(1) इन नियमों द्वारा अपेक्षित प्रत्येक सूचना महासचिव को सम्बोधित करके लिखित रूप में दी जायेगी, और सूचना देने वाले सदस्य द्वारा हस्ताक्षरित की जायेगी, और राज्य सभा के सूचना कार्यालय में छोड़ दी जायेगी जो कि इस प्रयोजन के लिये
शनिवार, रविवार या सार्वजनिक छुट्टी के दिन को छोड़ कर प्रत्येक दिन, समय-समय पर संसदीय समाचार में अधिसूचित किये जाने वाले समय के लिये खुला रहेगा.
(2) कार्यालय के बन्द होने के बाद छोड़ी गई सूचनायें कार्यालय खुलने वाले अगले दिन दी गई समझी जायेंगी.
224. सूचनाओं और पत्रों का परिचालन
(1) महासचिव प्रत्येक सदस्य को प्रत्येक सूचना या अन्य पत्र की एक प्रति, जिसकी इन नियमों के अनुसार सदस्यों के उपयोग के लिये उपलब्ध कराये जाने की अपेक्षा है, परिचालित करने का भरसक प्रयत्न करेगा.
(2) यदि किसी सूचना या अन्य पत्र की एक प्रति ऐसी रीति से और ऐसे स्थान में रख दी जाये जिसका कि सभापति, समय-समय पर, निदेश दे तो वह सूचना या अन्य पत्र प्रत्येक सदस्य के उपयोग के लिये उपलब्ध किया गया समझा जायेगा.
225. राज्य सभा का सत्रावसान होने पर लम्बित सूचनाओं का व्यपगत होना
राज्य सभा का सत्रावसान होने पर, किसी विधेयक को पुर:स्थापित करने की अनुमति के लिये प्रस्ताव उपस्थित करने के इरादे की सूचनाओं के अतिरिक्त सब लम्बित सूचनायें व्यपगत हो जायेंगी और अगले सत्र के लिये नई सूचनायें देनी पड़ेगी.
परन्तु यदि किसी विधेयक के संबंध में संविधान के अधीन मंजूरी या सिफारिश प्रदान की गई हो और वह मंजूरी या सिफारिश, यथास्थिति प्रवर्तित न रही हो तो उस विधेयक को पुर:स्थापित करने की अनुमति के लिये प्रस्ताव उपस्थित करने के इरादे की नई सूचना का दिया जाना आवश्यक होगा.
226. समिति के समक्ष कार्य, राज्य सभा के सत्रावसान पर व्यपगत नहीं होगा
किसी समिति के समक्ष विचाराधीन कोई कार्य केवल राज्य सभा के सत्रावसान के कारण व्यपगत नहीं होगा और इस प्रकार सत्रावसान होने पर भी समिति कार्य करनी रहेगी.
227. सूचना में संशोधन करने की सभापति की शक्ति
यदि सभापति की राय में किसी सूचना में ऐसे शब्द, वाक्यांश या पद हैं जो तर्कयुक्त, असंसदीय, व्यंग्यात्मक, असंगत, शब्दाडम्बरपूर्ण या अन्यथा अनुपयुक्त हों तो वह स्वविवेक से, ऐसी सूचना में, उसे परिचालित किये जाने से पूर्व, संशोधन कर सकेगा.
किसी प्रस्ताव में कोई ऐसा प्रश्न नहीं उठाया जायेगा जो सारवान् रूप से उस प्रश्न जैसा ही हो जिस पर राज्य सभा उसी सत्र में निर्णय कर चुकी हो.
229. प्रस्ताव का वापस लिया जाना
(1) जिस सदस्य ने कोई प्रस्ताव उपस्थित किया हो, वह उसे राज्य सभा की अनुमति से वापस ले सकेगा.
