अभी कुछ दिन पहले कुछ शादियों मैं जाने का मौका मिला, वहां के बदलते हालातों को देख जहां कुछ ख़ुशी का अहसास हुआ तो कुछ पल अफ़सोस के भी रहे, ख़ुशी इसलिए कि जाति प्रथा को लोग छोड़कर अब धर्म के आधार पर शादियां कर रहे हैं, वहीं अफ़सोस इस बात का कि दिखावा इन ख़ुशियों पर भारी पड़ रहा है, ये अंर्तजाति शादियां जहां ख़ुशी का सबब बन रही हैं वहीं दिखावा इन शादियों की ख़ुशियों पर कुछ भारी पड़ रहा है, आज नज़र डालते हैं इन बदलते हालातों पर कि कैसे इन रिश्तों की खटास को रोकने की कोशिश की जा सकती है.
बात शुरू करते हैं लॉक डाउन मैं हुई बिन भीड़ भाड़ वाली शादियों से, भारत समेत दुनिया के कई देशों में उस वक़्त लॉकडाउन चल रहा था, भारत मैं 22मार्च को प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि आज रात 12 बजे से पूर्ण रूप से देश मैं जनता कर्फ़्यू रहेगा, जो जहां है वही रूका रहे, अरबों लोग अपने घरों में और जो जहां था वहां ना चाहते हुए भी रहने को मजबूर हो गया.
ऐसे मैं बिना किसी इमरजेंसी के घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा हुआ था, किसी भी कारण से भीड़ लगाने और आयोजन करने की सख़्त मनाही थी, ऐसे में ये सवाल था कि शादियां कैसे हों...? क्यूंकि आमतौर पर शादियों के लिए आयोजन करने और अपने सगे-संबंधियों को बुलाने का प्रचलन रहा है.
उस दौर में शादी की एक चर्चित ख़बर सिंगापुर से आयी थी जिसमें दंपति ने वीडिओ कॉल के ज़रिए शादी की, क्यूंकि वे कुछ दिनों पहले ही चीन के वुहान से लौटे थे और इसलिए मेहमान उनके साथ शादी समारोह में शरीक होना नहीं चाहते थे.
मगर इससे भी अनोखी शादी बिहार में हुई, जिसमें पटना के फ़ुलवारी शरीफ़ में दुल्हन बनीं शदब नसरीन ने उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद में दूल्हे बने बैठे दानिश रज़ा के साथ ऑनलाइन शादी की, शदब के वालिद सलाउद्दीन ने मीडिया को बताया, शादी की तारीख़ पहले ही से 24 मार्च तय थी, मगर अब कोरोना वायरस के कारण सब जगह लॉकडाउन चल रहा है, ऐसे में बारात आ नहीं सकती थी और आयोजन करके शादी कराना संभव नहीं था, क्यूंकि ऐसे में भीड़ जुटने का ख़तरा था, इसलिए हमनें तय किया कि ऑनलाइन ही सारी प्रक्रिया पूरी कर ली जाए.
वालिद सलाउद्दीन के अनुसार ऑनलाइन शादी कराने के लिए बस उन्हें बाहर से मौलवी को घर लेकर आना पड़ा, उनके अलावा सभी घर के सदस्य ही मौजूद थे.
वो कहते हैं, "बस सामने एक स्क्रीन रख दिया गया, उसमें दूल्हा दिख रहा था और इधर दुल्हन बैठी थी, मौलाना ने वीडिओ कॉन्फ्रेंसिंग करके निकाह करा दिया, बस हो गई शादी पूरी, अब जब लॉकडाउन ख़त्म होगा तब दुल्हन विदा होकर जाएगी दूल्हे के पास, यानि अपनी ससुराल.
तब पटना के मौलाना अज़हर इमाम ने ऐसी शादियों को लेकर यह कहा कि भारत में यह मुसलमानों में शादियों का सीज़न है इसलिए ऐसी शादियां आगे और भी होंगी क्योंकि पूरे भारत में अगले 21 दिनों तक लॉकडाउन की घोषणा है.
