिंदगी में एक बार डिप्रेशन का शिकार जरूर होते हैं। करीब 4 फीसदी बच्चे भी चिंता की वजह से डिप्रेशन की हालत में पहुंच जाते हैं। हालांकि इनमें से कम ही मामले खतरनाक होते हैं। 4 में से एक महिला और 10 में से एक पुरुष को इलाज की दरकार होती है। इस उदासी का दौर 6 से 8 महीने रहता है। मिनोपॉज और डिलिवरी के बाद भी महिलाएं हॉर्मोनल चेंज की वजह से कई बार डिप्रेशन में आ जाती हैं।
कैसे पहचानें
आपका कोई दोस्त, परिजन या जाननेवाला अगर...
- अक्सर उदास या परेशान रहता हो
- बातों-बातों में खुद को अक्सर कोसता हो
- खुद को बेबस महसूस करता हो
- खूब सोता हो या बिल्कुल नींद न आती हो
- बिल्कुल कम खाता हो या बहुत ज्यादा खाता हो
- उसका वजन अचानक बढ़ रहा हो या तेजी से कम हो रहा हो
- खुशी के मौकों को इग्नोर करता हो
- सिरदर्द और बदन दर्द की शिकायत लगातार करता हो
- चिढ़कर या झल्लाकर जवाब देता हो
तो आप समझें कि उसे आपके साथ और डॉक्टर के इलाज की जरूरत है। ऐसे समय में उससे चिढ़े नहीं, बीमार समझकर उसका साथ दें। उससे जी भरकर बात करें। उसकी हरकतों पर नजर जरूर रखें।
कैसे-कैसे डिप्रेशन
मेजर डिप्रेशनः यह बहुत कॉमन नहीं है। ऐसा किसी का साथ या आदत अचानक खत्म होने पर होता है। इसे आप इमोशनल डिसऑर्डर कह सकते हैं, जहां बीमार खुदकुशी की हद तक जा सकता है।
टिपिकल डिप्रेशनः यह उदासी का वह दौर है, जिसमें बीमार खुशियां और गम न तो शेयर करता है और न ही किसी चीज को इंजॉय करता है।
साइकॉटिक डिप्रेशनः ऐसे हालात में बीमार को अनजान आवाजें सुनाई देती हैं और वह काल्पनिक चीजों में यकीन करने लगता है। वह शक या वहम का शिकार हो जाता है। कई बार वह खुद से बात करता नजर आता है। उसे लगता है कि सब कुछ खत्म हो रहा है।
डिस्थायमियाः जिंदगी सामान्य चल रही होती है लेकिन शख्स अक्सर उदास रहता है। लाइफ में खालीपन महसूस करता है और असंतुष्ट रहता है। अपनी लाइफ को एन्जॉय नहीं करता।
पोस्टपॉर्टमः डिलिवरी के बाद कई बार महिलाओं में डिप्रेशन का भाव घर कर जाता है। यह बहुत ही कॉमन है।
मैनियाः अक्सर उम्मीद के मुताबिक रिजल्ट न आने पर ऐसी ही मायूसी आती है। ऐसा एग्जाम के रिजल्ट, ऑफिस में वर्क लोड और एप्रेजल के बाद देखने को मिलता है।
उदास हो मन तो कुछ यूं करें
- वर्कआउट करें, योग और ध्यान करें
- शराब और सिगरेट से दूर रहें
- अगर कैंडीज या टॉफी पसंद हो तो उसका स्वाद लें
- अपनी हॉबीज को पूरा करने की कोशिश करें
- लोगों से मिलें-जुलें। मुमकिन हो तो किसी से अपनी दिक्कत शेयर करें
- साइकायट्रिक की राय लें। दर्द होने पर पेनकिलर से बचें। डॉक्टर की सलाह लें
- जॉगिंग करें या आउटडोर गेम्स में हिस्सा लें
- अपनी पसंद के गीत सुनें (याद रखें, ये उदासी भरे न हों)
- एफएम रेडियो सुनें।
दारोमदार करीबियों पर