(2) अनुमति, प्रस्ताव पर नहीं अपितु सभापति द्वारा राज्य सभा की इच्छा मालूम करके व्यक्त की जाएगी। सभापति पूछेगा : 'क्या यह आपकी इच्छा है कि प्रस्ताव वापस लिया जाए ? " यदि कोई असहमति प्रकट न करे तो सभापति कहेगा : 'प्रस्ताव अनुमति से वापस लिया गया।" किन्तु यदि कोई असहमति सूचक स्वर सुनाई दे या कोई सदस्य वाद-विवाद जारी रखने के लिये उठे तो सभापति तुरन्त प्रस्ताव पर मत लेगा :
परन्तु यदि किसी प्रस्ताव पर कोई संशोधन प्रस्थापित किया गया हो तो मूल प्रस्ताव तब तक वापस नहीं लिया जायेगा जब तक कि संशोधन न निबटा दिया गया हो.
230. विलम्बकारी प्रस्ताव
(1) किसी प्रस्ताव के किये जाने के बाद किसी समय कोई सदस्य यह प्रस्ताव कर सकेगा कि प्रस्ताव पर वाद-विवाद को स्थगित कर दिया जाये.
(2) यदि सभापति की राय हो कि वाद-विवाद के स्थगन का कोई प्रस्ताव राज्य सभा के नियमों का दुरूपयोग है तो वह उस पर या तो सभापीठ से तुरन्त मत ले सकेगा या प्रस्ताव को प्रस्थापित करने से इन्कार कर सकेगा.
संशोधन नियम
231. संशोधनों की परिधि
(1) संशोधन उस प्रस्ताव से, जिस पर वह प्रस्थापित किया जाये, सुसंगत तथा उसकी परिधि के भीतर होगा.
(2) ऐसा संशोधन उपस्थित नहीं किया जायेगा जिसका प्रभाव केवल नकारात्मक मत हो.
(3) किसी प्रस्ताव पर कोई संशोधन उसी प्रस्ताव पर किसी पूर्व निर्णय से असंगत नहीं होगा.
232 . संशोधनों की सूचना
किसी प्रस्ताव में संशोधन की सूचना, जिस दिन प्रस्ताव पर विचार किया जाना हो, उससे कम से कम एक दिन पहले दी जायेगी, जब तक कि सभापति संशोधन की ऐसी सूचना के बिना उपस्थित किए जाने की अनुमति न दे दे.
233. संशोधनों का चुना जाना
(1) सभापति किसी ऐसे संशोधन पर मत लेने से इंकार कर सकेगा, जो उसकी राय में इन नियमों का उल्लंघन करता हो.
(2) सभापति को किसी प्रस्ताव के संबंध में प्रस्थापित किए जाने वाले संशोधन चुनने की शक्ति होगी और यदि वह ठीक समझे तो वह किसी सदस्य से, जिसने संशोधन की सूचना दी हो, उस संशोधन के उद्देश्य की ऐसी व्याख्या करने के लिए कह सकेगा जिससे कि वह उस पर कोई निर्णय कर सके.
राष्ट्रपति की सिफारिश या मंजूरी का संवाद भेजने की शब्दावलि
राष्ट्रपति की प्रत्येक सिफारिश या पूर्व मंजूरी मंत्री द्वारा निम्नलिखित शब्दों में संसूचित की जायेगी :-
राष्ट्रपति प्रस्तावित विधेयक, प्रस्ताव, संकल्प या संशोधन के विषय से सूचित किए जाने के बाद विधेयक के पुन:स्थापित किये जाने या संशोधन के उपस्थित किये जाने के लिए अपनी पूर्व मंजूरी प्रदान करते हैं, अथवा राज्य सभा में विधेयक के पुर:स्थापित किये जाने या प्रस्ताव, संकल्प या संशोधन के उपस्थित किये जाने की सिफारिश करते हैं अथवा राज्य सभा से विधेयक पर विचार करने की सिफारिश करते हैं.
और यह राज्य सभा की कार्यवाही में ऐसी नीति से छापा जायेगा, जिसका कि सभापति निदेश दें.
