Sunday, 19 January 2020

भारतीय राष्ट्रीयता (नागरिक्ता) की पहचान क्या है...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"

आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं, आरटीआई के खुलासे से उठे ये सवाल


आरटीआई से खुलासा के बाद उठे सवाल, देश में नागरिकता का प्रमाण क्या है? आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण पत्र अगर नहीं है...

उच्च न्यायलय के वकील अमित सचान को आरटीआई का जवाब देते हुए भारत सरकार नें बताया कि आधार कार्ड में लिखते हैं नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं है, तो फिर नागरिकता का प्रमाण है क्या ? सरकार की मान्यता है कि जो भारत में पैदा हो जायेगा वो नागरिक माना जायेगााा, पासपोर्ट, वोटरकार्ड, आधारकार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस इत्यादि सिर्फ पहचान हेतु हैं, इससे सवाल ये उठा रहा है कि आखिर नागरिकता का हम पर क्या प्रमाण हैै...?


आरटीआई से जवाब मांगनें वाले उच्च न्यायलय के वकील अमित सचान ने कहा कि ऐसे में कई गंभीर सवाल ये है कि देश के तटवर्ती पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश आदि जहां से भारत आना बेहद आसान होता है उनके नागरिक आकर अस्पताल में प्रसव करते हैं वो भी भारत के नागरिक हुए, दो दशक पहले तक जन्म का न अस्पताल से कागज मिलता था न जन्म रजिस्टर की व्यवस्था थी फिर तत्कालीन जन्मे लोगों का नागरिकता प्रमाण कोई नहीं है जैसे एक मामला अभी सामने आया कि दो दशक पहले भारतीय बौध अनुयायी बैंकाक गए थे उनका पासपोर्ट खो गया पर वोटर कार्ड होने के बावजूद बैंकाक नें नागरिकता का प्रमाण नहीं माना और पिछले दो दशक से बैंकाक के जेल में हैं, कई घटनाएं हुई जिसमें आतंकवादी और स्मगलर भारतीय पासपोर्ट बनवा लेते हैं, इसीलिए जनसंख्या मालूम नहीं सिर्फ अनुमानित है.

दशक पहले तक जन्म का न अस्पताल से कागज मिलता था न जन्म रजिस्टर की व्यवस्था थी फिर तत्कालीन जन्मे लोगों का नागरिकता प्रमाण कोई नहीं है जैसे एक मामला अभी सामने आया कि दो दशक पहले भारतीय बौध अनुयायी बैंकाक गए थे उनका पासपोर्ट खो गया पर वोटर कार्ड होने के बावजूद बैंकाक नें नागरिकता का प्रमाण नहीं माना और पिछले दो दशक से बैंकाक के जेल में हैं, कई घटनाएं हुई जिसमें आतंकवादी और स्मगलर भारतीय पासपोर्ट बनवा लेते हैं, इसीलिए जनसंख्या मालूम नहीं सिर्फ अनुमानित है।

माजिक कार्यकर्ता प्रताप चंद्रा का इस पर कहना है कि चौंकानें वाला तथ्य ये है कि न सिर्फ भारत अपितु पकिस्तान सरकार नागरिकता प्रमाणित नहीं करना चाहती क्यूंकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खूफ़िया जासूसों और आतंकवादियों के पास से अगर नागरिकता का प्रमाण बरामद होगा तो सरकारें उसे अपना नागरिक मानने से इनकार नहीं कर सकेंगी जो आज आसानी से करती हैं.

समाजिक कार्यकर्ता प्रताप चंद्रा के मुताबिक नागरिकता का परिणाम न जारी होनें का दुष्परिणाम ये है कि लाखों की तादात में नेपाली और बंगलादेशी नागरिक भारत में तमाम पहचान पत्र आसानी से पाते हैं और बिना वीजा के रह रहे हैं जिससे न सिर्फ अराजकता और अपराध बढ़ रहा है अपितु उनके किसी राष्ट्रप्रेम के बिना निवास करनें से उपजी आर्थिक व सामजिक समस्या भी दिन ब दिन बढ़ रही है.

