Thursday, 7 January 2021

किसान आन्दोलन की सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट क्यूं शाहीनबाग केस की तरहां लम्बा खींच रही है...?

पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले सुनवाई की और प्रदर्शन को किसानों का हक बताया था, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस कानून को होल्ड पर डालने की संभावनाएं तलाशने को भी कहा था, क्या सरकार ने कानून को होल्ड किया...?
आपको बताते हैं सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान 10 बड़े सवाल क्या थे...?

1. सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि क्या सरकार अदालत को यह आश्वासन दे सकती है कि जब तक इस मामले पर कोर्ट सुनवाई न करे, केंद्र कानून को लागू न करें, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस कानून को होल्ड पर डालने की संभावनाएं तलाशने को भी कहा है.

2. तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई टाल दी थी, कोर्ट ने कहा था कि वह किसानों से बात करने के बाद ही अपना फैसला सुनाएगे, तब अदालत में किसी किसान संगठन के न होने की वजह से कमेटी बनाने को लेकर फैसला नहीं हो सका था.

3. आगे इस मामले की सुनवाई दूसरी बेंच करेगी, चूंकि, सुप्रीम कोर्ट में छुट्टी है इसलिए अब मामले की सुनवाई वैकेशन बेंच करेगी, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि प्रदर्शन कर रहे सभी किसान संगठनों के पास नोटिस जाना चाहिए.

4. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि किसानों को प्रदर्शन करने का हक है लेकिन यह कैसे किया जाए इस पर चर्चा की जा सकती है.

5. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम प्रदर्शन के अधिकार में कटौती नहीं कर सकते हैं, केवल एक चीज जिस पर हम गौर कर सकते हैं, वह यह है कि इससे किसी के जीवन को नुकसान नहीं होना चाहिए.

6. सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा था कि हम कृषि कानूनों पर बने गतिरोध का समाधान करने के लिए कृषि विशेषज्ञों और किसान संघों के निष्पक्ष और स्वतंत्र पैनल के गठन पर विचार कर रहे हैं, इस पैनल में पी. साईनाथ, भारतीय किसान यूनियन और अन्य सदस्य हो सकते हैं.

7. यह कमेटी जो सुझाव देगी उसका पालन किया जाना चाहिए, तब तक प्रदर्शन जारी रखा जा सकता है लेकिन यह अहिंसक होना चाहिए.

8. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आप इस तरह से शहर को ब्लॉक नहीं कर सकते और न ही हिंसा भड़का सकते हैं, कोर्ट ने कहा कि हम किसानों के विरोध-प्रदर्शन के अधिकार को सही ठहराते हैं, लेकिन विरोध अहिंसक होना चाहिए.

9. सीजेआई ने कहा कि दिल्ली को ब्लॉक करने से शहर के लोगों को भूखा रहना पड़ सकता है, आप किसानों का मकसद बातचीत के जरिए भी पूरा हो सकता है, सिर्फ प्रदर्शन करने से कुछ नहीं होगा.

10. तीन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि वो फिलहाल कानूनों की वैधता तय नहीं करेगा। कोर्ट ने कहा कि अगर किसान और सरकार वार्ता करें तो विरोध-प्रदर्शन का उद्देश्य पूरा हो सकता है और हम इसकी व्यवस्था कराना चाहते हैं.

पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रदर्शन करने के अधिकार में कोई अवरोध तब तक नहीं हो सकता जब तक वह अहिंसक आंदोलन हो, जब तक प्रदर्शन से किसी की जिंदगी और संपत्ति को नुकसान न पहुंचाया जाए प्रदर्शन में अवरोध पैदा नहीं किया जा सकता है, अदालत ने कहा कि कोर्ट को अवगत कराया गया है कि तीनों कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है, इन तीनों कानूनों के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में रिट दाखिल की गई है जिस पर सुनवाई होनी है.

सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच बातचीत से मामले के समाधान के लिए हम समझते हैं कि ये सही होगा कि एक कमेटी का गठन किया जाए तो स्वतंत्र व निष्पक्ष हो, इसमें एग्रीकल्चर फिल्ड के लोग हों, इसके लिए सभी पक्षकारों को सुनना जरूरी है, कमेटी के बारे में सभी पक्षकार सुझाव देंगे.