235. नियम जिनका राज्य सभा में पालन किया जायेगा
जब राज्य सभा की बैठक हो रही हो तब कोई सदस्य :-
(1) ऐसी पुस्तक, समाचार-पत्र या पत्र नहीं पढ़ेगा जिसका राज्य सभा की कार्यवाही से संबंध न हो
(2) किसी सदस्य के भाषण करते समय उसमें अव्यवस्थित बात या शोर या किसी अन्य अव्यवस्थित रीति से बाधा नहीं डालेगा
(3) राज्य सभा में प्रवेश करते समय या राज्य सभा से बाहर जाते समय और अपने स्थान पर बैठते समय या वहां से उठते समय भी सभापीठ के प्रति नमन करेगा
(4) सभापीठ और ऐसे सदस्य के बीच से, जो भाषण दे रहा हो, नहीं गुजरेगा
(5) जब सभापति राज्य सभा को संबोधित कर रहा हो तो राज्य सभा से बाहर नहीं जायेगा
(6) सदैव सभापीठ को सम्बोधित करेगा
(7) राज्य सभा को सम्बोधित करते समय अपने सामान्य स्थान पर ही रहेगा
(8) जब वह राज्य सभा में नहीं बोल रहा हो तो शान्त रहेगा और
(9) कार्यवाही में रूकावट नहीं डालेगा, सीत्कार नहीं करेगा, या बाधा नहीं डालेगा और जब राज्य सभा में भाषण दिये जा रहे हों तो साथ साथ उनकी टीका-टिप्पणी नहीं करेगा.
236. जब सदस्य को बोलने का अधिकार होगा
जब कोई सदस्य बोलने के लिए खड़ा हो तो सभापति द्वारा उसका नाम पुकारा जायेगा। यदि एक ही समय पर एक से अधिक सदस्य खड़े हों तो जिस सदस्य का नाम इस तरह पुकारा जाये, उसी को बोलने का अधिकार होगा.
237. राज्य सभा को सम्बोधित करने की रीति
राज्य सभा के समक्ष उपस्थित किसी विषय पर विचार प्रकट करने का इच्छुक सदस्य अपने स्थान से बोलेगा/बोलते समय खड़ा होगा और सभापति को सम्बोधित करेगा:
परन्तु रोग या दुर्बलता के कारण असमर्थ किसी सदस्य को बैठकर बोलने की अनुज्ञा दी जा सकेगी.
238. नियम जिनका बोलते समय पालन किया जायेगा
बोलते समय कोई सदस्य :--
(1) किसी ऐसे तथ्यात्मक विषय का निर्देश नहीं करेगा जो न्याय-निर्णयाधीन हो
(2) किसी सदस्य के विरूद्ध व्यक्तिगत दोषारोप नहीं करेगा
(3) संसद की सभाओं या किसी राज्य विधान मण्डल के आचरण या कार्यवाही के विषय में क्षोभकारी पदावलि का उपयोग नहीं करेगा
(4) राज्य सभा के किसी निश्चय पर, उसे रद्द करने का प्रस्ताव करने के अतिरिक्त, आक्षेप नहीं करेगा
(5) उच्च प्राधिकार वाले व्यक्तियों के आचरण पर तब तक आक्षेप नहीं करेगा, जब तक कि चर्चा उचित शब्दों में रखे गये मूल प्रस्ताव पर आधारित न हो
व्याख्या :- शब्द "उच्च प्राधिकार वाले व्यक्तियों का तात्पर्य उन व्यक्तियों से है जिनके आचरण की चर्चा संविधान के अधीन केवल उचित शब्दों में रखे गये मूल प्रस्ताव पर की जा सकती है या ऐसे अन्य व्यक्तियों से है, जिनके आचरण की चर्चा, सभापति की राय में उसके द्वारा अनुमोदित किये जाने वाले शब्दों में रखे गये मूल प्रस्ताव पर की जानी चाहिए।
(6) वाद-विवाद पर प्रभाव डालने के प्रयोजन से राष्ट्रपति के नाम का उपयोग नहीं करेगा
(7) अभिद्रोहात्मक, राजद्रोहात्मक या मान-हानिकारक शब्द नहीं करेगा
और
(8) अपने भाषण के अधिकार का उपयोग राज्य सभा के कार्य में बाधा डालने के प्रयोजन से नहीं करेगा.