हाई कोर्ट अधिवक्ता अमित सचान ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 84 में स्पष्ट कहा गया है कि चुनाव हेतु प्रत्याशी बनने के लिए देश का नागरिक और वोटर लिस्ट में नाम होना चाहिये इस आधार से तो आज़ादी से अब तक हमारे सांसद विधायक प्रधानमन्त्री आदि गैर सवैधानिक होंगे क्यूंकि सवाल खड़ा है कि नागरिकता का प्रमाण क्या दिया था प्रत्याशियों नेे.


भारतीय नागरिकों के लिये भारतीय राष्ट्रिकता विधि (इंडियन नेशनैलिटी लॉ) के अनुसार भारत का संविधान पूरे देश के लिए एकमात्र नागरिकता उपलब्ध कराता है, नागरिकता से सम्बन्धित प्रावधानों को भारत के संविधान के द्वितीय भाग के अनुच्छेद 5 से 11 में दिया गया है, प्रासंगिक भारतीय कानून नागरिकता अधिनियम 1955 है, जिसे नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 1986, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 1992, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2003 और नागरिकता (संशोधन) अध्यादेश 2005 के द्वारा संशोधित किया गया है.

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2003 को 7 जनवरी 2004 को भारत के राष्ट्रपति के द्वारा स्वीकृति प्रदान की गयी और 3 दिसम्बर 2004 को यह अस्तित्व में आया, नागरिकता (संशोधन) अध्यादेश 2005 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित किया गया था और यह 28 जून 2005 को अस्तित्व में आया.

जन्म के द्वारा नागरिकता
26 जनवरी 1950 के बाद परन्तु 1 जुलाई 1947 से पहले भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति जन्म के द्वारा भारत का नागरिक है.

1 जुलाई 1947 को या इसके बाद भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक है यदि उसके जन्म के समय उसका कोई एक अभिभावक भारत का नागरिक था.



3 December 2004 के बाद भारत में पैदा हुआ वह कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाता है, यदि उसके दोनों अभिभावक भारत के नागरिक हों अथवा यदि एक अभिभावक भारतीय हो और दूसरा अभिभावक उसके जन्म के समय पर गैर कानूनी अप्रवासी न हो, तो वह नागरिक भारतीय या विदेशी हो सकता है.

वंश के द्वारा नागरिकता 26 जनवरी 1950 के बाद परन्तु 10 दिसम्बर 1992 से पहले भारत के बाहर पैदा हुए व्यक्ति वंश के द्वारा भारत के नागरिक हैं यदि उनके जन्म के समय उनके पिता भारत के नागरिक थे और यदि उसके माता या पिता में से कोई भी भारतीय मूल का है तो उस बच्चे को नागरिकता दी जा सकती है.

10 दिसम्बर 1992 को या इसके बाद भारत में पैदा हुआ व्यक्ति भारत का नागरिक है यदि उसके जन्म के समय कोई एक अभिभावक भारत का नागरिक था.

3 दिसम्बर 2004 के बाद से, भारत के बाहर जन्मे व्यक्ति को भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा यदि जन्म के बाद एक साल की अवधि के भीतर उनके जन्म को भारतीय वाणिज्य दूतावास में पंजीकृत ना किया गया हो. कुछ विशेष परिस्थितियों में केन्द्रीय सरकार के अनुमति के द्वारा 1 साल की अवधि के बाद पंजीकरण किया जा सकता है, एक भारतीय वाणिज्य दूतावास में एक अवयस्क बच्चे के जन्म के पंजीकरण के लिए आवेदन देने के साथ अभिभावकों को लिखित में उपक्रम को यह बताना होता है कि इस बच्चे के पास किसी और देश का पासपोर्ट नहीं है.