हमारे पास बिहार में एक और ऐसी ही शादी की ख़बर है जो कैमूर जिले में 25 मार्च को हुई, इसमें भी बारात को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) से आना था, लेकिन लॉकडाउन के कारण परिजनों ने फैसला किया कि निकाह की सारी रस्में ऑनलाइन वीडिओ कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही पूरी होंगी.
वहीं देश से कुछ शादियों की खबरें ऐसी भी आयी थीं, जिनकी शिकायत पुलिस को की गई, क्यूंकि लोगों को कोरोना वायरस के कारण एक जगह भीड़ जुटाने से डर लग रहा था और यह सरकारी आदेश भी है, जिसमें 22 मार्च को पटना के एक मैरेज हॉल में हो रहे निकाह की रस्म को पुलिस ने गुप्त सूचना मिलने पर जाकर रुकवा दिया, भीड़ हटाई गई, पुलिस की मौजूदगी में हॉल से सभी लोगों को निकालकर निकाह कराया गया.
मगर आज जिसकी चर्चा हम कर रहे हैं वो शादी भी ऐसी ही है, जिसमें लड़का लड़की दोनों अलग जातियों से होने के बाद भी घर परिवार की सहमति से ख़ुशी ख़ुशी एक दूसरे के हो तो गये मगर इनका मिलन कुछ लोगों की नज़र मैं खटक रहा है, वो लोग वो हैं जो सख़्ती के साथ जाति प्रथा का दामन थामें हुए हैं, ऐसे लोग इन शादियों को हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करते और मौका तलाश करते रहते हैं कि कैसे इनके बीच नफ़रत की दीवार को खड़ा किया जाये या इनके प्यार के बीच दरार डाली जाये...?
तब इनको लगता है सबसे आसान काम दरार डालने का ख़ातिर तवाज़ो मैं कमी निकालकर एक नफ़रत की छोटी दीवार खड़ी कर दी जाये, वक़्ती तौर पर ऐसा मुमकिन भी हो जाता है, क्यूंकि कितना भी अच्छा इंतज़ाम कर लो कहीं ना कहीं कमी तो रह ही जाती है, और ये बात दोनों तरफ़ महसूस भी होती है कि हमसे या इनसे यहां चूक हो गई, जिसका बदल भी हाथों हाथ ले भी लेते हैं, लेकिन ज़्यादातर समझदार लोग इन बातों को इग्नौर कर जाते हैं.
क्यूंकि हमेशा ही एक दूसरे से बराबरी का मुक़ाबला नहीं किया जा सकता, कहीं ना कहीं कोई ना कोई कसर रह ज़रूर जाती है, तब हमारी सलाह है कि ऐसी बातों को नज़रांदाज कर ज़िंदगी की शुरूआत हंसी ख़ुशी करते हुए हंसी ख़ुशी ही ख़त्म होनी चाहिए, ऐसा ना हो कि सामने वाले को नीचा दिखाने के चक्कर मैं ख़ुद ही नीचे जा गिरें, क्यूंकि ऐसा करने से दो बनते घर बिगड़ जाते हैं, नफ़रत का बीज आगे आने वाले वक़्त को भी नुकसान पहुंचाता है.
ऐसा ही एक शादी मैं देखने को मिला, जब बारात का बहुत ही स्वागत तो तहेदिल से रस्म अदायगी के साथ शुरू हुआ, और मेहमान नवाज़ी मैं भी बेटी वालों ने अपनी तरफ़ से कोई कसर नहीं छोड़ी, मगर फिर भी एक ख़ामी थी जिसको बेटे वाले ने नज़रांदाज किया जबकि वो भी ऐसी ही रस्म हुआ करती है, जैसी बेटी वालों ने बारात के स्वागत करते समय रास्ता रूकाई के नाम पर की थी...!
इस लेख के लिखने का मक़सद भी एक शादी मैं इंतज़ामिया होने के साथ कानों मैं आई एक आवाज़ बड़ी वजह है, "वो आवाज़ थी कि एक रस्म झूंठन मैं देने तो 51000 से ज़्यादा थे, मगर मेज़बानों के इंतज़ाम की कमी ने 5100 सौ करने पर मजबूर कर दिया".