उदास शख्स की सबसे बड़ी जरूरत है किसी का साथ मिलना, जो उसकी भावनाओं को समझे। इससे बड़ी जरूरत है बीमार को दोबारा जीने की इच्छाशक्ति देने की। ऐसी हालत में आप अपने अजीज के साथ रहें। उसकी बातें सुनें, पर जजमेंटल न बनें। ध्यान रहे, अक्सर अकेले रहने के दौरान बीमार को नेगेटिव ख्याल आते हैं, इसलिए दोस्त और परिवार के बीच में रहना तनाव कम कर सकता है। दवा और काउंसलिंग से बड़ा इलाज परिवार और दोस्त हैं।
मत उदास हो दोस्त, मैं हूं ना
- कभी उसे या उसकी/उसके एक्स को बुरा-भला न कहें। ब्रेकअप के बाद भी एक्स की बुराई अच्छी नहीं लगती। आपकी बातों पर वह भरोसा नहीं करेगा।
- डिप्रेशन के दौरान एक सवाल कॉमन है - मेरे साथ ही इतना बुरा क्यों? ऐसे में जब-जब दोस्त ज्यादा उदास हो तो उसका हाथ थाम लें या कंधे पर हाथ रखें ताकि उसे भरोसा हो कि वह अकेला नहीं है। - -
- ब्रेकअप के बाद कपल के पास एक-दूसरे के लिए सैकड़ों सवाल होते हैं। वह बार-बार जवाब के लिए फोन, चैट या मेसेज से एक्स पार्टनर को परेशान कर सकता है। बतौर दोस्त, उसे रोकें क्योंकि साथ छोड़ने वाला कभी सही जवाब नहीं देगा।
- बातों-बातों में उसे बताएं कि वह दुनिया का पहला शख्स नहीं है, जिसे कोई छोड़कर गया है। ऐसे ब्रेकअप के किस्सों से दुनिया भरी पड़ी हैं। अगर कोई उदाहरण आसपास मौजूद हो और वह सामान्य जिंदगी जी रहा हो तो उससे मिलवा भी दें।
- परेशानी में कई बार लोग नशे का सहारा ढूंढते हैं। शराब पीने और स्मोकिंग से रोकें। साथ तो बिल्कुल न दें। कई नामी हस्तियों की अधूरी प्रेम कहानी शराब के गिलास में खत्म हो गई।
- अक्सर डिप्रेशन में बदला लेने का ख्याल आता है इसलिए पीड़ित को अग्रेसिव न होने दें। उसे बताएं कि बदला किसी बात का हल नहीं है।
- जब अग्रेसिव होने लगे तो बीच में डांट-डपट बिल्कुल न करें। कई बार मनोबल तोड़नेवाली बातें उसके गुस्से को बढ़ाती हैं। मारपीट तो बिल्कुल न करें और न करने दें।
- डिप्रेशन के दौरान पीड़ित में त्याग की भावना पैदा होती है। अनमोल रिश्तों, सामान और समय के खोने पर भी वह उसे अपनी किस्मत मानता है। ऐसे हालात में उसे संभालें।
सबसे जरूरी टिप्स
आप किसी स्पर्श, किसी का साथ, किसी से बात, किसी से मजाक यानी फ्लर्टिंग को हल्के में न लें, क्योंकि यह अवचेतन मन (अनकॉन्शस) पर कहीं-न-कहीं असर डालता है। हंसी-खेल में ऐसे रिश्ते डिवेलप करना फौरी मजा देता है मगर बाद में खुद को मजाक की हालत में पहुंचा सकता है। अक्सर लोग इसे छोटी घटना मानकर इग्नोर कर देते हैं। मगर बार-बार दोहराने से आदत बन जाती है, जिसके अचानक छूटने, बिछड़ने और खत्म होने पर मेजर डिप्रेस्ड होने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा खुद की तुलना दूसरों से करने की आदत छोड़ें। आप खुद के लिए स्पेशल हैं, यह जानना जरूरी है।
कब जाएं डॉक्टर के पास
पहले-पहल मन न लगना, उदास रहना जैसे लक्षण देरी करने पर डिप्रेशन का रूप ले लेते हैं। अगर हफ्ते 10 दिन तक उदासी बनी रहे तो अपने फिजिशन से मिल लें। फिर उसकी सलाह पर साइकॉलजिस्ट या साइकायट्रिस्ट से मिलें। आमतौर पर समस्या के शुरू में साइकॉलजिस्ट से मिलने की सलाह दी जाती है और समस्या बढ़ने पर साइकॉलजिस्ट की मदद लेनी पड़ती हैं। हालांकि यह काफी हद तक केस पर भी डिपेंड करता है।