पंजीकरण द्वारा नागरिकता केन्द्रीय सरकार, आवेदन किये जाने पर, नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के तहत किसी व्यक्ति (एक गैर क़ानूनी अप्रवासी न होने पर) को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है यदि वह निम्न में से किसी एक श्रेणी के अंतर्गत आता है:--

भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले सात साल के लिए भारत का निवासी हो, भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी भी देश या स्थान में साधारण निवासी हो, एक व्यक्ति जिसने भारत के एक नागरिक से विवाह किया है और पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले सात साल के लिए भारत का साधारण निवासी है, उन व्यक्तियों के अवयस्क बच्चे जो भारत के नागरिक हैं, पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति जिसके माता पिता सात साल से भारत में रहने के कारण भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हैं.

पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति, या उसका कोई एक अभिभावक, पहले स्वतंत्र भारत का नागरिक था और पंजीकरण के लिए आवेदन देने से पहले एक साल से वह भारत में रह रहा है.

पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति जो सात सालों के लिए भारत के एक विदेशी नागरिक के रूप में पंजीकृत है और पंजीकरण के लिए आवेदन देने से पहले वह एक साल से भारत में रह रहा है.

एक विदेशी नागरिक देशीयकरण के द्वारा भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है जो कुल पिछले 14 साल में से 12 साल से भारत में रह रहा हो, और आवेदन से पहले उसने 12 महीने का समय भारत में व्यतीत किया हो.

भारत के संविधान की शुरुआत में नागरिकता क्या है, 26 नवम्बर 1949 को भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवासित व्यक्ति भारतीय संविधान के सांगत प्रावधानों के अनुसार स्वतः ही भारत के नागरिक बन गये। (अधिकांश संवैधानिक प्रावधान 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आये) भारतीय संविधान ने पाकिस्तान के उन क्षेत्रों से आने वाले अप्रवासियों की नागरिकता के सम्बन्ध में भी प्रावधान बनाये हैं, जो विभाजन से पहले भारत का हिस्सा थे.

नागरिकता के त्याग को नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 8 के तहत कवर किया जाता है, यदि एक वयस्क भारतीय नागरिकता के त्याग की घोषणा करता है, वह भारतीय नागरिकता खो देता है, इसके अलावा त्याग की दिनांक से ही ऐसे व्यक्ति का अवयस्क बच्चा भी भारतीय नागरिकता खो देता है, जब बच्चा अठारह साल की उम्र में पहुंचता है, उसे फिर से भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार होता है, भारतीय नागरिकता कानून के तहत त्याग की घोषणा के लिए आवश्यक है कि घोषणा करने वाला व्यक्ति "पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त" हो.

भारतीय उच्चायोग, ओटावा, कनाडा के द्वारा जारी किये गए भारतीय पासपोर्ट पर मुहर लगी चेतावनी. नागरिकता की समाप्ति को नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 9 में कवर किया गया है, समाप्ति के लिए प्रावधान अलग हैं और त्याग की घोषणा के प्रावधान से विभेदित हैं.

अधिनियम की धारा 9 (1) के अनुसार भारत का कोई भी नागरिक जो पंजीकरण या समीकरण के द्वारा किसी और देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है, उसकी भारतीय नागरिकता रद्द हो जाएगी. इसमें यह भी प्रावधान है कि भारत का कोई भी नागरिक जो स्वेच्छा से किसी दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है, उसकी भारतीय नागरिकता रद्द हो जायेगी. विशेष रूप से, समाप्ति का प्रावधान त्याग के प्रावधान से अलग है, क्योंकि यह "भारत के किसी भी नागरिक " पर लागू होता है और वयस्कों के लिए ही प्रतिबंधित नहीं है, इसीलिए भारतीय बच्चे भी स्वतः ही अपनी भारतीय नागरिकता को खो देते हैं यदि उनके जन्म के बाद कभी भी वे किसी और देश की नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं, उदाहरण के लिए, समीकरण या पंजीकरण के द्वारा- चाहे किसी अन्य नागरिकता का अधिग्रहण बच्चे के अभिभावकों की कार्रवाई का परिणाम ही क्यों न हो.

