अभी कुछ दिन पहले कुछ शादियों मैं जाने का मौका मिला, वहां के बदलते हालातों को देख जहां कुछ ख़ुशी का अहसास हुआ तो कुछ पल अफ़सोस के भी रहे, ख़ुशी इसलिए कि जाति प्रथा को लोग छोड़कर अब धर्म के आधार पर शादियां कर रहे हैं, वहीं अफ़सोस इस बात का कि दिखावा इन ख़ुशियों पर भारी पड़ रहा है, ये अंर्तजाति शादियां जहां ख़ुशी का सबब बन रही हैं वहीं दिखावा इन शादियों की ख़ुशियों पर कुछ भारी पड़ रहा है, आज नज़र डालते हैं इन बदलते हालातों पर कि कैसे इन रिश्तों की खटास को रोकने की कोशिश की जा सकती है.
बात शुरू करते हैं लॉक डाउन मैं हुई बिन भीड़ भाड़ वाली