बुरे वक्त का पॉजिटिव इफेक्ट
वक्त सबसे बड़ा टीचर है। बुरा वक्त भी कुछ-न-कुछ सिखा देता है। भावनाओं पर कंट्रोल, दोस्तों की पहचान जैसी कई सीख मिलती हैं। डिप्रेशन के दौरान पहले बीमारी में गुस्सा, फिर बदला और आखिर में व्यंग्य की आदत डिवेलप होती है। साहित्यिक क्षेत्र में यह चर्चा है कि ब्रेकअप के बाद एक साहित्यकार प्रसिद्ध व्यंग्यकार बन गए।
डाइट पर दें ध्यान
डिप्रेशन से निपटने में अच्छी डाइट भी काफी मददगार हैः-
- पोषण से भरपूर खाना खाएं, जिसमें कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ प्रोटीन और मिनरल भी भरपूर हों, जैसे कि ओट्स, गेहूं आदि अनाज, अंडे, दूध-दही, पनीर, हरी सब्जियां (बीन्स, पालक, मटर, मेथी आदि) और मौसमी फल।
- ऐंटि-ऑक्सिडेंट और विटामिन-सी वाली चीजें खाएं, जैसे कि ब्रोकली, सीताफल, पालक, अखरोट, किशमिश, शकरकंद, जामुन, ब्लूबेरी, कीवी, संतरा आदि।
- ओमेगा-थ्री को खाने में शामिल करें। इसके लिए फ्लैक्ससीड्स (अलसी के बीज), नट्स, कनोला, सोयाबीन आदि खाएं।
-देखने में बदरंग खाने के बजाय रंगीन खाने पर फोकस करें जैसे कि गाजर, टमाटर, ब्लूबेरी, ऑरेंज आदि। -पानी खूब पिएं। नारियल पानी, छाछ आदि भी खूब पिएं।- मसालेदार खाने और जंक फूड से दूर रहें।
योग भगाएगा टेंशन
जॉगिंग, स्विमिंग और आउटडोर गेम्स के जरिए तनाव को दूर किया जा सकता है। योग के जरिए भी काफी हद इस हालत से निपटा जा सकता है। इसे करने से पहले किसी योग एक्सपर्ट की सलाह लें। सूर्य प्राणायाम और कपालभाति आप कर सकते हैं। मगर ताड़ासन, कटिचक्रासन, उत्तानपादासन, भरकटासन, भुजंगासन, धनुआसन, मंडूकासन जैसे योग किसी योग्य एक्सपर्ट की देखरेख में करें।
सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार एक संपूर्ण एक्सरसाइज है। इसे करने से शरीर के सभी हिस्सों की एक्सरसाइज हो जाती है। सूर्य नमस्कार सुबह के समय खुले में उगते सूरज की ओर मुंह करके करना चाहिए। इससे शरीर को ऊर्जा और विटामिन डी मिलता है। मानसिक तनाव से भी मुक्ति मिलती है। इसमें कुल 12 स्टेप होते हैं, जिनका शरीर पर अलग-अलग तरह से प्रभाव पड़ता है।
सूर्य नमस्कार करने का तरीका
1. सबसे पहले दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों।
2. सांस भरते हुए अपने दोनों हाथों को ऊपर की ओर कानों से सटाएं और शरीर को पीछे की ओर स्ट्रेच करें।
3. सांस निकालते हुए हाथों को सीधे रखते हुए आगे की ओर झुकें और हाथों को पैरों के राइट-लेफ्ट जमीन से स्पर्श करें। ध्यान रखें कि घुटने सीधे रहें।
4. सांस भरते हुए राइट पैर को पीछे की ओर ले जाएं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। इस स्थिति में कुछ समय तक रुकें।
5. अब सांस धीरे-धीरे छोड़ते हुए लेफ्ट पैर को भी पीछे ले जाएं और दोनों पैर की एड़ियों को मिलाकर शरीर को पीछे की ओर स्ट्रेच करें।