नागरिकता नियम 1956 के अनुसार किसी और देश का पासपोर्ट प्राप्त करना भी उस देश की राष्ट्रीयता का स्वैच्छिक अधिग्रहण है, नागरिकता के नियमों की अनुसूची III के नियम 3 के अनुसार, "यह तथ्य कि भारत के एक नागरिक ने किसी दिनांक को किसी अन्य देश की सरकार से पासपोर्ट प्राप्त किया है, इस बात का निर्णायक प्रमाण होगा कि उसने उस देश की नागरिकता को स्वैच्छिक रूप से प्राप्त किया है।" एक बार फिर से, यह नियम लागू होता है यदि बच्चे के लिए उसके अभिभावकों के द्वारा विदेशी पासपोर्ट प्राप्त किया गया है और चाहे इस तरह के पासपोर्ट को प्राप्त करना किसी अन्य देश के कानूनों के अनुसार आवश्यक हो, जो बच्चे को अपना एक नागरिक मानता है (उदाहरण, भारतीय माता पिता का अमेरिका में जन्मा एक बच्चा जो अमेरिकी कानूनों के अनुसार स्वतः ही अमेरिकी नागरिक हो जाता है और इसीलिए उसे विदेश यात्रा के लिए अमेरिकी कानूनों के अनुसार अमेरिकी पासपोर्ट अर्जित करना पड़ता है). इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस व्यक्ति के पास अभी भी भारतीय पासपोर्ट है, वह व्यक्ति जो किसी और नागरिकता को प्राप्त कर लेता है वह उसी दिन से भारतीय नागरिकता खो देता है जिस दिन उसने किसी और देश की नागरिकता या पासपोर्ट अर्जित किया, ब्रिटिश राजनयिक पदों के लिए एक प्रचलित अभ्यास है, उदहारण के लिए, उस आवेदकों से भारतीय पासपोर्ट को ज़ब्त कर भारतीय प्राधिकरणों को लौटा दिया जाये, जो ब्रिटिश पासपोर्ट के लिए आवेदन करते हैं, या जिन्होंने इसे प्राप्त कर लिया है.

गोवा, दमन और दीव के सम्बन्ध में भारतीय नागरिकों के लिए खास नियम हैं, नागरिकता नियम, 1956 की अनुसूची के नियम 3A के अनुसार, "एक व्यक्ति जो नागरिकता अधिनियम 1955 (1955 का 57) की धारा 7 के तहत जारी, दादरा और नगर हवेली (नागरिकता) आदेश 1962, अथवा गोवा, दमन और दीव (नागरिकता) आदेश 1962 के आधार पर भारतीय नागरिक बन गया है और उसके पास किसी अन्य देश के द्वारा जरी किया या पासपोर्ट है, तथ्य कि उसने 19 जनवरी 1963 से पहले अपना पासपोर्ट नहीं लौटाया है, यह इस बात का निर्णायक प्रमाण होगा कि उसने इस दिनांक से पहले स्वेच्छा से उस देश की नागरिकता को प्राप्त कर लिया है.

16 फ़रवरी 1962 को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय की न्यायपीठ ने इज़हार अहमद खान बनाम भारत संघ के मामले में कहा कि "अगर ऐसा पाया जाता है कि व्यक्ति ने समीकरण या पंजीकरण के द्वारा विदेशी नागरिकता प्राप्त की है, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि इस प्रकार के समीकरण या पंजीकरण के परिणामस्वरूप वह भारत का नागरिक नहीं रहेगा.


भारत की विदेशी नागरिकता एक ओसीआई पंजीकरण प्रमाणपत्र का फ्रंट कवर नोट: यह ऐसा दिख सकता है लेकिन पासपोर्ट नहीं है, ना ही यह दोहरी नागरिकता को दर्शाता है।
यह भारतीय राष्ट्रीयता का एक रूप है, जिसके धारक को भारत का विदेशी नागरिक कहा जाता है, भारतीय संविधान दोहरी नागरिकता अथवा दोहरी राष्ट्रीयता को अस्वीकार करता है, अवयस्क इस दृष्टि से अपवाद हैं जहां दूसरी नागरिकता अनायास ही प्राप्त हो जाती है.

