दोस्तों बात बहुत ही अजीब सी लग रही होगी मगर ये सच है, आज जनता ही नहीं देश भी ख़ून को आंसू रो रहा है, किसान अपनी मांगों को लेकर इस कड़कड़ाती ठंड मैं अपनी जान पर ही नहीं खेल रहे बल्कि जान वहां भी रहे हैं, मगर सत्ता मैं बैठे लोग जिनके सहारे या यूं कहूं जिनको बहकाकर सत्ता तक पहुंचे वो गूंगे बहरे बने बैठे हैं, जबकि कड़वा सच यही है वो भी पिछली सरकार को आन्दोलन से घेर कर सत्ता पाने मैं सफ़ल हुए थे.
मगर आज वही सत्ता को नशे मैं चूर अपने ख़ुद को कानून को जबरन किसानों पर थोपने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं, क्यूंकि सत्ता और सत्ताधारियों की पोशाक ही बस साफ़ होती है जबकि कुछ को छोड़ बाकी ज़्यादातर अंदर से दाग़दार होते हैं और मौजूदा सरकार ने तो बड़े से बड़े दाग़ी को दाग़ धोकर उनको उजला बनाकर रखा हुआ है, ये बात मैने कोई नई नहीं कही बल्कि वही कही है जो आप सब जानते तो हैं मगर भूलने की बीमारी की ख़ातिर मजबूर हैं.
रही बात चुनावों की तब चुनावों को महंगा किया ही इसलिए है कि सफ़ेदपोश और ईमानदार चुनाव लड़ ही ना सके, लेकिन अगर किसान मज़दूर ने ये ज़िम्मेदारी अपने कांधो पर ले ली तब देश मैं चुनाव ही सस्ता नहीं होगा, बल्कि संविधान को दायरे मैं जनहित को लिए ज़रूरत को हिसाब से नये कानून बनायेगा, साथ ही अपनों को लिए कामयाबी को नये रास्ते खोल मंज़िल को आसान कर दुनियां मैं भारत या डंका बजायेगा, दुनियां का हर आदमी भारत को सलाम करने पर मजबूर होगा जानते हो क्यूं...?
क्यूंकि देश का असल नागरिक और हमदर्द अगर देश का किसान और मज़दूर है तब, देश की सरहदों पर अपनी जान की बाज़ी लगाने वाला, हमको चैन की नींद सुलाने वाला भी किसी ना किसी किसान और मज़दूर कि ही बेटा है, और आज का किसान एक पढ़ा लिखा किसान है मगर अफ़सोस जब हमारे बुजुर्ग पढ़े लिखे नहीं थे तब हम पढ़ा लिखा नेता और लीडर चुनते थे, मगर आज जब हम पढ़े लिखे हैं तब हम क्या चुन रहे हैं ये सोच का विषय है...?
देश को सही रास्ते के साथ तरक्की की तरफ़ ले जाने को लिए किसान मज़दूर को ये ज़िम्मेदारी अब अपने हाथों मैं लेनी ही पड़ेगी, उन चालीस करोड़ ग़रीबों की ख़ातिर जो एक वक़्त का ख़ाना नहीं खा पाते, जबकि उन लोगों को हिस्से का अनाज जानबूझकर सड़ा दिया जाता है, महंगाई बढ़ने पर सांसद विधायकों को वेतन भत्ता और बाकी सुविधायें बढ़ाकर दी जाती हैं लेकिन आम जनता का खून ये जनता ते रखवाले ही चूसते हैं.
कानून कहता है बेशक सौ गुनाहगार छूट जायें मगर एक बे गुनाह को सज़ा ना हो मगर साफ़ तौर पर देखा जा सकता है, कि आज हो क्या रहा है, ये सब कब रूकेगा जानते हो जब असल हक़दारों को हाथ मैं सत्ता की कमान होगी, जब एक दर्द को दर्द समझने वाला सत्ता को सिहांसन पर बैठे गा, आज अपने हक़ की आवाज़ उठाने वालों को देखा और सुना क्या कहा गया है, अब वक़्त का तक़ाज़ा है ये साबित करें कि असल मैं कौन क्या है...?
जय हिंद जय भारत
एस एम फ़रीद भारतीय
लेखक सम्पादक और मानवाधिकार कार्यकर्ता
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