6. सांस भरते हुए नीचे आएं और लेट जाएं।
7. शरीर के ऊपरी भाग को उठाएं और गर्दन को पीछे की ओर करते हुए पूरे शरीर को पीछे की ओर स्ट्रेच करें और कुछ सेकंड तक रुकें।
8. अब पीठ को ऊपर की ओर उठाएं और सिर झुका लें। एड़ी को जमीन से लगाएं।
9. दोबारा चौथी प्रक्रिया को अपनाएं लेकिन इसके लिए राइट पैर को आगे लाएं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाते हुए स्ट्रेच करें।
10. लेफ्ट पैर को वापस लाएं और राइट के बराबर में रखकर तीसरी स्थिति में आ जाएं यानी घुटनों को सीधे रखते हुए हाथों से पैरों के राइट-लेफ्ट जमीन छूएं।
11. सांस भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाकर ऊपर उठें और पीछे की ओर स्ट्रेच करते हुए फिर दूसरी अवस्था में आ जाएं।
12. फिर से पहली स्थिति में आ जाएं
सूर्य नमस्कार शुरुआत में 4-5 बार करना चाहिए और धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 12-15 बार तक ले जाएं। सूर्य नमस्कार पहले किसी एक्सपर्ट से सीखा जा सकता है और फिर घर पर खुद किया जा सकता है।
होम्योपथी भी है कारगर
होम्योपथी डॉक्टर भी केस स्टडी के आधार पर दवा देते हैं। आम तरह के डिप्रेशन के लिए कई बार नीचे लिखी दवाएं दी जाती हैं
(भावुक शख्स): इग्नेशिया (Ignatia)
करियर के कारण टेंशन रखने वाला गुस्सैल शख्सः नक्स-वोमिका (Nux-Væomica)
किसी अपने के इग्नोर करने से दुखी शख्सः पुल्साटिला (Pulsatilla)
जिसे जल्द डिमांड पूरी न होने पर गुस्सा आता होः आर्सेनिकम अल्बम (Arsenicum-Album)
नोटः दवा खाने से पहले डॉक्टर की राय जरूर लें, वरना नुकसान हो सकता है। डोज भी केस के मुताबिक तय होती है।
आयुर्वेद में इलाज
आयुर्वेदाचार्य आर. पी. पाराशर के अनुसार आयुर्वेद में डिप्रेशन के इलाज के लिए रसायन औषधि खाने की सलाह दी जाती है। अक्सर ये रसायन आंवला, ब्राह्मी घृत, शंखपुष्पी, बृहती, कंठकारी, हरड़, सोनाक, कंभारी, पृषपर्णी, बला सालपर्णी, जीवंती, मूदपड़नी, शतावड़ी, मेधा, महामेधा, वृष्भक, मुक्ता, पिपली से बनाए जाते हैं। यह कई चीजों का मिक्सचर है, इसलिए इसे वैद्य की सलाह से ही खाएं। इनका अलग-अलग सेवन भी लाभकारी है। टच और साउंड थेरपी से भी इसका इलाज किया जाता है। कई बार दवा के साथ प्रार्थना, ध्यान, मंत्रों के उच्चारण से ध्वनि तरंग से नेगेटिव हॉर्मोंन्स को खत्म करने की कोशिश की जाती है।
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यह ऐंड्रॉयड ऐप डिप्रेशन के मरीज को बीमारी से निपटने में गाइड का काम करता है।
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डिप्रेशन से निपटने में मददगार टिप्स और जानकारी से भरपूर पेज।
यू ट्यूब
www.youtube.com/watch?v=mIMFL9wRaJE
मन उदास है तो यह विडियो देखें। छोटे बच्चों की मासूम शैतानियां आपके चेहरे पर हंसी ला देंगी।
नोट- ये लेख 2014 को नवभारत मैं प्रकाशित हुआ था...!
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