उस आवाज़ को एक हल्का सा जवाब तब भी दिया था कि आपने मेज़बानों की मेजबानी को रूपयों से तौल कर आपने अपनी कीमत ख़ुद तय कर दी, क्यूंकि मेज़बानों ने मेज़बानी किसी रकम के लालच मैं नहीं की थी, ना ही उनको इंतज़ाम करते वक़्त इस रस्म की याद थी, क्यूंकि जब इंतज़ाम की जगह को बुक किया गया था तब ये रस्म नहीं बल्कि मक़सद सहूलियत को देखना था कि हमको और हमारे बाहर से आने वाले मेहमानों को भीड़ भाड़ और जाम की मुश्किल से बचाकर आसानी से किस जगह बुलाया जा सकता है, वही किया भी गया.
लेकिन कहते हैं ना कि कोई कितना भी इंतज़ाम कर ले कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ कमी ज़रूर रह जाती है, कुछ अपनी ग़लती या चूक की वजह से या कुछ पेशेवर लोगों के लालच और झूंठ की वजह से, इस मेज़बानी मैं भी वही हुआ यहां चूक मेज़बान का हद से ज़्यादा सीधा होना और अपने दोस्त पर यक़ीन करना था, जिस वक़्त मैरिज हॉल बुक किया तब मैरिज हॉल वाले ने बड़े बड़े वादे किये थे, मगर जब वक़्त आया तब उसने वादों से मुकर सिर्फ़ अपने को एक बिजनेस मैन साबित किया.
कमी यही रही कि बेटी को लेने आये लोगों को एक साथ बिठाकर एक सफ़ मैं एक साथ नाश्ता या खाना ना करा सके, वजह वही कि बारात घर वाले ने ऐन वक़्त पर टेबल और कुर्सी ना होने की बात कह दी, जबकि तय करते वक़्त हर तरहां का इंतज़ाम करने की बात की थी, मगर किया उस सबका उल्ट, वजह ख़ास मेज़बान का सीधा होना और बारात घर मालिक पर ज़रूरत से ज़्यादा यक़ीन करना...!
अब आते हैं इस एकदम से पैदा हुई मजबूरी को ये कहकर मेज़बानों की मेज़बानी का मज़ाक बनाना या नीचा दिखाने की कोशिश करना कि हमने तो हालात को देखकर अपनी सोच मैं बदलाव कर झूंठन को 5100 तय किये, तब उनको कहने से पहले सोचना चाहिए कि झूंठन वो रस्म होती है जो बेटी को वापस लाने गये साथियों की मदद के साथ पूरी की जाती है, इस रस्म को बेटी वाला अकेला अदा नहीं करता, साथ गये सब साथी मिलकर अदा करते हैं, अब सोचो किसने क्या खोया और क्या पाया...?
अगर बेटी को वापस लाने के लिए बेटी वालों के साथ (यानि दसयारी) सौ लोग हों तब, 5100 रूपये मैं हर एक के हिस्से मैं सिर्फ़ 51 रूपये आते हैं, यानि हर एक की हैसियत सिर्फ़ 51 रूपये है, जबकि अपने बोल के मुताबिक पहले 51000 होने पर हर एक की 510 और 51000 से ज़्यादा होने पर इससे कहीं ज़्यादा थी, अब सोचने किसने क्या खोया और क्या पाया...?
इस लेख का मतलब किसी को नीचा दिखाना या शर्म सार करना नहीं है बल्कि मक़सद है सच्ची मुहब्बत और प्यार को दौलत की तराज़ू से दूर रखकर एक दूसरे की इज़्ज़त को अपनी इज़्ज़त समझना, ये लेख उन लोगों की सोच को जवाब है जो लोग सामने वाले को नीचा दिखाने के चक्कर मैं ख़ुद ही अपनी इज़्ज़त को तार तार कर बैठते हैं, लिहाज़ा ऐसी बातों से बचें और मुहब्बत का जवाब मुहब्बत से दें, ये कड़वा सच है बुरा लगा हो तो मांफ़ी इस नसीहत के साथ कि दिखावा और दिखावे की सोच इंसान को शैतान बना देती है...!
सम्पादक- एनबीटीवी इंडिया डॉट इन
+919808123436
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