238-क. सदस्यों के विरूद्ध आरोप के संबंध में प्रक्रिया
कोई सदस्य किसी व्यक्ति के विरूद्ध मानहानिकारक या अपराध में फंसाने वाले स्वरूप का कोई आरोप नहीं लगायेगा जब तक कि सदस्य ने सभापति और संबंधित मंत्री को भी इसकी पूर्व सूचना न दी हो ताकि मंत्री उत्तर दिये जाने के प्रयोजन के लिए इस विषय की जांच कर सके.
परन्तु सभापति किसी समय किसी सदस्य को कोई ऐसा आरोप लगाने से मना कर सकेगा यदि उसकी राय में ऐसा आरोप राज्य सभा की गरिमा को घटाने वाला है या उस आरोप को लगाने से कोई लोकहित सिद्ध नहीं होता है.
239. प्रश्न सभापति की मार्फत पूछे जायेंगे
जब चर्चा के दौरान स्पष्टीकरण के प्रयोजनों के लिए या किसी अन्य पर्याप्त कारण से किसी सदस्य को उस समय राज्य सभा में विचाराधीन किसी विषय पर किसी अन्य सदस्य से कोई प्रश्न पूछना हो तो वह सभापति की मार्फत प्रश्न पूछेगा.
सभापति , किसी ऐसे सदस्य के आचरण की ओर, जो वाद-विवाद में बार-बार असंगत बातें करें या जो स्वयं अपने तर्कों की या अन्य सदस्यों द्वारा प्रयुक्त र्कों की उकता देने वाली पुनरूक्ति करता रहे, राज्य सभा का ध्यान दिलाने के बाद उस सदस्य को अपना भाषण बंद करने का निदेश दे सकेगा.
241. वैयक्तिक स्पष्टीकरण
कोई सदस्य, सभापति की अनुज्ञा से, वैयक्तिक स्पष्टीकरण कर सकेगा, यद्यपि राज्य सभा के समक्ष कोई प्रश्न न हो, किन्तु उस अवस्था में कोई विवादास्पद विषय नहीं उठाया जायेगा और कोई वाद-विवाद नहीं होगा.
भाषणों का क्रम तथा उत्तर देने का अधिकार
242. भाषणों का क्रम तथा उत्तर देने का अधिकार
(1) प्रस्ताव उपस्थित करने वाले सदस्य के बोल चुकने के बाद अन्य सदस्य प्रस्ताव पर ऐसे क्रम से बोल सकेंगे जिसमें कि सभापति उनको पुकारें। यदि कोई सदस्य इस प्रकार पुकारे जाने पर न बोले तो फिर उसे, सभापति की अनुज्ञा के बिना, वाद-विवाद के किसी आगे के प्रक्रम में प्रस्ताव पर बोलने का अधिकार नहीं होगा.
(2) उत्तर देने के अधिकार के प्रयोग के अतिरिक्त या इन नियमों द्वारा अन्यथा उपबंधित अवस्था के अतिरिक्त कोई सदस्य किसी प्रस्ताव पर सभापति की अनुज्ञा के बिना, एक बार से अधिक नहीं बोलेगा.
(3) कोई सदस्य, जिसने कोई प्रस्ताव उपस्थित किया हो उत्तर देने के रूप में पुन: बोल सकेगा, और यदि प्रस्ताव किसी गैर-सरकारी सदस्य द्वारा उपस्थित किया गया हो तो संबंधित मंत्री, सभापति की अनुज्ञा से (चाहे वो वाद-विवाद में पहले बोल चुका हो या नहीं), प्रस्तावक के उत्तर देने के बाद बोल सकेगा:
परन्तु इस उपनियम की किसी बात से यह नहीं समझा जायेगा कि किसी विधेयक या संकल्प में संशोधन के प्रस्तावक को सभापति की अनुज्ञा के बिना उत्तर देने का कोई अधिकार मिलता है.
243. सभापति के खड़े होने पर प्रक्रिया
(1) जब कभी सभापति खड़ा हो तो उसे शांतिपूर्वक सुना जायेगा और कोई सदस्य, जो उस समय बोल रहा हो या बोलने वाला हो, तुरन्त बेठ जायेगा.
(2) जब सभापति राज्य सभा को सम्बोधित कर रहा हो तो कोई सदस्य अपने स्थान को नहीं छोड़ेगा.
