Thursday 4 February 2021

किसान क्या हैं, आतंकवादी या ख़ालिस्तानी या असल किसान...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"
सम्पादक- एनबीटीवी इंडिया रजि०
आईये समझते हैं कौन हैं ये आन्दोलनकारी, देश के चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को कुल 17.16 करोड़ वोट मिले थे लेकिन इस बार यह आंकड़ा 33.45 प्रतिशत बढ़कर 22.90 करोड़ को पार कर गया, यानि 23 करोड़ मान सकते हो.

अब अगर हम देखें तो इस आन्दोलन मैं अधिकतर किसान पहले भाजपा के समर्थक थे और ये गिनती यूपी के किसानों से की जा सकती है, क्यूंकि यूपी चुनाव मैं भारतीय किसान यूनियन जो आज सरकार के विरूद्ध आन्दोलन मैं बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही है वो भाजपा की हिमायत मैं थी, जिसका नतीजा ये रहा कि यूपी की 80 सीटों मैं से 71 सीटें किसानों के बल पर मिली.

भारतीय किसान यूनियन और टिकैत कौन क्या है ये जानना भी ज़रूरी है, राकेश टिकैत और नरेश टिकैत स्व चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के बेटे हैं, महेंद्र सिंह जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गाँव में हुआ था, उन्होने दिसंबर 1986 में ट्यूवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरु किया था, इसी आंदोलन के दौरान एक मार्च 1987 को किसानों के एक विशाल प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में दो किसान और पीएसी का एक जवान मारा गया था, इस घटना के बाद टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गये थे.

उस समय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने टिकैत की ताकत को पहचाना और खुद सिसौली गांव जाकर किसानों की पंचायत को संबोधित किया और किसानों की मांग पर उन्हें राहत दी.

इसके बाद से ही टिकैत पूरे देश में घूम घूमकर किसानों के लिए काम करते रहे, उन्होंने अपने आंदोलन को राजनीति से बिल्कुल अलग रखा और कई बार राजधानी दिल्ली में आकर भी धरने प्रदर्शन किए, मगर 2019 के चुनाव मैं अंदर खाने पूरी तरहां से किसान यूनियन ने भाजपा का साथ दिया, यहां तक कि चौधरी चरण सिंह जी के पुत्र और पौत्र दोनों ही को इस कारण चुनावों मैं हार का मुंह देखना पड़ा.

आपको बता दें कि 2019 में कुल 90.90 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करने के पात्र थे जिनमें से 67 प्रतिशत से अधिक ने मतदान किया और इस बार लोकसभा चुनावों में रिकॉर्ड मतदान हुआ है, जिसमें पुरुष 46.8 करोड़, महिला 43.2 करोड़, तृतीय लिंग 38,325, यानि कुल मतदाता 90 करोड़ मतदाता थे.

भाजपा ने 37.36% वोट हासिल किए, जबकि एनडीए का संयुक्त वोट शेयर 60.37 करोड़ वोटों का 45% था, यही वजह रही कि पिछले 2014 लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी को 17.1 करोड़ वोट मिले थे, वहीं इस बार 2019 मैं वोट बढ़कर 22 करोड़ से अधिक हो गए.

यानि मोदी सरकार को वोट मिले 22 करोड़ और एनडीए को को करीब 27 करोड़, सरकार के ख़िलाफ़ बंटा हुआ वोट पड़ा करीब 31 करोड़ फिर भी सरकार कहती है कि ये आतंकवादी और ख़ालिस्तानी हैं, यानि जिन्होने सरकार बनाने के लिए अपने नेताओं को भी बलि चढ़ा दिया वो आज इन नामों से पुकारे जा रहे हैं, ये लोकतंत्र मैं और लोकतंत्र के लिए शर्म की बात है.

अब सवाल ये बनता है कि अगर ये आन्दोलन किसानों का आन्दोलन नहीं है, किसान सरकार के साथ हैं, तब इतने ख़राब मौसम मैं कौन हैं ये पागल दीवाने जो एक आवाज़ पर लाखों लाख इकठ्ठा हो गये हैं, और वो कौनसा संगठन है किसानों का जो इन संगठन से बड़ा हो, साबित हो चुका था कि किसानों ने भाजपा का दामन थामा था और अब किसान भाजपा से नाराज़ हो चुका है, रही बात खेती मज़दूरों की तब वो भी हमेशा ही किसानों के साथ रहा है...?

लिहाज़ा सरकार को चाहिए कि इन बिलों पर हठधर्मी के बजाये किसानों को विश्वास मैं लेकर कार्य करे, वरना अगर वक़्त निकल गया तब सरकार को बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है, दुनिया मैं जग हंसाई शुरू हो चुकी है, इससे बचना भी ज़रूरी है.

जय हिंद जय भारत
जय जवान जय किसान 

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