भारतीय प्राधिकरणों ने इस कानून की व्याख्या की है कि एक व्यक्ति किसी दूसरे देश का पासपोर्ट नहीं रख सकता अगर उसके पास भारतीय पासपोर्ट है- यहां तक कि एक बच्चे के मामले में जिसे अन्य देश के द्वारा उसका नागरिक होने का दावा किया जाता है और ऐसा हो सकता है कि उस देश के कानूनों के अनुसार उस बच्चे को विदेश यात्रा करने के लिए उस देश के पासपोर्ट की आवश्यकता हो (उदहारण भारतीय माता पिता का अमेरिका में जन्मा एक बच्चा)- और भारतीय अदालतों ने इस मामले पर कार्यकारी शाखा विस्तृत विवेक दिया है, इसलिए, भारत की विदेशी नागरिकता भारत की पूर्ण नागरिकता नहीं है और इस प्रकार से यह दोहरी नागरिकता या दोहरी राष्ट्रीयता को अस्वीकार करता है.

भारत की केन्द्रीय सरकार एक व्यक्ति को आवेदन पर, भारत के एक विदेशी नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है यदि वह व्यक्ति भारतीय मूल का है और ऐसे देश से है जो किसी एक या अन्य रूप में दोहरी नागरिकता की अनुमति देता है, व्यापक रूप से कहा जाये तो "भारतीय मूल का एक व्यक्ति" किसी अन्य देश का नागरिक है जो:

26 जनवरी 1950 को या उसके बाद किसी भी समय भारत का नागरिक था; अथवा
26 जनवरी 1950 को भारत का नागरिक बनने के लिए पात्र था; अथवा एक ऐसे क्षेत्र से था जो 15 अगस्त 1947 के बाद भारत का हिस्सा बन गया; अथवा उपरोक्त वर्णित किसी व्यक्ति का बच्चा या पोता है; अथवा कभी भी पाकिस्तान या बांग्लादेश का नागरिक नहीं रहा है, ध्यान दें कि भारतीय माता पिता के बच्चे स्वतः ही इन आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते और इसलिए स्वतः ओसीआई (भारत की विदेशी नागरिकता) के पात्र नहीं हैं.

भारतीय मिशनों को ऐसे मामलों में 30 दिनों के भीतर भारत की विदेशी नागरिकता देने के लिए प्राधिकृत किया गया है जहां कोई गंभीर अपराध शामिल ना हो जैसे नशीले पदार्थों की तस्करी, नैतिक अधमता, आतंकवादी गतिविधियां या ऐसी कोई गतिविधियां जिनके कारण एक साल से ज्यादा की जेल हो सकती हो.

विदेशी भारतीय नागरिकता उन लोगों को नहीं दी जा सकती, जिन्होंने विदेशी राष्ट्रीयता को प्राप्त किया है, या प्राप्त करने की योजना बना रहें हैं, अथवा उनके पास भारतीय पासपोर्ट भी है, इस कानून के अनुसार आवश्यक है कि भारतीय नागरिक जो विदेशी राष्ट्रीयता लेता है, उसे तुरंत अपना भारतीय पासपोर्ट लौटा देना चाहिए, जो लोग इसके लिए पात्र हैं, वे विदेशी भारतीय नागरिकता के पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकते हैं.

भारत के विदेशी नागरिकों को भारतीय पासपोर्ट करने की कोई योजना नहीं है, हालांकि पंजीकरण का प्रमाणपत्र पासपोर्ट जैसी पुस्तिका में होगा (नीचे दिए गए भारतीय मूल के व्यक्ति के कार्ड के समान) मंत्रिपरिषद ने भारत के पंजीकृत विदेशी नागरिकों को बायोमैट्रिक स्मार्ट कार्ड देने के प्रस्ताव पर काम करने के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय को दिशानिर्देश भी दिए हैं.