244. समापन
(1) किसी प्रस्ताव के किये जाने के बाद किसी समय कोई सदस्य प्रस्ताव उपस्थित कर सकेगा कि प्रस्ताव पर अब मत लिया जाये,' और जब तक सभापति को यह प्रतीत न हो कि प्रस्ताव इन नियमों का दुरूपयोग है या उचित वाद-विवाद के अधिकार का उल्लंघन करता है, सभापति प्रस्ताव करेगा कि: "प्रस्ताव पर अब मत लिया जाये."
(2) जहां यह प्रस्ताव कि: "प्रस्ताव पर अब मत लिया जाये", स्वीकृत हो जाये तो उस से आनुषंगिक प्रस्ताव या प्रस्तावों पर, और अधिक वाद-विवाद के बिना तुरन्त मत लिया जायेगा:
परन्तु सभापति किसी सदस्य को उत्तर देने का कोई ऐसा अधिकार दे सकेगा जो उसे इन नियमों के अधीन प्राप्त हो.
245. वाद-विवाद की परिसीमा
(1) जब कभी किसी विधेयक के संबंध में किसी प्रस्ताव पर या अन्य किसी प्रस्ताव पर वाद-विवाद अनुचित रूप से लम्बा हो जाये तो सभापति राज्य सभा का अभिप्राय मालूम करने के बाद वह समय नियत करेगा जिस पर वाद-विवाद समाप्त हो जायेगा.
(2) जब तक वाद-विवाद समय से पूर्व समाप्त न हो गया हो तब तक सभापति नियत समय पर तुरन्त ऐसे समस्त प्रस्तावों पर मत लेगा जो मूल प्रस्ताव पर राज्य सभा के निर्णय का निश्चय करने के लिए आवश्यक हों.
निर्णय के लिए प्रश्न
246. राज्य सभा का निर्णय प्राप्त करने के लिए प्रक्रिया
जिस विषय पर राज्य सभा का निर्णय अपेक्षित हो, उसका निर्णय सदस्य द्वारा किये गये प्रस्ताव पर सभापति द्वारा मत लेकर किया जायेगा.
247. प्रस्ताव का प्रस्थापन तथा उस मत लिया जाना
जब कोई प्रस्ताव किया गया हो तो सभा प्रस्ताव को विचार के लिए प्रस्थापित करेगा और उस पर राज्य सभा के निर्णय के लिए मत लेगा। यदि किसी प्रस्ताव में दो या दो से अधिक पृथक प्रस्थापनायें शामिल हो तो वे प्रस्थापनायें सभापति द्वारा पृथक प्रस्तावों के रूप में प्रस्थापित की जा सकेगी.
किसी प्रस्ताव पर सभापति के "हां वालों" और "ना वालों" की आवाजों का संग्रह कर लेने के बाद कोई सदस्य उस प्रस्ताव पर नहीं बोलेगा.
249. उद्धृत पत्र पटल पर रखे जायेंगे
यदि कोई मंत्री राज्य सभा में किसी ऐसे प्रेषण पत्र या अन्य राज्य पत्र को उद्धृत करे जो राज्य सभा के समक्ष उपस्थित नहीं किया गया हो, तो वह संगत पत्र पटल पर रखेगा.
परन्तु यह नियम ऐसे किन्हीं प्रलेखों पर लागू नहीं होगा जिन्हें मंत्री इस प्रकार का बताये कि उनका प्रस्तुत किया जाना लोकहित के प्रतिकूल होगा.
परन्तु यह और भी कि जब मंत्री ऐसे प्रेषण पत्र या राज्य पत्र का अपने शब्दों में संक्षेप या सारांश बता दे, तो संगत पत्रों को पटल पर रखना आवश्यक नहीं होगा.
250. पटल पर रखे गये पत्र सार्वजनिक होंगे
पटल पर रखे गये समस्त पत्र और प्रलेख सार्वजनिक समझे जायेंगे.
251. मंत्री द्वारा वक्तव्य
किसी मंत्री द्वारा लोक महत्व के किसी विषय पर सभापति की सहमति से वक्तव्य दिया जा सकेगा, किन्तु जिस समय वक्तव्य दिया जाये उस समय कोई प्रश्न नहीं पूछा जायेगा.