सुप्रीम कोर्ट में किसानों पर पुलिस द्वारा अटैक किए जाने के खिलाफ 35 स्टूडेंट द्वारा पत्र पिटिशन दाखिल किया गया है जिस पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई का फैसला किया है, आरोप है कि किसानों पर पैरा मिलिट्री फोर्स और पुलिस ने तब अटैक किया जब किसान नए कृषि कानूनों का दिल्ली बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, इस बारे में पंजाब यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट की ओर से सुप्रीम कोर्ट को लेटर लिखा गया है.

पंजाब यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर ह्यूमैन राइट्स एंड ड्यूटी के स्टूडेंट ने सुप्रीम कोर्ट को लेटर लिखा है और किसानों का मामला उठाते हुए गुहार लगाई है कि अदालत इसमें दखल दें, पत्र में कहा गया है कि किसानों ने कृषि कानून का विरोध किया है और इस कारण अपने घर से वह दिल्ली मार्च करते हुए निकले हैं इस बात को दो महीने बीत चुके हैं लेकिन अभी तक कोई रास्ता नहीं निकला है, अब किसानों पर पुलिस द्वारा अटैक किया जा रहा है, पत्र में कहा गया है कि सरकार और मीडिया का एक वर्ग किसानों की समस्याओं को सुनने के बजाय उन्हें अलगावादी घोषित करने में लगे हैं.

किसानों का पूरा प्रदर्शन शांतिपूर्ण है लेकिन सरकार और मीडिया का व्यवहार अजीब है और किसानों को अलगाववादियों के साथ जोड़ रही है। लेटर में कहा गया है कि किसानों पर पुलिस और पैरा मिलिट्री ने बल प्रयोग किया बावजूद इसके किसानों ने उन्हें लंगर में खाने का न्योता दिया। किसानों पर वाटर कैनन का प्रयोग किया गया है और ऐसे में वाटर कैनन के प्रयोग की जांच कराई जाए। आंसू गैस के गोले छोड़े गए हैं और किसानों पर लाठीचार्ज किया गया है। पिटिशन में कहा गया है कि किसानों के खिलाफ दिल्ली पुलिस और हरियाणा पुलिस ने जो भी केस दर्ज किया है वह वापस लिया जाना चाहिए। ये तमाम केस राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर दर्ज किए गए हैं।

पत्र में मीडिया के एक वर्ग के खिलाफ भी एक्शन की मांग की गई है और कहा गया है कि मीडिया के कुछ लोग जानबूझकर वहां गलत फहमी पैदा कर रहे हैं और ध्रुवीकरण की नाकाम कोशिश कर रहे हैं. 

गौरतलब है कि इससे संबंधित मामले को पहले भी सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर चुकी है, 17 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रदर्शन करना मौलिक अधिकार है, किसानों के प्रदर्शन मामले में दिए अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम साफ करना चाहते हैं कि अदालत प्रदर्शन करने के सवाल में दखल नहीं देने जा रही है, दरअसल प्रदर्शन का अधिकार मौलिक अधिकार का पार्ट है और प्रदर्शन पब्लिक ऑर्डर के दायरे में हो सकता है, हमारा मत है कि किसानों का इस स्टेज पर प्रदर्शन की इजाजत होनी चाहिए और उसमें अवरोध पैदा नहीं किया जा सकता जब तक कि प्रदर्शनकारी शांति भंग नहीं करते...!

मगर अमर उजाला की ख़बर के अनुसार अब अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस आन्दोलन को कोरोना काल के मरकज़ से जोड़ा है तब ये दुखद है, क्यूंकि मरकज़ के दोषियों को बड़ी अदालत बाईज्ज़त बरी कर चुकी है, और खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी तब कहा था कि महामारी को किसी धर्म विशेष से जोड़ना दुखद है, मगर आज गोदी मीडिया क्या कह रही है वो सब कानून और संविधान का मज़ाक है, जो लोकतंत्र के लिए घातक है...!
जय हिंद जय भारत 
जय जवान जय किसान.

एस एम फ़रीद भारतीय 
सम्पादक- एनबीटीवी इंडिया डॉट इन
smfaridbharti@gmail.com

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