Thursday, 26 December 2019

संघ का मुस्लिमों से नफ़रत का एक बड़ा कारण ये भी है...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था, तब तत्कालीन "राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद" ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352
के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी.

तब ही स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल कहा गया था, आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई थी, इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित कर दिया गया था, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया, तब जयप्रकाश नारायण जी ने इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था.

मगर जनसंघ के लोगों ने इस आपातकाल का दोषी इंदिरा गांधी से ज़्यादा उस वक़्त के राष्ट्रपति डा फ़ख़रूद्दीन अली अहमद को माना, फ़ख़रुद्दीन अली अहमद जिनका जन्म 3 मई 1905 और मृत्यु 11 फरवरी 1977 को हुई, ये भारत के पांचवे राष्ट्रपति थे, 1925 में नेहरू से इंग्लैन्ड में मुलाकात के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए, उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया, वे 24 अगस्त 1974 से लेकर 11 फरवरी 1977 तक राष्ट्रपति रहे.

फ़ख़रुद्दीन अहमद के दादा खालिलुद्दिन अली अहमद असम के कचारीघाट (गोलाघाट के पास) से थे, अहमद का जन्म 13 मई 1905 को दिल्ली में हुआ। उनके पिता कर्नल ज़लनूर अली थे, उनकी मां दिल्ली के लोहारी के नवाब की बेटी थीं.

अहमद को गोंडा जिल ले के सरकारी हाई-स्कूल और दिल्ली सरकारी हाई-स्कूल में शिक्षित किया गया, उच्च शिक्षा के लिए वे 1923 में इंग्लैंड गए, जहां उन्होंनें सेंट कैथरीन कॉलेज, कैम्ब्रिज में अध्ययन किया, 1928 में उन्होंने लाहौर उच्च न्यायालय में कानूनी अभ्यास आरंभ किया था.

फ़ख़रुद्दीन अली अहमद 1931 से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ गए, जवाहर लाल नेहरू के सुझाव पर वह मुस्लिम आरक्षित सीट पर चुनाव लड़े और जीते, 1938 में बारदोली के नेतृत्व उन्हें वित्तमंत्री भी बनाया गया, 1940 में सत्याग्रह आंदोलन एवं 1942 में भारत छोडो आंदोलन के समर्थन की वजह से जेल गए, उन्होंने तीन साल से ज्यादा समय जेल में बिताया.

असल भारतीय राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1952 में असम से राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने के साथ हुई, इसके बाद 1957 से 1967 तक असम में विधायक रहे, 1971 से दोबारा केंद्रीय राजनीती में आये और कई मंत्रालय संभाले, राष्ट्रपति पद के लिए नामित होने से पहले वह खाद्य एवं कृषि मंत्री के रूप में कार्यरत थे, 1974 में प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने अहमद को राष्ट्रपति पद के लिए चुना और वे भारत के दूसरे मुस्लिम राष्ट्रपति बन गए, 11 फरवरी 1977 को 72 साल की उम्र में हृदयगति रुक जाने से कार्यालय में निधन हो गया.

मगर जनसंघ के पदाधिकारियों और सदस्यों ने फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के मरने के बाद भी अपने दिलों से आपातकाल की नफ़रत को नहीं निकाला और देश के तमाम असमी और देश के मुस्लिमों को फ़ख़रुद्दीन अली अहमद का वंशज ही माना, जो कि आज असल वजह है नफ़रत की, ये भूल रहे हैं मुस्लिमों ने देश के क्या क्या कुर्बानियां दी हैं, एक क़दम वो भी संविधान के रास्ते सुपर पावर प्रधानमंत्री की सिफ़ारिश पर लेना माना ग़लत था, मगर उसकी सज़ा तो सरकार को हटाकर दे दी गई थी...?

सबूत के तौर पर आपको बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति फ़ख़रूद्दीन अली अहमद के भतीजे के बेटे साजिद अली अहमद के ब्यान को भी याद रखें, जिन्होंने कहा कि एनआरसी लिस्ट में हमारे परिवार के 4 लोगों के नाम नहीं हैं, हम 7 सितंबर के बाद अथॉरिटीज के पास जाएंगे और नामों को लिस्ट में शामिल कराने के लिए प्रक्रिया का पालन करेंगे.

इस सबके बाद मैं बस इतना ही कहूंगा कि कल भी मुस्लिम देश का वफ़ादार था और आज भी उतना ही वफ़ादार है और हमेशा रहेगा, सरकारों का क्या ये तो आनी जानी हैं...!
जय हिंद जय भारत

No comments:

Post a Comment

अगर आपको किसी खबर या कमेन्ट से शिकायत है तो हमको ज़रूर लिखें !

सेबी चेयरमैन माधवी बुच का काला कारनामा सबके सामने...

आम हिंदुस्तानी जो वाणिज्य और आर्थिक घोटालों की भाषा नहीं समझता उसके मन में सवाल उठता है कि सेबी चेयरमैन माधवी बुच ने क्या अपराध ...