252. विभाजन
(1) किसी वाद-विवाद की समाप्ति पर सभापति प्रस्ताव पर मत लेगा और जो प्रस्ताव के पक्ष में हों उन से "हां" और जो प्रस्ताव के विरूद्ध हों, उन से "ना"कहने के लिए कहेगा.
(2) सभापति तब कहेगा: मैं समझाता हूं कि 'हां वालों' ( या यथास्थिति ना वालों ) के पक्ष में है।" यदि किसी प्रस्ताव के निर्णय के संबंध मे सभापति की राय पर आपत्ति न की जाये तो वह दो बार कहेगा: "हां-वालों" ( या यथास्थिति 'ना वालों ) के पक्ष में है।" और राज्य सभा के समक्ष उपस्थित प्रस्ताव का तदनुसार निश्चय हो जायेगा.
(3) यदि किसी प्रस्ताव के निर्णय के संबंध में सभापति की राय पर आपत्ति की जाये तो वह, यदि ठीक समझे, क्रमश: 'हां वाले' तथा 'ना वाले' सदस्यों से अपने अपने स्थान पर खड़े होने के लिए कह सकेगा और वह गणना हो जाने के बाद राज्य सभा का निश्चय घोषित कर सकेगा। ऐसी दशा में मत देने वालों के नाम अभिलिखित नहीं किये जायेंगे.
(4) (क) यदि किसी प्रस्ताव के निर्णय के संबंध में सभापति की राय में आपत्ति की जाये और वह उपनियम (3) में उपबंधित मार्ग को अंगीकार न करे तो वह "विभाजन" किये जाने का आदेश देगा.
(ख) दो मिनट बीतने पर वह प्रस्ताव पर दूसरी बार मत लेगा और घोषित करेगा कि उसकी राय में विधेयक 'हां वालों' के पक्ष में है या 'ना वालों' के पक्ष में.
(ग) यदि इस प्रकार घोषित राय पर फिर आपत्ति की जाये तो स्चालित मतांकन यंत्र चलाकर अथवा सदस्यों के सभाकक्षों में जाने पर मत लिये जायेंगे.
253. स्वचालित मतांकन यंत्र चला कर विभाजन
(1) यदि नियम 252 के उपनियम (4) के खण्ड ( ख ) के अधीन घोषित राय पर आपत्ति की जाये और सभापति यह निर्णय करे कि स्वचालित मतांकन यंत्र कर मत लिये जायेंगे तो वह निदेश देगा कि मत अभिलिखित किये जायें और तब स्वचालित मतांकन यंत्र चलाया जायेगा और सदस्य अपने नियत स्थान से मतदान हेतु लगाये गये बटन दबा कर अपने मत देंगे.
(2) परिणाम-सूचक पट्ट पर मतदान का परिणाम आ जाने पर महासचिव "हां वालों" तथा "ना वालों" के जोड़ सभापति के सामने उपस्थित करेगा.
(3) विभाजन का परिणाम सभापति द्वारा घोषित किया जायेगा और उस पर आपत्ति नहीं की जायेगी.
(4) जो सदस्य मतदान हेतु लगाये गये बटन को, किसी ऐसे कारण से, जो सभापति के विचार में पर्याप्त हो, दबाकर अपना मत न दे सका, वह सभापति की अनुज्ञा से, यह कहकर कि वह प्रस्ताव के पक्ष में है अथवा विपक्ष में, अपना मत मोखिक रूप से अभिलिखित करा सकेगा.
(5) यदि किसी सदस्य को यह पता चले कि उसने भूल से गलत बटन दबा कर मत दे दिया है, तो यदि वह उसे सभापति की जानकारी में विभाजन का परिणाम घोषित किये जाने से पहले लाये तो उसे अपनी भूल सुधारने की अनुमति दी जा सकेगी.
