"एस एम फ़रीद भारतीय"
डिटेंशन सेंटर में नरेश की मौत, मोदी जी के सफ़ेद झूंठ पर तमाचा, सरकार साफ़ क्यूं नहीं कहती भारतवासी ख़तरे में है...?
बीते दिनों असम के डिटेंशन सेंटर में एक और मौत हो गई है, इस मौत के साथ ही पिछले तीन
सालों में डिटेंशन सेंटर में मरने वालों की संख्या 29 पर पहुंच गई है, राज्य के संसदीय कार्य मंत्री चंद्रमोहन पटवारी ने सोमवार को विधानसभा में बताया कि राज्य के छह डिटेंशन सेंटरों में 11,145 लोग बंद हैं. बता दें कि राज्य में विदेशी घोषित किए जा चुके या संदिग्ध विदेशियों को राज्य की छह जेलों- तेजपुर, डिब्रूगढ़, जोरहाट, सिलचर, कोकराझार और गोआलपाड़ा में बने डिटेंशन सेंटर में रखा जाता है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार पटवारी ने यह भी बताया कि इस साल 31 मार्च तक फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने 1,17,164 विदेशी लोगों की पहचान की थी. 1985 से 30 जून 2019 के बीच 29,855 विदेशियों को बाहर निकाला गया, केंद्र की ओर से अपडेशन की प्रक्रिया के लिए 1,288.13 करोड़ रुपये दिए थे, जिसमें से अब तक 1,243.53 रुपये खर्च किए जा चुके हैं. हालांकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए इस अपडेट से जुड़ी कोई भी जानकारी देने से इनकार किया.
फ़िलहाल मरने वाले व्यक्ति का नाम नरेश कोच है, जिनकी उम्र 55 वर्षीय बताई जा रही है, गोलपाड़ा ज़िले के तिकाना पाड़ा के रहने वाले नरेश को अवैध विदेशी घोषित किए जाने के बाद 7 मार्च 2018 को डिटेंशन सेंटर में डाला गया था, पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, नरेश कोच बीमार थे और उन्हें इलाज के लिए गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था, जहां शुक्रवार की शाम उनकी मौत हो गई.
वहीं डिटेंशन सेंटर में हुई नरेश की मौत को लेकर बॉलीवुड एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी थी, उन्होंने ट्विटर के ज़रिए कहा, “हिंदू शख्स, नरेश कोच असम के डिटेंशन सेंटर में दम तोड़ने वाले 29वें व्यक्ति हैं, सहमत, हिंदू खतरे में हैं।”
अब तक मिले सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 से लेकर अक्टूबर 2019 तक डिटेंशन सेंटर में रहने वाले 28 लोगों की मौत हो चुकी है, नवंबर महीने में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया था कि 22 नवंबर 2019 तक 988 विदेशियों को असम के 6 डिटेंशन सेंटर में डाला गया है, हालांकि इन सभी आंकड़ों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में देश में डिटेंशन सेंटर होने की बात से इनकार कर दिया था.
मगर मोदी जी आपका सफ़ेद झूंठ तो पकड़ा गया, आपने तो रामलीला के मंच से चिल्ला चिल्लाकर कहा था कि भारत में कोई डिटेंशन सेंटर है ही नहीं फिर ये मौत कैसे हुई...? गौरतलब है कि बीते साल जुलाई में प्रकाशित एनआरसी के मसौदे में कुल 3.29 करोड़ आवेदनों में से 2.9 करोड़ लोगों का नाम शामिल हुए थे, जबकि 40 लाख लोगों को इस सूची से बाहर कर दिया गया था, उन्ही में से ये मौतें हुई हैं.
उन्हीं में से डिटेंशन कैंप के दौरान बीमारी ( Died at detention Centre ) से मरे दुलाल चंद्र पाल के परिवार के सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सवाल ( Ask to PM Modi ) किया है कि वे बतांए कि पाल कहां मरे थे, पाल के परिवार जनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिटेंशन सेंटर नहीं होने के बयान पर यह सवाल किया था.
दुलाल पाल को विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित किए जाने के बाद डिटेंशन सेंटर में रखा गया था, पाल के 29 वर्षीय बेटे आशीष ने कहा कि यदि भारत में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं हैं तब प्रधानमंत्री को यह बताना चाहिए कि मेरे पिता मरने के पहले दो साल तक कहां रखे गए थे, उन्हें कहां हवालात में रखा गया था, पाल के बेटे ने आगे कहा कि हमारे पास 1956 के कागजात थे फिर भी पिताजी को विदेशी घोषित किया गया और डिटेंशन सेंटर भेज दिया गया.