भारत का एक विदेशी नागरिक समता के आधार पर गैर-प्रवासी भारतीयों के लिए उपलब्ध सभी अधिकारों और विशेषाधिकारों का लाभ उठा सकता है, इसमें कृषि एवं वृक्षारोपण संपत्ति में निवेश करने या सार्वजनिक कार्यालय रखने का अधिकार शामिल नहीं है, व्यक्ति को अपना मौजूदा विदेशी पासपोर्ट रखना होता है जिसमें नया वीजा शामिल होना चाहिए जो 'यू' वीजा कहलाता है, जो एक बहु प्रयोजन, बहु प्रवेश, वीजा है और जीवन भर चलता है, इसके साथ भारत का विदेशी नागरिक कभी भी, किसी भी प्रयोजन के लिए, कितनी भी समय अवधि के लिए देश का दौरा कर सकता है.

भारत का एक विएशी नागरिक भारत में रहते हुए भी निम्नलिखित अधिकारों का लाभ नहीं उठा पायेगा: (i) मतदान का अधिकार, (ii) राष्ट्रपति कार्यालय, उप राष्ट्रपति कार्यालय, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा या विधान परिषद में सदस्य बनने का अधिकार, (iii) सार्वजनिक सेवाओं (सरकारी सेवाओं) में नियुक्ति का अधिकार.साथ ही भारत के विदेशी नागरिक भीतरी रेखा के परमिट के लिए पात्र नहीं हैं, अगर वे भारत के कुछ विशेष स्थानों की यात्रा करना चाहते हैं तो उन्हें उन्हें एक संरक्षित क्षेत्र परमिट के लिए आवेदन देना होगा.

एक दिलचस्प सवाल यह है कि भारत के विदेशी नागरिक के रूप में पंजीकृत एक व्यक्ति भारत में रहते हुए अपने देश के राजनयिक संरक्षण का अधिकार खो देगा.1930 के राष्ट्रीयता कानून के संघर्ष से सम्बंधित विशेष सवालों पर हेग सम्मलेन का अनुच्छेद 4 कहता है कि "एक राज्य अपने किसी व्यक्ति को ऐसे राज्य के खिलाफ राजनयिक संरक्षण प्रदान नहीं कर सकता जिसकी राष्ट्रीयता ऐसे व्यक्तियों के पास भी हो. यह मामला दो चीजों पर निर्भर करता है: 

पहला क्या भारत की सरकार भारत के विदेशी नागरिकता को सच्ची नागरिकता मानती है और इस आधार पर दूसरे देश के द्वारा राजनयिक संरक्षण का अधिकार समाप्त हो जाता है और दूसरा, क्या व्यक्ति का अपना देश इसे पहचानता है और भारत की अस्वीकृति को स्वीकार करता है, दोनों ही बिंदु संदिग्ध हैं. 

भारत विदेशी नागरिकों को एक स्वतंत्र यात्रा दस्तावेज नहीं देता है परन्तु इसके बजाय दूसरे देश के पासपोर्ट में एक वीजा रख देता है, यदि व्यक्ति केवल दूसरे देश का पासपोर्ट रखने के लिए पात्र है परन्तु भारतीय यात्रा दस्तावेज के किसी भी रूप को नहीं रख सकता, तो इस निष्कर्ष से बच पाना मुश्किल है कि वह व्यक्ति राजनयिक संरक्षण के प्रयोजन के लिए अन्य देश का एकमात्र नागरिक है.

भारत की विदेशी नागरिकता प्राप्त करने पर, ब्रिटिश नागरिक 1981 के ब्रिटिश राष्ट्रीयता अधिनियम की धारा 4B के तहत पूर्ण ब्रिटिश नागरिक के रूप में पंजीकरण नहीं करवा सकते. (जिसके लिए आवश्यक है कि व्यक्ति के पास पंजीकरण के लिए कोई और नागरिकता नहीं है।) यह उन्हें एक अलग तरीके से पूर्ण ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त करने से नहीं रोक सकता और यह उनकी ब्रिटिश नागरिकता को रद्द नहीं करता यदि वे धारा 4B के तहत पहले से पंजीकृत हैं.

भारत के लोक सूचना ब्यूरो ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जो 29 जून 2005 को भारत की विदेशी नागरिकता की योजना का स्पष्टीकरण करती है.

ओसीआई योजना का पूर्ण विवरण भारत सरकार के गृह मंत्रालय वेब पेज पर उपलब्ध है.

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