254. सभाकक्षों (लॉबी) में जाकर विभाजन
(1) यदि नियम 252 के उपनियम ( 4 ) के खण्ड ( ख ) के अधीन घोषित राय पर आपत्ति की जाये और सभापति निर्णय करे कि सदस्यों द्वारा सभाकक्षों में जा कर मत अभिलिखित करवायें जायेंगे तो वह "हां वालों" से दाये सभाकक्ष में जाने के लिए कहेगा और "ना वालों" से बायें सभाकक्ष में जाने के लिए यथास्थिति "हां वालों" या ना वालों" के सभाकक्ष में, प्रत्येक सदस्य अपनी विभाजन संख्या बतायेगा और विभाजन लिपिक, विभाजन सूची में उसकी संख्यापर निशान लगाते हुए, साथ साथ सदस्य का नाम पुकारेगा.
(2) सभाकक्षों में मतदान पूर्ण होने के बाद, विभाजन लिपिक विभाजन सूचियां महासचिव को दे देंगे, जो मतों को गिनेगा और "हां वालों" और "ना वालों" के जोड़ सभापति के सामने उपस्थित करेगा।
( 3 ) विभाजन का परिणाम सभापति द्वारा घोषित किया जायेगा और उस पर आपत्ति नहीं की जायेगी.
(4) कोई सदस्य जो रोग या दुर्बलता के कारण विभाजन सभाकक्ष तक जाने में असमर्थ हो, वह सभापति की अनुज्ञा से, अपना मत या तो अपने स्थान पर या सदस्यों के सभाकक्ष में अभिलिखित करा सकेगा.
(5) यदि किसी सदस्य को यह पता चले कि उसने भूल से गलत सभाकक्ष में मत दे दिया है, तो यदि वह उसे सभापति की जानकारी में विभाजन का परिणाम घोषित किये जाने से पहले लाये, तो उसे अपनी भूल सुधारने की अनुमति दी जा सकेगी.
(6) जब विभाजन लिपिक विभाजन सूचियां मेज पर ले आयें तो कोई सदस्य जिसने उस समय तक अपना मत अभिलिखित न कराया हो, किन्तु जो तब अपना मत अभिलिखित कराना चाहता हो, सभापति की अनुज्ञा से ऐसा कर सकेगा।
सदस्यों का चला जाना तथा निलम्बन.
255. सदस्य का चला जाना
सभापति किसी सदस्य को जिसका व्यवहार उसकी राय में घोर अव्यवस्थापूर्ण हो, तत्काल राज्य सभा से चले जाने का निदेश दे सकेगा और जिस सदस्य को इस तरह चले जाने का आदेश दिया जाये वह तुरन्त चला जायेगा और उस दिन बैठक के अवशिष्ट समय तक अनुपस्थित रहेगा.
256. सदस्य का निलम्बन
(1) यदि सभापति आवश्यक समझे तो वह उस सदस्य का नाम ले सकेगा जो सभापीठ के अधिकार की अपेक्षा करे या जो बार-बार और जान बूझकर राज्य सभा के कार्य में बाधा डालकर राज्य सभा के नियमों का दुरूपयोग करे.
(2) यदि किसी सदस्य का सभापति द्वारा इस तरह नाम लिया जाये तो वह एक प्रस्ताव उपस्थित किये जाने पर, किसी संशोधन, स्थुगन अथवा वाद-विवाद की अनुमति न देकर, तुरन्त इस प्रस्ताव पर मत लेगा कि सदस्य को ( उसका नाम लेकर ) राज्य सभा की सेवा से ऐसी अवधि तक निलम्बित किया जाये जो सत्र के अवशिष्ट भाग से अधिक नहीं होगी.
परन्तु राज्य सभा किसी भी समय, प्रस्ताव किये जाने पर, संकल्प कर सकेगी कि ऐसा निलम्बन समाप्त किया जाये.
(3) इस नियम के अधीन निलम्बित सदस्य तुरन्त राज्य सभा की प्रसीमा के बाहर चला जायेगा.
257. सभापति की राज्य सभा को स्थगित करने या बैठक को निलम्बित करने की शक्ति
राज्य सभा में घोर अव्यवस्था उत्पन्न होने की दशा में सभापति, यदि वह ऐसा करना आवश्यक समझे, उसके द्वारा बताये गये समय के लिए राज्य सभा को स्थगित कर सकेगा या किसी बैठक को निलम्बित कर सकेगा.