वहीं डिटेंशन सेंटर में मरे पाल के परिवार ने पीएम मोदी से किए सवाल,डिटेंशन कैंप के दौरान बीमारी ( Died at detention Centre ) से मरे दुलाल चंद्र पाल के परिवार के सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सवाल ( Ask to PM Modi ) किया है कि वे बतांए कि पाल कहां मरे थे, पाल के परिवार जनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिटेंशन सेंटर नहीं होने के बयान पर यह सवाल किया है.
दुलाल पाल को विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित किए जाने के बाद डिटेंशन सेंटर में रखा गया था, पाल के 29 वर्षीय बेटे आशीष ने कहा कि यदि भारत में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं हैं तब प्रधानमंत्री को यह बताना चाहिए कि मेरे पिता मरने के पहले दो साल तक कहां रखे गए थे, उन्हें कहां हवालात में रखा गया था, पाल के बेटे ने आगे कहा कि हमारे पास 1956 के कागजात थे फिर भी पिताजी को विदेशी घोषित किया गया और डिटेंशन सेंटर भेज दिया गया.
न्यायाधिकरण ने घोषित किया था विदेशी
गौरतलब है कि दुलाल पाल को शोणितपुर जिले के तेजपुर स्थित डिटेंशन कैंप में रखा गया था, पाल को विदेशी न्यायाधिकरण ने विदेशी घोषित किया तो 2017 से उन्हें दो साल तक तेजपुर के डिटेंशन कैंप में रखा गया, पाल को गंभीर बीमारी के बाद गुवाहाटी मेडिकल कालेज अस्पताल में भर्तीी कराया गया, जहां 13 अक्तूबर को डिटेंशन में रहते ही उनकी मौत हो गई, आशीष कहता है कि मोदी सरकार अब बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने जा रही है जबकि मेरे पिता भारतीय होते हुए भी विदेशी के रुप में मरे, जो सरकार अपने लोगों के साथ न्याय नहीं कर सकती वह अब विदेशी लोगों को लाकर उन्हें भारतीय बनाने जा रही है जो कि एक विडम्बना है.
पाल की मौत का नहीं मिला प्रमाण पत्र
पाल के सभी परिवारवाले भारतीय के रुप में रह रहे हैं तब पाल को अपने जीवन के अंतिम दिन डिटेंशन सेंटर में गुजारने पड़े, हमें प्रशासन ने भरोसा दिलाया था कि मामले की जांच की जाएगी और तीन महीने में न्याय मिलेगा, अब तक हमें उनकी मौत का प्रमाण पत्र तक नहीं मिला है, उल्लेखनीय है कि पाल के शव को परिवारवालों ने दस दिनों तक लेने से इनकार कर दिया था, परिवारवालों का कहना था कि उन पर बांग्लादेशी होने का जो लेबल चस्पां किया गया है उसे हटाया जाए और भारतीय घोषित किया जाए.
वहीं मशहूर वकील मसूद जमान कहते हैं कि जब प्रशासन की देखरेख में डिटेंशन सेंटर चल रहे हैं तब प्रधानमंत्री इस तरह का सफेद झूठ कैसे बोल सकते हैं, विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया ने कहा कि मोदी के मुंह में झूठ नई बात नहीं है, स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पहली बार 1998 में डिटेंशन सेंटर की स्थापना की बात आई थी, केंद्र ने सभी राज्यों को डिटेंशन सेंटर स्थापित करने का निर्देश दिए थे.
आज सिर शर्म से झुक जाता है जब देश के सर्वोच्च पद पर बैठा शख़्स अपने ही नागरिकों से झूंठ ही नहीं बल्कि सफ़ेद झूंठ बोलता है और तब ज़्यादा शर्म आती है जब उच्च पदों पर जनता की सेवा के लिए बैठे लोग उसकी हां में हां मिलाते हैं, मिलायें भी क्यूं नहीं देश की जनता को गुमराह करना, झूंठ बोलना हमारे भारत में जुर्म थोड़ी है, अगर होता तब देश की वो हालत ना होती जो आज है, लिहाज़ा मेरी मांग है एक कानून झूंठ पर भी बनना चाहिए...!
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