258. औचित्य प्रश्न और उन पर निर्णय
(1) कोई सदस्य किसी समय कोई औचित्य प्रश्न सभापति के निर्णय के लिए
प्रस्तुत कर सकेगा, किन्तु ऐसा करते हुए वह स्वयं को प्रश्न के कथन तक ही सीमित रखेगा.
(2) सभापति उन समस्त औचित्य प्रश्नों का, जो पैदा हों, निर्णय करेगा और उसका निर्णय अन्तिम होगा.
259. सभापति व्यवस्था बनाये रखेगा और निर्णयों का प्रवर्तन करेगा
सभापति व्यवस्था बनाये रखेगा और अपने निर्णयों के प्रवर्तन के प्रयोजन के लिए उसे सब आवश्यक शक्तियां प्राप्त होंगी.
260. राज्य सभा की कार्यवाही का विवरण तैयार किया जाना तथा उसका प्रकाशन
महासचिव राज्य सभा की प्रत्येक बैठक की कार्यवाही का पूरा विवरण तैयार करवायेगा और उसे यथासाध्य ऐसे रूप में तथा ऐसी रीति से प्रकाशित करेगा जिसका कि सभापति, समय-समय पर, निदेश दे.
261. कार्यवाही में से शब्दों को निकाला जाना
यदि सभापति की यह राय हो कि वाद-विवाद में किसी ऐसे शब्द या शब्दों को प्रयुक्त किया गया है, जो मानहानिकारक या अशिष्ट या असंसदीय या गरिमारहित है या हैं तो वह, स्वविवेक से, आदेश दे सकेगा कि ऐसे शब्द या शब्दों को सभा की कार्यवाही के विवरण में से निकाल दिया जाये.
262. कार्यवाही में से निकाले गये शब्दों का संकेत, राज्यसभा की कार्यवाही में से इस तरह निकाले गये अंश को तारांक द्वारा दर्शाया जायेगा और कार्यवाही में निम्नलिखित व्याख्यात्मक पादटिप्पण समाविष्ट किया जायेगा.
263. लोक सभा के पदाधिकारियों का राज्य सभा में प्रवेश
लोक सभा सचिवालय के कर्मचारियों में से किसी पदाधिकारी को राज्य सभा की बैठक के दौरान राज्य सभा भवन में प्रवेश करने का अधिकार होगा.
264. अनजान व्यक्तियों का प्रवेश
राज्य सभा की बैठकों के दौरान राज्य सभा के उन भागों में, जो केवल सदस्यों को उपयोग के लिए ही रक्षित न हों, अनजान व्यक्तियों का प्रवेश सभापति द्वारा दिये गये आदेशों के अनुसार विनियमित किया जायेगा.
265. अनजान व्यक्तियों का चला जाना
सभापति, जब कभी वह ठीक समझे, अनजान व्यक्तियों को राज्य सभा के किसी भाग से चले जाने का आदेश दे सकेगा।
अवशिष्ट शक्तियां
266. अवशिष्ट शक्तियां
ऐसे सब विषयों जिनका इन नियमों में विशिष्ट रूप से उपबन्ध न किया गया हो और इन नियमों के विस्तृत प्रवर्तन से सम्बन्धित सब प्रश्न ऐसी नीति से विनियमित किये जायेंगे जिसका कि सभापति समय-समय पर निदेश दे.
267. नियमों का निलम्बन
"कोई सदस्य, सभापति की सहमति से, यह प्रस्ताव कर सकेगा कि उस दिन राज्य सभा के समक्ष सूचीबद्ध कार्य से संबंधित किसी प्रस्ताव पर किसी नियम का लागू होना निलम्बित कर दिया जाए और यदि वह प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो संबंधित नियम उस समय के लिए निलम्बित कर दिया जाएगा.
परन्तु यह और कि यह नियम उस मामले में लागू नहीं होगा जहां नियमों के किसी विशेष अध्याय के अधीन किसी नियम के निलम्बन के लिए पहले ही कोई विशिष्ट उपबंध किया गया हो."
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